Friday, September 5, 2008

सही निकली जगूडी की भविष्यवाणी

लोकतंत्र के पाखंड पर प्रहार करने वाले एवं व्यवस्था को तार-तार करने वाले कवि धूमिल जब स्थापित नहीं हुए थे तो उनके एक मित्र कवि ने उन्हें तुलसीदास और गालिब के बाद शब्दों को सही ढंग से पकड़ने वाला कवि बताया था।यह भविष्यवाणी साहित्य अकादमी से पुरस्कार प्राप्त कवि लीलाधर जगूडी ने आज से करीब 40 साल पहले लखनऊ से प्रकाशित पत्रिका 'आरंभ' के संपादक विनोद भारद्वाज को लिखे पत्र में की थी। उस समय धूमिल हिन्दी कविता में अपनी पहचान बना रहे थे और जगूडी भी धीरे-धीरे स्थापित हो रहे थे। बाद में दोनों कवियों को साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला।सर्वश्री राजकमल चौधरी, धूमिल, श्रीकांत वर्मा, रघुवीर सहाय, इन्द्रनाथ मदान, कुँवर नारायण से लेकर अशोक वाजपेयी, दूधनाथ सिंह और काशीनाथ सिंह जैसे करीब पचास लेखकों के ऐतिहासिक पत्र 'आरंभ की दुनिया' नामक पुस्तक में छपे हैं, जो भारद्वाज को तब लिखे गए थे।किसी एक पत्रिका के प्रकाशन के सिलसिले में लेखकों द्वारा संपादकों को लिखे गए पत्रों की हिन्दी में यह पहली किताब है, जिसका लोकार्पण शुक्रवार को हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह कर रहे हैं।1967 में निकली इस पत्रिका के कुल छह अंक निकले थे, जिसके तीसरे अंक में धूमिल की चर्चित कविता मोचीराम भी छपी थी। धूमिल ने श्री भारद्वाज को कुल 28 पत्र लिखे थे, जिनमें उन्होंने अपनी नौकरी से परेशान होने की व्यथा भी लिखी थी।'दिनमान' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में पत्रकार रहे भारद्वाज ने 19 वर्ष की आयु में यह पत्रिका निकाली थी, जिसमें राजकमल चौधरी के प्रसंग अकविता को लेकर बहस भी चली थी। पत्रिका में राजकमल चौधरी के निधन पर धूमिल की एक कविता का अंश भी छपा था।धूमिल ने भारद्वाज को लिखे पत्र में अपनी नौकरी की व्यथा व्यक्त करते हुए लिखा था कि यह नौकरी कविता के लिए खाना देने वाले आदमी को खा रही है। मैं किसी बैल की तरह इस रस्सी को खोलकर एक झटके से अलग कर देना चाहता हूँ। ओह बैल लिखते ही मुझे अपने दरवाजे पर खूँटे से बँधे उस बैल की याद आती है जो अपने पगहे को दाँत से खोलना सीख गया था।धूमिल की कविता में भी इस मुक्ति की तड़प है और वह आजादी को व्यापक अर्थों में देखना चाहते थे, जिसकी अभिव्यक्ति 'संसद से सड़क तक' और 'कल सुनना मुझे' नामक उनके संग्रहों में व्यक्त हुई थी। संभार वार्ता

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