Thursday, December 4, 2008
पुलिस के उन अधिकारियों पर सवालियां निशान लग गया है
मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में सैकड़ों लोगों के मारे जाने के बाद उत्तराखंड सरकार पिछले तीन दिनों से आंतरिक सुरक्षा को लेकर बैठकें कर रही है और प्रदेश के डीजीपी दावा कर रहे है कि बढ़ते आतंकवाद को देखते हुए उत्तराखंड में पुलिस सुरक्षा के अत्याधुनिक तरीके अपनाएंगी, लेकिन धरातल पर पुलिस मुख्यालय के चंद अधिकारियों के यह दावें उस समय हवाई साबित हो गए जब आतंकवादियों से जंग लड़ने के लिए तीन बार खरीदी गयी बुलेटप्रूफ जैकेटों की गुणवत्ता को परखने के लिए जब उन पर 9 एमएम की गोलियां दागी गयी तो यह जैकेटे इन गोलियों को नहीं झेल पायी और इन सभी जैकेटों में गोलियां आर-पार हो गयी। जांबाजों के लिए खरीदी गयी निम्न स्तर की इन बुलेटप्रूफ जैकेटों को किन अधिकारियों के इशारे पर खरीदा गया था इसकी जांच अब होना लाजमी है क्योंकि अब देश की जनता उन अधिकारियों को किसी भी कीमत पर बक्शने के लिए तैयार नहीं है जो कि जांबाज अधिकारियों व पुलिस कर्मियों की जान को कमीशनखोरी के चलते जोखिम में डालने का खेल खेल रहे है। पुलिस के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस मुख्यालय ने अपने जांबाज अधिकारियों व पुलिसकर्मियों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए वर्ष 2004, 2006 व 2007 में बुलेटप्रूफ जैकेटे खरीदी थी। चर्चा है कि इन जैकेटों को सभी जनपदों में वितरित कर दिया गया था। बताया जा रहा था कि इन जैकेटों को राज्य में बनाए गए दल एसओजी ग्रुप को भी सुरक्षा की दृष्टि से दिया गया था। यह जैकेटे पुलिस ने हालांकि अल्मारियों में कैद करके रखी गयी है और अभी तक किसी भी जनपद के पुलिस अधिकारी ने संभवतः इतनी जहमत नहीं उठायी कि वे इस बात का आंकलन कर लें कि जो जांबाज आतंकवादियों से जंग लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहते है उनके लिए जो बुलटप्रुपफ जैकेट खरीदी गयी है वे किस स्तर की है और अगर जांबाज सिपाहियों पर आतंकी हमला हो जाए तो जिन जैकेटों को पहनकर जांबाज सिपाही जंग लड़े तो क्या ये जैकेटें आतंकियों की गोली को झेल पाएगी। विश्वस्तसूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस मुख्यालय ने खरीदी इन जैकेटों की गुणवत्ता को परखने के लिए कोई मिशन नहीं चलाया क्योंकि यहां अभी तक ऐसा कोई आतंकी हमला नहीं हुआ है जिससे कि ऐसी जैकेटों को पहनकर जांबाज जंग में उतर सके। चंद समय पूर्व जब मुंबई में आतंकवादियों ने हमला किया तो उन्होंने अपने अतिआधुनिक हथियारियों से हमला कर सैकड़ों लोगों के अलावा दर्जनों सिपाहियों व पुलिस अधिकारियों को भी मौत के घाट उतार दिया जिसके बाद एकाएक राज्य की सरकार भी ऐसे आतंकी हमलों से निपटने के लिए मंथन करने लगी। हालांकि इस राज्य में न तो एटीएस का गठन और न ही एसटीएपफ का। हां इतना जरूर है कि चार जनपदों के लिए अधिकारियों ने क्विक एक्शन टीम का गठन किया है जिनमें से हरिद्वार, दून नैनीताल, उफधमसिंहनगर को चुना गया है। इस टीम में 24 सदस्यों को शामिल किया गया है और वे कुछ दिनों बाद पुलिस कंट्रोल रूम में बैठेंगे। एक ओर जहां सरकार व पुलिस मुख्यालय के कुछ अधिकारी आतंकवाद से निपटने के लिए पिछले तीन दिनों से बैठकों का आयोजन कर आतंरिक सुरक्षा से निपटने के लिए रणनीति बना रहे है वहीं उनकी यह रणनीति उस समय तार-तार होती दिखायी पड़ी जब पुलिस मुख्यालय द्वारा तीन बार खरीदी गयी बुलेटप्रूफ जैकेटों की गुणवत्ता के परखच्चे उड़ गए।पुलिस के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते रोज राजधानी के कुछ पुलिस अधिकारियों ने हमने जांबाजों के लिए खरीदी गयी तीनो जैकेटों की गुणवत्ता को परखने के लिए उन्हें वे क्लेमनटाउन के सैन्य क्षेत्र में पफायरिंग रेंज ले गए। पुलिस में ही चर्चा है कि जब इन बुलेटप्रूफ जैकेटों पर 9 एमएम की गोलियां दागी गयी तो यह जैकेटे इन गोलियों को नहीं झेल पायी और तीनों जैकेटों में गोलियां आर-पार हो गयी। आतंकवाद से लोहा लेने के लिए जांबाज अधिकारियों व सिपाहियों के लिए खरीदी गयी इन दिखावटी बुलेटप्रूफ जैकेटों में जिस तरह से गोलियां आर-पार हुई है उससे पुलिस के उन अधिकारियों पर सवालियां निशान लग गया है जिनकी देखरेख में इन बुल्लेट प्रूफ़ जैकेटों को खरीदा गया था। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिरकार किन अधिकारियों ने इन जैकेटों को खरीदने के लिए हरी झंडी दी और इन्हें खरीदते समय इनकी गुणवत्ता को क्यों नजरअंदाज किया गया है। अब बात यह भी उठ रही है कि एक ओर तो राज्य में आतंकवाद का खतरा लगातार मंडरा रहा है और वहीं उनसे लोहा लेने वाले जांबाज सिपाहियों के लिए बुलटप्रुपफ जैकेटे नहीं बल्कि मौत का सामान खरीदा गया है। पुलिस विभाग में यह चर्चा भी है कि जो बुलेटप्रूफ जैकेट 9 एमएम की गोली को नहीं झेल पायी वे आतंकवादियों के अतिआधुनिक हथियार एके-56 व एके-47 की गोलियां कैसे झेल पाएगी यह अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अगर वास्तव में सरकार आतंकवाद से निपटने के लिए गंभीर है तो उसे जांबाज अधिकारियों व पुलिसकर्मियों के लिए उन संसाधनों को खरीदना चाहिए जो कि आतंकवादियों से लड़ने के दौरान उनके लिए ढाल का काम कर सके।
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