Friday, December 5, 2008


अमेरिकी इंटेलिजंस चीफ ने कहा लश्कर की करतूत...........1
वॉशिंगटन: अमेरिका के इंटेलिजंस चीफ ने मुंबई हमलों के मामले में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैबा
पर उंगली उठाई है। इससे भारत के इस दावे को बल मिला है कि हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं। अमेरिका में नैशनल इंटेलिजंस डाइरेक्टर माइक मेककॉनेल ने मंगलवार रात हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में दिए भाषण में यह शक जताया। इससे चंद घंटे पहले भारत ने मुंबई में आतंकवादी हमलों के मद्देनजनर लश्कर-ए-तैबा के प्रमुख हाफिज मोहम्मद और पाकिस्तान में रह रहे अन्य भगोड़ों को सौंपने की मांग की थी। मुंबई में हुए हमलों में मारे गए लोगों में 6 अमेरिकी भी हैं। मैककॉनेल ने हालांकि लश्कर का नाम खुले तौर पर नहीं लिया लेकिन कहा कि हमारा मानना है कि मुंबई में हमलों के लिए वही ग्रुप जिम्मेदार है, जिसने सन 2006 में मुंबई की टेनों पर और 2001 में भारतीय संसद पर हमले किए थे। गौरतलब है कि भारत ने 2006 में मुंबई ट्रेन विस्फोट के लिए लश्कर-ए-तैबा को जिम्मेदार ठहराया था। संसद पर 2001 के हमले के लिए भी पाकिस्तान स्थित अन्य उग्रवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और इसी संगठन को जिम्मेदार ठहराया था। मैककॉनेल पहले अमेरिकी अधिकारी हैं, जिन्होंने अधिकृत तौर पर लश्कर पर मुंबई हमलों के पीछे होने का शक जताया है। .................................
,,,,,,,,,,,,के विभिन्न प्रांतों में पाकिस्तानी सेना की नाक के न
ीचे आतंक के कई स्कूल चलाए जा रहे हैं। इनमें न केवल कई तरह की एसॉल्ट राइफलें चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है, बल्कि जमीन से आसमान में मार करने वाली मिसाइलें और कंधे से छोड़ी जाने वाली मिसाइलें चलाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। पाकिस्तान में सेना से रिटायर्ड सैनिकों द्वारा चलाए जा रहे इन आतंकी स्कूलों का गहन अध्ययन करने के बाद यहां पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ विलसन जॉन ने एक शोध रिपोर्ट में कहा है कि इन स्कूलों में आत्मघाती हमलों के लिए सैकड़ों लड़कों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इन्हें न केवल एके-47 और एमआई-5 जैसी राइफलें चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है, बल्कि इन्हें जमीन से छोड़ी जाने वाली मिसाइलों के साथ कई तरह की लंबी दूरी तक जाने वाले रॉकिट लॉन्चरों को छोड़ने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। विचार संस्था ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो विलसन जॉन ने अपनी रिपोर्ट में जो खुलासा किया है इससे साफ है कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय संकल्प दिखाए तो पाकिस्तानी सेना पर सबसे पहले इस बात के लिए दबाव डालना होगा कि इन स्कूलों को बंद करवाए। विलसन जॉन के मुताबिक, छोटे स्कूलों को तीन से चार लाख रुपये और बड़े स्कूलों को 20 से 30 लाख रुपये हर महीने सरकारी कोष से ही भेजे जाते हैं। संभवत: यह राशि पाकिस्तानी सेना की गुप्तचर एजंसी आईएसआई अपने विशेष कोष से भेजती है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक, ये आतंकी स्कूल खुले आम चल रहे हैं और यदि अमेरिकी सेना चाहे तो पाकिस्तानी सेना पर दबाव डलवा कर इन्हें बंद करवा सकती है। आतंकवाद की जड़ें उखाड़ने में अमेरिका सबसे बड़ा कदम यही उठा सकता है। यदि इन स्कूलों को बंद करवा दिया गया तो तालिबान और भारत विरोधी अन्य आतंकवादी संगठनों को जिहादी सैनिक नहीं मिलेंगे। विलसन जॉन के मुताबिक, ये स्कूल न केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर बल्कि पंजाब, वजीरिस्तान और उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) में चल रहे हैं और इन स्कूलों के सिलेबस 9/11( न्यू यॉर्क में हुए हमले) के पहले चलाए जाने वाले आतंकवादी स्कूलों से अधिक आधुनिक है और जहां नई प्रणालियों की जानकारी दी जाती है। विलसन के मुताबिक, मुंबई पर आतंकवादी हमला करने वाले आतंकवादी इन्हीं स्कूलों से आए हैं। इन स्कूलों की मौजूदगी की जानकारी किसी गुप्तचर सूत्र से नहीं, बल्कि पाकिस्तान के अखबारों से हासिल की गई है। ये आतंकी स्कूल पिछले दो सालों के दौरान खुले हैं। इन्हीं स्कूलों से आतंकवादी संगठन तालिबान, हिजबुल मुजाहिदीन, अल बदर, मुजाहिदीन, लश्कर ए तैबा, जैश ए मुहम्मद अपने लिए जिहादी आतंकवादियों की भर्ती करते हैं। उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के हजारा इलाके में चल रहे इन स्कूलों में एक हजार से अधिक आतंकवादी ट्रेनिंग ले रहे हैं जहां इन जिहादियों द्वारा खुले आम किसी सैनिक की तरह राइफलें और मिसाइलों का संचालन सीखते देखा जा सकता है। मनसेहरा जिला के हिसारी और बतरासी आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में सबसे अधिक आतंकवादी तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा एबोटाबाद जिले में चल रहे ट्रेनिंग स्कूल में भी नाटो की सेना से लड़ने के लिए लश्कर ए तैबा द्वारा तालिबान के लड़ाकों की भर्ती की जा रही है। पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय रावलपिंडी की नाक के नीचे हरकत उल मुजाहिदीन द्वारा चलाए जा रहे ट्रेनिंग कैंप में सैकड़ों आतंकवादी प्रशिक्षित हो रहे हैं। भारतीय एजंसियों का आकलन है कि पाकिस्तान में इस तरह के कुल 55 कैंप चल रहे हैं जिन पर रोक लगाया जाए तो आतंकवाद से निबटने में बड़ी कामयाबी मिल सकती है। .......................2
इस्लामाबाद: मुंबई के आतंकवादी हमलों में पाकिस्तानियों का हाथ होने की आशंका के बाद भारत ने पाकिस्तानी न
ागरिकों के लिए वीजा नियम सख्त कर दिए हैं। गुरुवार को यहां भारतीय उच्चायोग के वीजा काउंसिलर सुरेश रेड्डी ने बताया कि अब पाकिस्तानी नागरिकों की वीजा ऐप्लिकेशन 15 दिन की बजाय 30 दिन में प्रोसेस होंगी। नया नियम 15 दिसंबर से लागू कर दिया जाएगा। हालांकि, रेड्डी ने स्पष्ट किया कि यह नियम मेडिकल इमरजंसी के मामलों में लागू नहीं होगा। इसके अलावा भारत सरकार ने नया वीजा फॉर्म भी जारी किया है। यह हाई कमिशन की वेबसाइट पर मौजूद है। ..................मुंबई में आतंकवादी हमलों के मद्देनजर भारत और पाकिस्तान में तना
व की स्थिति बन गई है। भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान से दाऊद इब्राहिम समेत 20 मोस्ट वॉन्टिड आतंकवादियों को सौंपे जाने की मांग की है। इन सबके बीच अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम कराची में आराम से रह रहा है। उसे किसी की भी परवाह नहीं है। वह हर रोज की ही तरह अपनी दिनचर्या में व्यस्त है। कुछ दिन पहले दाऊद के रिश्तेदार (वैध भारतीय पासपोर्ट के साथ) उससे मिलने कराची गए थे। उनमें सलीम अंसारी भी था। सूत्रों ने बताया कि दाऊद को इस बात का पूरा यकीन है कि पाकिस्तानी प्रशासन के अधिकारी उसे छू भी नहीं पाएंगे। इसी यकीन के सहारे उसने अपनी डेली रूटीन में कोई तब्दीली नहीं की है। वह मुंबई में अपने जानने वालों से निरंतर फोन पर बातें करता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, रीयल एस्टेट बिजनस में डी कंपनी की बागडोर संभालने वाले दाऊद के एक कॉन्टैक्ट ने हवाला के जरिए 120 करोड़ रुपये उस तक पहुंचाए। मुंबई और कराची के बीच हवाला का यह खेल बदस्तूर जारी है। भारतीय सुरक्षा एजंसियां और अमेरिकी खुफिया विभाग के अधिकारी भी दाऊद की गतिविधियों पर पैनी पजर रखे हुए हैं। उनसे मिलने वाली जानकारी के आधार पर ही भारत यह कहता आ रहा है कि दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान में है। लेकिन, सेंट्रल एजंसियां यह सवाल उठा रही हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने आखिर यहां डी कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब हम मुंबई और देश के अन्य हिस्सों में दाऊद के साम्राज्य को खत्म करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं तो पाकिस्तान से उसे सौंपने के लिए कहने का कोई औचित्य नहीं है। ..................

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