Saturday, July 17, 2010

जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में आरोपों से घिरी सरकार, बरती गई अनियमितताओं से निशंक बैकफुट पर

देहरादून 16/जुलाई/2010/जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में बरती गई अनियमितताओं के आरोपों से घिरी भाजपा की निशंक सरकार ने 56 जलविद्युत परियोजनाओं का आवंटन निरस्त कर अपने भुल स्वीकार करने के बाद सरकार बैकफुट पर आ गई मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने जांच समिति की रिपोर्ट को आधार मानते हुए आवंटन निरस्त करने की कार्यवाही को अंजाम दिया हालाकि हाईकोर्ट में आज इस संदर्भ में दायर की गई दो जनहित याचिकाओं की सुनवाई होनी थी। परन्तु मुख्यमंत्री ने ऐन वक्त पर आवंटन निरस्त करने का निर्णय ले कर विपक्ष द्वारा लगाये जा रहे घोटालों के आरोप को और बल दे दिया। पूरे प्रकरण में मुख्यमंत्री और सरकार को फजीहत दर फजीहत का सामना करना पड़ा क्योंकि बीते 9 जुलाई को भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने बड़े दावे के साथ घोटाले के आरोपो को नकारते हुए कहा था उन्होंने सभी दस्तावेजों का अवलोकन कर लिया है इस मामले में घोटाले की बात बेबुनियाद है। गौरतलब है कि राज्य की 56 जलविद्युत परियोजनओं का आवंटन निरस्त करने का निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा गठित की गई जांच समिति की रिर्पोट पर लिया गया जांच समिति के सदस्य ऊर्जा सचिव उत्पल कुमार सिंह, वित्त सचिव एलएम पंत व न्याय विभाग के अपर सचिव ने अपने रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि 25 जुलाई 2008 को जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन हेतु प्रकाशित किये गये विज्ञापन में खामिया थी। विज्ञापन में ऊर्जा के क्षेत्र में अनुभव के साथ ही अवस्थापना के अनुभव को भी शामिल किया गया था विज्ञापन की भाषा स्पष्ट न होने के कारण परियोजनाओं के आवंटन के लिए ऊर्जा क्षेत्र में अनुभव और दक्षता न रखने वाली कंपनियों ने भी आवेदन कर दिया था। कई कंपनियों से डीपीआर भी नहीं ली गई जबकि आवेदक कम्पनियों के लिए डीपीआर देना आवश्यक था। समिति की रिपोर्ट आने पर इन्हीं कारणों को आधर बनाते हुए मुख्यमंत्री ने परियोजनाओं का आवटंन निरस्त कर दिया। उल्लेखनीय कि एक ही परिवार के सदस्यों को कई प्रोजेक्ट आवंटित किए जाने को लेकर विपक्ष ने सड़क से लेकर सदन तक जम कर हंगामा किया था। और जलविद्युत परियोजनाओं का आवंटन निरस्त करने की मांग की थी, भले ही सरकार ने आवंटन निरस्त करने का फैसला ले लिया हो लेकिन इसके बावजूद कई सवाल ऐसे उभर रहे है जो सरकार की नियत पर संदेह पैदा करते हैं? क्योंकि अरबों रूपये की लागत वाली जलविद्युत परियोजना के आवंटन हेतु जारी किये गये विज्ञापन में प्रकाशन से पूर्व आवश्यक शर्तो को शामिल क्यों नही किया गया विज्ञापन प्रकाशित होने से पूर्व उसकी तकनीकि जांच क्यों नहीं कि गई। सवाल यह भी उठता है कि किन कारणों से कुछ लोंगों को लाभ पहुंचाने के लिए विज्ञापन प्रकाशन से लेकर परियोजनाओं के आवंटन में नियम व शर्तो की अनदेखी क्यों की गई ऐसे किसके इशारे पर और किन अधिकारियों ने किया। सबसे बड़ा सवाल है कि अनदेखी व लापरवाही सामने आने पर जिम्मेदार अधिकारियों और उसमें लिप्त नेताओं को बेनकाब कर उनके विरूद्ध भी कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही। जहां पूरे प्रकरण में भाजपा की निशंक सरकार बैकफुट पर आ गई है। और विपक्ष दल कांग्रेस को सरकार को घेरने का नया अवसर मिल गया ऐसे में विधानसभा का मानसून सत्रा में विपक्ष का सामना कैसे मुख्यमंत्री निशंक कर पायेंगे। नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि सरकार के फैसले से कांग्रेस द्वारा लगाये जा रहे घोटालों के आरोपों की पुष्टि होती है। कांग्रेस अब इन परियोजनाओं की आवंटन की सीबीआई जांच कराने की मांग करेगी।

तो क्या कांग्रेस के निशाने पर जांच आयोग?

देहरादून 16/जुलाई/2010/कांग्रेस शासनकाल में हुए 56 घोटालों की जांच कर रहे जांच आयोग के खिलापफ कर्मचारियों ने मोर्चा खोलते हुए जांच आयोग के काम को बाधित कर दिया है। वहीं आयोग के अध्यक्ष जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने आयोग के सचिव को पत्र लिखकर जांच कार्य में बाध उत्पन्न होने के साथ-साथ काम न करने में असमर्थता जता दी है। पिछले काफी समय से पुलिस शिकायत प्राधिकरण में अध्यक्ष के खिलाफ अन्य सदस्यों द्वारा घेराबंदी की जाती रही है लेकिन अपने मकसद में कामयाब न होने के चलते प्राधिकरण के अध्यक्ष प्राधिकरण में लंबित मामले तेज गति से निपटाते जा रहे हैं। जिसका अन्य सदस्य खुलकर विरोध कर रहे है। ताजा मामला एक कर्मचारी को पुलिस प्राधिकरण से निकाले जाने के बाद तूल पकड़ गया है। मामले को लेकर प्राधिकरण के सदस्यों द्वारा कर्मचारियों को ध्रने पर बैठने के लिए उकसाने के साथ-साथ उनका वेतन रोक दिये जाने की धमकी तक दी गई है। जिसके चलते कर्मचारी हड़ताल पर चले गए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्राधिकरण के सदस्य वहां के कामकाज को लेकर शुरू से ही राजनीति का खेल खेलने में लगे हुए है। जिसके चलते गलत तरीके से नियुक्ति किये जाने के साथ-साथ अनियमिताओं को लेकर प्राधिकरण के अध्यक्ष ने जांच करते हुए कई खामियां प्राधिकरण में पकड़ी। जिससे बौखलाए सदस्यों ने अध्यक्ष के खिलापफ मोर्चा खोलते हुए पूरे खेल को अंजाम दे डाला है। वहीं पुलिस प्राधिकरण का काम देखने के साथ-साथ कांग्रेस शासनकाल में हुए 56 घोटालों की जांच करने वाले आयोग का काम भी प्राधिकरण के अध्यक्ष ही देख रहे हैं और वे तेज गति से घोटालों को उजागर किये जाने में लगे हुए है। संभावना यह भी जताई जा रही है कि कांग्रेसी नेताओं के इशारे पर प्राधिकरण के कर्मचरियों को हड़ताल पर जाने के लिए उकसाया गया है। जिससे जांच अयोग का काम बाधित हो सके क्योंकि वर्तमान में पुलिस शिकायत प्राधिकरण के कार्यालय से ही जांच आयोग का काम भी संचालित किया जा रहा है। जिसे लेकर सदस्य इसका खुलकर विरोध करते हुए देखे जा रहे है। 56 घोटालों को लेकर जिस तरह से कांग्रेसी बौखलाए हुए हैं वही इन घोटालों में कई बड़े नेताओं का नाम भी सामने आता हुआ देखा जा रहा है। क्योंकि प्राधिकरण के अध्यक्ष ने घोटालो से जुड़े कई ऐसे दस्तावेजों को सम्बंधित विभागों से मागा है जिन पर जांच की आंच पड़ने जा रही है। यहां तक की जांच आयोग ने दस्तावेजों में लापरवाही बरतने तक का आरोप लगाते हुए शासन से घोटासलों की जांच में सहयोग किए जोन की बात को लेकर एक पत्र भी प्रदेश के चीफ सेकेट्री को लिखा है। अब चूंकि 16 जुलाई से जांच आयोग के सामने विभिन्न विभागों के अधिकारियों की पेशी होनी थी लेकिन उससे पहले ही जिस तरह प्राधिकरण के कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने का तानाबाना बुना गया उसे लेकर यह उंगलियां भी उठती नजर आ रही है कि जांच आयोग को ठीक ढग से कौन काम नहीं करने देना चाहता? शक की सूई उन नेताओं व आला अधिकारियों पर भी उठ रही है जो जांच के दायरे में आते देखे जा रहे है। जबकि इससे पूर्व शर्मा जांच आयोग घोटालों से सम्बंधित कई दस्तावेज एकत्र कर चुका है लेकिन अभी तक किसी भी घोटाले का पर्दाफाश नहीं किया जा सका है। अब घोटालों को लेकर जहां प्रदेश में राजनीति गरमाती जा रही है वहीं प्राधिकरण के कर्मचारियों की हड़ताल को उन नेताओं की शह समझा जा रहा है जो कहीं न कहीं घोटालों से जुड़े हुए है। जांच आयोग को यदि निष्पक्ष तरीके से काम करने नही दिया गया तो 56 घोटालों का जिन्न बोतल से बाहर नहीं निकल सकता। जबकि घोटालों को लेकर भाजपा अपने घोषणा पत्र में पर्दा पफाश किए जाने की बात जनता के बीच 2007 के चुनाव में कर चुकी है और अब जनता की निगाहें भी इन घोटालेबाज अधिकारियो व राजनेताओं पर लगी हुई हैं जो इन घोटालों के कर्णधर रहे हैं। कुल मिलाकर आने वाले दिनों में जांच आयोग के काम को किसी न किसी तरीके से प्रभावित करने का खेल भी गोपनीय है।