इंसानों में होने वाले दो सबसे खतरनाक- दिमाग और पैन्क्रियास के कैंसर के पीछे छिपे जिनेटिक कारणों को खोज लिया गया है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दर्जनों ऐसे टूटे, गुमशुदा और ओवर एक्टिव जीन खोजे हैं जो ब्रेन और पैन्क्रियास(अग्नाशय) के ऐसे ट्यूमरों को जन्म देते हैं जो आगे चल कर कैंसर बन जाते हैं। इस खोज से इनके बेहतर इलाज की संभावना बढ़ी है। इंसानों में पाए जाने वाले कैंसर उम्मीद से कहीं ज्यादा जटिल होते हैं। इनका इलाज गुरिल्ला युद्ध की तरह है, जहां हर ट्यूमर में दर्जनों उत्परिवर्तित(म्यूटेशन) जीन होते हैं। जॉन हॉपकिंस इंस्टिट्यूट के प्रफेसर केनेथ किंजलर का कहना है कि अलग-अलग स्तर पर इन म्यूटेशनों से निपटना आसान होता है। लेकिन अगर एक साथ इनका सामना करना पड़े तो, कामयाब होने के लिए एकदम नई स्ट्रैटिजी अपनानी होगी। सबसे बेहतर तो यही होगा कि इन ट्यूमरों के पनपने के शुरुआती दौर में ही इनका इलाज़ शुरू कर दिया जाए। अपनी स्टडी में शोधकर्ताओं ने दो ग्रुप बनाकर ब्रेन और पैन्क्रियास ट्यूमर सेल्स के डीएनए को डी-कोड किया। इन्हें लगभग 40 रोगियों से लिया गया था। रिसर्चरों की एक टीम ने 24 पैन्क्रिएटिक और 22 ब्रेन ट्यूमर से निकाले गए 20 हजार से भी ज्यादा डीएनए का विश्लेषण किया। दूसरे समूह ने सिर्फ ब्रेन कैंसर पर ही फोकस किया और 91 ट्यूमरों से 623 जीन्स का विश्लेषण किया। पहले ग्रुप ने कैंसर के लिए जिम्मेदार कोशिकाओं में एक दर्जन से ज्यादा केमिकल फैक्टर खोजे। उन्होंने 83 जीन बदलाव देखे जो पैन्क्रियास के कैंसर को बढ़ावा देते हैं। दूसरी टीम ने ऐसे जीन खोज निकाले जिन्हें कैंसर के मामले में पहले नजरअंदाज किया जाता था। बहुत से जीन तो ऐसे थे जिनके बारे में पता ही नहीं था कि इनसे कैंसर हो सकता है। रिसर्चर डॉ. डेविड वीलर का कहना था, अभी तक हमें कैंसर की वजहें इतने बड़े स्तर पर नहीं दिखाई दी थीं। इस नई खोज से हमें इलाज के कई नए विचार आए हैं। संभार भास्कर
Saturday, September 6, 2008
क्यों होता है कैंसर, खुल गया राज़
इंसानों में होने वाले दो सबसे खतरनाक- दिमाग और पैन्क्रियास के कैंसर के पीछे छिपे जिनेटिक कारणों को खोज लिया गया है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने दर्जनों ऐसे टूटे, गुमशुदा और ओवर एक्टिव जीन खोजे हैं जो ब्रेन और पैन्क्रियास(अग्नाशय) के ऐसे ट्यूमरों को जन्म देते हैं जो आगे चल कर कैंसर बन जाते हैं। इस खोज से इनके बेहतर इलाज की संभावना बढ़ी है। इंसानों में पाए जाने वाले कैंसर उम्मीद से कहीं ज्यादा जटिल होते हैं। इनका इलाज गुरिल्ला युद्ध की तरह है, जहां हर ट्यूमर में दर्जनों उत्परिवर्तित(म्यूटेशन) जीन होते हैं। जॉन हॉपकिंस इंस्टिट्यूट के प्रफेसर केनेथ किंजलर का कहना है कि अलग-अलग स्तर पर इन म्यूटेशनों से निपटना आसान होता है। लेकिन अगर एक साथ इनका सामना करना पड़े तो, कामयाब होने के लिए एकदम नई स्ट्रैटिजी अपनानी होगी। सबसे बेहतर तो यही होगा कि इन ट्यूमरों के पनपने के शुरुआती दौर में ही इनका इलाज़ शुरू कर दिया जाए। अपनी स्टडी में शोधकर्ताओं ने दो ग्रुप बनाकर ब्रेन और पैन्क्रियास ट्यूमर सेल्स के डीएनए को डी-कोड किया। इन्हें लगभग 40 रोगियों से लिया गया था। रिसर्चरों की एक टीम ने 24 पैन्क्रिएटिक और 22 ब्रेन ट्यूमर से निकाले गए 20 हजार से भी ज्यादा डीएनए का विश्लेषण किया। दूसरे समूह ने सिर्फ ब्रेन कैंसर पर ही फोकस किया और 91 ट्यूमरों से 623 जीन्स का विश्लेषण किया। पहले ग्रुप ने कैंसर के लिए जिम्मेदार कोशिकाओं में एक दर्जन से ज्यादा केमिकल फैक्टर खोजे। उन्होंने 83 जीन बदलाव देखे जो पैन्क्रियास के कैंसर को बढ़ावा देते हैं। दूसरी टीम ने ऐसे जीन खोज निकाले जिन्हें कैंसर के मामले में पहले नजरअंदाज किया जाता था। बहुत से जीन तो ऐसे थे जिनके बारे में पता ही नहीं था कि इनसे कैंसर हो सकता है। रिसर्चर डॉ. डेविड वीलर का कहना था, अभी तक हमें कैंसर की वजहें इतने बड़े स्तर पर नहीं दिखाई दी थीं। इस नई खोज से हमें इलाज के कई नए विचार आए हैं। संभार भास्कर
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