Monday, September 21, 2009

बूढ़े घोड़ों पर दाँव खेलने में जुटे निशंक

क्या निशंक को जोशीले घोड़ो की तलाश है ?......
उतराखण्ड सरकार में मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को देश की कमान सम्भाले तीन माह हो गए हैं। जिन बूढ़े घोड़ों पर पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी ने सवारी की व अपना कार्यकाल पूरा भी नहीं कर पाए। अब उन्हीं घोड़ों की सवारी "निशंक'' कर रहे हैं। हालांकि निशंक की टीम में कई नई चेहरों को जगह मिली है। लेकिन खंडूरी के विश्वास पात्रों को आज भी निशंक की टीम में अहम जिम्मेदारियां मिली हैं। क्या इन विश्वास पात्रों के जरिए निशंक मजबूती से आगे बढ़ पाएंगे ? क्या खंडूरी के विश्वास पात्र निशंक के भरोसेमंद साबित होंगे ? राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि ऐसे माहौल में जब पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी अब निशंक के बढ़ते कद और सफलता को पचा नहीं पा रहे हैं। दीगर है कि खंडूरी के शासनकाल में प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री का दायित्व सुभाष कुमार के पास था वहीं अब प्रमुख सचिव के पद पर शत्रुघ्न सिंह की ताजपोशी भी अभी कुछ ही दिन पूर्व हुई है। जबकि आई आर एस सेवा के एक अन्य अधिकारी जेपी ममगाई, अपर सचिव अजय प्रद्योत, विशेष कार्याधिकारी के रूप में कार्य करने वालों में दीपक डिमरी आदि थे। इनमें से सभी अधिकारियों को निशंक ने भी अपनी टीम में शामिल किया है। प्रशासनिक अधिकारी शत्रुघ्न सिंह की प्रोन्नति के बाद से ही अधिकारियों में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गयी है यही कारण है कि अब इनमें ही संघर्ष शुरू हो चला है। इस संघर्ष का यह परिणाम है कि जिस दिन से शत्रुघ्न सिंह की प्रोन्नति सचिव पद से प्रमुख सचिव पद पर हुई है उसी के बाद से प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री सुभाष कुमार पहले १५ दिन की छुटटी चले गये और अब पता चलता है कि उन्होंने अपनी छुटिटयां बढ़ा दी है। वहीं सूत्रों ने बताया है कि सचिव से प्रमुख सचिव बने शत्रुघ्न सिंह भी यहाँ अपनी दाल न गलती देख दिल्ली जाने का जुगाड़ बैठाने में लग गये हैं। वहीं जेपी ममगाई को मुख्यमंत्री ने कोई काम तो नहीं दिया है लेकिन बताया जाता है कि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री के खास होने के कारण ही उत्तराखण्ड में रोका गया है। जहां तक मुख्यकार्याधिकारी दीपक डिमरी का इनके साथ भी काम करने का कारण बताया जा रहा है कि वे आरएसएस काडर से सम्बद्ध हैं इसलिये उनको यहां रखा गया है लेकिन यदि जानकारों की मानी जाए तो पिछले ढाई साल से मुख्यमंत्रियों की सेवा कर अस्थायी तौर पर बीस हजार के वेतन पाने वाले डिमरी ने करोड़ों की सम्पति अर्जित कर दी है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ कार्य करने वाले अजय प्रद्योत काम के बोझ से इतने दब चुके हैं कि उन्हें किसी से भी बात करने की फर्सत तक नहीं। अब निशंक टीम में अजय प्रद्योत को अपवाद माना जाय तो शेष सभी अधिकारी वर्चस्व की लड़ाई तथा मोटी रकम कमाने में जुटे हैं।राजधानी में इन दिनों चर्चा आम है कि खण्डूरी की इसी टीम ने उन्हें अर्श से फर्श पर ला दिया। इन अधिकारियों के बुने मायाजाल में पूर्व मुख्यमंत्री इस कदर फंस गये थे कि उन्हें सत्ता से बेदखल होने का पता भी नहीं चल पाया। ऐसे में निशंक को इतिहास से सबक लेकर इन बूढ़े घोड़ों को सत्ता के रेस कोर्स से बाहर करने के बारे में सोचने की जरूरत है। बीते दो महीनों में निशंक ने अपने कार्यों से एक अलग छवि बनायी है ऐसे में उन्हें अपने ही जैसे ऊर्जावान अधिकारियों का उपयोग करना बेहतर होगा।

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