Saturday, May 29, 2010

देहरादून, 28 मई, 2010 मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक शुक्रवार को कर्नल ब्राउन कालेज में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल हुए। अपने सम्बोधन में मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा के बाजारीकरण को रोकने के लिए संकल्पबद्ध है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा रोजगारपरक शिक्षा देकर युवाओं को स्वरोजगार के पर्याप्त अवसर दिलाये जा रहे है तथा सरकार द्वारा समाज एवं देशवासियों की खुशहाली हेतु पर्यावरण शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने महाकुम्भ की सफलता के लिए सभी सहयोगी संस्थाओं, स्वयंसेवकों एवं उपक्रमों के लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा संस्कृत भाषा को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे है तथा सरकार द्वारा संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया गया है, इस निर्णय की प्रशंसा के रूप में उन्हें विदेशों के लगभग 51 देशों से प्रशस्ति पत्र भी मिले है। उन्होंने कहा कि संस्कृत कम्प्यूटर युग की तकनीकी भाषा के रूप में उपयोगी है तथा वर्तमान सरकार संस्कृत के प्रचार एवं प्रसार की पक्षधर है।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री को कुम्भ की सफलता के लिए प्रतीक चिन्ह भेट किया गया।
इस अवसर पर उनके साथ विधायक गंगोत्री गोपाल रावत, भाजपा महामंत्री धनसिंह रावत आदि उपस्थित थे।



























देहरादून, 28 मई, 2010 मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने शुक्रवार देर सायं पं. दीन दयाल उपाध्याय कोरोनेशन चिकित्सालय का औचक निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने चिकित्सालय में अनुपस्थित चिकित्सा कर्मियों तथा समय से पूर्व डयूटी छोड़ने वाले चिकित्साकर्मियों के स्पष्टीकरण के निर्देश दिये। मुख्यमंत्री ने चिकित्सालय के सामान्य वार्ड में जाकर प्रत्येक मरीज से उनकी कुशलक्षेम पूछी तथा उन्हे मिल रहे उपचार के संबंध में जानकारी प्राप्त की। कुछ मरीजो ने बताया कि उन्हें दवाईयां बाहर से खरीदनी पड़ रही है, इस पर मुख्यमंत्री ने चिकित्सकों द्वारा बाहर से लिखी हुई दवाईयों के एवज में उनके वेतन से कटौती करने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिये। उन्होंने कहा कि जिन दवाईयों के विकल्प चिकित्सालय में उपलब्ध है, उन्हें बाहर से खरीदने की प्रवृत्ति पर रोक लगाये तथा भविष्य में इस प्रकार की पुनरावृत्ति को गंभीरता से लेने के निर्देश भी दिये। मरीजों द्वारा बताया गया कि चिकित्सालय में कार्यरत एक सिस्टर द्वारा सही व्यवहार नही करती है, इस पर मुख्यमंत्री ने विशेषकार्याधिकारी चन्द्रशेखर उपाध्याय को निर्देश दिये कि उस सिस्टर को चिन्हित करें तथा उसे चेतावनी दे। उन्होंने सामान्य वार्ड में भर्ती उमा, शमीमा तथा सुनीता को उनके द्वारा बाहर से दवा हेतु व्यय की गई धनराशि संबंधित चिकित्सक से वसूल करने के निर्देश दिये। उन्होंने मौके पर तैनात चिकित्सक को निर्देश दिये कि सभी चिकित्सको में यह संदेश दे, कि भविष्य में बाजार की दवा न लिखे और यदि आवश्यक हो तो उसकी डिमांड अस्पताल से की जाय। उन्होंने मुख्य फार्मासिस्ट पी.सी.डिमरी तथा सहायक पी.एस.नेगी का भी पर्याप्त मात्रा में आवश्यक दवा न रखने पर स्पष्टीकरण करने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि इसकी जांच भी की जाय कि दवा समाप्त होने की तिथि पर अधीक्षक को मांग क्यों नही की। उन्होंने चिकित्सालय में भर्ती मरीज के उपचार के लिए बाहर से खरीदी गई दवा का विकल्प अस्पताल से देने के निर्देश चिकित्सकों को दिये।
मुख्यमंत्री ने आपातकालीन कक्ष में जाकर डयूटी पर तैनात फार्मासिस्ट से स्टोर में उपलब्ध दवा का मिलान रजिस्टर से किया तथा सभी फार्मासिस्टो ंको निर्देशित किया कि स्टोर में दवाई पर्याप्त मात्रा हेतु मांग समय से भेजी जाय तथा स्टोर में उपलब्ध दवाई की अद्यतन उपलब्धता रजिस्टर में अंकित रहे।
इसके पश्चात मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने 108 आपात सेवा के कार्यालय जाकर गतिविधियां का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान 108 आपात सेवा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनूप नौटियाल ने बताया कि 8 घंटे की अवधि में 7245 कॉल, जिनमें से 201 आपातकालीन कॉल है, को सुना गया और उस पर तत्काल कार्यवाही की गई। मुख्यमंत्री ने कहा कि 108 आपात चिकित्सा सेवा को महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ सुरक्षा के साथ भी जोड़ा गया है, इस योजना से महिलाओं को लाभ मिलेगा।








देहरादून, 28 मई, 2010 (मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिए दी जाने वाली भूमि को वन विभाग के नाम किया जाना प्रदेश के परंपरागत हक हकूकों पर कुठाराघात है। डॉ. निशंक ने इस संदर्भ में शुक्रवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र भेज कर राज्य का पक्ष रखा है। उन्होंने कहा कि अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी द्वारा वर्ष 1997 में गौडावर्मन थिरू मुल्यपद बनाम भारत संघ के मामले में गलत निर्णय लिए जाने और भारत के सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किये जाने के कारण राज्य के समस्त पर्वतीय जिलों में खेती की भूमि तथा संरक्षित वन भूमि को छोड़कर समस्त भूमि संरक्षित वन घोषित कर दी गयी। जिसके परिणाम स्वरूप नवसृजित राज्य उत्तराखण्ड के लिए वन भूमि को गैर वानिकी उपयोगों के लिए परिवर्तित कर क्षतिपूरक वृक्षारोपण की आवश्यकताओं की पूर्ति करना कठिन हो गया है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार की नई व्यवस्था के बाद प्रदेश में बड़े पैमाने पर विकास कार्य बाधित हो रहे हैं। विकास कार्यों के लिए वन भूमि हस्तांतरण में अभी तक क्षतिपूर्ति वृक्षारोपण के लिए दोगुनी भूमि दी जाती है। लेकिन, नई व्यवस्था के मुताबिक इस भूमि को वन विभाग के नाम करना होगा।
मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने प्रधानमंत्री को भेज पत्र में लिखा है कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 14 प्रतिशत क्षेत्र में खेती की जाती है, 19 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र स्थायी रूप से बर्फ, हिमनद तथा अत्याधिक ढलानों से ढका रहता है, जबकि वनाच्छादित 65 प्रतिशत क्षेत्र वन क्षेत्र के रूप में रिकार्ड किया गया है। शेष क्षेत्र बंजर, चरागाह, परती भूमि है। यदि देहरादून, ऊधमसिंहनगर और हरिद्वार के मैदानी जिलों को निकाल दिया जाए, तो पर्वतीय क्षेत्र में भूमि संसाधनों पर पड़ने वाले दबाव की सहज ही कल्पना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि हमारी राष्ट्रीय वन नीति 1988 का मुख्य उद्देश्य देश के पर्वतीय राज्यों के दो तिहाई भाग को वनों से आच्छादित करना है। हमारे राज्य में पहले से ही 65 प्रतिशत भूमि पर वन है और स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट, 2009 के अनुसार वनाच्छादित क्षेत्र में वृद्धि हो रही है, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय नीति के अनुरूप कार्य करना हमारे हितों के विरूद्ध जा रहा है, क्योकि हमारे लिए क्षतिपूरक वृक्षारोपण के लिए भूमि की मांग को पूरा करना कठिन हो रहा है, जिसके परिणामरूवरूप सड़कों, पुलों, विद्युत परियोजनाओं, स्कूल तथा अस्पताल जैसे आवश्यक अवस्थापना संबंधी विकास कार्य रुके गए है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की सीमाएं चीन और नेपाल दोनो से लगी है राष्ट्र की सुरक्षा के लिए सुविधाएं सृजन करने के लिए भूमि की मांग न्यायोचित है। उन्होंने कहा कि अभी तक हम सुरक्षा कार्यों के लिए भूमि प्रदान करते रहे है, क्योंकि हम जानते है कि यह अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि इससे अधिक भूमि प्रदान करना तथा पर्वतीय जनता की विकासात्मक आवश्यकताओं के लिए भूमि की मांग की पूर्ति करना भी हमारे लिए कठिन हो रहा है।
मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि जब तक अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार के वर्ष 1997 के अनुचित एवं तर्कहीन आदेश को विखण्डित किये जाने की अनुमति केन्द्रीय सशक्त समिति तथा मा. सर्वोच्च न्यायालय से नही मिल जाती है, तब तक केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय राज्य को सहयोग करे। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश शासन के 1997 के आदेश को विखण्डित करने की याचिका शीघ्र ही सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जायेगी।


देहरादून, 28 मई, 2010 मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक से शुक्रवार को सचिवालय में मध्य कमान के सैन्य कमाण्डर ले.जन. वी.के.अहलूवालिया ने मुलाकात की। ले.जन. अहलूवालिया ने उत्तराखण्ड सरकार द्वारा सैनिकों के लिये आवासीय भूमि प्रदान किये जाने पर धन्यवाद देते हुए सेना से जुड़ी कुछ अन्य मांगों को मुख्यमंत्री के सम्मुख रखा। उन्होंने कहा कि राज्य में पूर्व सैनिकों की बड़ी संख्या को देखते हुए सी.एस.डी. कैन्टीन के लिये वैट दरों में कमी की जानी चाहिये। उन्होने जय जवान आवास योजना के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा भूमि दिये जाने के निर्णय की प्रशंसा करते हुए कुछ अन्य स्थानों पर भी भूमि की मांग की। उन्होंने म्ब्भ्ै (एक्स सर्विसमैन कान्ट्रीब्यूटरी हेल्थ स्कीम) पॉली केन्द्रों के लिये प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर भूमि की मांग की।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड वीर सैनिकों की भूमि है और यहां की सरकार और जनता सेना को हर संभव सहयोग देने के लिये प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड दो-दो विदेशी सीमाओं से घिरा होने के कारण बेहद संवेदनशील राज्य है। उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा के लिये सेना और अन्य सैन्य बलों को सभी सुविधाएं मुहैया कराई जायेंगी। मुख्यमंत्री ने सैन्य कमाण्डर से प्रदेश के वन्य-पर्यावरण सरंक्षण में और अधिक योगदान देने की अपील की। उन्होंने कहा कि सेना पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को गोद ले सकती है और वहां वृक्षारोपण आदि कार्य कर सकती है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ईको टास्क फोर्स को भी मजबूत किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अर्न्तराष्ट्रीय सीमाओं पर राष्ट्र विरोधी एवं घुसपैठियों की गतिविधियों को उभरने से पहले ही कुचल देना होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पहचान पत्र योजना आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से बहुत आवश्यक है और उत्तराखण्ड के अन्तर्राष्ट्रीय सीमावर्ती क्षेत्रों में यह शीघ्र लागू होनी चाहिये। इस अवसर पर प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री सुभाष कुमार तथा डी.के.कोटिया उपस्थित थे।


देहरादून, 28 मई, 2010 मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक से शुक्रवार को सचिवालय में जनपद ऊधमसिंहनगर के एक प्रतिनिधिमण्डल ने राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी की नेतृत्व में भेंट की। प्रतिनिधिमण्डल ने मुख्यमंत्री से विगत दिनों जनपद ऊधमसिंहनगर के काशीपुर निवासी नरेन्द्र किशोक सिंह मानस की पुत्री पल्लवी की संदिग्ध मृत्यु की सी.बी.सी.आई.डी. जांच का अनुरोध किया। पीड़ित परिवार के लोगों ने मुख्यमंत्री से इस संदिग्ध मृत्यु की गुत्थी को शीघ्र सुलझाने तथा दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने प्रतिनिधिमण्डल को आश्वस्त किया कि उनकी मांगों पर यथाोचित कार्यवाही की जायेगी। उन्होंने इसके लिए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी किये। प्रतिनिधिमण्डल में ईश्वर चन्द्र गुप्ता, राम मेहरोत्रा, खिलेन्द्र चौधरी, डॉ. गिरीश तिवारी तथा अरविन्द आदि शामिल थे।

देहरादून, 28 मई, 2010 सरकारी प्रवक्ता ने बताया है कि राष्ट्रीय वन अधिकार मान्यता अधिनियम समिति, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय की सामूहिक समिति द्वारा 30 मई, 2010 को शताब्दी वन विज्ञान केन्द्र (पुराना वन रैंजर्स कालेज) परेड़ ग्राउण्ड के पास देहरादून में जनवार्ता व समीक्षा का आयोजन किया गया है। वनाधिकार कानून संबंधित जो भी वनाश्रित समुदाय, व्यक्ति, संस्थान, संगठन या सरकारी विभाग इस संबंध में कुछ कहना चाहते है, वह प्रातः 9.30 बजे से सायं 6 बजे तक इस समिति के समक्ष उपस्थित हो कर अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकते है। यह समिति 1 जून 2010 को कानून के क्रियान्वयन से संबंधित उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों के प्रतिनिधियो से वार्ता करेगी।








देहरादून, 28 मई, 2010 अपर सचिव नियोजन डॉ. पी.एस. गुसांई ने बताया कि प्रदेश में बी.ए.डी.पी. योजना के अन्तर्गत मार्च, 2010 तक भारत सरकार द्वारा कुल रु॰ 10611.64 लाख धनराशि अवमुक्त की गयी, जिसके सापेक्ष 8454.63 लाख धनराशि का व्यय किया गया तथा रु॰ 2157.01 लाख धनराशि अवशेष थी। अवमुक्त धनराशि के सापेक्ष व्यय 80 प्रतिशत है।
उन्हांेने बताया कि इस योजना के अन्तर्गत हिमाच्छादित क्षेत्रों में वर्ष में माह नवम्बर से माह मई तक कोई भी कार्य नहीं किया जाता है, तथा शेष 5 माह में भी वर्षा के कारण कार्य में अत्याधिक व्यवधान उत्पन्न होता है। इसके बावजूद भी बी.ए.डी.पी. योजना अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2009-10 में माह मार्च, 2010 तक वित्तीय प्रगति में 80 प्रतिशत धनराशि का व्यय किया गया है, तथा योजनाअन्तर्गत 2498 कार्य पूर्ण कर लिये गये है तथा शेष कार्य प्रगति पर है। योजना के सम्बन्ध में भारत सरकार के स्तर पर 9वीं म्उचवूमतमक ब्वउउपजजमम की बैठक में समीक्षा के दौरान योजना के प्रगति पर संतोष प्रकट किया गया।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि बी.ए.डी.पी. अन्तर्गत आधारभूत सवेंक्षण की सूचना प्रेषित की जा चुकी है। हाल ही में भारत सरकार द्वारा जारी किए गए नए प्रपत्रों पर सर्वेक्षण किए जाने के निर्देश पुनः जारी किए गए है।

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