Tuesday, January 17, 2012

भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड एक बार फिर मुख्यमंत्री खंडूरी के नेतृत्व मै चुनाव लड़ रही है ये वही खंडूरी हैं जो बीरोंखाल से भागकर कोटद्वार से चुनाव लड़ रहे हैं, आखिर वहाँ की जनता पूछ रही है की हमे दो राहे पैर क्यों छोड़ा आपने, क्या हमारा ये दोष था की जिसे आपने कहा हमने उसे वोट दिया , क्या आप चोबत्ताखाल से क्यों नही चुनाव लड़े ,हम तो यहीं है आप भाग लिए हमे हमारी किस्मत के भरोसे छोडकर, अब कोटद्वार वाले आप पर क्यों भरोसा करे कही आप कुर्सी देखकर उन्हें भी न छोड दें

चुनाव आयोग को ध्त्ता बनाते मीडिया मैनेजर

देहरादून, 2012 के मिशन को पफतह करने के लिये दिल्ली की चकाचैंध् से उत्तराखण्ड पहुंचे भाजपा व कांग्रेस के मीडिया मैनेजर पांच सितारा होटलों में बैठकर अपने आकाओं को जीत-हार का गणित बताते हुए नजर आ रहे हैं। बंद कमरों में की जा रही इस चुनावी चाल में मीडिया मैनेजरों की बातें कितनी सटीक हैं  इसका आंकलन तो 30 जनवरी को उत्तराखण्ड में होने वाले मतदान के बाद ही जनता का जनादेश मिलने के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन इन पांच सितारा होटलों में बैठकर जिस तरह से मीडिया मैनेजर पार्टियों के पैसों को भारी मात्रा में खर्च कर रहे हैं उस पर चुनाव आयोग की नजरें इनायत क्यों नहीं हो रही।  उत्तराखण्ड में एक प्रत्याशी 11 लाख  रूपये की  ध्नराशि ही चुनावी खर्च में खर्च कर सकता है लेकिन चुनाव आयोग रोजाना होने वाली इन बैठकों पर ध्यान  देता हुआ नजर नहीं आ रहा। रोजाना राजनैतिक दलों के मीडिया मैनेजर पार्टी पफंड से हजारों रूपये पानी की तरह बहा रहे हैं और यह सिलसिला पिछले एक सप्ताह से भी अध्कि समय होने के चलते लगातार जारी है। दिल्ली से कांग्रस के एक मीडिया मैनेजर इन दिनों राजधनी के एक बड़े होटल में बैठकर अपने आकाओं को जीत-हार का गणित जिस तरह से कुछ चाटुकार मीडिया लोगों के माध्यम से कराने में लगे हैं उनमें कितनी हकीकत है  इसका आंकलन करना बेहद मुश्किल भरा काम है। चुनाव आयोग एक तरपफ प्रत्याशियों के हर कार्यक्रम व चुनावी खर्च की नजर मजबूती के साथ रख रहा है। लेकिन बंद कमरों में रोजाना होने वाली इन दावतों का जिक्र न तो राजनैतिक अपने  चुनावी खर्च में करते हुए देखे जा रहे हैं और न ही चुनाव आयोग इन  पर रोक लगाने की कार्रवाई करता हुआ नजर आ  रहा है। रोजाना किये जा रहे इस हजारों रूपये के ध्न का हिसाब चुनाव आयोग किस राजनैतिक दल से लेगा इसको लेकर भी उंगलियां उठनी शुरू हो गई है।  राजनैतिक गलियारों में चर्चा आम हो गई है कि एक तरपफ तो चुनाव आयोग राज्य में बाहर से आने वाले काले ध्न पर लगातार अपना शिकंजा कसता जा रहा है वहीं दूसरी तरपफ इस तरह की होने वाली दावतों पर कोई रोक नहीं लगाई जा रही। जिससे लोकतंत्रा में निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न हो इसे लेकर शंसय के बादल मंडराते दिख रहे हैं। माना जा रहा है कि इस तरह के घटना क्रम पर यदि शीघ्र ही  रोक नहीं लगाई गई तो इसके खतरनाक परिणाम भी सामने आ सकते हैं।  सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजपुर रोड, सुभाष रोड, त्यागी रोड, हरिद्वार रोड, चकराता रोड के साथ-साथ कई अन्य स्थानों पर भी रोजाना होटलों के बंद कमरों में दावतों का जोर लगातार जारी है लेकिन इन स्थानों की जानकारी निर्वाचन आयोग को लगती हुई नजर नहीं आ रही। इन होटलों में रूकने वाले लोगों की पहचान अगर की जाए तो कई राजनैतिक चेहरों के साथ-साथ कई बड़े लोग बेपर्दा हो सकते हैं।
पांच सितारा होटलों तक सिमटी भाजपा-कांग्रेस देहरादून, 2012 के
विधनसभा चुनाव में जनता के बीच जनादेश पाने के लिये जोर आजमाइश में लगी भाजपा व कांग्रेस दोनों ही राजनैतिक पार्टियां घोषणा पत्रों को पांच सितारा होटलो में जारी कर हजारों रूपये पफूंकती हुई नजर आ रही हैं। जबकि इन घोषणा पत्रों को पार्टी मुख्यालयों में भी जारी किया जा सकता था।
लेकिन इसके बजाय दोनों ही राजनैतिक दल अपने घोषणा पत्रा को पांच सितारा होटलों की चकाचैंध् के बीच जनता के बीच प्रस्तुत करने में अपनी वाहवाही करते हुए नजर आ रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है जब उत्तराखण्ड में दिल्ली के नेताओं का आगमन होने के बाद उनकी आवभगत पांच सितारा होटलों में की जाती है। दिल्ली में जहां राष्ट्रीय दल अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्रा को पार्टी मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम के दौरान जारी करते हैं वहीं उत्तराखण्ड में दोनों ही राजनैतिक दलों की घोषणा पत्रा को जारी करने में चकाचैध् पांच सितारा होटलों की पीछा छोड़ती हुई नजर नहीं आ रही। जनता के बीच कांग्रेस जहां विकास के साथ-साथ हर वर्ग को साथ में लेकर चलना चाहती है वहीं भाजपा अपने घोषणा पत्रा में मौजूदा सरकार का कामकाज जनता के बीच लेजाकर सहानुभूति वोट बटोरना चाहती है। लेकिन पिछले पांच सालों में जनता को विकास की कितनी किरणों ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा सरकार पहुंचाने में कामयाब हो पाई है इसका सवाल भी उत्तराखण्ड की जनता वर्तमान सरकार से पूछती हुई नजर आ रही हैं कई विधनसभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्राी को बदले जाने का पफैसला भी भाजपा के लिये टेढ़ी मुसीबत बनता हुआ नजर आ रहा है और भाजपा प्रत्याशियों को भी जनता के बीच सरकार का विकास किये जाने की गुड गर्वनेंस पहुंचाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हालात कई विधनसभाओं के इस कदर हैं कि क्षेत्राीय जनता सरकार से नाखुश नजर आ रही है। ऐसे में भाजपा सरकार अपने किस विकास को लेकर जनता के बीच जाती हुई दिख रही है यह आम आदमी की समझ में नहीं आ पा रहा। कांग्रेस भाजपा सरकार के शासनकाल में हुए घोटालों के साथ-साथ 2012 में सत्ता वापसी के बाद जनता को कईं संकल्प दोहराती हुई नजर आ रही है और कर्मचारियों के साथ-साथ युवाओं को रोजगार देने के अलावा कई मुद्दे प्रभावी तरीके से घोषणा पत्रा में प्रदर्शित किये गये हैं। भाजपा को सबसे ज्यादा मुश्किल सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्राी के रूप में सीएम प्रोजेक्ट करने को लेकर आ रही है और राजनाथ सिंह द्वारा बीते दिवस वर्तमान सीएम बीसी खण्डूरी को 2012 में पुनः सीएम प्रोजेक्ट करने की बात कहने से ही भाजपा के भीतर अंदरखाने विरोध् की आग सुलगनी शुरू हो गई है। जबकि कांग्रेस अभी 2012 में किसी को भी सीएम के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर रही है और कांग्रेस के सभी लोग एकजुटता के साथ 2012 काविधनसभा चुनाव जीतने में लगे हुए हैं। जनता को घोषणा पत्रा के माध्यम से विकास के सब्जबाग दिखाने वाली दोनों ही राजनैतिक पार्टियां पांच सितारा होटलों में बैठकर विकास का जो खाका तैयार कर रही हैं वह ध्रातल पर कितना उतर पाएगा इसे लेकर भी संशय के बादल मंडराते हुए नजर आ रहे हैं। इसके अलावा राजधनी के कई बड़े होटलों में मीडिया के साथ-साथ 2012 की रणनीति को लेकर भाजपा व कांग्रेस के साथ-साथ अन्य दलों के लोग भी राजनैतिक गोटियां पिफट करने में तेजी दिखाते हुए नजर आ रहे हैं और बड़े होटलों में पार्टी पफंड के माध्यम से रोजाना हजारों रूपये खर्च किये जा रहे हैं।

Thursday, January 5, 2012

सभी पार्टियों में बगावती तेवर दिखा रहे हैं नेता


देहरादून  राजनीति में पार्टी के प्रति निष्ठा कोई मायने नहीं रखती, थोड़ी सी उपेक्षा क्या हुई, बड़े से बड़े नेता भी बगावत का झंडा थाम लेते हैं। कुछ यही हाल आजकल उत्तराखंड की राजनीति में भी आया हुआ है। वह चाहे कांग्रेसी दिग्गज नारायण दत्त तिवारी हों या फिर टिकट कटने से आहत भाजपाई, जगह-जगह बगावत के झंडे दिखाई दे रहे हैं। कोई समर्थकों के दबाव की बात कह रहा है तो कुछ ने पार्टी से इस्तीफा ही दे दिया है।
सभी पार्टियों में बगावती तेवर दिखा रहे हैं नेता
शुरुआत टिकट से वंचित रह गए भाजपा नेताओं से। जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला है, वो बगावत की राह में निकल चुके हैं। कुछ दावेदार चुपचाप दोबारा से सेटिंग करने में जुट गए हैं, लेकिन कुछ ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है। कैबिनेट मंत्री खजानदास को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें राजपुर रोड से चुनावी मैदान में उतारेगी लेकिन उनका तो पत्ता ही साफ हो गया। अब वह इससे काफी आहत हैं और खुलकर बोल भी रहे हैं। उन्होंने इसे साजिस कहा है। वह इस मामले में मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी, पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल से मिलकर अपना विरोध दर्ज कराएंगे। इसी मुद्दे पर उनके समर्थकों ने प्रदेश मुख्यालय पर हंगामा भी किया।
इसी तरह कर्णप्रयाग के विधायक अनिल नौटियाल, सहसपुर विधायक राजकुमार, कोटद्वार विधायक शैलेंद्र सिंह रावत के समर्थकों ने खुलेआम पार्टी के निर्णय के विरोध में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। इन सभी ने भी बगावती तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। दिवाकर भट्ट को पार्टी सिंबल से लड़ाने का विरोध हो रहा है। उधर अल्मोड़ा में जिलाध्यक्ष समेत 216 पदाधिकारियों ने अपना सामूहिक इस्तीफा पार्टी को भेज दिया है। बागेश्वर व कपकोट में भी विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं। जिन सीटों पर प्रत्याशी घोषित नहीं हुए हैं, वहां भी दावेदार आशंकित हैं और सभी परिस्थितियों की तैयारी कर रहे हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस में सूची जारी होने से पहले ही मुश्किल खड़ी हो गई है। तिवारी समर्थकों ने निरंतर विकास समिति के बैनर तले पूरे प्रदेश में सभी 70 सीटों में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। अब कांग्रेस एनडी तिवारी को समझाने-बुझाने में जुट गई है। प्रत्याशियों की सूची जारी होने के बाद कांग्रेस में भी कई बगावती नेता दिखाई दे सकते हैं।