स्वीडन के वैज्ञानिकों ने तलाक और पुरुषों में मिलने वाले एक जीन के बीच एक खास संबंध देखा है। अब बहुत मु
मकिन है कि कुछ समय बाद तलाक के मसले सुलझाने के लिए दंपती काउंसिलर की जगह जिनेटिक क्लीनिक की राह पकड़ने लगें। कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट, स्टॉकहोम के हसी वैलम और उनके सहयोगियों ने इस जीन RS 3334 को 'तलाक जीन' का नाम दिया है। उन्होंने पाया कि पुरुषों में इस जीन की जितनी ज़्यादा कॉपियां होती हैं उनकी वैवाहिक ज़िंदगी में उतनी ही परेशानियां भी बढ़ती जाती हैं। अपने रिसर्च में उन्होंने स्वीडन के ट्विन ऐंड ऑफस्प्रिंग इंस्टिट्यूट के आंकड़ों का सहारा लिया। इसमें 550 जुड़वां बच्चों और उनके पार्टनर्स की केस स्टडी थी। वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च हमारे शरीर में पाए जाने वाले एक ऐसे प्रोटीन पर केंद्रित की जो हॉर्मोन वैसोप्रेसिन के साथ प्रतिक्रिया करता है। माना जाता है कि वैसोप्रेसिन हमारे सामाजिक व्यवहार को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसके बाद शोधकर्ताओं ने इसकी तुलना टेस्ट में भाग लेने वाले जोड़ों के सवालों-जवाबों से की। इनसे उनके आपसी संबंधों की मज़बूती को नापा जाना था। वैज्ञानिकों ने पाया कि कि जिन लोगों के शरीर में RS 3334 जीन की एक कॉपी थी उनका स्कोर उन जोड़ों से कम था जिनके पुरुष पार्टनर के शरीर में इस जीन की एक भी कॉपी नहीं थी। यही नहीं जीन की एक या दो कॉपी वाले पुरुषों की पत्नियां भी उन महिलाओं की तुलना में अपने पतियों से कम संतुष्ट थीं जिनके पति के शरीर में इस जीन की कोई कॉपी नहीं थी। इसी तरह जीन की दो या ज़्यादा कॉपी वाली महिलाएं अपने पतियों से बहुत ज़्यादा परेशान थीं। जैसे-जैसे जीन की कॉपियां बढ़ती गईं पुरुषों का अपनी पत्नी के लिए कमिटमंट भी कम होता गया। ऐसा भी देखा गया कि ऐसे पुरुष शादी की ज़िम्मेदारी या ज़िंदगी भर एक ही पार्टनर का साथ निभाने से बचने की कोशिश करते थे। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि किसी भी रिलेशनशिप में समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं। वैलम भी जोर देकर कहते हैं कि महज़ जीन के आधार पर किसी पुरुष के व्यवहार का आकलन करना ठीक नहीं होगा। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि इस जीन के भेड़ियों में इसी तरह के असर से हमारी स्टडी को काफी बल मिलता है। फिर भी इस रिसर्च से इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वैज्ञानिक एक दिन ऐसी दवाएं बना सकेंगे जो इस जीन पर असर करके शादियों को टूटने से बचा सकें।
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