Monday, December 1, 2008

महिलाओं के एचआईवी से बचाव का अभी एकमात्र उपाय फीमेल कंडोम ही है।


ऐसे समय में जब दुनिया भर में एचआईवी/ एड्स की बी मारी लगातार अपने पांव पसारती जा रही है तो भारत ने इसकी रोकथाम के लिए नई पहल करने की ठानी है। भारत ने इस घातक बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए महिला कॉन्डम के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और इसे लोकप्रिय बनाने का फैसला किया है। महिलाओं के एचआईवी से बचाव का अभी एकमात्र उपाय फीमेल कंडोम ही है।
भारत के प्रयास को इस तथ्य के मद्देनज़र विशेष कहा जा सकता है कि दुनिया भर की जानी-मानी महिला कार्यकर्ताओं का मानना है कि फीमेल कॉन्डम को लोकप्रिय बनाने में ग्लोबल स्तर पर नाकामी हाथ लगी है। पिछले 15 सालों से इस बारे में भारी अज्ञानता और काहिली बनी हुई है। लेकिन भारत उन चंद अपवादों में शामिल है, जहां महिला कंडोम की स्वीकार्यता 97 % परसेंट के उच्चतम स्तर पर है। यही वजह है कि नैशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (नाको) इस प्रस्ताव पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रहा है कि पूरे देश में फीमेल कंडोम को मात्र तीन रुपये की कम कीमत पर मुहैया कराया जाए।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदॉस ने यहां अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कहा कि भारत में 87 फीसदी से ज्यादा मामलों में एड्स असुरक्षित सेक्स की वजह से होता है। उन्होंने कहा कि सभी नए इनफेक्शन में करीब 38 परसेंट महिलाओं को होता है। हमने पायलट चरण में पांच लाख कॉन्डम वितरित किए और इस कार्यक्रम को बड़ी कामयाबी मिली। अब हम अपने अभियान को और जोर-शोर से चलाने की योजना बना रहे हैं। 2001 में हमारे देश में कॉन्डम के नौ लाख सामान्य आउटलेट्स थे, जबकि 2010 तक 30 लाख आउटलेट्स हो जाएंगे।
नाको की महानिदेशक के. सुजाथा राव बताया कि फीमेल कंडोम खासकर घरेलू सेक्स के संदर्भ में प्रभावी साबित हुआ है लेकिन वेश्यावृत्ति के संबंध में इसे उतनी कामयाबी नहीं मिली। हमलोग महिलाओं को महज तीन रुपये में कॉन्डम मुहैया कराने की योजना पर काम कर रहे हैं, जबकि हमें इस कॉन्डम की लागत 23 रुपये पड़ती है। राव ने कहा कि हाल तक हमलोग फीमेल कॉन्डम को 40 रुपये में खरीदकर पांच रुपये में महिलाओं को उपलब्ध करा रहे थे।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत नाको ने यूके की फीमेल हेल्थ कंपनी (एफएचसी) से पांच लाख कॉन्डम खरीदे और इन्हें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल राज्यों में घरेलू महिलाओं के साथ-साथ सेक्स वर्कर्स को उपलब्ध करवाया गया। भारत अभी हाल तक फीमेल कॉन्डम का आयात करता रहा है। अब हिंदुस्तान लेटेक्स कंपनी ने कोच्चि में फीमेल कंडोम मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई है। यह यूनिट हर साल एक करोड़ फीमेल कॉन्डम का उत्पादन करेगी। ..........................................संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन) ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई है कि दुनिया भर में हर दिन 7,000 महिलाएं एचआईवी पॉजिटिव हो जाती हैं। इसके मद्देनजर यूएन ने सेक्सुअल हेल्थ सेवाओं तक महिलाओं की पहुंच का आह्वान किया है। उसने एड्स बीमारी के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए भारत के प्रयासों की प्रशंसा भी की है।
युनाइटेड नेशंस पॉप्युलेशन फंड की डिप्टी इग्जेक्युटिव डायरेक्टर पूर्णिमा माने ने कहा कि लड़कियों और जवान महिलाओं को दोगुने खतरे का सामना करना पड़ता है, इसलिए इस बीमारी से उनके बचाव के लिए दोगुनी कोशिश की जरूरत है। उन्होंने कम उम्र की लड़कियों में एचआईवी वायरस के प्रसार को रोकने के लिए उठाए जाने वाले उपायों पर यहां एक गाइड जारी करते हुए यह बात कही।
माने ने कहा कि भारत में नागरिक प्रशासन संगठनों और कार्यकर्ताओं ने बाल विवाह निषेध अधिनियम को पारित करवाने में योगदान किया है। यह लड़कियों को कम उम्र में शारीरिक संबंध से बचाने में मदद करता है जो उनमें एचआईवी संक्रमण का खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने इस बीमारी के प्रसार को रोकने की कोशिश के लिए दक्षिण अफ्रीका और वियतनाम की भी प्रशंसा की।
यूएन की इस संस्था ने बाल विवाह को समाप्त करने और जवान महिलाओं को एचआईवी/ एड्स से लड़ने के लिए ज्यादा सामाजिक-आर्थिक सुविधाएं देने का आह्वान भी किया। इस गाइड को युनाइटेड नेशंस पॉप्युलेशन फंड (यूएनएफपीए), इंटरनैशनल प्लैंड पैरंटहुड फेडरेशन (आईपीपीएफ) और एचआईवी पॉजिटिव यंग लोगों ने मिलकर तैयार किया है। .........................क्या सेक्स आपको राजनीति के ऊंचे पायदान पर चढ़ा सकता है ? अगर आप इस सवाल को ब ेतुका समझ रहे हैं, तो ऑस्ट्रेलिया का रुख कीजिए। ऑस्ट्रेलिया में सेक्स को गंभीरता से लेने वालों के लिए ' द ऑस्ट्रेलियन सेक्स पार्टी ' बनाई गई है।
गुरुवार को बनाई गई इस पार्टी का स्लोगन है ' हम सेक्स को लेकर गंभीर हैं ' । इस पार्टी ने उन 40 लाख लोगों को अपना लक्ष्य बनाया है जो पॉरनॉग्रफी को लेकर काफी संजीदा हैं। पार्टी के नेताओं का विश्वास है इसकी मदद से स्टेट और फेडरल संसद में सीटों को जीतने में अंतर आएगा। इस पार्टी के एजेंडे में सेक्स एजुकेशन, सेंसरशिप को समाप्त करना, सरकार के प्रस्तावित इंटरनेट फिल्टर को हटाना और लोगों को शादी करने में मदद करना शामिल है।
पार्टी की संयोजक फियोना पट्टन ने मीडिया में आई रिपोर्ट में कहा कि पांच साल में ऑस्ट्रेलियाई सेक्स इंडस्ट्री को इंटरनेट फिल्टर के कारण बाज़ार से बाहर होना पड़ सकता है। नैशनल सेक्स एजुकेशन सिलेबस पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा कि सेक्स के बारे में बच्चों में जागरुकता लाना बेहद जरूरी है। हम चाहेंगे कि सेक्स एजुकेशन को लागू किया जाए। ..................भारतीय दंपती अभी भी सेक्स जैसे मुद्दे पर आपस में खुलकर बातचीत नहीं करते। एक सर्वे के मुताबि क, भारतीय पुरुषों के लिए प्राथमिकता के लिहाज से सेक्स 17वें पायदान पर आता है, जबकि महिलाओं में यह 14वें नंबर पर है। पारिवारिक जीवन के अलावा पुरुषों ने जीवनसाथी, करिअर, मां या पिता की भूमिका निभाने, आर्थिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने को अहमियत दी। कमोबेश महिलाओं की भी यही प्राथमिकताएं थीं।
यह सर्वे जानी-मानी दवा कंपनी फाइजर ग्लोबल फार्मास्युटिकल्स द्वारा कराया गया है। इससे निकले नतीजों के मुताबिक यौन संतुष्टि का शारीरिक स्वास्थ्य और प्यार या रोमैंस से गहरा संबंध है। मुंबई के लीलावती अस्पताल के डॉक्टर रुपिन शाह का कहना है कि भारत में जो पुरुष यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं, उनके समग्र जीवन में भी संतुष्टि की कमी है। भारत में हुए इस सर्वे में 400 इलाके चुने गए थे। इनमें से अधिकतर शहरी क्षेत्र थे। इस पर टिप्पणी करते हुए शाह कहते हैं कि इस सर्वे को शहरी कहा जा सकता है। लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते मैं जानता हूं कि देश के ग्रामीण इलाकों से भी सर्वे के ऐसे ही नतीजे निकलते।
सर्वे के अनुसार भारत सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र देशों के 57 फीसदी पुरुष और 64 फीसदी महिलाएं सेक्स जीवन से बहुत संतुष्ट नहीं हैं। जो महिला और पुरुष अपने यौन जीवन से बहुत अधिक संतुष्ट हैं, उनमें से 67-87 फीसदी ने कहा कि वे अपने जीवन से खुश हैं। दूसरी ओर ऐसे लोग जो अपने सेक्स जीवन से कम संतुष्ट हैं, उनमें से महज 10 से 26 फीसदी ने माना कि उनकी जिंदगी खुशहाल है।
इस सर्वे का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि पुरुष सेक्स को जिंदगी की अहम प्राथमिकताओं में जगह देते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं उसे कम तरजीह देती हैं। सर्वे में भारतीय पुरुषों की स्तंभन कठोरता और उनके सेक्स जीवन में भी सीधा संबंध देखा गया। इस सर्वे में भारत सहित 13 देशों के 25 से 74 की उम्र के कुल 3,957 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें 2016 पुरुष और 1,941 महिलाएं शामिल थीं। संभार दर्पण

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