देहरादून/28 मई- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने भारत में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को देश के लिए एक घातक प्रवृत्ति बतलाते हुए इसे संविधान की मूलभावना से इतर बताया। विद्यार्थी परिषद ने देश भर में शिक्षा संस्थानों के ज्ञानार्जन के माध्यम की बजाय लाभार्जन का केन्द्र बनने के लिए केन्द्र सरकार की शिक्षा नीति को अपरिपक्व बतलाते हुए इसमें आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता बतलायी। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद की बैठक के दूसरे दिन ‘‘भारत में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण‘‘ तथा ‘‘शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने की आवश्यकता‘‘ प्रस्ताव विचारार्थ रखे गए जिस पर देश भर से आये प्रतिनिधियों ने विचारमंथन किया। देहरादून स्थित कर्नल ब्राउन स्कूल में राष्ट्रीय मंत्री रवि कुमार ने ‘ शिक्षा के व्यापारीकरण को रोकने की आवश्यकता’ शीर्षक से प्रस्ताव रखा। शिक्षा के व्यापारीकरण पर मुखर होते हुए विद्यार्थी परिषद् ने मंहगी व गुणवत्ता खोती जा रही शिक्षा को राष्ट्र के स्वस्थ विकास में बाधक बताया। उदारीकरण के बाद की नीतियों का परिणामस्वरूप शिक्षा संस्थान उत्कृष्टता केन्द्र के स्थान पर धनार्जन केन्द्र बन गये है। उचित गुणवत्ता के बिना कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे शिक्षा संस्थान यह ध्वनित करने के लिये पर्याप्त है कि आज शिक्षा व्यवस्था ज्ञानार्जन की प्रक्रिया के स्थान पर लाभार्जन का व्यापार हो गयी है। शिक्षा के त्वरित विकास में शिक्षा के मौलिक सिद्वान्तों जैसे सहभागिता, समानता, सामाजिक न्याय, सर्वसमावेशिता और सर्व साध्यता का गंभीर हृास हुआ है। स्वायतत्ता तथा गुणवत्ता के नाम पर कैपीटेशन शुल्क एवं असाध्य शुल्क संरचना आरंभ हुई है। जैसी अनेक नियामक संस्थाये जिनसे शिक्षा में गुणवत्ता स्थापित करने तथा व्यापारीकरण को रोकने की अपेक्षा है। अक्षम तथा भ्रष्ट सिद्व हुई और व्यापारीकरण को रोकने में पूर्णतया असफल रहे है। भारतीय चिकित्सा परिषद ;डब्प्द्ध तथा ;।प्ब्ज्म्द्ध के अध्यक्षों की गिरतारी इसका पुख्ता प्रमाण है। संप्रग सरकार ने शिक्षा क्षेत्र से सम्बन्ध्ति 7 विधेयक प्रस्तुत किये हैं। सरकार द्वारा शिक्षा सुधर के लिये जो प्रयास किया गया है अ.भा.वि.प. उसका स्वागत करती है। चंहम 1व ि2
किन्तु विधेयको का विश्लेषण यह ध्वनित करता है कि सुधर का प्रयास वस्तुतः नीजिकरण को बढ़ाने वाला, शक्ति के केन्द्रीकरण वाला तथा तुष्टीकरण को बढ़ावा देने वाला है। इनमें से कोई भी विधेयक शिक्षा के धरातलीय यथार्थ तथा वास्तविक समस्याओं से जुड़ा हुआ नही है। व्यापारीकरण का प्रभाव शिशु से लेकर स्नातकोत्तर ;ज्ञण्ळ ज्व् च्ण्ळद्ध तक सर्वत्र देखा जा सकता है। निजी महाविद्यालयों तथा प्प्ज्.श्रम्ए प्प्प्ज्ए ।प्डैए प्।ैए ब्। इत्यादि के प्रवेश/प्रतियोगिता परीक्षाओं की कोंचिग चलाने वाले कुछ नीजि शिक्षा संस्थान अकल्पनीय फीस वसूल रहे है। वे सरकार के नियन्त्राण से बाहर है। इस प्रकार का भारी शुल्क अभिभावकों का शोषण है और इस बाढ़ को रोकने के लिए उचित कानून का अभाव समस्या को और अधिक विकट बना रहा है। पिछले दो दशक में डठठैए ठक्ैए डठ।ए ठण्ैब्ए डब्।ए डब्श्रए ठैॅ जैसे व्यावसायिक पाठयक्रमों की मांग भी बढ़ी है। मांग में हुई अचानक बढोत्तरी ने इन पाठयक्रमों के कैपीटेशन शुल्क में भी वृद्वि कराई है। इस प्रकार के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों वाले संस्थानो में प्रवेश, शुल्क निर्धरण तथा जवाबदेही आदि से सरकार का नियन्त्रण समाप्त हो चुका है। केेन्द्र सरकार ने भी स्वीकार किया है कि मानित विश्वविद्यालय पारिवारिक उद्यम के रूप में चल रहे है और ये धनादोहन के केन्द्र बन गये हैं। ए.बी.वी.पी. के राष्ट्रीय महामंत्री विष्णुदत्त शर्मा ने ‘‘ भारत में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण’’ प्रस्ताव विचारार्थ रखा। श्री विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्थान के नाम पर संविधान की मूल भावना को तहस नहस करने वाले प्रशासनिक प्रावधानों का प्रयास किया गया है जिससे विद्यार्थी परिषद पूर्णतया असहमत है। देश में पंथ निरपेक्षता की छद्म नीति के कारण धार्मिक विश्वास को राज्य द्वारा छात्रवृत्तियों, रोजगार हेतु, मकान आवंटन तथा बैंक ऋण पाने हेतु प्रमुख आधार माना गया है। सच्चर समिति की रिपोर्ट में आंकड़ेबाजी के आधार पर सम्पूर्ण मुस्लिम समुदाय को सापेक्षिक दृष्टि से पिछड़ा दिखाया गया है तथा प्रशासनिक मानकों के विपरीत धार्मिक आधार पर विभेद करने वाले उपायों को न्यायोचित ठहराने का काम किया है। रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में मुस्लिमों हेतु 10 प्रतिशत आरक्षण एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को पांच प्रतिशत आरक्षण, शैक्षिक प्रवेश हेतु एवं सभी सरकारी योजनाओं जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण योजना के लिए की गयी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद् मानना है कि ये विभेदात्मक संस्तुतियां एवं उपाय न केवल साम्प्रदायिक अपितु पंथ निरपेक्षता की मूल भावना के विरूद्व है। परिषद् मांग करती है कि संविधान की धारा 30 को निरस्त किया जाए।
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