Tuesday, December 30, 2008

सेक्स नहीं, इंटरनेट है महिलाओं की पसंद

यह ख़बर इस बात को साबित करती है कि आज के दौर में तकनीक किस तरह हमारे सिर पर चढ़कर बोल रही है। अमेरिकी


पुरुषों और महिलाओं के मिजाज पर हुए सर्वे के नतीजे बताते हैं कि 46 फीसदी अमेरिकी महिलाएं इंटरनेट सर्फिंग को सेक्स से ऊपर रखती हैं। उनका मानना है कि कुछ हफ़्तों के लिए अगर उन्हें सेक्स और इंटरनेट में किसी एक चुनना हो तो वह इंटरनेट को तरजीह देंगी। अमेरिकी महिलाओं पर नेट का जादू इस कदर चल रहा है कि वह सेक्स से ज़्यादा फनी सर्फिंग को मानने लगी हैं। अमेरिका बेस्ड बड़ी सॉफ्टेवयर कंपनी इंटेल ने हैरिस इंटरएक्टिव के साथ मिलकर ' इंटरनेट रिलायंस इन टुडेज इकॉनमी ' मुद्दे पर एक सर्वे किया। सर्वे की शुरुआती नतीजे बताते हैं कि 46 फीसदी अमेरिकी महिलाएं इंटरनेट की इस कदर दीवानी हैं कि वह कुछ दिनों के लिए सेक्स से परहेज तो कर सकती हैं पर इंटरनेट की तिलिस्मी दुनिया से एक पल की जुदाई बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। हालांकि, सेक्स से बेपरवाही के मामले में अमेरिकी पुरुष भी पीछे नहीं हैं। सर्वे के नतीजे बताते हैं कि करीब 30 फीसदी पुरुष भी सेक्स के आनंद की कीमत पर इंटरनेट पर पींगे बढ़ाना बेहतर समझते हैं। इस सर्वे के नतीजे इस मायने में भी खास हैं कि यह अमेरिकी अपमार्किट समाज के मिजाज की एक तस्वीर भी पेश करते हैं। सर्वे बताता है कि अमेरिकी समाज में इंटरनेट का महत्व पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ चुका है। यह इस कदर लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर हावी है कि जब लोगों से यह पूछा गया कि वह कौन से गैजिट या आइटम या सहूलियतें हैं, जिनके बिना वह नहीं जी सकते तो लोगों ने इंटरनेट को उस लिस्ट में सबसे ऊपर बताया। जबकि, केबल टीवी, बाहर डिनर, शॉपिंग और जिम जैसी पारंपरिक शौक सूची में कहीं पीछे हैं।

शादी के लिए चाहिए एचआईवी पॉजिटिव लड़की

सभी चाहते हैं कि उनकी शादी किसी खूबसूसरत, सुशील, गोरी चिट्टी, पतली और स्वस्थ लड़की से होए। य
ह पढ़कर आप सोचेंगे कि यह भी कोई बात हुई? भला कौन होगा जो इस तरह का सपना नहीं देखेगा। लेकिन एक शख्स ऐसा भी है जो चाहता है कि उसकी होने वाली पत्नी भले ही खूबसूरत न हो, न ही उपरोक्त कोई खूबी हो! इसके उलट उसकी इच्छा है कि उसकी शादी ऐसी लड़की से हो जिसका दिमाग खूबसूरत हो और सबसे अहम बात यह कि उसे एड्ज़ (एचआईवी पॉजिटिव) होना जरूरी है। अहमदाबाद के चंदेश सोलंकी (29) की यही हार्दिक इच्छा है। खुद चंदेश को एड्ज़ नहीं है लेकिन उसकी इच्छा है कि वह किसी एचआईवी पॉजिटिव ग्रसित लड़की से शादी कर अपना घर बसाएं। अब आप सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर चंदेश ऐसा क्यों करना चाहता है? नहीं, कोई सामाजिक कार्य करने का उसका विचार नहीं है। असल में चंदेश अपनी पहली शादी की नाकामयाबी के बाद निराश हो गए हैं। एक गारमंट फैक्ट्री में मास्टर कटर के रूप में कार्यरत चंदेश ने बताया: अहमदाबाद में 2001 में आए भूकंप में हमारा घर टूट गया था। इसके बाद मैं अपनी पत्नी के साथ मुंबई काम धंधे के लिए आकर बस गया। छह महीने बाद मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि वह कॉलगर्ल बन गई है। चंदेश इस बात को सुनकर सकते में आ गया। इससे पहले कि वह कुछ संभलता और कुछ सोच पाता उसकी पत्नी अपने प्रेमी तीन बच्चों के पिता के साथ भाग गई। चंदेश का कहना है कि इस घटना के बाद वह टूट गया। उसने अब यह फैसला किया है कि वह शादी एचआईवी पॉजिटिव लड़की से करेगा। इसलिए कि वह मेरा ज्यादा ध्यान रखेगी।

wish to a happy new year2009

naya varsh aa raha hai sabhi is kay selibrasan ki tarayri kar rahay hai . lakin kya jo bitay varsh mai hua wo desh kay liya thik tha bilkul nahi desh mai terrist activactisn asi rahi rahi ki desh ka har am jan bhaybat ho gaya lakin kisi nay bhi himant nahi hari aur jo kuch hua wo sab kay hi samnay tha ayoo is naya saal mai prem kushi ki kamanay kay sath nay saal 2009 ka sawgat kartay hua sabhi buri aadatoo ko tayag de sabhi ko nay saaaal ki bhadai

नए साल में अपने लिए किए गए संकल्प पर टिकता क्यों नहीं है?


हम में से ज्यादातर लोग दिसम्बर में ही सोच लेते हैं कि नए साल में हम क्या करेंगे और क्या नहीं करेंगे। धूम्रपान छोड़ दूंगा, गुस्से पर काबू रखूंगा, अपनी चीजें करीने से रखूंगा, टालमटोल नहीं करूंगा, सुबह सैर किया करूंगा, वजन कम किया जाएगा- नए वर्ष में संकल्पों की सूची बहुत लम्बी है। दिलचस्प बात यह है कि 20 प्रतिशत लोग जनवरी के पहले हफ्ते में ही अपना संकल्प तोड़ देते हैं और 50 प्रतिशत लोग तीन महीने के अन्दर छोड़ देते हैं। यह एक पहेली है कि आज जबरदस्त कंपीटीशन में जो व्यक्ति अपने क्षेत्र में औरों से आगे हैं, वह नए साल में अपने लिए किए गए संकल्प पर टिकता क्यों नहीं है? एक मनोवैज्ञानिक का कहना है, 'नए वर्ष का संकल्प आमतौर पर भावनात्मक होता है और लोगों के दबाव में आकर किया जाता है। जो बात मन से नहीं उपजती, वह कमजोर होती है। आप को पता नहीं होता है कि क्या करना है या किस तरह करना है?' संकल्प पर कायम रहने के लिए योजनाबद्घ ढंग से एक-एक कदम बढ़ना चाहिए और आप को यह मालूम होना चाहिए कि आखिर आप चाहते क्या हैं और उसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है। एक बड़ी कम्पनी में मानव- संसाधन विभाग की अधिकारी लीला मागो कहती हैं: 'संकल्प टूटने की एक वजह यह भी है कि जनवरी के पहले हफ्ते में ही लोग ज्यादती पर उतर आते हैं। सुबह सैर पर जाने का वादा करनेवाला एकाध किलोमीटर की बजाय तीन-चार किलोमीटर चलने लग जाता है। घर में व्यायाम करनेवाला कुछ ज्यादा ही कसरत करने लगता है और जोड़ों में दर्द की शिकायत करता है। जो दुबला होना चाहता है वह खाना- पीना आधे से भी कम कर देता है।' संकल्प टूटने का दूसरा कारण यह है कि चलो, आज मिस हो गया, नहीं कर सके, कल से फिर शुरू कर देंगे,' कह कर एकाध दिन के लिए उसे ताक पर रख देते हैं। बाक्स टॉप 10 संकल्प -....................1 वजन कम करेंगे। - फिट रहने के लिए व्यायाम करेंगे। सुबह सैर जाएंगे। - धूम्रपान छोड़ देंगे। - दारू कम पिऊंगा या छोड़ दूंगा। - बीवी बच्चों के साथ ज्यादा वक्त बिताएंगे।। - उधार नहीं लेंगे। - अपने आप को सुव्यवस्थित करूंगा। चीजें इधर उधर नहीं रखूंगा। टाल मटोल नहीं करूंगा। - जल्दी सो जाया करूंगा और सुबह जल्दी उठा करूंगा। - गुस्से पर काबू रखूंगा -10 बेकार की बातों को दिल में नहीं रखूंगा।

Monday, December 29, 2008

'ब्रेकफस्ट न लेने वाले जल्द गंवाते हैं कुंआरापन'

सुबह के समय लिए जाने वाले नाश्ते (ब्रेकफस्ट) का सेक्स से संबंध हो सकता है। पहली नज़र में यह सवाल अटपटा
लग सकता है, लेकिन जापानी रिसर्चर नई खोज के साथ सामने आए हैं। उनके मुताबिक, ऐसे यंगस्टर्स जो ब्रेकफस्ट नहीं करते, वे कम उम्र में ही अपना कुंआरापन गंवा देते हैं। जापान में 3 हजार लोगों पर की गई स्टडी में पता चला कि शुरुआती टीन ऐज में नियमित तौर पर नाश्ता न करने वाले लोगों ने औसतन 17.5 साल की उम्र में ही सेक्स कर लिया, जबकि ओवरऑल तौर पर यह उम्र 19 साल थी। ऐसे लोग जिन्होंने शुरुआती टीन ऐज में नियमित तौर पर ब्रेकफस्ट किया, उन्होंने 19.4 साल की उम्र में पहली बार सेक्स का अनुभव लिया। जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय की मदद से की गई इस स्टडी का मकसद अनचाहे गर्भधारण को रोकने के उपाय ढूंढना था। स्टडी में यह नतीजा भी सामने आया कि सुव्यवस्थित घरेलू जीवन कम उम्र में सेक्स नहीं करने में सहायक होता है।
संभार टाईम्स

Tuesday, December 9, 2008

छोटे केश वाली महिलाएं कम कामुक


ये जुल्फ इतनी हसीन कैसे, ये जुल्फ नहीं घटा है घटा, यदि इन्हें घटा कहें तो फिर घटा को क्या कहें।’ वर्षो से कवि व शायर केशों को न जाने कैसी-कैसी उपमाएं देते आ रहे हैं। सेक्स का संबंध बालों से भी है। इसका खुलासा वैज्ञानिकों ने एक शोध में किया है शोध के अनुसार जिन महिलाओं के केश छोटे होते हैं वे सेक्स में कम रुचि लेती हैं। छोटे केश सज्जा वाली महिलाएं अथवा युवतियों की शारीरिक भाषा लंबे केश सज्जा वाली महिलाओं की तुलना में अलग होती है।
ऐसे में इन महिलाओं के प्रति पुरुष कम आकर्षित होते हैं। प्रारंभ में यह दावा 59 वर्षीय सेक्सथेरेपिस्ट व पूर्व हास्य कलाकार ‘पामेला स्टिफस्न ने किया था, कि ‘जो महिलाएं छोटे केश सज्जा को प्रमुखता देती हैं इनमें सेक्स के प्रति आकर्षण कम होता है। पामेला की इस रिपोर्ट को वैज्ञानिकों ने सही ठहराया।
‘वैज्ञानिकों की टीम ने कहा कि सेक्स व बालों के बीच गहरा संबंध हैं। जो महिलाएं अथवा युवतियां लंबे बालों को प्रमुखता देती हैं वे स्वंच्छंद प्रवृत्ति की होती हैं और वे अपने साथी का भरपूर साथ देती हैं।
इसके विपरीत जो महिलाएं छोटे केश सज्जा को प्रमुखता देती हैं वे अपने साथी का सहयोग नहीं दे पाती। वैज्ञानिकों ने इस थ्योरी के लिए ‘केवमैन इरा’ यानी गुफा में रहने वाले आदिमानव का भी उदाहरण पेश किया। ‘डा. पैम स्पर’ ने बताया कि ‘आदिकाल से महिलाओं के केश पुरुषों को आकर्षित करते आ रहे हैं।और तो और शारीरिक संबंध बनाने में महिलाओं के केशों का एक अहम रोल होता है।’

Sunday, December 7, 2008

कुत्ता ढूंढो और एक लाख पाओ


भले उत्तराखण्ड में किसी अपराधी का पता देने वाले या पकड़वाने वाले के लिए एक लाख का इनाम न हो, पर दिल्ली से गायब हुए एक जर्मन शेफर्ड कुत्ते का पता देने वाले को जरूर एक लाख रुपये का इनाम दिया जायेगा। दिल्ली पुलिस ने इस बारे में उत्तराखण्ड और यूपी की पुलिस से भी मदद मांगी है और कुत्ते के फोटोग्राफ यहां भेजे हैं। डीसीआरबी ने इस बारे में सभी थानों को सचेत भी किया है और कहा है कि अगर कुत्ते का कहीं भी पता चले तो जरूर जानकारी दी जाए। दिल्ली के एक बड़े कारोबारी का प्रिय और बेशकीमती कुत्ता लूका कहीं गायब हो गया। मिक्स ब्रीड का ये डालमेशियन जर्मन शेफर्ड कुत्ता 28 अक्टूबर 08 को दिल्ली के मालचा मार्ग, चाणक्यपुरी से गायब है। एक साल चार माह का ये कुत्ता चूंकि बेशकीमती था, इसलिए हड़कंप मच गया। कुत्ते के लिए तमाम बड़े लोगों के फोन बजने शुरू हो गए और दिल्ली के चाणक्यपुरी थाने में मामला भी दर्ज कर लिया गया। कुत्ते का पता देने वाले को एक लाख रुपये का इनाम भी आनन-फानन में घोषित कर दिया गया। आसपास के जिलों में भी कुत्ते की फोटो समेत संदेश भेज दिये गए और इस काम में खुद चाणक्यपुरी थाने की पुलिस जुट गई। पुलिस के पास भी कुत्ते का फोटो और जानकारी पहुंची और उसका पता लगाने के लिए कहा गया है। इस बावत डीसीआरबी ने पूरे जिले के थानों को सूचना प्रेषित की है। अब भले पूरे जोन में एक लाख रुपये का कोई इनामी अपराधी न हो, लेकिन उक्त कुत्ते को खोजने पर जरूर एक लाख का इनाम मिलेगा।.............

Friday, December 5, 2008


अमेरिकी इंटेलिजंस चीफ ने कहा लश्कर की करतूत...........1
वॉशिंगटन: अमेरिका के इंटेलिजंस चीफ ने मुंबई हमलों के मामले में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैबा
पर उंगली उठाई है। इससे भारत के इस दावे को बल मिला है कि हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं। अमेरिका में नैशनल इंटेलिजंस डाइरेक्टर माइक मेककॉनेल ने मंगलवार रात हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में दिए भाषण में यह शक जताया। इससे चंद घंटे पहले भारत ने मुंबई में आतंकवादी हमलों के मद्देनजनर लश्कर-ए-तैबा के प्रमुख हाफिज मोहम्मद और पाकिस्तान में रह रहे अन्य भगोड़ों को सौंपने की मांग की थी। मुंबई में हुए हमलों में मारे गए लोगों में 6 अमेरिकी भी हैं। मैककॉनेल ने हालांकि लश्कर का नाम खुले तौर पर नहीं लिया लेकिन कहा कि हमारा मानना है कि मुंबई में हमलों के लिए वही ग्रुप जिम्मेदार है, जिसने सन 2006 में मुंबई की टेनों पर और 2001 में भारतीय संसद पर हमले किए थे। गौरतलब है कि भारत ने 2006 में मुंबई ट्रेन विस्फोट के लिए लश्कर-ए-तैबा को जिम्मेदार ठहराया था। संसद पर 2001 के हमले के लिए भी पाकिस्तान स्थित अन्य उग्रवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और इसी संगठन को जिम्मेदार ठहराया था। मैककॉनेल पहले अमेरिकी अधिकारी हैं, जिन्होंने अधिकृत तौर पर लश्कर पर मुंबई हमलों के पीछे होने का शक जताया है। .................................
,,,,,,,,,,,,के विभिन्न प्रांतों में पाकिस्तानी सेना की नाक के न
ीचे आतंक के कई स्कूल चलाए जा रहे हैं। इनमें न केवल कई तरह की एसॉल्ट राइफलें चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है, बल्कि जमीन से आसमान में मार करने वाली मिसाइलें और कंधे से छोड़ी जाने वाली मिसाइलें चलाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। पाकिस्तान में सेना से रिटायर्ड सैनिकों द्वारा चलाए जा रहे इन आतंकी स्कूलों का गहन अध्ययन करने के बाद यहां पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ विलसन जॉन ने एक शोध रिपोर्ट में कहा है कि इन स्कूलों में आत्मघाती हमलों के लिए सैकड़ों लड़कों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन्हें न केवल एके-47 और एमआई-5 जैसी राइफलें चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है, बल्कि इन्हें जमीन से छोड़ी जाने वाली मिसाइलों के साथ कई तरह की लंबी दूरी तक जाने वाले रॉकिट लॉन्चरों को छोड़ने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। विचार संस्था ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो विलसन जॉन ने अपनी रिपोर्ट में जो खुलासा किया है इससे साफ है कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय संकल्प दिखाए तो पाकिस्तानी सेना पर सबसे पहले इस बात के लिए दबाव डालना होगा कि इन स्कूलों को बंद करवाए। विलसन जॉन के मुताबिक, छोटे स्कूलों को तीन से चार लाख रुपये और बड़े स्कूलों को 20 से 30 लाख रुपये हर महीने सरकारी कोष से ही भेजे जाते हैं। संभवत: यह राशि पाकिस्तानी सेना की गुप्तचर एजंसी आईएसआई अपने विशेष कोष से भेजती है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक, ये आतंकी स्कूल खुले आम चल रहे हैं और यदि अमेरिकी सेना चाहे तो पाकिस्तानी सेना पर दबाव डलवा कर इन्हें बंद करवा सकती है। आतंकवाद की जड़ें उखाड़ने में अमेरिका सबसे बड़ा कदम यही उठा सकता है। यदि इन स्कूलों को बंद करवा दिया गया तो तालिबान और भारत विरोधी अन्य आतंकवादी संगठनों को जिहादी सैनिक नहीं मिलेंगे। विलसन जॉन के मुताबिक, ये स्कूल न केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बल्कि पंजाब, वजीरिस्तान और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में चल रहे हैं और इन स्कूलों के सिलेबस 9/11( न्यू यॉर्क में हुए हमले) के पहले चलाए जाने वाले आतंकवादी स्कूलों से अधिक आधुनिक है और जहां नई प्रणालियों की जानकारी दी जाती है। विलसन के मुताबिक, मुंबई पर आतंकवादी हमला करने वाले आतंकवादी इन्हीं स्कूलों से आए हैं। इन स्कूलों की मौजूदगी की जानकारी किसी गुप्तचर सूत्र से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के अखबारों से हासिल की गई है। ये आतंकी स्कूल पिछले दो सालों के दौरान खुले हैं। इन्हीं स्कूलों से आतंकवादी संगठन तालिबान, हिजबुल मुजाहिदीन, अल बदर, मुजाहिदीन, लश्कर ए तैबा, जैश ए मुहम्मद अपने लिए जिहादी आतंकवादियों की भर्ती करते हैं। उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के हजारा इलाके में चल रहे इन स्कूलों में एक हजार से अधिक आतंकवादी ट्रेनिंग ले रहे हैं जहां इन जिहादियों द्वारा खुले आम किसी सैनिक की तरह राइफलें और मिसाइलों का संचालन सीखते देखा जा सकता है। मनसेहरा जिला के हिसारी और बतरासी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में सबसे अधिक आतंकवादी तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा एबोटाबाद जिले में चल रहे ट्रेनिंग स्कूल में भी नाटो की सेना से लड़ने के लिए लश्कर ए तैबा द्वारा तालिबान के लड़ाकों की भर्ती की जा रही है। पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय रावलपिंडी की नाक के नीचे हरकत उल मुजाहिदीन द्वारा चलाए जा रहे ट्रेनिंग कैंप में सैकड़ों आतंकवादी प्रशिक्षित हो रहे हैं। भारतीय एजंसियों का आकलन है कि पाकिस्तान में इस तरह के कुल 55 कैंप चल रहे हैं जिन पर रोक लगाया जाए तो आतंकवाद से निबटने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है। .......................2
इस्लामाबाद: मुंबई के आतंकवादी हमलों में पाकिस्तानियों का हाथ होने की आशंका के बाद भारत ने पाकिस्तानी न
ागरिकों के लिए वीजा नियम सख्त कर दिए हैं। गुरुवार को यहां भारतीय उच्चायोग के वीजा काउंसिलर सुरेश रेड्डी ने बताया कि अब पाकिस्तानी नागरिकों की वीजा ऐप्लिकेशन 15 दिन की बजाय 30 दिन में प्रोसेस होंगी। नया नियम 15 दिसंबर से लागू कर दिया जाएगा। हालांकि, रेड्डी ने स्पष्ट किया कि यह नियम मेडिकल इमरजंसी के मामलों में लागू नहीं होगा। इसके अलावा भारत सरकार ने नया वीजा फॉर्म भी जारी किया है। यह हाई कमिशन की वेबसाइट पर मौजूद है। ..................मुंबई में आतंकवादी हमलों के मद्देनजर भारत और पाकिस्तान में तना
व की स्थिति बन गई है। भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान से दाऊद इब्राहिम समेत 20 मोस्ट वॉन्टिड आतंकवादियों को सौंपे जाने की मांग की है। इन सबके बीच अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम कराची में आराम से रह रहा है। उसे किसी की भी परवाह नहीं है। वह हर रोज की ही तरह अपनी दिनचर्या में व्यस्त है। कुछ दिन पहले दाऊद के रिश्तेदार (वैध भारतीय पासपोर्ट के साथ) उससे मिलने कराची गए थे। उनमें सलीम अंसारी भी था। सूत्रों ने बताया कि दाऊद को इस बात का पूरा यकीन है कि पाकिस्तानी प्रशासन के अधिकारी उसे छू भी नहीं पाएंगे। इसी यकीन के सहारे उसने अपनी डेली रूटीन में कोई तब्दीली नहीं की है। वह मुंबई में अपने जानने वालों से निरंतर फोन पर बातें करता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, रीयल एस्टेट बिजनस में डी कंपनी की बागडोर संभालने वाले दाऊद के एक कॉन्टैक्ट ने हवाला के जरिए 120 करोड़ रुपये उस तक पहुंचाए। मुंबई और कराची के बीच हवाला का यह खेल बदस्तूर जारी है। भारतीय सुरक्षा एजंसियां और अमेरिकी खुफिया विभाग के अधिकारी भी दाऊद की गतिविधियों पर पैनी पजर रखे हुए हैं। उनसे मिलने वाली जानकारी के आधार पर ही भारत यह कहता आ रहा है कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में है। लेकिन, सेंट्रल एजंसियां यह सवाल उठा रही हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने आखिर यहां डी कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब हम मुंबई और देश के अन्य हिस्सों में दाऊद के साम्राज्य को खत्म करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं तो पाकिस्तान से उसे सौंपने के लिए कहने का कोई औचित्य नहीं है। ..................

'पाक दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क'

वॉशिंगटनः अमेरिका में जारी एक खास रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान दुनिया का सबसे खतरनाक मुल्क बन ग
या है। अगर विश्व बिरादरी ने इस पर गौर नहीं किया, तो आने वाले पांच सालों में यहां पनप रहे आतंकवादी परमाणु और जैविक हथियारों से दुनिया को तबाह करने में सक्षम हो जाएंगे। मुंबई पर हुए आतंकी हमले बाद अमेरिकी संसद में पेश की गई इस रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। पाकिस्तानी अखबार ' द न्यूज़ ' में इस रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान की जमीन पर पनप रही दहशतगर्दों की पौध 2013 तक इतनी खतरनाक हो जाएगी कि वह किसी भी देश पर परमाणु या जैविक हथियारों का इस्तेमाल करने में नहीं हिचकेगी। गौरतलब है कि 6 महीने पहले अमेरिकी संसद की पहल पर ' वर्ल्ड एट रिस्क ' नाम से तैयार की गई इस रिपोर्ट को मंगलवार को कांग्रेस को सौंपा गया। छह महीने के शोध पर आधारित इस रिपोर्ट में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा को आगाह किया गया है कि अमेरिकी सुरक्षा की दीवार अब कमजोर पड़ रही है। वाइट हाउस की ओर से बताया गया कि इस रिपोर्ट को प्रेज़िडंट जॉर्ज डब्ल्यू बुश और नवनिर्वाचित उप राष्ट्रपति जोसेफ बिदेन को सौंपा गया है।

Thursday, December 4, 2008

पुलिस के उन अधिकारियों पर सवालियां निशान लग गया है

मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में सैकड़ों लोगों के मारे जाने के बाद उत्तराखंड सरकार पिछले तीन दिनों से आंतरिक सुरक्षा को लेकर बैठकें कर रही है और प्रदेश के डीजीपी दावा कर रहे है कि बढ़ते आतंकवाद को देखते हुए उत्तराखंड में पुलिस सुरक्षा के अत्याधुनिक तरीके अपनाएंगी, लेकिन धरातल पर पुलिस मुख्यालय के चंद अधिकारियों के यह दावें उस समय हवाई साबित हो गए जब आतंकवादियों से जंग लड़ने के लिए तीन बार खरीदी गयी बुलेटप्रूफ जैकेटों की गुणवत्ता को परखने के लिए जब उन पर 9 एमएम की गोलियां दागी गयी तो यह जैकेटे इन गोलियों को नहीं झेल पायी और इन सभी जैकेटों में गोलियां आर-पार हो गयी। जांबाजों के लिए खरीदी गयी निम्न स्तर की इन बुलेटप्रूफ जैकेटों को किन अधिकारियों के इशारे पर खरीदा गया था इसकी जांच अब होना लाजमी है क्योंकि अब देश की जनता उन अधिकारियों को किसी भी कीमत पर बक्शने के लिए तैयार नहीं है जो कि जांबाज अधिकारियों व पुलिस कर्मियों की जान को कमीशनखोरी के चलते जोखिम में डालने का खेल खेल रहे है। पुलिस के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस मुख्यालय ने अपने जांबाज अधिकारियों व पुलिसकर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए वर्ष 2004, 2006 व 2007 में बुलेटप्रूफ जैकेटे खरीदी थी। चर्चा है कि इन जैकेटों को सभी जनपदों में वितरित कर दिया गया था। बताया जा रहा था कि इन जैकेटों को राज्य में बनाए गए दल एसओजी ग्रुप को भी सुरक्षा की दृष्टि से दिया गया था। यह जैकेटे पुलिस ने हालांकि अल्मारियों में कैद करके रखी गयी है और अभी तक किसी भी जनपद के पुलिस अधिकारी ने संभवतः इतनी जहमत नहीं उठायी कि वे इस बात का आंकलन कर लें कि जो जांबाज आतंकवादियों से जंग लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते है उनके लिए जो बुलटप्रुपफ जैकेट खरीदी गयी है वे किस स्तर की है और अगर जांबाज सिपाहियों पर आतंकी हमला हो जाए तो जिन जैकेटों को पहनकर जांबाज सिपाही जंग लड़े तो क्या ये जैकेटें आतंकियों की गोली को झेल पाएगी। विश्वस्तसूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस मुख्यालय ने खरीदी इन जैकेटों की गुणवत्ता को परखने के लिए कोई मिशन नहीं चलाया क्योंकि यहां अभी तक ऐसा कोई आतंकी हमला नहीं हुआ है जिससे कि ऐसी जैकेटों को पहनकर जांबाज जंग में उतर सके। चंद समय पूर्व जब मुंबई में आतंकवादियों ने हमला किया तो उन्होंने अपने अतिआधुनिक हथियारियों से हमला कर सैकड़ों लोगों के अलावा दर्जनों सिपाहियों व पुलिस अधिकारियों को भी मौत के घाट उतार दिया जिसके बाद एकाएक राज्य की सरकार भी ऐसे आतंकी हमलों से निपटने के लिए मंथन करने लगी। हालांकि इस राज्य में न तो एटीएस का गठन और न ही एसटीएपफ का। हां इतना जरूर है कि चार जनपदों के लिए अधिकारियों ने क्विक एक्शन टीम का गठन किया है जिनमें से हरिद्वार, दून नैनीताल, उफधमसिंहनगर को चुना गया है। इस टीम में 24 सदस्यों को शामिल किया गया है और वे कुछ दिनों बाद पुलिस कंट्रोल रूम में बैठेंगे। एक ओर जहां सरकार व पुलिस मुख्यालय के कुछ अधिकारी आतंकवाद से निपटने के लिए पिछले तीन दिनों से बैठकों का आयोजन कर आतंरिक सुरक्षा से निपटने के लिए रणनीति बना रहे है वहीं उनकी यह रणनीति उस समय तार-तार होती दिखायी पड़ी जब पुलिस मुख्यालय द्वारा तीन बार खरीदी गयी बुलेटप्रूफ जैकेटों की गुणवत्ता के परखच्चे उड़ गए।पुलिस के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते रोज राजधानी के कुछ पुलिस अधिकारियों ने हमने जांबाजों के लिए खरीदी गयी तीनो जैकेटों की गुणवत्ता को परखने के लिए उन्हें वे क्लेमनटाउन के सैन्य क्षेत्र में पफायरिंग रेंज ले गए। पुलिस में ही चर्चा है कि जब इन बुलेटप्रूफ जैकेटों पर 9 एमएम की गोलियां दागी गयी तो यह जैकेटे इन गोलियों को नहीं झेल पायी और तीनों जैकेटों में गोलियां आर-पार हो गयी। आतंकवाद से लोहा लेने के लिए जांबाज अधिकारियों व सिपाहियों के लिए खरीदी गयी इन दिखावटी बुलेटप्रूफ जैकेटों में जिस तरह से गोलियां आर-पार हुई है उससे पुलिस के उन अधिकारियों पर सवालियां निशान लग गया है जिनकी देखरेख में इन बुल्लेट प्रूफ़ जैकेटों को खरीदा गया था। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिरकार किन अधिकारियों ने इन जैकेटों को खरीदने के लिए हरी झंडी दी और इन्हें खरीदते समय इनकी गुणवत्ता को क्यों नजरअंदाज किया गया है। अब बात यह भी उठ रही है कि एक ओर तो राज्य में आतंकवाद का खतरा लगातार मंडरा रहा है और वहीं उनसे लोहा लेने वाले जांबाज सिपाहियों के लिए बुलटप्रुपफ जैकेटे नहीं बल्कि मौत का सामान खरीदा गया है। पुलिस विभाग में यह चर्चा भी है कि जो बुलेटप्रूफ जैकेट 9 एमएम की गोली को नहीं झेल पायी वे आतंकवादियों के अतिआधुनिक हथियार एके-56 व एके-47 की गोलियां कैसे झेल पाएगी यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अगर वास्तव में सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए गंभीर है तो उसे जांबाज अधिकारियों व पुलिसकर्मियों के लिए उन संसाधनों को खरीदना चाहिए जो कि आतंकवादियों से लड़ने के दौरान उनके लिए ढाल का काम कर सके।

वही भिक्षुक हैं ना जो हर पाँच वर्ष में रंग बदलते हैं?

मुंबई हमले के बाद हमारे देश के नेताओं ने जिस तरह से बयान दिए हैं उससे उनकी बेशर्मी और बेहूदगी का अहसास स्वतः ही हो जाता है सत्ता के गलियारे में बैठे इन नेताओं से तो देश की सुरक्षा व्यवस्था की दिशा में कोई काम नहीं किया जाता दूसरा एक जवान देश के नाम अपनी जान कुर्बान कर देता और उसकी शहादत पर गर्व करने के बजाय उस पर व्यंगात्मक टिप्पणी की जाती है शहीद मेजर के पिता की अव्यक्त पीड़ा को कौन समझेगा जो छटपटाकर नेता को बाहर का रास्ता दिखाने को बाध्य हो जाती है? स्तब्ध हैं सारे देशवासी केरल के सीएम के बयान को सुनकर कि अगर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद नहीं होते तो कोई कुता भी उनके दरवाजे नहीं आता । अपने इस बयान के बाद मुख्यमंत्री ने न सिर्फ अपने पद की गरिमा को ठेश पहुंचाई बल्कि पूरे देश का अपमान किया ये वही भिक्षुक हैं ना जो हर पाँच वर्ष में रंग बदलते हैं? ये वही झूठों के बादशाह हैं जो चुनाव के वक्त अपनी वादों की पिटारी खोल कर तमाशा दिखाने बैठ जाते हैं और वह वोट जो हम लोकतंत्र की लाज बचाने के लिए धूप में कतारबद्ध खड़े हो कर इन्हें अर्पित करते हैं। उस वोट के बदले में हमें मिलाती है बेरोजगारी, असुरक्षा, भ्रष्टाचार, अनीति खुद लालबत्ती और सुरक्षा के घेरे में रहने वाले इन नेताओं को पूरे देश की असुरक्षा का ज़रा भी एहसास नहीं है और इस एक बेशकीमती वोट के बदले नेताओं को मिलती है लाल बत्ती की गाड़ी ,सुरक्षा गार्ड, आलीशन बंगले, नौकर और सुख-सुविधाओं का जखीरा । इन्हें तो भिक्षुक कहना भी गलत होगा क्योंकि भिक्षुक भिक्षा प्राप्ति के बाद आशीर्वाद देकर जाते हैं । उनकी इस बयानबाजी से समझ नहीं आता कि किस मिट्टी के बने हैं ये घृणित नेता जिन पर किसी भी गाली का असर तो होता नहीं उल्टे बेलगाम जुबान से समय, मौका और परिस्थितियों को ना समझते हुए ऐसी शर्मनाक बयानबाजी करते हैं। शहीद उन्नीकृष्णन के पिता ने तो सिर्फ घर घर में प्रवेश करने से रोका है अगर और कोई होता तो शायद वही सलूक करता जिसके वो लायक हैं देश के मासूम सपूत इस देश की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए और हमारे नेताओं के मुँह से ऐसी मिट्टी झर रही है। क्या केरल के मुख्यमंत्री को इस दर्द का अहसास भी है कि अपने इकलौते बेटे को राजनीतिक दुर्बलता के चलते खो देना कैसा होता है? क्या बेहतर यह नहीं होता कि वे सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करते हुए कहते कि मैं शहीद के पिता की पीड़ा समझ सकता हूँ और इस समय उनका गुस्सा जायज है। मैं उनके गुस्से का सम्मान करता हूँ । हर नेता चाहे वे किसी भी पार्टी के हों उन्हें एक बात को अच्छी तरह से समझ में आ जानी चाहिए कि आज वे सब सड़क पर खड़े हैं। उनके सारे भेद खुल चुके हैं। आज देश का बच्चा-बच्चा उनके नाम पर गालियाँ दे रहा है। और उन पर सौपी गई अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी पर अफ़सोस व्यक्त कर रहा है एक शहीद के लिए इतनी निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग करना संस्कार नहीं हैं अफ़सोस तो इस बात का भी है कि देश के नेता इतना भी नहीं जानते कि एक शहीद के परिवार की व्यथा को समझते हुए संवेदना प्रकट करने का तरीका क्या है तब तो उन्हें इसी तरह की भाषा में समझाना होगा, यही उनके स्तर की है । देश की जनता अब इन्हें सुधरने और सम्हलने का मौका भी नहीं देना चाहती । इनकी झूठी माफी भी नामंजूर किया जाना चाहिए सारा देश इस समय संदीप उन्नीकृष्णन के पिता के साथ-साथ सभी शहीदों के परिवार के दर्द को गहराई से महसूस कर रहा है। मुंबई में हुए हमलों के बाद सारा देश एक जुट है और आज गद्दी पर बैठे इन नेताओं को होश में आ जाना चाहिए कि अब कोई धोखा नहीं चलेगा कोई फरेब नहीं चलेगा कोई बयानबाजी बर्दाश्त नहीं की जायेगी अब वे देश की जनता को अपने झूठे वादे और बड़ी बड़ी घोषणाओं से गुमराह नहीं कर सकते यही समय है कि वे अपनी खोती हुई साख बचाने एकजुट होकर काम करें

पाक की आतंकी सूची में ठाकरे, छोटा राजन भी

इस्लामाबाद : पाकिस्तान ने भारत की तरफ से दी गई आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल लोगों को सौंपने से तो इनकार कर ही दिया है , अब वह जवाब में भारत को भी आतंकियों की एक लिस्ट सौंपने की सोच रहा है , जो भारत में रह रहे ऐसे लोगों की है जो पाकिस्तान सरकार के मुताबिक वहां आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं। इस सूची में अन्य लोगों के अलावा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे और अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन भी शामिल हैं।
एक पाकिस्तानी वेबसाइट 'डेलीमेल टुडे ' ने उच्च पदस्थ सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि कुछ पहले ही तैयार कर ली गई है। लिस्ट में बाल ठाकरे का नाम चौथे नंबर पर दिखाया गया है। ठाकरे को पाकिस्तान में कम से कम तीन बड़े जनसंहार करवाने का दोषी बताया गया है जिनमें 33 लोगों की मौत बताई गई है। इसके अलावा उन्हें पाकिस्तान के अलग-अलग इलाकों में जातीय हिंसा भड़काने का भी जिम्मेदार बताया गया है।
लिस्ट इस प्रकार है : 1) अजय वर्मा कर्नाटक निवासी) , 2) मनोज शास्त्री उर्फ जावेद खान मुंबई निवासी 3) राजू मुखर्जी , कोलकाता निवासी 4) बाल ठाकरे , मुंबई निवासी 5) विवेक खत्री उर्फ काला पठान , महाराष्ट्र निवासी 6) अशोक विद्यार्थी उर्फ असलम , अजमेरशरीफ निवासी , 7) राजन निखालजे उर्फ छोटा राजन (उसे रॉ के स्पेशल ऑपरेशंस विंग का प्रमुख बताया गया है) , 8) आशुतोष श्रीवास्तव उर्फ मौलवी नजीर उर्फ मुल्ला , इलाहाबादवासी 9) अशोक दूबे उर्फ शाहजी , गांधीनगर निवासी 10) संजीव जोशी , मुंबई निवासी 11) रामप्रकाश उर्फ रानू उर्फ अली , हैदराबाद निवासी 12) रमेश वर्मा , पुणे निवासी 13) बिहारी मिश्र 14) मनोज कुलकर्णी , कोलकाता निवासी 15) वेंकटेश राघवन , महाबलेश्वर निवासी 16) अजित सहाय , 17) अशोक वोहरा उर्फ नेपाली 18) विजय कपाली उर्फ गुरु , महाराष्ट्र निवासी 19) विवेक संतोषी , कोलकाता निवासी 20) मोहनदास शर्मा , पटना निवासी , 21) रामगोपाल सूरती , सूरत निवासी 22) राकेश उर्फ कालिया , मुंबई निवासी 23) प्रकाश संतोषी , लखनऊ निवासी 24) अमन वर्मा उर्फ पप्पू उर्फ गुल्लू , आगरा निवासी 25) मोहिंदर प्रकाश उर्फ यासिन खान उर्फ रियाज चिट्ठा , लखनऊ निवासी 26) आशीष जेटली उर्फ शेख उर्फ ओसामा , मुंबई निवासी 27) मनोहर लाल उर्फ पीर जी उर्फ अबू खालिद , गोहाटी निवासी 28) रामनारायण उर्फ मुफ्ती नई दिल्ली निवासी 29) अरुण शेट्टी , मुंबई निवासी 30) निखंज लाल , हरियाणा निवासी 31) सुनील वर्मा उर्फ हत्यारा , महाराष्ट्र निवासी , 32) आशीष चौहान , नई दिल्ली निवासी 33) बबलू श्रीवास्तव (छोटा राजन गैंग का सदस्य) 34) सुरेश उर्फ आमिर उर्फ अकबर खान 35) अबू बकर।
चुटकी : मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को आतंकवादियों की लिस्ट सौंपी तो अब पाकिस्तान भी ऐसी ही एक लिस्ट भेजकर भारत को जवाब देने की तैयारी में है। भारत ने पाकिस्तान से माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम मांगा जबकि पाकिस्तान ने अपनी लिस्ट में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का नाम शामिल कर दिया है। क्या भारत को दाऊद के बदले बाल ठाकरे को पाकिस्तान को सौंप देना ........................संभार दलली मेल

जब आपका बच्चा करने लगे ड्रिंक

मेट्रो सिटीज़ में युवाओं में ड्रिंक्स करने का चस्का तेजी से फैल रहा है। अगर आप चाहते हैं कि ड्रिंक के
नशे में आपका बच्चा किसी दुर्घटना का शिकार न हो, तो उसकी हरकतों पर नज़र रखें। हाल ही में हुए एक सर्वे ने स्पष्ट कर दिया है कि कॉलिज तो कॉलिज, अब स्कूल के बच्चे भी नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं और उन्हें इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती। फिर पैरंट्स के वर्किन्ग होने की वजह से बच्चों पर कंट्रोल भी बहुत कम है। ऐसे में वे ड्रिंक की लत में बहुत जल्दी फंस जाते हैं। इस बात से उनको दूर रखने के लिए उनसे अच्छा कम्यूनिकेशन बनाएं और उनकी हरकतों पर भी नज़र रखें। शौकिया होती है लत कॉलिज व स्कूल में टीनएजर्स अपने दोस्तों के उकसाने पर ड्रिंक करते हैं, लेकिन बाद में उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है। उनके लिए पार्टियों व डिस्को में ड्रिंक करना एक स्टाइल स्टेटमेंट है। अगर आपका बच्चा रात को देर से आता है या अक्सर अपने दोस्त के घर रुकता है, तो इसका साफ मतलब है कि वह बुरी संगति में फंस गया है। ऐसी नौबत को रोकने के लिए आप उसे ड्रिंक्स से होने वाले नुकसान से पहले ही वाक़िफ करवा दें। अपने बच्चे को बताएं कि दोस्त हमेशा ड्रिंक करने के लिए उकसाते हैं, लेकिन उसे इन चीजों से बचकर चलना है। एजुकेशन अक्सर पैरंट्स अपने बच्चों को ज्यादा ड्रिंक न करने और ड्रिंक करके ड्राइव न करने की ठीक सलाह देते हैं, लेकिन टीनएजर्स इन्हें बस लेक्चर की तरह लेते हैं। वे इन बातों की गहराई को समझ नहीं पाते। अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपकी बात सुनने के साथ उनका अर्थ भी समझे, तो आप पूरा दिन उसके साथ बिताएं। अपने बच्चे की सारी बातों को ध्यान से सुनें और उदाहरण के साथ अपनी बात कहें। उसे इंटरनेट के जरिए भी इन बातों से होने वाले नुकसान के बारे में बताएं। उसे समझाएं कि यह सिर्फ एक विषय ही नहीं, बल्कि हकीकत है। अपने आस-पास ड्रिंक करने वाले लोगों के उदाहरण दें। बच्चे से करें कमिटमंट आप जानते हैं कि आपका बच्चा पार्टी में ड्रिंक करता है। ऐसी स्थिति में उसके लिए कुछ नियम बना दें। उसे बता दें कि अगर वह पार्टी में डिंक करता है, तो खुद ड्राइव न करे, बल्कि घर से किसी को लेने के लिए बुलाए। आप भी अपने बच्चे को लेट नाइट पार्टी से लाने के लिए हमेशा तैयार रहें। अक्सर देखा गया है कि जब बच्चा रात में आपको फोन करता है, तो झुंझलाहट में आप उसे लाने से इनकार कर देते हैं। आप जब उसे लेकर आ रहे हैं, तो उसे कोई भी लेक्चर न दें। बल्कि उसकी तारीफ करें कि ऐसी सिचुएशन में उसने आपको फोन किया। अगर आप उसे कुछ समझाना चाहते हैं, तो सुबह कहें क्योंकि तब तक उसका नशा उतर चुका होगा। बच्चे को यह भी बताएं कि ड्रिंक के नशे में वह अपने किसी दोस्त या अजनबी के साथ न जाए। इस तरह ड्रिंक करने के बाद बच्चा भटकेगा नहीं। लक्षण पहचानें बच्चा जब भी डिंक करके घर आएगा, तो वह कोशिश करेगा कि किसी को पता न चले। चूंकि आप भी अपने काम में बिजी होते हैं, इसलिए आप भी उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाएंगे। ऐसे में कभी-कभार ड्रिंक करने का उसका शौक धीरे-धीरे लत में तब्दील हो जाएगा। उसको पकड़ने के लिए आप उन लक्षणों को पहचानें, जिससे पता चल जाए कि उसने ड्रिंक किया है। अगर उसकी आंखें लाल रहती हों, उसका फ्रेंड सर्कल बदल रहा हो, कॉलिज या स्कूल उसकी परफॉर्मेन्स का स्तर गिर रहा हो, तो समझ जाएं कि वह गलत राह पर है।

Monday, December 1, 2008

महिलाओं के एचआईवी से बचाव का अभी एकमात्र उपाय फीमेल कंडोम ही है।


ऐसे समय में जब दुनिया भर में एचआईवी/ एड्स की बी मारी लगातार अपने पांव पसारती जा रही है तो भारत ने इसकी रोकथाम के लिए नई पहल करने की ठानी है। भारत ने इस घातक बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए महिला कॉन्डम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और इसे लोकप्रिय बनाने का फैसला किया है। महिलाओं के एचआईवी से बचाव का अभी एकमात्र उपाय फीमेल कंडोम ही है।
भारत के प्रयास को इस तथ्य के मद्देनज़र विशेष कहा जा सकता है कि दुनिया भर की जानी-मानी महिला कार्यकर्ताओं का मानना है कि फीमेल कॉन्डम को लोकप्रिय बनाने में ग्लोबल स्तर पर नाकामी हाथ लगी है। पिछले 15 सालों से इस बारे में भारी अज्ञानता और काहिली बनी हुई है। लेकिन भारत उन चंद अपवादों में शामिल है, जहां महिला कंडोम की स्वीकार्यता 97 % परसेंट के उच्चतम स्तर पर है। यही वजह है कि नैशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नाको) इस प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है कि पूरे देश में फीमेल कंडोम को मात्र तीन रुपये की कम कीमत पर मुहैया कराया जाए।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदॉस ने यहां अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कहा कि भारत में 87 फीसदी से ज्यादा मामलों में एड्स असुरक्षित सेक्स की वजह से होता है। उन्होंने कहा कि सभी नए इनफेक्शन में करीब 38 परसेंट महिलाओं को होता है। हमने पायलट चरण में पांच लाख कॉन्डम वितरित किए और इस कार्यक्रम को बड़ी कामयाबी मिली। अब हम अपने अभियान को और जोर-शोर से चलाने की योजना बना रहे हैं। 2001 में हमारे देश में कॉन्डम के नौ लाख सामान्य आउटलेट्स थे, जबकि 2010 तक 30 लाख आउटलेट्स हो जाएंगे।
नाको की महानिदेशक के. सुजाथा राव बताया कि फीमेल कंडोम खासकर घरेलू सेक्स के संदर्भ में प्रभावी साबित हुआ है लेकिन वेश्यावृत्ति के संबंध में इसे उतनी कामयाबी नहीं मिली। हमलोग महिलाओं को महज तीन रुपये में कॉन्डम मुहैया कराने की योजना पर काम कर रहे हैं, जबकि हमें इस कॉन्डम की लागत 23 रुपये पड़ती है। राव ने कहा कि हाल तक हमलोग फीमेल कॉन्डम को 40 रुपये में खरीदकर पांच रुपये में महिलाओं को उपलब्ध करा रहे थे।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत नाको ने यूके की फीमेल हेल्थ कंपनी (एफएचसी) से पांच लाख कॉन्डम खरीदे और इन्हें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल राज्यों में घरेलू महिलाओं के साथ-साथ सेक्स वर्कर्स को उपलब्ध करवाया गया। भारत अभी हाल तक फीमेल कॉन्डम का आयात करता रहा है। अब हिंदुस्तान लेटेक्स कंपनी ने कोच्चि में फीमेल कंडोम मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई है। यह यूनिट हर साल एक करोड़ फीमेल कॉन्डम का उत्पादन करेगी। ..........................................संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई है कि दुनिया भर में हर दिन 7,000 महिलाएं एचआईवी पॉजिटिव हो जाती हैं। इसके मद्देनजर यूएन ने सेक्सुअल हेल्थ सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच का आह्वान किया है। उसने एड्स बीमारी के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए भारत के प्रयासों की प्रशंसा भी की है।
युनाइटेड नेशंस पॉप्युलेशन फंड की डिप्टी इग्जेक्युटिव डायरेक्टर पूर्णिमा माने ने कहा कि लड़कियों और जवान महिलाओं को दोगुने खतरे का सामना करना पड़ता है, इसलिए इस बीमारी से उनके बचाव के लिए दोगुनी कोशिश की जरूरत है। उन्होंने कम उम्र की लड़कियों में एचआईवी वायरस के प्रसार को रोकने के लिए उठाए जाने वाले उपायों पर यहां एक गाइड जारी करते हुए यह बात कही।
माने ने कहा कि भारत में नागरिक प्रशासन संगठनों और कार्यकर्ताओं ने बाल विवाह निषेध अधिनियम को पारित करवाने में योगदान किया है। यह लड़कियों को कम उम्र में शारीरिक संबंध से बचाने में मदद करता है जो उनमें एचआईवी संक्रमण का खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने इस बीमारी के प्रसार को रोकने की कोशिश के लिए दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम की भी प्रशंसा की।
यूएन की इस संस्था ने बाल विवाह को समाप्त करने और जवान महिलाओं को एचआईवी/ एड्स से लड़ने के लिए ज्यादा सामाजिक-आर्थिक सुविधाएं देने का आह्वान भी किया। इस गाइड को युनाइटेड नेशंस पॉप्युलेशन फंड (यूएनएफपीए), इंटरनैशनल प्लैंड पैरंटहुड फेडरेशन (आईपीपीएफ) और एचआईवी पॉजिटिव यंग लोगों ने मिलकर तैयार किया है। .........................क्या सेक्स आपको राजनीति के ऊंचे पायदान पर चढ़ा सकता है ? अगर आप इस सवाल को ब ेतुका समझ रहे हैं, तो ऑस्ट्रेलिया का रुख कीजिए। ऑस्ट्रेलिया में सेक्स को गंभीरता से लेने वालों के लिए ' द ऑस्ट्रेलियन सेक्स पार्टी ' बनाई गई है।
गुरुवार को बनाई गई इस पार्टी का स्लोगन है ' हम सेक्स को लेकर गंभीर हैं ' । इस पार्टी ने उन 40 लाख लोगों को अपना लक्ष्य बनाया है जो पॉरनॉग्रफी को लेकर काफी संजीदा हैं। पार्टी के नेताओं का विश्वास है इसकी मदद से स्टेट और फेडरल संसद में सीटों को जीतने में अंतर आएगा। इस पार्टी के एजेंडे में सेक्स एजुकेशन, सेंसरशिप को समाप्त करना, सरकार के प्रस्तावित इंटरनेट फिल्टर को हटाना और लोगों को शादी करने में मदद करना शामिल है।
पार्टी की संयोजक फियोना पट्टन ने मीडिया में आई रिपोर्ट में कहा कि पांच साल में ऑस्ट्रेलियाई सेक्स इंडस्ट्री को इंटरनेट फिल्टर के कारण बाज़ार से बाहर होना पड़ सकता है। नैशनल सेक्स एजुकेशन सिलेबस पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा कि सेक्स के बारे में बच्चों में जागरुकता लाना बेहद जरूरी है। हम चाहेंगे कि सेक्स एजुकेशन को लागू किया जाए। ..................भारतीय दंपती अभी भी सेक्स जैसे मुद्दे पर आपस में खुलकर बातचीत नहीं करते। एक सर्वे के मुताबि क, भारतीय पुरुषों के लिए प्राथमिकता के लिहाज से सेक्स 17वें पायदान पर आता है, जबकि महिलाओं में यह 14वें नंबर पर है। पारिवारिक जीवन के अलावा पुरुषों ने जीवनसाथी, करिअर, मां या पिता की भूमिका निभाने, आर्थिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने को अहमियत दी। कमोबेश महिलाओं की भी यही प्राथमिकताएं थीं।
यह सर्वे जानी-मानी दवा कंपनी फाइजर ग्लोबल फार्मास्युटिकल्स द्वारा कराया गया है। इससे निकले नतीजों के मुताबिक यौन संतुष्टि का शारीरिक स्वास्थ्य और प्यार या रोमैंस से गहरा संबंध है। मुंबई के लीलावती अस्पताल के डॉक्टर रुपिन शाह का कहना है कि भारत में जो पुरुष यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं, उनके समग्र जीवन में भी संतुष्टि की कमी है। भारत में हुए इस सर्वे में 400 इलाके चुने गए थे। इनमें से अधिकतर शहरी क्षेत्र थे। इस पर टिप्पणी करते हुए शाह कहते हैं कि इस सर्वे को शहरी कहा जा सकता है। लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते मैं जानता हूं कि देश के ग्रामीण इलाकों से भी सर्वे के ऐसे ही नतीजे निकलते।
सर्वे के अनुसार भारत सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र देशों के 57 फीसदी पुरुष और 64 फीसदी महिलाएं सेक्स जीवन से बहुत संतुष्ट नहीं हैं। जो महिला और पुरुष अपने यौन जीवन से बहुत अधिक संतुष्ट हैं, उनमें से 67-87 फीसदी ने कहा कि वे अपने जीवन से खुश हैं। दूसरी ओर ऐसे लोग जो अपने सेक्स जीवन से कम संतुष्ट हैं, उनमें से महज 10 से 26 फीसदी ने माना कि उनकी जिंदगी खुशहाल है।
इस सर्वे का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि पुरुष सेक्स को जिंदगी की अहम प्राथमिकताओं में जगह देते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं उसे कम तरजीह देती हैं। सर्वे में भारतीय पुरुषों की स्तंभन कठोरता और उनके सेक्स जीवन में भी सीधा संबंध देखा गया। इस सर्वे में भारत सहित 13 देशों के 25 से 74 की उम्र के कुल 3,957 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें 2016 पुरुष और 1,941 महिलाएं शामिल थीं। संभार दर्पण

Wednesday, November 19, 2008

............ ३५ हज़ार .. महिलाऊ के साथ सोया

क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो अपनी 82 साल की उम्र में कुल 35 हजार महि


लाओं के साथ हमबिस्तर हुए। यह सनसनीखेज़ दावा एक डॉक्युमंट्री में किया गया है। यह डॉक्युमंट्री जल्द ही दिखाई जाएगी। फिल्म मेकर इऐन हैल्पेरिन के मुताबिक , ' कास्त्रो 40 सालों तक हर दिन कम से कम दो महिलाओं के साथ रोज़ सोते रहे। उन्हें लंच के तौर पर एक महिला के साथ सोते थे जबकि डिनर में दूसरी महिला महिला के साथ सोना पसंद करते थे। कभी-कभी तो उन्हें ब्रेकफस्ट में भी एक महिला की जरूरत पड़ती थी। ' कास्त्रो ने अपने प्रेज़िडंट होने का खूब फायदा उठाया। गौरतलब है कि फिदेल कास्त्रो दिसंबर 1959 से लेकर फरवरी 2008 तक क्यूबा की सत्ता पर काबिज़ रहे। इसी साल फरवरी में कास्त्रो ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। क्यूबा के तानाशाह बातिस्ता के खिलाफ क्रांति के फलस्वरूप कास्त्रो सत्ता में आए थे। हालांकि कास्त्रो के सत्ता में आने के तुरंत बाद ही अमेरिकी शासन उनके पीछे पड़ गया था लेकिन कास्त्रो के पद छोड़ने तक अमेरिका कम से कम 9 प्रेज़िडंट देख चुका था।

Tuesday, November 18, 2008

...... प्यार तो होता है ........ पर कोई करता नही...


इसमें कोई शक नहीं कि पुरुष पत्नी
या गर्लफेंड को दिल से चाहते हैं , लेकिन कभी कभार उन्हें उनसे चिढ़ भी होती है। और , इसकी वजह है कुछ आदतें , जिनसे पुरुषों को काफी कोफ्त होती है ... ड्रामेबाजी से दूरी भली आमतौर पर पुरुष ड्रामा करने वालीं महिलाओं से दूर भागते हैं। फिर महिलाएं भी अपनी जिंदगी के हर क्षण को उसी तरह इन्जॉय करना पसंद करती हैं , जिस तरह पुरुष करते हैं। बुराई सुनना पसंद नहीं पुरुषों को अपनी पत्नी या महबूबा के मुंह से किसी अन्य महिला की बुराई सुनना भी अच्छा नहीं लगता। यह एक जांचा - परखा हुआ सच है कि लेडीज दूसरी महिलाओं को अपना कट्टर प्रतिद्वंद्वी मानती हैं , पर यह हमेशा याद रखना चाहिए कोई महिला किसी दूसरे की बुराई कर पुरुषों का दिल नहीं जीत सकती। अगर कोई महिला किसी दूसरी महिला की ड्रेंस सेंस और जूतों को निशाना बनाती है तो वह महिला पुरुषों में लोकप्रिय नहीं हो सकती। ईर्ष्या से आपसी संबंधों में दरार महिलाओं के ईर्ष्यालु स्वभाव से पुरुषों को काफी कोफ्त होती है। यह कहना गलत है कि ईर्ष्या से आपसी संबंधों को नई जिंदगी मिलती है , बल्कि इससे गहरे संबंधों में भी दरार आ जाती है। जब लाइफ पाटर्नर में से कोई एक अपने साथी पर अविश्वास करने लगता है , तभी संबंध बिगड़ते हैं। शंकालु महिलाओं के साथ गुजारा कठिन पुरुषों को हर समय इमोनशल सपोर्ट के लिए अपनी ओर देखनी वाली महिलाएं भी पसंद नहीं होती। पुरुषों को महिलाओं के शक्की स्वभाव से काफी कोफ्त होती है। पुरुष सोचते हैं कि शक करने वाली महिलाओं के साथ गुजारा करना तो हर समय अपनी मनमर्जी चलाने वाली महिलाओं से भी ज्यादा तकलीफदेह होता है। बार - बार एक ही सवाल पुरुषों को अपने पार्टनर से एक ही बात बार - बार सुनना कतई अच्छा नहीं लगता। आमतौर पर महिलाओं का सवाल होता है , आप क्या सोच रहे हैं ? इससे उन्हें यह आशा होती है कि वह पुरुष उनके सामने अपने दिल की भावनाएं उंडेल कर रख देंगे , लेकिन होता इसके उलट है। अपने लिए कब टाइम निकालें ? कुछ महिलाएं चाहती हैं कि उनके पति दफ्तर के समय या काम खत्म होने के बाद सारा वक्त केवल उन्हीं के साथ गुजारें , लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि उनके पति को भी तो अपने लिए कुछ समय चाहिए। यह एक तरह से पुरुषों की प्राइवेट लाइफ में दखल है। इसके लिए महिलाएं अपने पति की मौजूदगी में रिश्तेदारों से पूछना शुरू कर देती हैं कि आपके पति खाली समय में क्या करते हैं , जो किसी भी गैरतमंद आदमी को बुरा लगेगा। महिलाएं अपने पति की जेब से बिना पूछे पैसे आदि निकाल लेती हैं। इससे भी वह परेशान होते हैं। आंसू बहाना पसंद नहीं हर समय भावनाओं के समंदर में बहने वाली महिलाएं भी पतियों को पसंद नहीं आती। पुरुषों को लगातार आंसू बहाने वाली और बात - बात पर गुस्सा करने वाली व तुनकमिजाज महिलाएं भी पसंद नहीं होतीं। कितनी बार करें शॉपिंग ? पुरुषों को बार - बार शॉपिंग के लिए पत्नी के साथ जाना पसंद नहीं होता। जब पत्नियां पतियों से शॉपिंग पर बार - बार जाने की जिद करती है तो पुरुषों को वाकई परेशानी होती है। बातूनी व्यवहार से परेशानी पत्नी का जरूरत से ज्यादा बोलना भी पतियों को नागवार गुजरता है। महिलाएं किसी बात की जड़ तक पहुंचकर ही मानती हैं , जबकि पुरुषों को गैर जरूरी बात सुनना तक नापसंद होता है। पार्टनर को सजा देना गलत पत्नियां पति को सजा देने के लिए कई तरीके अपनाती हैं। कुछ दिन के लिए पति को छोड़कर चले जाना या रूठकर पूरी तरह साथ न निभाना भी उनमें से एक है , लेकिन कई बार यह दांव उलटा पड़ जाता है और गृहस्थी तहस - नहस हो जाती है। क्या आपको भी पार्टनर की इन आदतों से चिढ़ होती है ? या फिर , आप किसी और बात से चिढ़ते हैं ............

उम्र भले बढ़ जाए, पर बूढ़ा नहीं होता प्यार



रोमैंस का उम्र से कोई संबंध नहीं होता। एक दिलचस्प रिसर्च में कहा गया है कि व्यक्ति में रोमैंस
करने की इच्छा कभी खत्म नहीं होती। यानी शादीशुदा जोड़े भले ही कई साल साथ रहे हों, लेकिन हनीमून कभी खत्म नहीं होता। रिसर्च के दौरान 10 महिलाओं और सात पुरुषों के दिमागों का अध्ययन किया गया। ये लोग अब भी अपने पार्टनरों से उतना ही प्यार करते थे, जितना कि 21 साल की उम्र में। रिसर्च के दौरान इन लोगों को अपनी पार्टनरों की तस्वीरें दिखाई गईं। वॉशिंगटन में हुई स्टडी में नतीजा निकला कि काफी पुराने हो चुके रिश्ते भी उतने ही करीबी और रोमैंटिक हो सकते हैं जितने कि नया-नया प्यार। न्यू यॉर्क के स्टेट यूनिवर्सिटी के साइकॉलजिस्ट आर्थर एरोन ने कहा कि यह एक सच है। ब्रेन स्कैनिंग में यही बात सामने आई है। कई और रिसर्चों में यह बात सामने आई थी कि रोमैंटिक लव 12-15 महीनों में खत्म हो जाता है। लेकिन यह गलत साबित हो गया है। रटगर्स यूनिवर्सिटी के एंथ्रोपॉलजिस्ट हेलन फिशर कहते हैं कि अगर आप दुनिया भर के लोगों से पूछेंगे कि क्या प्यार हमेशा जिंदा रह सकता है? वह यह कहेंगे, शायद नहीं। कई किताबें भी यह बात कहती हैं। लेकिन हम इस बात को गलत साबित कर रहे हैं। इस रिसर्च से पता चलता है कि लंबे समय तक चलने वाले रिश्तों में नए प्यार के प्रति आकर्षण और उत्साह नहीं होता।

Monday, November 17, 2008

पत्रकरिता का गिरता इस्टर कितना ठीक है


आजादी की लड़ाई के दौर में और उसके बाद भी प्रेस की भूमिका लोकतंत्र औरसमाज के पहरेदार की थी। अखबार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ था और मिशन भी।तमाम परिवर्तनों और पतन के बावजूद ८क् के दशक तक यह स्थिति कायम रही।लेकिन उसके बाद ग्लोबलाइजेशन, उदारीकरण और मुक्त अर्थव्यवस्था ने पूरीदुनिया के पैमाने पर अखबारों की भूमिका ही बदल डाली। एक ऐसे दौर में,जहां सब कुछ बाजार और सत्ता की शक्तियों से संचालित है, अखबार उससे अछूतेकैसे रह सकते हैं। अब अखबार कोई मिशन नहीं रह गए हैं, बल्कि साम्राज्यवादने जिस संस्कृति का प्रसार किया है, उसके वाहक बन चुके हैं।पूरी दुनिया में बाजार के फैलने के साथ अचानक मीडिया में एक बाढ़-सी आगई। भारी संख्या में अखबार, न्यूज चैनल और पत्रिकाओं की शुरुआत हुई।रातों-रात मीडिया की तस्वीर ही बदल गई। मीडिया में यह विस्फोट किसी बड़ेसामाजिक बदलाव या जरूरत का नतीजा नहीं था। यह बदलते हुए समय और बाजार कीआवश्यकता थी।अखबारों ने इसे समझा और पूरा किया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में प्रेस नेअपने सामाजिक सरोकार तो खोए ही, साथ ही अपनी विश्वसनीयता भी खो दी। ८क्के दशक में जब दूरदर्शन पर नुक्कड़, तमस जैसे धारावाहिक प्रसारित होते थेतो लगता था कि बड़े पैमाने पर एक अर्थपूर्ण विचार कला के माध्यम सेलाखांे लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। लेकिन आज स्थितियां पूरी तरह बदलचुकी हैं। टेलीविजन, अखबार, मीडिया कहीं भी वह नैतिक और सांस्कृतिकउदात्तता नजर नहीं आती।आज इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के बीच संबंध आदान-प्रदान का नहीं,बल्कि विरोध और प्रतिस्पर्धा का है। आज टीवी पर कोई खबर दिखाई जाती है तोउस पर भी राजनीतिक स्वार्थ हावी होते हैं। कभी उनका राजनीति और दलवादनिरपेक्ष विश्लेषण नहीं हो पाता है। मालेगांव वाली घटना इसका सबसेताजातरीन उदाहरण है और यह स्थिति सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं है।पूरी दुनिया में जो साम्राज्यवादी खेल चल रहा है, प्रेस उस खेल का सबसेसजग और तत्पर कारिंदा है। अखबारों में अब संपादकों की भी पहले जैसीभूमिका नहीं रह गई है। उनसे बौद्धिक योग्यता और विचारशीलता की उम्मीदनहीं की जाती। वे बाजार के समीकरणों से वाकिफ हों, बस इतना ही काफी है।
अखबार किसी भी समाज का आईना होते हैं। अपने युग के दुख, उसके कंपन, उसकेयथार्थ की सही और पारदर्शी तस्वीर दिखाना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। अगर१८५७ के गदर के समय के अखबार उठाकर देखें तो उनमें उस क्रांति की आहट नजरआती है। ऐसा नहीं था कि एक दिन अचानक लोग उठे और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफविद्रोह कर दिया। वर्षो से समाज में इस विद्रोह की सुगबुगाहट थी औरतत्कालीन अखबारों में इसे महसूस किया जा सकता था।ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि वे अखबार अपने समय का आईना थे, अपने युग कीआवाज थे। उस समय, जब अंग्रेजी अखबारों को लगता था कि हिंदुस्तान के लिएअंग्रेज कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं हैं, भाषाई अखबारों ने इसे गलत साबितकिया। उन्होंने जन जागरण का बीड़ा उठाया। इतिहास में प्रेस की ऐसीअभूतपूर्व सामाजिक भूमिका की मिसालें आज भी उंगलियों पर गिनी जा सकतीहैं। लेकिन आज हमारे अखबार अपने समय और समाज की धड़कनों को नहीं पढ़ पारहे हैं। खबरों के विश्लेषण में जन-पक्षधरता नहीं, सत्ता पक्षधरता साफनजर आती है।बाजार के बदलते समीकरण आने वाले समय में प्रेस पर निश्चित ही असरडालेंगे, लेकिन अगर अखबारों को अपनी अर्थवत्ता बनाए रखनी है तो उन्हेंअपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। अखबारों का बुनियादी काम सूचना देना है।उस सूचना के साथ काट-छांट, दुराव-छिपाव और पूर्वाग्रह नहीं होने चाहिए।सीधी, स्पष्ट और जनता के हक की बात होनी चाहिए।इसे बदलना किसी व्यक्ति विशेष के हाथ में नहीं है। समय इसे खुद-ब-खुदबदलेगा, लेकिन अगर इतिहास के पन्नों पर प्रेस का नाम हमेशा सम्मान व गौरवके साथ अंकित होना है तो उसे इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा। कही हम सचता नही हुआ तो हमे सोचा न होगा ,,,,,,,,,,,,,

Tuesday, November 4, 2008

जिहाद के नाम पर अय्याशी करता है सिमी चीफ नागौरी


जिहाद के नाम पर कौम का सरगना बनने का ख्वाब देख रहा स
िमी सरगना सफदर नागौरी न केवल ऐय्याश है बल्कि उसने संगठन के पैसे में भी हेराफेरी की थी। यही नहीं उसने धोखे से कई सिमी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी करवाया था। यह खुलासा किया है सफदर नागौरी के साथी आमिल परवेज ने। इंदौर पुलिस द्वारा गिरफ्तार आमिल परवेज ने अपने 'नार्को एनालिसिस टेस्ट' के दौरान नागौरी के बारे में कई अहम जानकारियां दीं। 5 जून 2008 को बेंगलुरु की फरेंसिक लैब में हुए इस टेस्ट में आमिल ने खुद नागौरी को कटघरे में खड़ा किया है। आमिल ने खुलासा किया कि नागौरी के उत्तर प्रदेश की कई मुस्लिम महिलाओं से संबंध थे। उत्तर प्रदेश का शहवाज इस तरह की हरकतों में सफदर की मदद करता था। इसीलिए उसने सिबली को प्रेजिडेंट बनाने के बजाय शहवाज को यह पद दिया था। आमिल के मुताबिक सफदर नागौरी ने अपने मित्रों के घरों में भी इस तरह की हरकतें की थी। एक बार तो उसे अपने ही मित्र इमरान की पत्नी के साथ रंगे हाथों पकड़ा भी गया था। इस टेस्ट के दौरान आमिल ने बताया कि सफदर पार्टी के लिए आए पैसे का अपने लिए इस्तेमाल करता था। सिमी के लिए आए पैसे को वह अपने किसी विश्वस्त साथी के पास रखता था। एक बार उसने दो लाख रुपये ऐसे ही एक व्यक्ति के पास रखे और फिर कुछ दिन बाद यह अफवाह उड़ा दी कि उस आदमी से किसी ने रुपये लूट लिए। ऐसी हरकतें उसने कई बार की थीं। आमिल ने बताया कि इमरान को नागौरी ने ही पकड़वाया था। आमिल ने भोपाल से फरार हुए मुनीर देशमुख के बारे में भी जानकारी दी है। आमिल के मुताबिक औरंगाबाद में रह रहे देशमुख के खाते में 2004 में करीब 27 लाख रुपये थे। ये रुपये सिमी के लिए इकट्ठे किए गए थे। देशमुख अभी फरार है। भोपाल में उसका शाहपुरा स्थित घर आज भी खाली पड़ा है। वह भोपाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखता है। नागौरी के साथ ही जेल में बंद आमिल परवेज ने इस टेस्ट के दौरान सिमी और सफदर नागौरी के पाकिस्तानी, बांग्लादेशी व खाड़ी के देशों में व्यापक कनेक्शन्स का भी खुलासा किया है। उसने उन संगठनों और लोगों के नाम भी बताए हैं जो सफदर के संपर्क में थे। साथ ही उन आतंकवादी संगठनों का भी ब्यौरा दिया है जो सिमी और सफदर की मदद करते थे। आमिल द्वारा बताए गए नामों में मध्य प्रदेश के कई सफेदपोश लोग भी शामिल है। एनबीटी के पास मौजूद इस रिपोर्ट में आमिल परवेज ने देश भर में फैले सिमी सदस्यों का ब्यौरा तो दिया ही है। साथ ही उन अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के नाम भी बताए हैं जो सफदर के संपर्क में थे। उसके बयान से यह साफ झलकता है कि सिमी के कई पदाधिकारी सफदर से खुश नहीं थे। लेकिन मजबूरी में उसका साथ दे रहे थे। संभार उत्तरांचल दर्पण

Monday, October 27, 2008

सेक्स क्षमता बढ़ाने के कई नुस्खे हैं आयुर्वेद में


आयुर्वेदिक दवा से पौरुष लौटाने के बाजारू जुमले पर अगर आपका भरोसा टूटा है तो आप निश्चित रूप से सोने की भस्म की नकली चमक के शिकार हुए हैं। दवा में सोने की असली भस्म होती तो सच मानिए आप अपनी मूँछों पर ताव दे रहे होते। लेकिन केवल स्वर्ण भस्म ही क्यों, आयुर्वेद में कई ऐसे नुस्खे हैं जो आदमी के सेक्स जीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाते हैं। वैद्यों का कहना है कि कायाकल्प के लिए पंचकर्म की प्रक्रिया से गुजरने के बाद वैसे भी यह बदलाव आता है, लेकिन जड़ी-बूटियों से बनी कई दवाइयाँ हैं जो नामर्दगी का प्रभावी इलाज करती हैं। पौरुष लौटाने के आयुर्वेद के इस दावे की विश्वसनीयता जल्द ही बढ़ने वाली है। आनंद स्थित कृषि विभाग की शोध संस्था नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन मेडिकल एंड एरोमेटिक प्लांट्स (एनआरसीएमएपी) में नामर्दगी को दूर करने का गुण रखने वाले पाँच पौधों पर शोध हो रहा है। इनमें अश्वगंधा भी शामिल है। संस्थान के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इस शोध के परिणाम आयुर्वेद के दावे को पुष्ट करते हैं। संस्थान के निदेशक एस. मैटी ने आनंद से टेलीफोन पर इस शोध की पुष्टि की लेकिन कहा कि हम इन पौधों में कुछ खास रसायनों के होने की पुष्टि के लिए शोध कर रहे हैं। नामर्दगी पर इन रसायनों का क्या प्रभाव प़ड़ता है, हमारा इस पहलू से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन केरल यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर व चमत्कारी पौधे नोनी पर रिसर्च के लिए स्थापित वर्ल्ड नोनी रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक डॉ. केवी पीटर ने फोन पर बताया कि नोनी का रस भी मर्दानगी दूर करने में काफी प्रभावी साबित हुआ है। उनके पास इसके क्लिनिकल प्रमाण भी हैं। उन्होंने माना कि अश्वगंधा सहित अन्य रसायन मर्दानगी बढ़ाने की अचूक दवा हो सकती है। मूलचंद अस्पताल में आयुर्वेद के जाने-माने विशेषज्ञ डॉ. एसवी त्रिपाठी कहते हैं कि शरीर में विषैले पदार्थों की वजह से समय के पहले ही मर्द में सेक्स की ताकत कम हो जाती है। सिर्फ स्वर्ण भस्म ही नहीं, आयुर्वेद में इसे लौटाने की कई अचूक दवाएँ हैं, लेकिन इसके नाम पर जो दवा बाजार में बिक रही है, उसकी क्षमता पर सवाल है। दवा में सोने की भस्म होगी ही नहीं तो क्या फायदा होगा। इसके अलावा अश्वगंधा, शतावरी, गोक्षुर चूर्ण, तुलसी बीज के चूर्ण आदि प्रभावी दवाइयाँ हैं। आयुर्वेद में जिस प्रक्रिया से सेक्स की ताकत लौटाई जाती है उसे बाजीकरण विधि कहते हैं। लेकिन साथ ही वे यह भी कहते हैं कि 70 साल का कोई आदमी चाहे कि इस विधि से नामर्दगी का इलाज हो जाए तो यह कतई संभव नहीं है।उन्होंने दावा किया कि आयुर्वेद ही एकमात्र विधा है जिसमें कायाकल्प संभव है। जिस विधि से शरीर का शोधन यानी कायाकल्प किया जाता है उसे पंचकर्म कहते हैं। संभार
दंजय

पति से रोज पिटती हैं चालीस फीसदी महिलाएँ


बिहार के पति खुद को घर का शेर समझते हैं, इसलिए किसी न किसी बहाने अपनी पत्नियों पर वे सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा करते हैं। दूसरी तरफ ऐसे अत्याचारी पतियों के खिलाफ हिम्मत जुटाकर कानून का हंटर चलाने में छत्तीसगढ़ की महिलाएँ सबसे आगे हैं। तीन साल में घरेलू हिंसा कानून के तहत पति के हाथों पिटने वाली छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने पतियों के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई हैं। 2007 में जारी तीसरे राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के मुताबिक देश की 40 फीसदी महिलाएँ किसी न किसी बहाने रोज ही अपने पतियों से पिटती हैं। शिक्षित महिलाओं पर जहाँ 12 फीसदी घरेलू हिंसा होती है, वहीं अशिक्षितों पर 59 फीसदी। इस मामले में बिहार सबसे आगे है, पर अत्याचारी पतियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और मामला दर्ज कराने में छत्तीसगढ़ की महिलाएँ ज्यादा सजग हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड के मुताबिक 2005 में पूरे देश में घरेलू हिंसा कानून के तहत 1497 मामले दर्ज किए गए। इसमें अकेले छत्तीसगढ़ से 1390 मामले हैं। 1996 आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर हुए और 184 के खिलाफ दोष सिद्घ हुए। 2076 लोगों को गिरफ्तार किया गया। घरेलू हिंसा के तहत मामले दर्ज कराने में छत्तीसगढ़ के बाद चंडीगढ़ की महिलाएँ सामने आई हैं। चंडीगढ़ में 2005 में 75 मामले दर्ज किए गए और 56 के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किए गए। 148 लोगों पर इस कानून की गाज गिरी और वे गिरफ्तार हुए। वर्ष 2006 में भी छत्तीसगढ़ से ही सबसे ज्यादा मामले सामने आए। देशभर से 1736 मामले दर्ज हुए, जिसमें छत्तीसगढ़ की संख्या 1421 है। इनमें 1214 के खिलाफ आरोप-पत्र दायर हुआ तो 2028 लोगों की गिरफ्तारी हुई। गुजरात से घरेलू हिंसा के 150, पंजाब से 17 और उत्तरप्रदेश से 13 मामले सामने आए। वर्ष 2007 में घरेलू हिंसा के 2921 मामले दर्ज हुए। इसमें छत्तीसगढ़ से 1651 मामले दर्ज हुए। इनमें 1249 आरोपियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर हुए और 2206 पर कार्रवाई हुई। इस साल गुजरात में भी मामलों की संख्या बढ़ गई और 883 मामले दर्ज किए गए, वहीं महाराष्ट्र से 117, राजस्थान से 25 व यूपी से 25 मामले सामने आए। क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में मध्यप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, मेघालय और मिजोरम के रिकॉर्ड दर्ज नहीं है। घरेलू हिंसा कानून 26 अक्टूबर 2006 को प्रभाव में आया था, पर इस कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए उड़ीसा, राजस्थान, पंजाब, झारखंड व कर्नाटक ने संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति नहीं की है।संभार

उत्तरांचल

दर्पण

Tuesday, October 21, 2008

उत्तराखंड भाजपा में फिर बग़ावत के स्वर


........... dehradun 21 oct 08 .. उत्तराखंड में दो महीने पहले 26 विधायकों ने मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूरी के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी थी लेकिन तब पार्टी हाईकमान ने उन्हें समझा बुझाकर पंचायत चुनाव तक शांत रहने के लिए मना लिया था.
अब जैसे ही पंचायत चुनाव समाप्त हुए हैं मुख्यमंत्री खंडूरी को हटाने के लिए असंतुष्ट विधायकों और मंत्रियों ने एक बार फिर मुहिम छेड़ दी है.
काशीपुर के विधायक हरभजन सिंह चीमा ने दावा किया है कि वो और उनके साथ 17 और विधायकों ने नेतृत्व परिवर्तन की मांग को लेकर भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है.
उनका कहना था," हमने पार्टी और जनता के हित में ये क़दम उठाया है. हम चाहते हैं कि लोक सभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो लोक सभा चुनाव में पार्टी को इसका नुक़सान उठाना पड़ेगा."
पार्टी नेताओं का कहना है कि बाग़ी विधायकों की संख्या आठ है.
असंतुष्टों में बीना महाराना और त्रिवेंद्र रावत जैसे मंत्रियों के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं.
लेकिन जब तक ये लोग खुद खुलकर सामने नहीं आते हैं ये कहना मुश्किल है कि ये आरपार की लड़ाई है या सिर्फ़ दबाव की राजनीति.
ग़ौरतलब है कि 71 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा के 37 विधायक हैं.
नाराज़गी
असंतुष्ट विधायक मुख्यमंत्री खंडूरी की कथित फौजी कार्यशैली और सरकार में अपनी उपेक्षा से नाराज़ बताए जाते हैं.
हमने पार्टी और जनता के हित में ये क़दम उठाया है. हम चाहते हैं कि लोक सभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला जाए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो लोक सभा चुनाव में पार्टी को इसका नुक़सान उठाना पड़ेगा

हरभजन सिंह चीमा, भाजपा विधायक
उनकी शिकायत है कि खंडूरी ने सभी महत्तवपूर्ण विभाग अपने हाथों में रखे हैं और अपनी ही सरकार में उनकी कोई पूछ नहीं है, नौकरशाही हावी है और अफ़सर उनकी बात नहीं मानते.
उधर बग़ावत की इन ख़बरों के बीच मुख्यमंत्री खंडूरी वरिष्ठ नेताओं से मुलाक़ात कर रहे हैं.
अपने निवास पर कुछ पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने दावा किया कि उनकी राजनाथ सिंह से बात हुई है और बकौल उनके राजनाथ सिंह ने कहा है कि उन्हें किसी का त्यागपत्र नहीं मिला है.
खंडूरी ने बग़ावत करनेवालों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी है.
इस तरह से ये पहली बार है कि दोनों खेमे खुलकर सामने आ गए हैं और ऊंट किस करवट बैठेगा ये अब पार्टी हाईकमान के इशारे पर निर्भर करेगा.
फिलहाल चार राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लगी भाजपा शायद हर कदम फूंक फूंक कर रखना चाहेगी.
भाजपा में मचे इस घमासान ने प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को अतिरिक्त उत्साह से भर दिया है जो पहले से ही राहुल गांधी के तीन दिनों के उत्तराखंड के दौरे से बहुत उत्साहित है. उत्तरांचल
...दर्पण

Thursday, October 16, 2008

वह बेवफा हैं...तो गड़बड़ी जीन में है जनाब!



स्वीडन के वैज्ञानिकों ने तलाक और पुरुषों में मिलने वाले एक जीन के बीच एक खास संबंध देखा है। अब बहुत मु
मकिन है कि कुछ समय बाद तलाक के मसले सुलझाने के लिए दंपती काउंसिलर की जगह जिनेटिक क्लीनिक की राह पकड़ने लगें। कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट, स्टॉकहोम के हसी वैलम और उनके सहयोगियों ने इस जीन RS 3334 को 'तलाक जीन' का नाम दिया है। उन्होंने पाया कि पुरुषों में इस जीन की जितनी ज़्यादा कॉपियां होती हैं उनकी वैवाहिक ज़िंदगी में उतनी ही परेशानियां भी बढ़ती जाती हैं। अपने रिसर्च में उन्होंने स्वीडन के ट्विन ऐंड ऑफस्प्रिंग इंस्टिट्यूट के आंकड़ों का सहारा लिया। इसमें 550 जुड़वां बच्चों और उनके पार्टनर्स की केस स्टडी थी। वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च हमारे शरीर में पाए जाने वाले एक ऐसे प्रोटीन पर केंद्रित की जो हॉर्मोन वैसोप्रेसिन के साथ प्रतिक्रिया करता है। माना जाता है कि वैसोप्रेसिन हमारे सामाजिक व्यवहार को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसके बाद शोधकर्ताओं ने इसकी तुलना टेस्ट में भाग लेने वाले जोड़ों के सवालों-जवाबों से की। इनसे उनके आपसी संबंधों की मज़बूती को नापा जाना था। वैज्ञानिकों ने पाया कि कि जिन लोगों के शरीर में RS 3334 जीन की एक कॉपी थी उनका स्कोर उन जोड़ों से कम था जिनके पुरुष पार्टनर के शरीर में इस जीन की एक भी कॉपी नहीं थी। यही नहीं जीन की एक या दो कॉपी वाले पुरुषों की पत्नियां भी उन महिलाओं की तुलना में अपने पतियों से कम संतुष्ट थीं जिनके पति के शरीर में इस जीन की कोई कॉपी नहीं थी। इसी तरह जीन की दो या ज़्यादा कॉपी वाली महिलाएं अपने पतियों से बहुत ज़्यादा परेशान थीं। जैसे-जैसे जीन की कॉपियां बढ़ती गईं पुरुषों का अपनी पत्नी के लिए कमिटमंट भी कम होता गया। ऐसा भी देखा गया कि ऐसे पुरुष शादी की ज़िम्मेदारी या ज़िंदगी भर एक ही पार्टनर का साथ निभाने से बचने की कोशिश करते थे। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी भी रिलेशनशिप में समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं। वैलम भी जोर देकर कहते हैं कि महज़ जीन के आधार पर किसी पुरुष के व्यवहार का आकलन करना ठीक नहीं होगा। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि इस जीन के भेड़ियों में इसी तरह के असर से हमारी स्टडी को काफी बल मिलता है। फिर भी इस रिसर्च से इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वैज्ञानिक एक दिन ऐसी दवाएं बना सकेंगे जो इस जीन पर असर करके शादियों को टूटने से बचा सकें।

...खाने के और, दिखाने के और'


अगर कहा जाए कि सूचना का अधिकार कानून लागू किए जाने के तीन बरस बीत जाने तक सरकार ने इस कानून के प्रचार पर जितना खर्च किया, वह शायद एक नेता या नौकरशाह के कुछ महीनों के चाय-पानी के खर्च से भी कम है तो आपको अटपटा लगेगा, पर इस कानून के प्रचार-प्रसार के लिए केंद्र सरकार द्वारा किए गए खर्च की सच्चाई यही है।
BBCइसी कानून के तहत मिली जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार के सेवीवर्गीय एवं प्रशिक्षण विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सोनल एंड ट्रेनिंग-डीओपीटी) ने अभी तक इस कानून के प्रचार-प्रसार पर तीन बरसों में कुल दो लाख रुपए खर्च किए हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ यूपीए सरकार सूचना का अधिकार कानून को अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों में शामिल बताती है। यूपीए के कार्यकाल में ही 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून देशभर में लागू किया गया। उस वक्त सरकार ने इस कानून के जरिए सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कराने की दिशा में लोगों के हाथ में एक मजबूत अधिकार दिए जाने की बात कही थी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि जहाँ एक-एक योजना के प्रचार पर सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर देती है, सूचना का अधिकार कानून के मामले में शायद सरकार की ऐसी कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई दी। कितना किया खर्च..? : पिछले दिनों प्रधानमंत्री कार्यालय में इसी कानून के तहत आवेदन करके दिल्ली के एक युवा कार्यकर्ता अफरोज आलम ने यह जानकारी माँगी कि सरकार ने अभी तक इस कानून के प्रचार-प्रसार पर कितना पैसा खर्च किया। इसके जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस आवेदन को डीओपीटी को बढ़ा दिया। विभाग की ओर से इस बारे में दिया गया जवाब चौंकाने वाला है। विभाग के मुताबिक पिछले तीन बरसों में इस कानून के प्रचार के लिए कुल दो लाख रुपए खर्च किए गए हैं। यह पैसा डीएवीपी और प्रसार भारती के जरिए खर्च किया गया है। यानी इस आँकड़े के मुताबिक वर्ष में लगभग 66 हजार रुपए या यूँ कहें कि सरकार इस कानून के प्रचार पर औसत तौर पर हर महीने महज साढ़े पाँच हजार रुपए खर्च कर रही है। विभाग ने यह भी बताया है कि इस रकम के अलावा करीब दो लाख 80 हजार रुपए सरकारी विभागों, सूचना माँगने वालों, अपील अधिकारियों, जन अधिकारियों और केंद्रीय जन सूचना अधिकारियों को निर्देश आदि जारी करने पर खर्च कर दिया गया। यानी विभाग की ओर से सरकारी महकमे में जानकारी देने के लिए किया गया खर्च भी 100 करोड़ से ज़्यादा बड़ी आबादी के देश को सूचना का अधिकार कानून के बारे में बताने के लिए किए गए खर्च से ज्यादा है। कानून की उपेक्षा..? : सूचना का अधिकार अभियान से जुड़ी जानी-मानी समाजसेवी अरुणा रॉय कहती हैं इससे साफ है कि सरकार सूचना का अधिकार कानून को लोगों तक पहुँचाने के प्रति कितनी गंभीर है। इससे नौकरशाही का और सत्ता का इसके प्रति रवैया उजागर होता है। सूचना का अधिकार अभियान के एक अन्य मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त समाजसेवी अरविंद केजरीवाल भी सरकार की मंशा और नौकरशाही के रवैए पर ऐसे ही पटाक्षेप करते हैं।सूचना का अधिकार कानून का सेक्शन-चार कहता है कि विभागों को कामकाज से संबंधी सूचना तत्काल जारी करना और सार्वजनिक करना चाहिए। यही सेक्शन यह भी कहता है कि विभागों को इस कानून के बारे में लोगों के बीच सभी संभव संचार-प्रचार माध्यमों का इस्तेमाल कर लोगों को इससे अवगत कराना चाहिए। ...पर सरकार की ओर से इतने छोटे बजट का खर्च इस कानून की अवहेलना की कलई भी खोलता है।नौकरशाही पर निर्भर न रहें : भारत सरकार के मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह भी यह स्वीकार करते हैं कि इस कानून के प्रचार के लिए जितना पैसा खर्च किया गया है, वह काफी कम है। ...पर वे इसके लिए अलग रास्ता सुझाते हैं। उन्होंने कहा सरकार या विभागों का मुँह देखने के बजाय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि किस तरह से इस कानून को लेकर लोगों के बीच काम कर रहे संगठनों की मदद की जाए। उन्होंने कहा अगर विभागों पर ही इस कानून के प्रचार के लिए निर्भरता रहेगी तो नौकरशाही का कामकाज का तरीका इसे लेकर गंभीर नहीं होगा और अधिक पैसा देने पर भी उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। ऐसे में सरकार को उन संगठनों को पैसा देना चाहिए, जो इसके प्रचार को लेकर गंभीर हैं और इस पर काम कर रहे हैं।पर क्या मुट्ठीभर संगठनों और संसाधनों का अभाव इस विचार को बौना साबित नहीं कर देता, इस पर वे कहते हैं कि इसके लिए बड़े दानदाताओं की ओर देखना चाहिए। विश्व बैंक जैसी संस्थाएँ हजारों करोड़ रुपए का बजट ऐसे काम के लिए देने को तैयार हैं। इसके इस्तेमाल की दिशा तय करने की जरूरत है। केंद्रीय सूचना आयुक्त के तर्क और सूचना का अधिकार अभियान से जुड़े लोगों की चिंता कई संकेत देती हैं। राजनीतिक और नौकरशाही के हलकों में यह बात आम है कि सूचनाओं के सार्वजनिक होने से नेताओं और नौकरशाहों में चिंता है और हड़कंप है। विश्लेषक मानते हैं कि दुनियाभर में जो इतिहास भारत सरकार ने इस कानून को लागू करके रचा था, उसे इसके प्रचार-प्रसार के प्रति इस रवैये को देखकर ठेस पहुँची है। सवाल भी उठ रहे हैं कि प्रधानमंत्रियों के जन्मदिन और पुण्यतिथियों पर लाखों के विज्ञापन छपवा देने वाली सरकारें, अपनी उपलब्धियों पर मुस्कराती हुई तस्वीर छपवाने वाले मंत्रियों का आम आदमी को सूचना प्रदान करने वाले इस कानून के प्रति क्या रवैया है? संभार

वेब दुनिया

बॉस दिवस भारत में भी हो


अमेरिका में जहाँ बॉस और कर्मचारियों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए हर साल 16 अक्‍टूबर को बॉस दिवस मनाया जाता है, वहीं बढ़ते उदारीकरण और बाजारवाद के दौर में भारत में बॉस और कर्मचारियों के बीच के संबंध बहस का मुद्दा हैं, लेकिन कई लोगों का मानना है कि ऐसा दिन यहाँ भी मनाया जाना चाहिए।'रॉबर्ट हाफ इंटरनेशनल' के सर्वेक्षण अनुसार जहाँ 85 प्रतिशत कर्मचारियों को बॉस कर्मचारी संबंधों में दरार की वजह से अपनी नौकरी गँवानी पड़ती है, वहीं केली सर्विसेस के एक अन्य सर्वेक्षण के मुताबिक भारत दुनिया में ऐसा देश है जहाँ कर्मचारि‍यों में सबसे ज्यादा संतोष है।एसोचैम द्वारा इस साल 2 हजार 500 कर्मचारियों पर कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक देश में 68 प्रतिशत कर्मचारी पुरुष बॉस पसंद करते हैं, जबकि बाकी 32 प्रतिशत ने अपनी कोई वरीयता नहीं बताई।विशेषज्ञों के अनुसार कार्यस्थल एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताते हैं और वहाँ की चुनौतियाँ एवं तनाव उनके निजी जीवन पर गहरा असर छोड़ते हैं।उनका कहना कि यही वजह है कि कंपनियों में अब ओपन डोर पॉलिसी अपनाई जा रही है जहाँ कंपनी का मुख्य कार्यकारी अधिकारी तक हमेशा पहुँच बनी रहती है ताकि कर्मचारी अपनी बात शीर्ष स्तर पर आसानी से पहुँचा सकें और उनकी कार्यकुशलता में बॉस के निर्णय की वजह से कोई बाधा नहीं आए।
NDमनोचिकित्सकों के अनुसार कर्मचारियों की कार्यालयी समस्याओं को यदि सिरे से खारिज कर दिया जाता है तो उनमें तनाव घर करने की आशंका बढ़ जाती है और कार्यालयी समस्याओं की वजह से कुछ लोग उस हद तक जा सकते हैं जो मानव जीवन के लिए उचित नहीं है।नोएडा स्थित एक कंपनी के प्रबंधक का इस संबंध में कहना है कि बॉस को कर्मचारियों के काम की प्रशंसा करनी चाहिए। उनके साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए। आमतौर पर भारत में ऐसा नहीं हो पाता। वह अपने को बॉस के तौर पर ही पेश करता है और यही कारण है कि अकसर बॉस अलोकप्रिय हो जाते हैं।संभार

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मैं एनडी तिवारी का बेटा हूं: रोहित शेखर


नई दिल्ली : एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के नाती ने खुद को आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नारायण दत्त ति
वारी का बेटा बताया है और वह अपने दावे को लेकर दिल्ली हाइ कोर्ट चला गया है। पूर्व केंदीय मंत्री शेर सिंह के 29 साल के नाती रोहित शेखर ने दिल्ली हाइ कोर्ट में मामला दायर कर कहा है कि वह तिवारी और अपनी मां उज्ज्वला सिंह के बीच रहे संबंधों से पैदा हुआ, जो खुद भी कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हुई हैं। हैदराबाद में राजभवन से इस बारे में प्रतिक्रिया लेने के सभी कोशिशें नाकाम रही हैं। इस बारे में जब उज्ज्वला से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि तिवारी द्वारा रोहित को अपना बेटा मानने से इनकार कर देने पर उसे दिल्ली हाइ कोर्ट जाना पड़ा। उज्ज्वला ने फोन पर कहा, मैं एक सम्मानित परिवार से ताल्लुक रखती हूं। मेरे पिता केंद्रीय मंत्री थे। इस तरह की बात का खुली अदालत में खुलासा करने के लिए साहस की जरूरत है, लेकिन मैं अपने बेटे रोहित के साथ हूं क्योंकि तिवारी उसे उसका हक देने से इनकार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अदालत अप्रैल में तिवारी को नोटिस जारी कर चुकी है। उज्ज्वला ने बताया कि तिवारी ने उनके साथ की बात स्वीकारी, लेकिन कोई संबंध रखने से इनकार कर दिया। उज्ज्वला ने कहा तिवारी को पिता साबित करने के लिए उनका बेटा डीएनए परीक्षण के लिए तैयार है, लेकिन तिवारी इसके लिए तैयार नहीं हैं। उज्ज्वला के अनुसार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने कहा है कि ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, जिससे उन्हें डीएनए परीक्षण के लिए मजबूर किया जा सके। तिवारी ने दिल्ली हाइ कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल किया है क्योंकि वह इस समय हैदराबाद में रह रहे हैं और रोहित लखनऊ में पैदा हुआ था। ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने संबंधित पक्ष की इच्छा के उलट डीएनए परीक्षण का आदेश देने की अदालत की शक्ति को भी चुनौती दी है। अदालत ने अप्रैल में रोहित की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की थी और तिवारी से जवाब मांगा


संभार ... नवभारत



Thursday, September 18, 2008

मारिया के लिए ‘भगवान का घर’ है हरिद्वार


देहरादून। आज से लगभग 28 वर्ष पहले मात्र कुछ दिनों के लिए भारत आई जर्मन लेखिका मारिया विर्थ ने कभी नहीं सोचा होगा कि वे शायद हमेशा के लिए यहीं की होकर रह जाएंगी। भारत में रुकने की उनकी इच्छा के पीछे हरिद्वार एक बड़ा कारण बना। सन 2006 में जर्मन भाषा में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘वॉन गुरुस, बॉलीवुड एंड हेलिजेन कुएहेन’ के जल्द आ रहे अंग्रेजी अनुवाद में उत्तराखंड राज्य और हरिद्वार की आध्यात्मिक खूबियों का बखान किया गया है। सन 1974 में अपनी पहली भारत यात्रा के दौरान यहां की गर्मी, भिखारियों, भारी भीड़ और ऐसी ही अन्य बातों के चलते मारिया ने मन ही मन सोचा कि अब वे कभी यहां वापस नहीं आएंगी लेकिन सन 1980 में जर्मनी से ऑस्ट्रेलिया की अपनी यात्रा के दौरान उनके एक मित्र ने उनसे यहां ठहरने को कहा।मनोविज्ञान की पढ़ाई पूरी कर चुकी मारिया यह सोचकर ऑस्ट्रेलिया जा रही थीं ताकि वे देख सकें कि क्या वहां उनके रहने और काम करने लायक परिस्थितियां हैं। उस बात को 28 बरस बीत गए और मारिया आज भी यहीं हैं और वे हरिद्वार को ईश्वर का घर मानती हैं।सन1980 में जिस समय वे हरिद्वार आईं, उन्हें लगा कि यहां कोई बड़ा उत्सव हो रहा है। उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि यहां अर्धकुंभ मेला लगा हुआ है। कमरे खाली न होने की वजह से उन्हें एक पर्यटक बंगले की छत पर रात बितानी पड़ी। मेले की भीड़भाड़ में उनकी मुलाकात दो गुरुओं से हुई जिनके माध्यम से मारिया ने एक दूसरे ही भारत का साक्षात्कार किया। वे गुरु थे- आनंदमयी मां और देवरहा बाबा।मारिया कहती हैं कि, “मैंने उनकी आंखों में देखा और मुझे लगा कि उनकी आंखों के अंदर असीम शांति है। शायद यह प्रेम था जो मैं उनके प्रति महसूस कर रही थी”। उसके बाद मारिया का परिचय भारत की प्राचीन समृद्ध विरासत और इसके ज्ञान से हुआ। वे नई पुरानी आध्यात्मिक किताबों में डूब गईं। इसके बाद उनके जीवन में परिवर्तन आना शुरू हुआ और वे एक एक कर अनेक गुरुओं के संपर्क में आईं।मारिया कहती हैं कि, “हर एक के पास मुझे कुछ देने को था। रामन्ना महर्षि ने मुझे कश्मीर के शैव मत के बारे में बताया जो सारी बातें समझने में सहायक हुआ”। मारिया कहती हैं कि, “यहां आकर मुझे पता चला कि भारत का प्राचीन दर्शन कितना समृद्ध है। मैंने जाना कि सभी मनुष्य एक ही महासागर में अलग-अलग धाराओं के समान हैं और अंतत: इनको इसी सागर में विलीन हो जाना है। इसलिए धारा के अंत अथवा व्यक्ति की मृत्यु से कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि सागर ही स्थायी है”।मारिया ने लगातार सात वर्षों तक भारत भ्रमण किया है और विभिन्न गुरुओं से मुलाकात की। इस दौरान उन्हें कभी नहीं लगा कि वे अपने घर में नहीं हैं। इसके बाद ही उनके मन में खयाल आया कि वे भारत के आध्यात्मिक पहलू को ध्यान में रखकर एक किताब लिखें। वे भारत का वह रूप उजागर करना चाहती थीं जिससे पश्चिम के लोग अनभिज्ञ थे। मारिया मानती हैं कि भारतीयों के पास प्राचीन दर्शन और ज्ञान का अद्भुत खजाना है और भगवान के प्रति आस्था उनमें स्वाभाविक है। मारिया, जर्मन और भारतीय पत्रिकाओं के लिए लिखती हैं।उनका पहला आलेख वर्ष 1981 में प्रकाशित हुआ था जो ‘अद्वैत वेदांत’ पर आधारित था। मारिया कहती हैं कि वे लेखन को लेखकीय गंभीरता से नहीं लेतीं और अपने मनोभावों को कागज पर उतारती जाती हैं। उनकी इच्छा रहती है कि उनका लिखा हुआ लोगों के मन को छुए। इसलिए वे एकदम साधारण भाषा में गहरी से गहरी बात कहने में यकीन करती हैं।यह पूछे जाने पर कि अपनी हालिया जर्मनी यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के बारे में क्या कहा, वे खिलखिला उठती हैं और कहती हैं कि, “मैंने सिर्फ अच्छी बातें ही कहीं हैं। जैसे मैंने कहा कि भारत में और विशेषकर हरिद्वार में कोई ऐसी बात नहीं देखी जिसकी बुराई की जा सके। यही बात मुझे यहां रहने के लिए प्रेरित करती है। भारत आकर ही मैंने यह जाना कि एक देश के लिए प्रेम के मायने क्या हैं”संभार हिन्दी न्यूज़

Tuesday, September 9, 2008

बिजली बगैर देश का विकास नहीं : सोनिया


बीकानेर : संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की चैयरपर्सन एवं कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने यहां से 40 किलोमीटर दूर स्थित बरसिंगसर में लिग्नाइट खान एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र का बटन दबाकर लोकार्पण-शिलान्यास किया। विशाल समूह की मौजूदगी में मंच पर केन्द्रीय कोयला मंत्री सन्तोष बागड़ोदिया, केन्द्रीय खान मंत्री शीशराम ओला, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हेमाराम चौधरी, राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी मुकुल वासनिक, हरियाणा के वित्तमंत्री वीरेन्द्र सिंह, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सी. पी. जोशी, पूर्व अध्यक्ष डा. बी. डी. कल्ला, पूर्व सांसद व जिला प्रमुख रामेश्वर डूडी, कोयला विभाग के सचिव हरिश्चन्द्र गुप्ता व नेवली लिग्नाइट कॉरपोरेशन के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रसन्न कुमार भी मौजूद थे। श्रीमती गांधी ने बिना पार्टी के बैनर-झण्डे के एक तरह से चुनावी सभा में रोजगार की गारंटी योजना, अक्लियत के भाइयों के लिए कार्य और लोकसभा व विधानसभा में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने जैसी लोक लुभावनी बातों से उपस्थित जनता को कांग्रेस की ओर रिझाने का अच्छा प्रचार किया। उन्होंने अपने 9 मिनट के संक्षिप्त भाषण में औपचारिकताओं को छोड़ते हुए सीधे-सीधे परमाणु करार से लेकर बच्चों के दोपहर के भोजन के सभी कार्य गिना दिए। उन्होंने प्रदेश में चल रहे नरेगा कार्य का जिक्र किए बगैर 100 दिन की रोजगार गारंटी देने की बात केन्द्र सरकार की बताई। श्रीमती गांधी ने परमाणु करार पर प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की पीठ थपथपाते हुए यह भी कहा कि भारत की बढ़ती ऊर्जा की पूर्ति अब आसानी से की जा सकेगी। उन्होंने कहा कि बिजली के बगैर देश का विकास नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि बिजली के अभाव में काफी काम बंद हो जाते हैं। आज जिस कार्य की शुरुआत हुई है वास्तव में यह कार्य बहुत पहले हो जाना था। वे बोलीं कि हमारी कोशिश है कि बिजली योजनाओं का तीव्रगति से विस्तार हो। बरसिंगसर लिग्नाइट थर्मल प्रोजेक्ट के माध्यम से पश्चिमी राजस्थान की बिजली की कमी दूर होगी, औद्योगिक घरानों का लाभ मिलेगा। वहीं हजारों लोग रोजगार पा सकेंगे। यूपीए चैयरपर्सन ने कहा कि भारत निर्माण के तहत केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत सेहत, पानी, शिक्षा का विस्तार किया वहीं सभी क्षेत्रों में पारदर्शिता लाने के लिए सूचना का अधिकार कानून प्रभावी किया। किसानों को अन्नदाता परिभाषित करते हुए कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि उनकी तकलीफों के मद्देनजर 65 हजार करोड़ का ऋण माफ कर 4 करोड़ किसानों को लाभ दिया गया। श्रीमती गांधी ने अपने भाषण की अंतिम पंक्तियों में सटीक भाषा में कहा कि हमारा काम ही हमारी पहचान है। सरकारों की असली परीक्षा काम के रुप में ही होती है। इच्छाशक्ति और मजबूत इरादों के साथ कार्य करने की जरुरत है। इस मौके कोयला रायमंत्री सन्तोष बागडाेदिया ने कहा कि आज पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी जी का सपना पूरा हो रहा है, 8 वर्षों तक निजी कम्पनी के हाथों में रहने के बाद यूपीए सरकार ने इसे अपने हाथ में ले जो योजना बनाई उसके तहत 250 मेगावाट दिसम्बर व मार्च-2008 तक मिलने लगेगी। उन्होंने बताया कि 60 लाख यूनिट बिजली प्रतिदिन यहां बनेगी वहीं एक हजार मेगावाट यूनिट बनाने की योजना है। 8 हजार करोड़ की लागत की इस प्रोजेक्ट में 2 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। क्षेत्र में 1 लाख पौधारोपण होने की जानकारी के साथ उन्होंने बताया कि व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना से यहां के अधिकाधिक लोगों को प्रशिक्षण के साथ रोजगार मिल सकेगा। कोयला रायमंत्री ने श्रीमती गांधी के पद त्याग के बखान के साथ यह भी बताया कि बरसिंगसर में उत्पादित बिजली की खपत सिर्फ राजस्थान में ही होगी। केन्द्रीय खान राय मंत्री शीशराम ओला ने कहा कि राय के पिछडे ऌलाके के लिए अति महत्वाकांक्षी कार्य की शुरुआत आज हो रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी केन्द्र की यूपीए सरकार की उपलब्धियों का बखान किया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डा. बी. डी. कल्ला व जिला प्रमुख डूडी, अश्क अली टॉक ने भी सोनिया गांधी के आगमन से पूर्व विचार रखे थे।संभार चोटी कशी

Saturday, September 6, 2008

पुरुषों को सेक्स चाहिए, महिलाओं को सहारा


पुरुष और महिलाएं भले ही हमकदम हो गए हों, लेकिन दोनों का मूल स्वभाव आज भी अलग-अलग है। हर काम करने का दोनों का अंदाज़ एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा होता हैः पुरुषों को स्वभाव से आक्रामक, प्रतियोगिता में विश्वास रखने वाला और अपनी बातों को छिपाने में माहिर माना जाता है। दोस्तों से बातचीत में पुरुष अपने सारे राज़ भले ही खोल दें, लेकिन किसी अजनबी से गुफ्तगू में पूरी सावधानी बरतते हैं। कारण, उनकी किसी बात से विरोधी फायदा न उठा सकें। पुरुष आमतौर पर अपने कामकाज़ में किसी तरह की दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करते। आपको यह जानकर हैरत होगी कि बड़े से बड़ा नुकसान होने और बहुत ज़्यादा खुशी दोनों ही हालत में पुरुष सेक्स की ज़रूरत शिद्दत से महसूस करते हैं। वे इसे बड़ा स्ट्रेस रिलीवर भी मानते हैं। वहीं, महिलाएं बॉयफ्रेंड या पति से झगड़ा होने पर चाहती हैं कि उनकी बात को पूरी तरह सुना जाए, लेकिन अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से झगड़े के बाद उसे अपनी मज़बूत बांहों का सहारा देता है और दिल से उससे 'आई एम सॉरी' कह देता है, तो महिलाएं सब कुछ तुरंत भूल जाती हैं। कैलंडर जीन महिलाएं तारीखों का काफी हिसाब-किताब रखती हैं। उन्हें अपने पार्टनर या बॉयफ्रेंड के साथ-साथ दोस्तों, परिचितों और फैमिली मेंबर्स के जन्मदिन और सालगिरह की तारीखें याद रहती हैं, जबकि पुरुष कभी-कभी अपनी गर्लफ्रेंड या पत्नी का भी जन्मदिन भूल जाते हैं। मल्टीटास्किंग महिलाएं एक समय पर कई काम कर सकती हैं। वे फोन पर बात करते-करते टीवी देख सकती हैं। डिनर तैयार करते समय बच्चों की निगरानी कर सकती हैं, लेकिन पुरुष एक समय में एक ही काम करने में विश्वास रखते हैं। संकेतों की पहचान पुरुषों के मुकाबले महिलाएं संकेत पहचानने में ज़्यादा माहिर होती हैं, लेकिन वे दिल के मामले में अपनी बात किसी पर जल्दी ज़ाहिर नहीं करतीं। महिलाएं अपने पार्टनर की आंखों, बातों और उसके चेहरे के एक्सप्रेशंस से उसकी चाहत का अंदाज़ा बखूबी लगा लेती हैं, लेकिन किसी से कुछ कहतीं नहीं। जबकि पुरुष 'शी लव्स मी, शी लव्स मी नॉट' की भूलभुलैया में भटकते रहते हैं। आपसी समझ कहा जाता है कि एक महिला ही दूसरी महिला को अच्छी तरह समझ सकती है। पुरुष महिलाओं को समझने का लाख दावा करें, लेकिन हकीकत में वे ज़िंदगीभर अपोज़िट सेक्स का नेचर समझने में उलझे ही रहते हैं। तुरंत मांग पुरुष किसी भी चीज़ की ज़रूरत होने पर बड़ी आसानी से उसकी डिमांड कर देते हैं, पर महिलाएं अपनी पसंद की चीज़ की तरफ पहले केवल इशारा ही करती हैं। इसे न समझने पर वह अपनी डिमांड शब्दों से ज़ाहिर करती हैं। बच्चों के करीब महिलाएं आमतौर पर अपने बच्चों की तमाम ज़रूरतों के प्रति सजग रहती हैं। उनकी पढ़ाई, बेस्ट फ्रेंड्स, फेवरिट फूड, सीक्रेट फियर, उनकी आशाओं और सपनों से वे पूरी तरह वाकिफ होती हैं, जबकि पुरुषों का ज़्यादातर समय बाहर बीतता है, इसलिए वे अपने बच्चों को उतनी अच्छी तरह नहीं जान पाते। टीवी सर्फिन्ग महिलाएं टीवी देखते समय एक ही चैनल पर ज़्यादा समय तक टिक सकती हैं। किस चैनल पर उनका पसंदीदा प्रोग्राम कब आएगा, यह उन्हें अच्छी तरह पता होता है, वहीं पुरुष एक समय में छह या सात चैनल देखते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ समय पहले वे किस चैनल पर कौन-सा प्रोग्राम देख रहे थे? नींद का माहौल महिलाओं को सोने के लिए पूरी शांति की ज़रूरत होती है। हो सकता है कि एक बल्ब जलता रहने पर वह चैन से न सो पाएं, जबकि पुरुष शोर में भी 'घोड़े बेचकर' सो सकते हैं। चाहे कुत्ते भौंक रहे हों, तेज़ आवाज़ में गाना बज रहा हो या बच्चे ऊधम मचा रहे हों, अगर उन्हें सोना है, तो फिर कोई भी चीज़ उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। संभार वार्ता

क्यों होता है कैंसर, खुल गया राज़



इंसानों में होने वाले दो सबसे खतरनाक- दिमाग और पैन्क्रियास के कैंसर के पीछे छिपे जिनेटिक कारणों को खोज लिया गया है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दर्जनों ऐसे टूटे, गुमशुदा और ओवर एक्टिव जीन खोजे हैं जो ब्रेन और पैन्क्रियास(अग्नाशय) के ऐसे ट्यूमरों को जन्म देते हैं जो आगे चल कर कैंसर बन जाते हैं। इस खोज से इनके बेहतर इलाज की संभावना बढ़ी है। इंसानों में पाए जाने वाले कैंसर उम्मीद से कहीं ज्यादा जटिल होते हैं। इनका इलाज गुरिल्ला युद्ध की तरह है, जहां हर ट्यूमर में दर्जनों उत्परिवर्तित(म्यूटेशन) जीन होते हैं। जॉन हॉपकिंस इंस्टिट्यूट के प्रफेसर केनेथ किंजलर का कहना है कि अलग-अलग स्तर पर इन म्यूटेशनों से निपटना आसान होता है। लेकिन अगर एक साथ इनका सामना करना पड़े तो, कामयाब होने के लिए एकदम नई स्ट्रैटिजी अपनानी होगी। सबसे बेहतर तो यही होगा कि इन ट्यूमरों के पनपने के शुरुआती दौर में ही इनका इलाज़ शुरू कर दिया जाए। अपनी स्टडी में शोधकर्ताओं ने दो ग्रुप बनाकर ब्रेन और पैन्क्रियास ट्यूमर सेल्स के डीएनए को डी-कोड किया। इन्हें लगभग 40 रोगियों से लिया गया था। रिसर्चरों की एक टीम ने 24 पैन्क्रिएटिक और 22 ब्रेन ट्यूमर से निकाले गए 20 हजार से भी ज्यादा डीएनए का विश्लेषण किया। दूसरे समूह ने सिर्फ ब्रेन कैंसर पर ही फोकस किया और 91 ट्यूमरों से 623 जीन्स का विश्लेषण किया। पहले ग्रुप ने कैंसर के लिए जिम्मेदार कोशिकाओं में एक दर्जन से ज्यादा केमिकल फैक्टर खोजे। उन्होंने 83 जीन बदलाव देखे जो पैन्क्रियास के कैंसर को बढ़ावा देते हैं। दूसरी टीम ने ऐसे जीन खोज निकाले जिन्हें कैंसर के मामले में पहले नजरअंदाज किया जाता था। बहुत से जीन तो ऐसे थे जिनके बारे में पता ही नहीं था कि इनसे कैंसर हो सकता है। रिसर्चर डॉ. डेविड वीलर का कहना था, अभी तक हमें कैंसर की वजहें इतने बड़े स्तर पर नहीं दिखाई दी थीं। इस नई खोज से हमें इलाज के कई नए विचार आए हैं। संभार भास्कर

ब्रिस्टल पालिन


अमेरिका में वाइस प्रेज़िडंट पोस्ट की उम्मीदवार सारा पालिन की 17 साल की बेटी ब्रिस्टल पालिन के बिन ब्याहे प्रेगनंट होने की ख़बर से शुरू में हम चौंके थे। लेकिन, इतिहास पर नज़र डालें तो हम यह पाएंगे कि बड़े नेताओं की बेटियां स्कैंडल्स की वजह से पहले भी सुर्खियों में रही हैं। फिर चाहे बात अमेरिका के पूर्व प्रेज़िडंट रोनाल्ड रीगन की बेटी पैटी डेविस की हो या अमेरिकी उपराष्ट्रपति डिक चेनी की बेटी मेरी चेनी की। अब इसका दोष चाहे पावरफुल लीडर्स की अपने काम में मशरूफियत के मत्थे मढ़ें, लेकिन लीडअमेरिका के प्रेज़िडंट जॉर्ज बुश की बेटी जेना बुश अपने पिता के 8 साल के कार्यकाल के दौरान कई बार कम उम्र में शराब पीने की वजह से खब़रों में रहीं। जॉर्ज बुश को जेना की वजह से काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी। र्स अपने बच्चों को ज़्यादा समय नहीं दे पाते हैं, जिसके चलते उनके बच्चों का स्कैंडल्स में आना कतई आश्चर्यजनक नहीं लगता। अमेरिका के पूर्व प्रेज़िडंट रोनाल्ड रीगन की बेटी पैटी डेविस ने 1994 में प्लेबॉय के जुलाई अंक के कवर पर न्यूड पोज़ देकर तहलका मचा दिया था। रोनाल्ड रीगन का परिवार अमेरिका में काफी कंजर्वेटिव माना जाता है। लेकिन डेविस की प्लेबॉय इमिज ने उनके परिवार की छवि को काफी धक्का पहुंचाया था। 2004 में केन्स फिल्म फेस्टिवल में जब अमेरिका के सिनेटर जॉन केरी की बेटी अलेक्जेंड्रा केरी ने एंट्री मारी तो अच्छे-अच्छों के होश उड़ गए। केरी ने उस समय बिल्कुल आर-पार देखी जा सकने वाली ड्रेस पहनी थी। अमेरिका के वाइस प्रेज़िडंट डिक चेनी की बेटी मेरी चेनी ने जब इस बात का ऐलान किया कि वह समलैंगिक हैं, तो यह ख़बर अमेरिका सहित पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी। हालांकि, डिक चेनी के परिवार ने इस पूरे बवाल पर यह कहते हुए पानी डालने की कोशिश की कि वह लेस्बियन रिश्तों को ग़लत नहीं मानते। संभार टाईम्स

ऐसे निखरेगा रूप मिनटों में


अगर अचानक ही पार्टी या डिनर का इनवाइट आ जाए और आपके पास तैयार होने का समय ही न हो, तो इन बातों को आजमाएं। इस तरह आपको गॉर्जियस दिखने में बस कुछ मिनट ही लगेंगे: फेस ऑफ पार्टी में जाने से पहले आपके पास इतनी फुर्सत नहीं होती कि आप फेशियल करवा सकें, तो घबराइये नहीं। ऐसे में आप फेस मॉस्क ट्राई करें। आप सबसे पहले चेहरे को अच्छी तरह फेस वॉश से धोएं और उसके बाद फेस मॉस्क लगाएं। बाजार में कई वैरायटी में फेस मॉस्क उपलब्ध हैं, जिसमें आप ऑरेंज पील, नीम मॉस्क या मुलतानी मिट्टी वगैरह ट्राई कर सकती हैं। जब यह सूख जाए, तो आप स्क्रब और मॉइश्चराइजर को पानी की कुछ बूंदे के साथ अच्छी तरह मिक्स कर लें और चेहरे पर लगाकर हल्के हाथों से गोलाई में मसाज करें। पांच मिनट मसाज करने के बाद अपना चेहरा साफ पानी से धो लें। अपने होंठों पर लिप-ग्लॉस लगाएं। अगर आपकी ऑयली स्किन है, तो टांसलूसेंट पाउडर अपने फेस पर लगाएं। अब आप पार्टी में जाने के लिए तैयार हैं। लहराते काले बाल अगर आपके ऑयली बाल हैं, तो उन्हें रोज वॉश करें। पार्टी में जाने से पहले अपने बाल को अच्छे से शैंपू करें। आप चाहें, तो बाल धोने से पहले थोड़ी मसाज कर लें। अगर आपके बाल बहुत ज्यादा ऑयली हैं, तो बालों पर टेल्कम पाउडर डालें। यह आपके बालों से सारा ऑयल सोख लेगा। इसके बाद भी अगर बालों की ऑयलीनेस खत्म नहीं होती, तो आप हेयर सीरम का इस्तेमाल करें। अगर उस वक्त आपके पास सीरम नहीं है, तो वेजिटेबिल ऑयल में कुछ बूंदे पानी की डालें और उसे बालों पर लगाएं। अगर इसके बाद भी आपकी बात नहीं बनती है, अपने बालों को बांध कर उस पर सुंदर-सा क्लिप या ग्लिटर ब्रोच लगा लें। सेक्सी आंखें आंखों के सही मेकअप से लुक को काफी हद तक बदल जाता है। अगर आपको तनाव है या आप रात को देर तक जगी हैं, तो वह आपकी आंखों से साफ झलकता है। आंखों की थकान को दूर करने के लिए आंखों पर बर्फ रखें। अगर आपकी आंखों के आसपास डार्क सर्कल्स हैं, तो ब्लैक आईलाइनर की जगह ब्राउन आईलाइनर लगाएं। आईलैशेज पर हल्का-सा ऑयल लगाएं। इससे वह सॉफ्ट और शेप में आ जाएंगी। अगर आप डार्क सर्कल्स छिपाने के लिए कंसीलर लगा रही हैं, तो उसे आंख और नाक के आसपास अच्छी तरह मिक्स कर लें। स्किन को टचअप आप पार्टी में हाल्टर टॉप या हैंगिंग टॉप पहन रही हैं, तो उसके लिए जरूरी है कि आपकी स्किन भी शाइन करें। अच्छी ड्रेस होने के बावजूद रूखे हाथ व पैर आपकी खूबसूरती को बदरंग बना सकते हैं। ड्राई स्किन से निजात पाने के लिए पानी में रॉक सॉल्ट डालकर नहाएं। हाथों, पैरों और बैक की स्क्रबिंग करें। शाइनिंग पाउडर और मॉइश्चराइजर को मिला कर हाथों व पैरों पर लगा लें। आप चाहें, तो थोड़ा फाउंडेशन भी मिला सकती हैं। अगर आप डीपनेक पहन रही हैं, तो कॉलर बोन्स और क्लीवेज़ को टचअप देना न भूलें। स्टाइलिश नेल्स आप ने अपने फेस, बाल, आंखों को तो संवार लिया, लेकिन कंपलीट लुक के लिए नेल्स को अनदेखा न करें। आप ने हाथ-पैरों को अच्छी तरह साफ किया है, लेकिन नाखूनों को अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है। इसके लिए पानी में नीबू के रस और नमक डालकर नाखूनों को धोएं। अगर आपके पास टाइम नहीं है, तो अपने नेल्स पर डार्क शेड्स का नेल पेंट लगाएं। इस मौसम में ब्लैक, पर्पल और वाइन कलर परफेक्ट रहेंगे। मेकअप किट अपने बैग में मेकअप किट कैरी करना न भूलें। गोल्ड डस्ट अपने बैग में रखें। इसे आप गालों, पलकों, कॉलर बोन्स, क्लीवेज आदि पर लगा सकती हैं। आप चाहें, तो मॉइश्चराइजर के साथ गोल्ड डस्ट मिलाकर हाथों व पैरों पर भी लगा सकती हैं। ट्रांसलूसेंट पाउडर भी अपनी मेकअप किट में रखें। अगर आपकी ऑयली स्किन है, तो इसे फाउंडेशन में मिलाकर लगाएं। इसके अलावा, मॉइश्चराइजर भी बैग में कैरी करें। संभार भास्कर

महानगरों को जकड़ रहा है ध्वनि प्रदूषण



दिल्ली में रहने वाली आईटी प्रफेशनल प्रीति चोपड़ा ने कभी गांव का रहन-सहन नहीं देखा था। वह एक बार गांव में रहकर देखना चाहती थीं। अपनी इस हसरत को पूरा करने के लिए पिछले दिनों उन्होंने प्लैन बनाया और अपनी दोस्त अनीता के पूर्वी उत्तर प्रदेश स्थित गांव चली गईं। ट्रेन से उतरने तक तो सब कुछ ठीक-ठाक था लेकिन जैसे ही वह गांव पहुंचीं, उन्हें लगा मानो यहां के लोग बहुत तेज बोलते हैं या उन्हें खुद कुछ ज्यादा सुनाई देने लगा है। अनीता ने यह बात प्रीति को बताई लेकिन उन्होंने इसे वहम कहकर बात टाल दी। हालांकि प्रीति को इस पर यकीन नहीं हुआ। एक हफ्ते बाद जब वह दिल्ली पहुंचीं तो उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि अब उन्हें कम सुनाई दे रहा है। इसके बाद प्रीति ईएनटी स्पेशलिस्ट के पास गईं और उन्हें अपनी समस्या बताई। ईएनटी स्पैशलिस्ट ने उन्हें बताया कि दरअसल महानगरों में ध्वनि प्रदूषण हमारी जीवनशैली में शामिल हो गया है। हम दिनभर शोरगुल के बीच रहते हैं और यह अब हमारी आदत में शुमार हो गया है। ऐसे में जब हम किसी ऐसी जगह जाते हैं, जहां ध्वनि प्रदूषण कम होता है तो हमें कुछ अलग-सा महसूस होने लगता है। इसके बाद प्रीति को यह बात समझ में आई कि गांववाले तेज नहीं बोल रहे थे, बल्कि गांव में वे सही तरीके से सुन पा रही थीं। दरअसल, इस तरह की समस्या की शिकार अकेली प्रीति नहीं हैं, बल्कि उनके जैसे हजारों लोग हैं, जो दिल्ली जैसे शहरों में रहते हैं। यहां लगभग हर जगह ध्वनि की मात्रा निर्धारित मानकों से कहीं अधिक है। केंदीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक , औद्योगिक क्षेत्र के लिए दिन में 75 और रात में 70 डेसिबल ध्वनि सीमा तय की गई है। कमर्शल इलाकों के लिए यह सीमा दिन में 65 और रात में 55 डेसिबल, जबकि रेजिडेंशल क्षेत्र के लिए दिन में 55, रात में 45 डेसिबल और साइलेंस ज़ोन के लिए दिन में 50 और रात में 40 डेसिबल ध्वनि सीमा तय की गई है। जबकि सीपीसीबी की एक स्टडी के मुताबिक दिल्ली और एनसीआर के सभी इलाकों में ध्वनि निर्धारित सीमा से काफी ऊपर 80 डेसिबल पाई गई। यह तीव्रता लोगों के दिलोदिमाग और जीवनशैली पर असर डाल रही है। यहां हर उम्र के लोगों को सुनने, बात करने और नींद न आने की परेशानी महसूस होती है। बहरापन और मानसिक तनाव जैसी समस्याएं आज आम होती जा रही हैं। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक 20 साल तक की उम्र के 34 फीसदी लोगों में ये समस्याएं देखी जा रही हैं। 20 से 40 उम्र वर्ग के 49 फीसदी, 40 से 60 साल के 57 और 60 से ज्यादा उम्र के लगभग 75 फीसदी लोग इस परेशानी को झेल रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली जैसे शहरों में ध्वनि प्रदूषण का सबसे बड़ा स्त्रोत ट्रैफिक है। इसके अलावा म्यूजिक सिस्टम, टीवी, फ्रिज, कूलर, एसी, अवन, एग्ज़ॉस्ट फैन, सीलिंग फैन, वॉशिंग मशीन, कंप्यूटर जैसी घरेलू इस्तेमाल की अन्य चीजें भी प्रदूषण बढ़ा रही हैं। सीपीसीबी की स्टडी में शामिल लोगों से इस बात का सुझाव मांगा गया था कि आखिर इस ध्वनि प्रदूषण से किस तरह मुक्ति मिल सकती है। ज्यादातर लोगों ने कहा, इसके दुष्परिणाम के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। सरकारी मशीनरी नियमों के पालन में सख्ती बरते। जरूरत पड़ने पर एनजीओ की मदद ली जाए। साथ ही, पुलिस और सिविक अथॉरिटी को और अधिक सशक्त बनाया जाए। राममनोहर लोहिया अस्पताल के सीनियर ईएनटी स्पैशलिस्ट डॉ. जे. एम. हंस कहते हैं कि एक आम आदमी के सुनने की सहनशक्ति 55 से 60 डेसिबल होती है। आमतौर पर 5 डेसिबल की ध्वनि को धीमी, 25 डेसिबल को साधारण और 60 से अधिक डेसिबल की ध्वनि को तेज शोर यानी प्रदूषण कहा जाता है। इतने ज्यादा शोर में लंबे समय तक रहने पर कान ही नहीं, बल्कि पूरा नर्वस सिस्टम डिस्टर्ब हो जाता है। इसके कारण बेचैनी, तनाव, अनिदा, सिरदर्द, थकान, तनाव, कार्यक्षमता में कमी, बहरापन, कान के आंतरिक भाग में दिक्कत, दिल की धड़कन बढ़ने जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। साथ ही, हाई और लो ब्लडप्रैशर, चिड़चिड़ापन, गैस्ट्रिक, अल्सर, न्यूरो से जुड़ी समस्याएं, याददाश्त कमजोर होने, गर्भस्थ शिशु पर बुरा असर पड़ने, कान में तेज दर्द जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। रॉकलैंड अस्पताल के ईएनटी स्पैशलिस्ट डॉ. ए. के. वर्मा कहते हैं कि ध्वनि प्रदूषण के कारण दिल्ली जैसे शहरों में कान से संबंधित समस्या आम हो गई है और ईएनटी ओपीडी में आने वाले ज्यादातर लोगों को सुनने संबंधी दिक्कतें होती हैं। जी. बी. पंत अस्पताल के न्यूरॉलजिस्ट डॉ. देबाशीष चौधरी कहते हैं कि ध्वनि प्रदूषण से नर्वस सिस्टम डिस्टर्ब होने और सही ढंग से नींद न आने के कारण मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इसके शिकार बड़े ही नहीं, स्कूली बच्चे भी हैं। वह कहते हैं कि हाल में आई एक स्टडी के मुताबिक, दिल्ली के 15 फीसदी टीनएजर्स 11 बजे के बाद बिस्तर पर जाते हैं और करीब 1 बजे तक सो पाते हैं। 10 फीसदी स्कूली बच्चों को गहरी नींद नहीं मिलती। उनकी नींद बार-बार टूट जाती है और इस वजह से उठने पर ताजा महसूस नहीं कर पाते। दिनभर सिरदर्द, शरीर में भारीपन और मांसपेशियों में दर्द जैसी समस्याएं रहती हैं। लंबे समय तक ये दिक्कतें होने पर तनाव, याददाश्त में कमी जैसी परेशानियां सामने आने लगती हैं। इससे बच्चे पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं। डॉ. चौधरी कहते हैं कि ध्वनि प्रदूषण एक ऐसी समस्या है, जिसे दूर करके कई बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है। मगर इसके लिए सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं है। इसके परिणामों के बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। साथ-साथ नियमों को सख्ती से लागू करने और हर नागरिक को अपना फर्ज समझकर नियमों का पालन करने की जरूरत है। वह कहते हैं कि छोटे-छोटे टिप्स भी इसमें कारगर भूमिका निभा सकते हैं। जैसे गाड़ियों के मेंटीनेंस के लिए समय-समय पर सर्विसिंग कराएं। बेवजह हॉर्न बजाने से बचें, तेज आवाज में टीवी, रेडियो, लाउडस्पीकर न चलाएं, घरेलू उपकरणों को मेंटेन रखें ताकि उनसे अतिरिक्त शोरगुल न हो। बच्चों को शुरू से ही इन सब चीजों का महत्व समझाएं। इससे समस्या काफी हद तक कंट्रोल हो सकती हैसंभार टुडे

समुद्र और सूरज लाएंगे रेत पर हरियाली



समुद्र तट के नजदीक स्थित रेगिस्तानी इलाकों में ऐसे ग्रीन हाउस बनाए जाएंगे, जो समुद्री पानी का इस्तेमाल न सिर्फ गर्मी कम करने बल्कि पौधों की सिंचाई के लिए भी करेंगे। समुद्री पानी को काम लायक बनाने के लिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया जाएगा। इस तरह से रेगिस्तान में हरियाली लाने की तैयारी कर रहा है सहारा फॉरेस्ट प्रोजेक्ट। इसके जरिए न सिर्फ खाद्यान्न उपजाया जा सकेगा, बल्कि क्लीन एनर्जी और ताजा पानी भी मिल सकेगा। कैसा करेगा ग्रीन हाउस काम रेगिस्तान में बहुत बड़े साइज के ग्रीन हाउस बनाए जाएंगे। इनमें कॉन्सनट्रेटेड सोलर पावर ( सीएसपी) का इस्तेमाल किया जाएगा। सीएसपी में सोलर एनर्जी बनाने के लिए शीशों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे सूर्य की किरणें एक ही दिशा में फोकस हो जाती हैं और हीट पैदा कर बिजली बनाई जाती है। सहारा प्रोजेक्ट का दावा है कि इस तरह के ग्रीन हाउस इन्स्टॉलेशन से पूरे रेगिस्तान में हरियाली लाई जा सकती है। क्यों नहीं पनपते रेगिस्तान में पौधे रेतीली इलाकों में पौधों के न पनपने की दो वजह हैं- बहुत ज्यादा तापमान और पानी के साथ-साथ पोषक पदार्थों की मिट्टी में कमी। अभी तक ग्रीन हाउस में इस कमी को बाहर से पूरा किया जाता था, लेकिन इस ग्रीन हाउस में सारी जरूरतें खुद से पूरी की जाएंगी। ये कोशिश होगी शुष्क माहौल को आर्द्र और ठंडा बनाने की। पौधों को बढ़ने के लिए रोशनी की जरूरत होती है। लेकिन रेगिस्तान में रोशनी के साथ-साथ हीट इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि पौधों का विकास ही रुक जाता है। एक खास तापमान के बाद पत्तियों में बने बारीक छेद ( स्टोमेटा) से से पानी का निकलना इतना ज्यादा हो जाता है कि विकास के लिए जरूरी फोटो सिंथेसिस की क्रिया ही रुक जाती है। पौधे फोटोसिंथेसिस के जरिए अपने लिए आहार तैयार करते हैं, जो उनके विकास के लिए जरूरी है। गर्मी का इस्तेमाल जीवन के लिए ग्रीन हाउस में सोलर एनर्जी से बनी हीट का इस्तेमाल समुद्री पानी को भाप में तब्दील करने वाली मशीन सी वॉटर इवेपोरेटर को चलाने में किया जाएगा। इस दौरान भाप के संपर्क में ठंडी हुई हवा को ग्रीन हाउस के अंदर पंप कर दिया जाएगा। इससे हाउस का तापमान 15 डिग्री तक कम हो जाता है। ग्रीन हाउस के दूसरे छोर पर भाप को संघनित कर लिया जाता है। संघनन किसी भी द्रव को गैस से लिक्विड फॉर्म में बदलने को कहते हैं। इस तरह से मिले पानी का इस्तेमाल पौधों की सिंचाई के लिए किया जाएगा। बाकी पानी का इस्तेमाल सोलर एनर्जी के लिए यूज किए जाने वाले शीशों की धुलाई में होगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा सतह मुहैया रहे। इस तरह से ग्रीन हाउस के अंदर कम तापमान और खूब सारी नमी भरा माहौल तैयार किया जाता है। इतना ही नहीं इस तकनीक से पैदा होने वाला ताजा पानी पौधों की जरूरत से पांच गुना ज्यादा होता है। इसलिए सीएसपी शीशों को साफ करने के अलावा कुछ पानी हाउस के बाहर भी रिलीज़ किया जा सकता है। इससे लोकल माइक्रो क्लाइमेट तैयार करने में मदद मिलेगी और आस-पास के पौधों को भी पनपने के लिए सही परिस्थितियां मिलेंगी। सहारा प्रोजेक्ट की कीमत भी सीएसपी और समुद्री ग्रीन हाउस की सस्ती तकनीक के कारण ज्यादा नहीं होगी। डिजाइनरों के मुताबिक 20 हेक्टेयर का ग्रीन हाउस बनाने में लगभग 8 करोड़ डॉलर की लागत आएग