Monday, September 21, 2009

नवप्रभात के कामों का चिट्ठा मुख्यमंत्री को पेश कर दिया था।

नवप्रभात को उत्तराखण्ड का लालू भी कहा जाता है। चौकिये नहीं, जेट्रोफा में जो घोटाला हुआ वह लालू के चारा घोटाले को भी कोसो पीछे छोड जाता है। कांग्रेस सरकार के ही एक मंत्री ने जेट्रोफा घोटाले की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री पं० नारायण दत्त तिवारी से की थी। तत्कालीन वन मंत्री पर ने एक ओर जहां अदालत की अवमानना का आरोप लगा वहीं कैबिनेट के फैसले को जूते की नोंक पर रखने की चर्चा रही।
क्या थे वह तमाम हालात। जिसके मद्देनजर मात्र ५६ वोटों से जीतने वाला एक विधायक बाहुबली और अकूत धन दौलत का मालिक बन गया। फिर विकास नगर की जनता की अदालत में वह कसूरवार सिद्ध हुआ। एक विस्तृत और सम्पूर्ण सहेजने योग्य राजनीतिक दस्तावेज।
वर्ष २००२ में उत्तराखण्ड में पहली निर्वाचित कांग्रेस सरकार का गठन हुआ। धनबल और सांसद पिता की विरासत के बूते विकासनगर विधानसभा क्षेत्र से मात्र ५६ वोटों से जीतकर आए नवप्रभात कांग्रेस सरकार में वनमंत्री पद से नवाजे गये थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने उन्हें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बायो फ्यूल बोर्ड के साथ-साथ वन व शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय भी सौंपे। नवप्रभात के अधीन एक भी विभाग ऐसा नही रहा था जिसको लेकर चर्चाएं आम नही रही हो। जब जनता वोट के रूप में अपनी ताकत नवप्रभात के हाथों में सौंप रही थी तो शायद ही उसने उसने सोचा होगा कि उसका कथित रहबर ऐसा निकलेगा। नवप्रभात ने अपने अधीन आने वाले एक भी बोर्ड व विभाग को ऐसा नही छोडा, जहां उसने नियम कायदों को जबरन मोडा-तोडा न हो। मंत्री बनते ही नवप्रभात जनभावनाओं के विपरीत कार्य करते चले गए। वन मंत्री की तानाशाही इतनी बढती चली गयी थी कि एक अन्य कैबिनेट मंत्री ने नवप्रभात के कामों का चिट्ठा मुख्यमंत्री को पेश कर दिया था। करतूते जब हद से पार हो गयी और शिकायत मुख्यमंत्री के दरबार में चली गई, तो मुख्यमंत्री को मजबूरन नवप्रभात को झिडकी लगानी पडी थी। मायावती के उत्तराखण्ड दौरे के समय नवप्रभात अपने खासमखास डिप्टी मेयर उमेश शर्मा ’काऊ‘ को डोईवाला से बसपा का टिकट दिलाने की सिफारिश करने गए तो मीडिया में यह मामला उछला जिससे कांग्रेस सरकार व नवप्रभात की छवि खराब हुई। विकासनगर में वैटलैंड संरक्षण आरक्ष योजना में हुए घोटाले को लेकर जबरदस्त आंदोलन से नवप्रभात की छवि धूमिल हुई थी। पेयजल निर्माण निगम के एमडी को सेवा विस्तार देने में उनकी भूमिका रही या नगर निगम के डिप्टी मेयर के कार्यकाल को बढाने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल का मामला तथा तत्कालीन मेयर मनोरमा शर्मा विरुद्ध षडयंत्र रचने में उनकी भूमिका मानी गयी। मुख्यमंत्री के खासमखास रहने के कारण तमाम नियम, कायदे कानूनों को रौंदा। कैबिनेट की सलाह को ताक पर रखा। तत्कालीन कैबिनेट मंत्री प्रीतम ने तो मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की। इसके अलावा पर्यटन मंत्री से भी भिडे। वहीं कांग्रेस की ही मेयर मनोरमा शर्मा से छत्तीस का आंकडा रहा।
नवप्रभात इससे पहले मात्र ५६ वोटों से जीतकर तानाशाह बन गये
मात्र ५६ वोटों से जीतकर आए सूबे के वन, पर्यावरण एवं शहरी विकासमंत्री नवप्रभात ने तानाशाह की तरह सरकारी संपत्ति का दोहन किया वह आश्चर्यजनक ही नही शर्मनाक भी था। जनता अपने बीच से चुनकर जब किसी व्यक्ति को अपना नीति-निर्माता घोषित करती है, तो उसके पीछे उसकी बहुत सी उम्मीदें आशाएं होती है। नवप्रभात ने जिस निर्दयता के साथ जन आशाओं पर पानी फेरा उससे नेताओं से जनता का विश्वास उठना लाजमी था। उनकी विधानसभा क्षेत्र में अपने मंत्री की करतूतों को लेकर जनता में रोष बढता गया, नागरिेकों की तमाम समस्याएं सामने खडी थी। स्थानीय लोग यह मान रहे थे कि नवप्रभात ने जनता की बदौलत हासिल की प्रभुसत्ता का जिस तरह दुरुपयोग किया वह निराशाजनक है। वहीं नवप्रभात सत्ता के मद में चूर होकर इंसान को इंसान समझने के लिए तैयार न थे। वह तो घमण्ड व सत्ता के रथ में सवार होकर सातवें आसमान पर थे। शायद तभी जनता ने उनका धरातल पर लाने के लिए धडाम से जमीन पर पटका और वह विधानसभा चुनाव हार गये।
पर्यावरण मंत्री के रुप में उनका सबसे दूषित कार्य प्रतिबंधित उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण पत्र देना था। दून वैली अधिसूचना के अनुसार देहरादून में लाल एवं नारंगी श्रेणी के उद्योगों की स्थापना प्रतिबंधित है, लेकिन बोर्ड द्वारा मंत्री के दबाव में आकर कई फार्मस्यूटिकल कंपनियों की स्थापना के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिए गए। जो कि पूर्व में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास विचारार्थ लंबित थे। मंत्री बनने के बाद नवप्रभात ने बडे पैमाने पर जमीनों की खरीद-फरोख्त की। मंत्री ने अपने खास लोगों की एक चौकडी की आड में अपने साम्राज्य विस्तार के इरादों को धरातल दिया था। चर्चा थी कि नवप्रभात की अन्य कई स्थानों पर भी करोडों की संपत्ति है। लेकिन आयकर के अधिकारियों से यह हमेशा महफूज रहे। भगवानपुर रूडकी में नवप्रभात की कई सौ बीधा जमीन जोडी गयी।
मंत्री के रुप में नव प्रभात के काले कारनामे
जेट्रोफा घोटाला
जैट्रोफा एक झाडी है, जो रूखी भूमि पर पर भी आसानी से ग्रोथ कर जाता है। एक ओर जैट्रोफा बोर्ड के अधिकारी कहते हैं कि जैट्रोफा को केवल बंजर जमीन पर ही उगाया जाना चाहिए। इसे सिंचाई की भी आवश्यकता नही होती।फिर इसके लिए अलग से लाख दो लाख नही करोडों रूपए की खाद खरीदी गयी। गौरतलब तथ्य यह है कि वन विभाग की तमाम नर्सरियों में जहां साधारण खाद डाली जाती है। वही जैट्रोफा के लिए बाहरी प्रदेशों से माइकोराजा, बायोमैन्यूर व तमाम कीटनाशक खरीदे गये। बोर्ड ने बताया कि इन दो वर्षों में एक करोड ६०लाख १३हजार रूपए की खाद खरीदी जा चुकी है। बोर्ड के सचिव ने कहा कि उन्नत बीजों की पैदावार के लिए यह जरूरी था। बाहरी प्रदेशों से खाद खरीदने के पीछे वह कहते हैं कि इन सबका टेण्डर डाला गया था। टडर इन्ही संस्थाओं के नाम खुला होगा। बहुचर्चित बायोफ्यूल बोर्ड भी इनमें से एक है। बायोफ्यूल के उत्तराखण्ड के सकल घरेलू उत्पाद में करीब दो सौ करोड रूपए की बढोतरी का सपना सजोने वाले वन विभाग के सपने वर्ष २००४ में बोर्ड की स्थापना के बाद कितने धराशायी हुए यह साफ देखा जा सकता था। विधानसभा सत्र की कार्रवाई के दौरान बायोफ्यूल बोर्ड को लेकर उठे सवालों का स्पष्ट जवाब वनमंत्री नवप्रभात के पास नही था। सदन में भाजपा के तत्कालीन सदस्य अजय भट्ट के एक अल्पसूचित प्रश्न के जवाब में तत्कालीन वनंत्री नवप्रभात ने अवगत कराया था कि राज्य में अब तक १००१६.२३४ हैक्टेयर क्षेत्रफल में एक करोड ८८ लाख १९हजार ९८३ जैट्रोफा पौंधों का रोपण किया जा चुका है।इसके एक दिन पहले भाजपा विधायक विजय बडथ्वाल के एक प्रश्न के जवाब में वनमंत्री ने सदन को बताया था कि प्रदेश में अभी तक ८५५४ हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही जेट्रोेफा रोपण किया गया है। वनमंत्री नवप्रीाात द्वारा जैट्रोफा रोपण को लेकर सदन को जो गुमराह किया गया, उससे स्पष्ट होता है कि करीब १४६२ हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपण नही किया गया। इससे लाखों रूपए की गोलमाल की बात की भी पुष्टि होती है।
बायोफ्यूल बोर्ड के तत्कालीन सचिव एके लोहिया ने बताया था कि एक करोड ८८लाख १९हजार जैट्रोफा पौंध करीब १०हजार हैक्टेयर भूमि पर रोपित की जा चुकी है और दो लाख हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपण का लक्ष्य है। पिछले दो सालों में जब मात्र १० हजार हैकटेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपित किया गया। तो दो लाख हैक्टेयर भूमि पर कितने सालों बाद हो पाएगा, अंदाजा लगाया जा सकता है।खाद खरीदने सहित बोर्ड अभी तक ६करोड रूपए खर्च कर चुका है। ऐसे ही कई अन्य हैरतअंगेज तथ्य थे। बोर्ड ने दावा किया था कि प्रदेश करीब सवा चार सौ गांवों में इस समय जैट्रोफा का कार्य चल रहा है।
मीडिया ने जैट्रोफा पर काम कर रहे इन गांवों का दौरा करने पर पाया कि मात्र जैट्रोफा की सूखी डंठलें खडी हैं। शुरूआती दौर में बोर्ड ने संबंधित गांवों का सर्वे तक नही किया। नतीजन ग्रामीणों ने सैकडों हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपण दिखाकर पैसे झटक लिए तो कही पौंध की पौंध नदी में बहा दी गई। विभाग ने अब दर्जनभर सर्वेयर रखे हैं। इनका विभिन्न गावों का रोज का टीए, डीए ही हजारों में बैठ जाता है। सालों बाद जब बायोफ्यूल बनकर तैयार होगा तो अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वास्तविक कीमत आज के पैट्रोल की कीमत को भी मात दे रही होगी।
अब पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड में नव प्रभात के काले कारनामे देखिये। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में अपने चहेतों की नियुक्ति को लेकर उठे सवाल ने भी नवप्रभात की छवि को धूमिल किया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव की नियुक्ति की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई। कमेटी ने इस पद के लिए नौ लोगों का साक्षात्कार लिया और योग्यता के आधार पर तीन लोगों का चयन किया गया। वन मंत्री योग्यता क्रम में तीसरे स्थान पर रहे, संजय भूटानी को सदस्य सचिव की कुर्सी पर बैठाना चाहते थे। मंत्री नवप्रभात की सिफारिश पर इस व्यक्ति की फाइल जब ग्राम्य विकास आयुक्त ;वनद्धके पास पहुची तो उन्होंने इस फाइल पर साइन करने से मना कर दिया। नवप्रभात के मनमानी पर उतर जाने पर ग्राम्य विकास आयुक्त (वन) इस मामले को लेकर खुद ही मुख्यमंत्री के दरबार में चली गई, तो मुख्यमंत्री को मजबूरन नवप्रभात को झिडकी लगानी पडी। अनंतः चयन कमेटी द्वारा चयनित सचिव ओएनजीसी से प्रतिनियुक्ति पर आए सीबीएस नेगी ने दो अप्रेल २००३ को बोर्ड में कार्यभार ग्रहण कर लिया। इससे नाखुश नवप्रभात ने अब चुन-चुनकर बदला लेना शुरू कर दिया। इसकी पहली गाज ग्राम्य विकास आयुक्त पर पडी और उन्हें इस महत्वपूर्ण पद से हाथ धोना पडा। प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सचिव की कुर्सी पर अपने चहेतों को बैठाने के लिए नवप्रभात अदालती आदेश की अवमानना करने में भी नहीं हिचकिचाए। मलाईदार कहे जाने वाले इस बोर्ड में नवप्रभात की मंशा के अनुरूप और तय मानकों के विपरीत जब बोर्ड के सदस्य सचिव सीबीएस नेगी ने कार्य करने से मना कर दिया, तो नवप्रभात ने उन्हें बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखाकर ही दम लिया। सीबीएस नेगी के नेतृत्व में बोर्ड ने काम करना शुरू कर दिया था। बोर्ड का विधिवत कामकाज शुरू करने के लिए करीब डेढ दर्जन कर्मचारियों को एक वर्ष की संविदा पर रखा गया। नेगी की कुशल कार्यशैली का ही नतीजा था कि ३७ लाख की आर्थिक स्थिति से शुरू हुआ बोर्ड अपनी वित्त क्षमता को बढाकर दो-ढाई वर्ष में पांच करोड तक ले गया। सूत्र बताते हैं कि इस इस बीच नवप्रभात ने अपने चहेते लोगों के उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र दने के साथ ही उन्हें प्रत्येक महीने कमीशन देने के लिए बोर्ड पर दबाव डाला। सचिव नेगी ने तय मानकों के विपरीत कार्य करने से साफ इनकार कर दिया। यहीं नहीं सोमानी फोम्स जैसी अन्य राज्यों में ब्लैक लिस्टेड कई कंपनियों को नेगी ने उत्तरांचल में उद्योग स्थापित करने के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने से मना कर दिया। इस बीच एक वर्ष पूरा होने के बाद संविदाकर्मियों का कार्यकाल उपलब्धियों के साथ एक वर्ष के लिए बढा दिया गया।
वर्ष २००५ में संविदाकर्मियों का कार्यकाल समाप्त हुआ तो संविदाकर्मियों ने इसे बढाने की मांग उठाई, लेकिन इसे ठुकरा दिया गया। जबकि बोर्ड को इन संविदाकर्मियों की सख्त जरूरत थी। लेकिन नवप्रभात को इन संविदाकर्मियों से चिढ थी।क्योंकि ये सभी पूर्व सचिव सीवीएस नेगी के कार्यकाल में नियुक्त किए गए थे। संविदाकर्मी न्यायालय की शरण में गए तो न्यायालय से १सितंबर २००५ को संविदाकर्मियों को अंतरिम राहत दते हुए बोर्ड द्वारा पूर्व में २६.१०.२००४ को विज्ञप्ति विज्ञापन के क्रम में पदों पर स्थाई नियुक्ति होने तक संविदाकर्मियों को अपने पदों पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्णय दिया। इसके बाद भी बोर्ड का रवैया नही बदला। नतीजतन संविदाकर्मियों को आंदोलन का रास्ता अपवनाना पडा। मुख्यमंत्री की शरण में गए तो मुख्यमंत्री ने न्यायालय के आदेश के क्रम में वन एवं पर्यावरण मंत्री की यथोचित कार्रवाई करने को कहा। लेकिन वनमंत्री नहीं माने। नवप्रभात ने कांग्रेस संगठन के पदाधिकारियों की बात भी नहीं मानी।
अपनी एक न चलती देख भला नवप्रभात चुप कैसे बेठते। उन्होंने तमाम तिकडमें भिडाते हुए सचिव नेगी को उनके कार्यकाल की अवधि से पूर्व ही बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद मंत्री ने बोर्ड का जमकर दोहन किया। ऐसे तमाम उद्योगों को भारी कमीशन देकर अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिए गए जो कि नेगी के कार्यकाल में अयोग्य ठहरा दिए गए थे। तब चाहे वह काशीपुर की श्याम पेपर मिल हो या फिर सोमानी फोम्स फोम्स कंपनी।
अन्य राज्यों से बाहर कर दिए गए पर्यावरण के लिए खतरनाक कई उद्योगों ने नवप्रभात की मेहरबानी से उत्तराखण्ड में अपनी जडे जमा ली। कमीशन की मोटी रकम पर स्थापित इन उद्योगों का नतीजा था श्याम पेपर मिल और सिडकुल हरिद्वार में स्थापित उद्योंगों में दुर्घटनाएं। जिनमें आग लगने व अन्य कारणों से दो दर्जन कामगारों को अपनी जान से हाथ धोना पडा।
मंत्री बनने के बाद नवप्रभात ने अपने अधीनस्थ विभागों को निजी हित साधने के लिए रौंदना शुरू कर दिया। नवप्रभात की पहली व्यापक चर्चा २००३ के अक्टूबर माह म हुई यह ऐसा मामला था जिसने सबको चौंकाकर रख दिया। ..................................................................................................................... आरक्षित वन क्षत्र में ४५ बीघा जमीन में फार्म हाउसः-
राजधानी से करीब बीस किमी की दूरी पर सहसपुर विकासखंड के अंतर्गत किमाडी नामक स्थान पर आरक्षित वन क्षत्र में वन मंत्री नवप्रभात का ४५ बीघा जमीन में एक फार्म हाउस स्थित है। अपने निजी फार्म हाउस पर सरकारी पैसे से सडक बनवायी। ४५ बीघा जमीन की बाउंड्री बाल ही नहीं करायी गयी। हैरानी की बात यह रही कि वन महकमा जहां एक ओर आरक्षित वन क्षेत्रों को मानवरहित करने में जुटा हुआ है, वहीं उन महकमे का ही मुखिया और जन प्रतिनिधि आरक्षित वनक्षेत्र में खुल्लमखुल्ला अवैध निर्माण किये जाने की चर्चा रही। चारों ओर से घने वनों से घिरे इस फार्म हाउस तक पहुंचने के लिए तत्कालीन वन मंत्री ने वर्ष २००३ में तमाम नियम कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए २० फुट चौडी व आधा किमी लंबी सडक बना डाली। रास्ते में आए दर्जनों हरे-भरे पेडों को कटावा दिया गया। देर-सबेर वहां विशाल फार्म हाउस बनाया जाएगा-यह तय है। वर्तमान में फार्म हाउस में किमाडी गांव के दो लोगों को बतौर चौकीदार नौकरी दी गई है। वनमंत्री ने कागजों में यह सडक वानिकी कार्यों के लिए दर्शाई है। वनमंत्री किस तरह से सरकारी खजाने को चूना लगा रहे हैं। इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि फार्म हाउस के लिए बनाई जा रही सडक वह खुद के पैसों से नहीं बल्कि अपनी विधायक निधि से बनाई। सडक के किनारे खडे दर्जनों सूखे पेड पहाडों को बेतरतीब ढंग से काटा गया। नवप्रभात ने विधानसभा में ७१वें विधायक के रूप में मनोनीत किए गए आरवी गार्डनर की विधायक निधि से भी फार्महाउस को जाने वाली इस सडक के निर्माण के लिए दो लाख रूपए दिए थे।इस पूरे प्रकरण के खुलासे के बाबजूद भी न तो वन विभाग ने कोई कर्रवाई की और न ही शासन ने। आम आदमी के आरक्षित वन क्षेत्र में घुसने पर भी एतराज करने वाले वन विभाग के तमाम आला अफसरान चुप्पी साधे बैठे रहे। निकटवर्ती गांव डेढ किमी दूर होने के बाबजूद ऊर्जा निगम द्वारा फार्म हाउस के पास ही जंगल में ट्रांसफार्मर स्थापित किया गया। ताकि मंत्री जी के फार्म हाउस में लो वोल्टेज की समस्या खडी न हो। ट्रांसफार्मर दूर होने के कारण पूरे किमाडी गांव में लो वोल्टेज की समस्या होने लगी। इसके अलावा फर्म हाउस के लिए बकायदा अलग से पाइप लाइन भी बिछाई गई।
खनन नीति में भ्रष्टाचार
नवप्रभात ने खनन नीति में भ्रष्टाचार को बढावा दिया। निगमों से खनन कार्य छीनने के लिए कोई खास बजह ढूंढ न पाने के कारण इसी नीति को यथावत रखा। हालाकि वनमंत्री ने अपने चहेतों और खनन माफिया को फायदा पहुंचाने को पूरी जोर आजमाइश की, पर विफल रहे। बात यहां तक पहुचा दी गई थी कि निगमों के साथ-साथ खनन कार्य को समितियों को भी सौंपा जाए।इस कार्य को अंजाम देने के लिए ११अक्टूबर २००२को निर्णय लिया गया परंन्तु लागू नही कर दिया गया। १५ अक्टूबर को वनमंत्री नवप्रभात ने खनन नीति के शासनादेश जारी न करने को कहा और १७ अक्टूबर को इसमें संसोधन करके खनन नीति को जारी किया गया। इस प्रकार इसमें कुछ मनमाफिक प्राविधान जैसे ’निगमों के साथ-साथ समितियों को भी कार्य सौंपा जाए‘ जोडे गए जिससे काफी बबाल मचा।
बैराज स्थित झील में भी जमकर भ्रष्टाचार किया
नवप्रभात वर्ष २००५में आसन बैराज स्थित झील में भी जमकर भ्रष्टाचार हुआ। चकराता वन प्रभाग की रीवर रेंज के अंर्तगत आसान बैराज में प्रतिवर्ष शीतकाल में हजारों विदेशी पक्षी आते है। १३ जनवरी २००५ को वन एवं पर्यावरण मंत्री नवप्रभात की अध्यक्षता में हुई वन विभाग,सिचाई विभाग व जल विद्युत निगम के अधिकारियों की बैठक में इस योजना का खाका तैयार किया गया था। निर्णय हुआ था कि आसन वैटलैंड संरक्षण आरक्ष योजना को मूर्त रूप देने के लिए सिचाई विभाग कार्यदाई संस्था व वन विभाग नोडल एजेंसी करेगी। इसके तहत बैराज के पास चकराता वन प्रभाग की रीवर रेंज के अंतगर्त ४४४.४० हैक्टेयर भूमि पर दो नई झीलें तैयार करने के लिए सिचाई विभाग ने एक निजी सर्वेयर की मदद से लगभग ३.१५करोड रूपए का प्रस्तावित बजट शासन को भेजा था। प्रस्ताव को स्वीकृति दते समय शासन ने प्रथम चरण में लगभग २करोड ३१लाख रूपए हस्तांतरित किए। लेकिन आश्चर्य की बात है कि प्रस्तावित बजट से लगभग ४८ फीसदी कम दरों एक करोड दस लाख रूपए में एक ठेकेदार यह कार्य करने क लिए तैयार हो गया। अनुबंध के तहत ठेकेदार को दो झीलों की खुदाई, कंपेशन व झील की तह पर चिकनी मिट्टी एक फुट मोटी परत डालने का कार्य करना था। इससे पहले कि ४८ फीसदी कम दामों पर कार्य किये जाने से वन विभाग की किरकिरी होती, वनमंत्री नवप्रभात ने झीलों के सौंदर्यीकरण पर शेष एक करोड रूपए का उपयोग करने की बात कहकर मामले को संभाल लिया।
सूत्र बताते हैं कि इतने बडे बजट को ठिकाने लगाने का खेल मिट्टी की खुदाई और ढुलान में किया गया। विभाग का आकलन था कि प्रत्येक झील से लगभग ४५हजार घनमीटर मिट्टी निकलेगी, लेकिन ठेकेदार ने दोनों झीलों सवा दो लाख घनमीटर मिट्टी निकालने का एस्टीमेट विभाग के सुपुर्द कर दिया। विभागीय अधिकारियों ने भी अपने ही आकलन को गलत ठहराते हुए ठेकेदार के ऐस्टीमेट को पास कर दिया।
मानकों की धज्जियां उडाने का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर पूरे बजट को ठिकाने लगाने के बाद ही रूक पाया। ६०हजार रूपए प्रति घनमीटर की निर्धारित दर के मुकाबले ९०हजार रूपए प्रतिघनमीटर की दर से ठेकेदार को भुगतान किया गया। सबसे अहम बात यह रही कि झील के कंपेक्शन व सतह पर चिकनी मिट्टी की एक फुट मोटी परत को बिछाने के अनुबंध को विभागीय घोषित कर दिया गया। इन दोनों कार्यों के लिए निर्धारित ४०लाख रूपया सीधे-सीधे गोलमाल कर दिया गया। ठेकेदार को निर्धारित राशि से कही अधिक भुगतान ;१करोड ९७लाख ४६हजारद्ध होना दिखा दिया गया। यह भुगतान भी अनुबंधित कार्य पूरा होने से पहले ही वन विभाग की सहमति पर संबंधित ठेकेदार को कर दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि आसन वैटलेंड आरक्ष योजना में करोडों रूपए के वारे-न्यारे किए गए। हकीकत में झीलों के नाम पर कुछ काम तो हुआ नहीं, घोटाला करोडों का कर दिया गया।
विकास नगर में झीलों के सौन्दर्यीकरण के नाम पर करोडों डकारे
विकास नगर की जनता को याद रखना चाहिए कि नवप्रभात ने विकास के नाम पर जमकर करोडों का घोटाला किया। विकासनगर पौंटासाहिब मोटरमार्ग पर आसन बैराज के किनारे जहां पहले ही प्राकृतिक रूप से झीलें बनी हुई थी। कथित रूप से यह दोनों झीलें बनाई गई।झील बनाने के नाम पर इन दोनों स्थानों पर कुछ दिन जेसीबी लगाई गई और मलबा निकालकर अन्यत्र फैकने के बजाय झील के किनारे लगा दिया गया। नाममात्र की यह झीलें इस तरह बनाई गयी जैसे जैसे गड्ढे खोदकर किनारे लगा दिया जाता है। झीलों में पानी के नाम पर गाद और गंदगी भरी हुई है। पक्षी तो शायद ही देखने को मिलें। सौंदर्यीकरण के नाम पर कुछ नहीं हुआ, हॉ, इन सबके नाम पर एक करोड रूपया खर्चा दिखा दिया गया।
इस तरह कुल मिलाकर नवप्रभात पांच साल कैबिनेट मंत्री रहे, विकास नगर विकास की किरण को छू तक नहीं पाया। वन पांच सालों में चाहे वह शहरी विकास हो, वन विभाग हो कोई खास उपलब्धि प्रदेश हासिल नही कर पाया। परन्तु नवप्रभात अकूत धन दौलत के मालिक जरुर बन गये।
एक का दस करने में माहिर हैं
नवप्रभात ने एक खास जमीन को टिहरी बांध विस्थापितों के लिए चयनित किए जाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन टिहरी विस्थापित वहंा जाने के लिए तैयार नही हुए और नवप्रभात के मंसूबे धरे के धरे रह गए।इस पर नवप्रभात इस पूरी जमीन को औद्यौगिक क्षेत्र घोषित करा दिया। इस तरह कौडयों के भाव खरीदी इस जमीन से नवप्रभात करोडों रूपए बनाने में सफल रहे।
नवप्रभात के बारे में चर्चा थी कि वह हर जगह जनता के विपरीत खडे हो अपनी मनमानी करते रहे। गढवाल व कुमाऊं मंडल को जोडने वाला रामनगर-कालागढ-कोटद्वार राजमार्ग का रुट बदलकर इसे उत्तरप्रदेश से होकर बनाने के प्रस्ताव में भी वनमंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। रामनगर-कालागढ-कोटद्वार मोटरमार्ग संघर्ष समिति का कहना था कि नवप्रभात पूंजीपतियों व भू-माफियाओं से मिले हुए है। आरोप था कि नवप्रभात के उद्योगपतियों से भी संबंध है। यूपी से होकर प्रस्तावित इस राज्य राजमार्ग पर थापर सहित कई बडे बिल्डरों व उद्योगपतियों के रिसोर्ट, फार्म हाऊस व जमीन है। इस मार्ग के उत्तर-प्रदेश से होकर बनाने में सबसे ज्यादा फायदा इस मार्ग के आसपास पड रहे रिसोर्ट के मालिकों को होता। समिति का कहना था कि यही एकमात्र मार्ग था जो सीधे गाढवाल व कुमाऊं मंडल को आपस में जोडता है। अभी तक गढवाल व कुमाऊ मंडल जाने के लिए लोगों को लंबी दूरी तय कर उप्र से होकर जाना पडता है।
इससे सबसे ज्यादा नुकसान व्यापारी को उठाना पडता ह। क्योंकि उन्हें दोहरे कर की मार झेलनी पडती है। रामनगर-कालागढ-कोटद्वार राजमार्ग बनने से दोनों मंडलों के बीच दूरी तो घटती ही उत्तर प्रदेश से हांकर जाने में दिए जाने वाले कर आदि समसयाओं से भी छुटकारा मिलता। लेकिन नवप्रभात को राज्यहितों से कोई सरोकार नही है और उन्होंने इसे चुपचाप उप्र से स्वीकृत होने दिया।
कांग्रेस के ही मंत्री से भिडेः-
कांग्रेस के तत्कालीन पर्यटन मंत्री से भिडने में भी उन्होंने गुरेज नही किया। वनमंत्री शिवपुरी आदि स्थानों में रीवर राफ्टिंग वाले क्षेत्रों को इको टूरिज्म के अंतगर्त लाना चाहते थे।जबकि यह क्षेत्र पहले से ही पर्यटन मंत्रालय के अधीन है। रीवर राफ्टिंग के लिए कई मोटरवोट कंपनियां आवेदन करती हैं। बताते हैं कि वनमंत्री अपने एक खास आदमी को इसका ठेका दिलाना चाहते थे। उस पर पर्यटन मंत्री को बाकायदा मुख्यमंखी को पत्र लिखना पडा। पत्र में उन्होंनें नवप्रभात के हस्तक्षेप पर कडा ऐतराज जाहिर किया था। वनमंत्री ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर न सिफ्र नीति -निर्णय बदल डाले, बल्कि तमाम नियम-कानूनों को भी ठेंगा दिखाने से हिचकिचाए नहीं।
इस तरह उनके इस कारनामों को तत्कालीन मीडिया में खूब सुर्खियां मिली थी। जिस पर विकास नगर की जनता ने उन्हें कसूरवार मानकर विधानसभा में नहीं भेजा। अब राजनीतिक हालात का लाभ उठाकर वह विधान सभा में फिर पहुंचना चाहते हैं। अगर वह विधानसभा में पहुंचे तो यह माना जाएगा कि जनता की याददाश्त बडी हल्की होती हैं। यह विस्तृत रिपोर्ट तत्कालीन मंत्री पद पर रहते हुए प्रकाशित हुई थी, जनता की अदालत में हमने इसे फिर से पेश किया ताकि ………………सनद रहे

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