Thursday, September 24, 2009

आस्ट्रेलिया में पढाई कर रहे छात्रों को मिलता है भारतीयों जैसा प्यार


आस्ट्रेलिया में पढाई कर रहे छात्रों को मिलता है भारतीयों जैसा प्यार
परिजनों की आती है याद तो गोरों का मिल जाता है प्यार
देहरादून। देश की माटी की खुशबु के हजारों किलामीटर देर होने के बाद भी विदेशों में अपनों की खुशबु हिंदुस्तानी बखूबी पहचान लेते हैं। और जब कोई भारतीय विदेशी सरजमीं पर मिल जाता है तो खुशी के मारे आंखों से प्यार के आंसू भी छलक आते हैं। परिजनों से दूर रहकर उनकी याद हमेशा आती है और रोजाना घर पर बातें भी हो जाया करती है। भारतीयों की इसी अपनेपन की खुशबू को लिए आस्ट्रेलिया यूरोप में रहने वाले उत्तराखंड से पढने के लिए गए गदरपुर के छात्र कपिल अरोरा व बाजपुर के देवेन्द्र सिंह से पत्रकार नारायण परगाई की प्रस्तुत है उन बातचीत के प्रमुख अंश
. सवाल-हिंदुस्तान से दूर रहकर विदेश में कैसा महसूस करते हैं
जवाब- हिंदुस्तानसे दूर रहकर हमेशा ही अपनों की कमी खलती रहती है और यहां पर सुख और दुख सबकुछ अपना ही होता है। लेकिन जिंदगी इसी का नाम है कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पडता है। अपनों की याद रोजाना आती है और आस्ट्रेलिया से बैठकर ही घरपर पफोन पर बातचीत हो जाया करती है।
. सवाल- विदेशों में लगातार भारतीय काम-काज के लिए जा रहे हैं क्या वहां आय के स्रोत ज्यादा हैं?
जवाब- जी हां हिंदुस्तान से ज्यादा मेहनत यदि हम विदेशो में करते है। तो उसका पफायदा भी निश्चित रूप से हमें ही मिलता है। इंडिया में एक घंटे के काम करने पर महज दो वक्त की रोटी ही नसीब ह पाती है जबकि विदेशों में एक घंटा काम करने के दस डॉलर तक मिल जाते हैं। तो ऐसे में भारतीय विदेशों की तरपफ रूख क्यों न करें।
सवाल- हिंदुस्तान से ज्यादा विदेशों में रहने वोल लोग क्यों मन केा भाज ाते हैं क्या कोई खास कारण है?
जवाब- हिंदुस्तानियों से ज्यादा विदेशी लोग अच्छे होते हैं आस्ट्रलिया में मैंने यह देखा है कि हिंदुस्तानी ही हिंदुस्तानी को आगे बढते हुए नहीं देख सकता जबकि गोरी चमडी वाले लोग हिंदुस्तानियों को ज्यादा पसन्द करते हैं।
-सवाल- सुना है विदेशियों से ज्यादा भारतीय काम अध्कि मेहनत से करते हैं। इसमें क्या सच्चाई है?
जवाब- जी नहीं यह बिल्कुल गलत है कि विदेशियों से ज्यादा भारतीय काम करते हैं। भारतीय तो सिफ मेहनत के लिए काम करते हैं जबकि विदेशी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए काम। विदेशियों की जगह कभी भी हिंदुस्तानी नहीं ले सकते। लेकिन हिंदुस्तानी अपने एक घंटे का काम पूरी महनत के साथ करते हैं।
.सवाल- हर महीने का खर्च विदेशों मेंकितना है और कितना कमा लिया जाता है।
जवाब- वैसे तो हिंदुस्तान के नजरीये से देखा जाय तो विदेशाों में कोई ज्यादा खर्च नही ंहै हर महीने रहने खाने और अपने खर्चों पर करीब
६०० डॉलर खर्च हा ेजाते हैं जबकि एक हफ्रते में पार्ट टाइम के रूप में बीस घंटे काम करने को मिल जाता ह ै। कुल मिलाकर पूरे महीने के खर्चे में कुछ डलर बचत भी हो जाती है।
.सवाल- क्या आस्ट्रलिया में हिंदुस्तानी खाना आराम से मिल जाता है?
जवाब- जी हां आस्ट्रेलिया में रहकर भी हमें पर्थ जेनी में हिंदुस्तानी स्टोरों पर सबकुछ मिल जाता है। इसके साथ ही जलेबी और पंजाबी ढाबा भी खाने को तमिल जाता है। इन दिनों भारतीय स्टोरों पर हम बडे मजे से नवरात्राों के सभी सामान आराम से ले रहे हैं।
.सवाल- कुछ दिनों पूर्व मेलबोर्न में भारतीयों के साथ जो कुछ हुआ उसे किस नजरीये से देखते हैं?
जवाब- आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में कुछ गोरी चमडी वाले भारतीयोंसे मेहनत अध्कि करने से चिडतेहैं जिस कारण इस तरह की घटना हुई और वहां भारतीयों को पीटा गया। लेकिन पर्थ जैनी में ाकेई बात नह है हम रोजाना रात दो बजे तक आराम से घूमते हैं और यहां के सभी लोग हिंदुस्तानियों की तरह हैं।

देहरादून जेल में बंद कैदी भगवान राम की भक्ति में रमकर राम नाम का जाप कर रहे हैं।

दून जेल के जेलर एसके सुखीजा की अनूठी पहल
उत्तराखंड की जेल में धर्मिक वातावरण से होगी सार्थक पहल
-नारायण परगांई-
देहरादून,। देशभर में जहां रामलीलाओं की गूंज से प्रभु राम का गुनगान हो रहा है ऐसे में जेलों में बंद कैदी भी अगर राम नाम का जाप करें तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं। इन दिनों देहरादून जेल में बंद कैदी भगवान राम की भक्ति में रमकर राम नाम का जाप कर रहे हैं। और अब तक करीब चार लाख राम नाम लिख चुके हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब उत्तराखंड के किसी जेल में कैदियों ने राम नाम के पाठ का सिमरन किया हो। हालांकि कैदियों को अपने चरित्रा में परिवर्तन लाने के लिए जेल प्रशासन कई तरह के कामों को अंजाम देता है लेकिन इस तरह का यह पहला अनूठा काम जेल परिसर में शुरू हो पाया है। जेल में आने वाले कैदी जहां भगवान राम के नाम से अपने पिछले बिताये पापों का प्रायश्चित करने में जुटे हैं वहीं यह नई पहल जेल के भीतर भी धर्मिक वातावरण को और अध्कि बढा रही है। देहरादून जेल में शुरू से ही जेल से अपराध्यिों के नेटवर्क चलने की बातें सुर्खियों में रहती हैं और अब राम नाम के पाठ से जेल इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है। देहरादून निवासी राम नाम बैंक के संयोजक संजीव शर्मा का कहना है कि ट्टषिकेश में राम नाम स्तम्भ जिस प्रकार से स्थापित है ठीक उसी प्रकार देहरादून में भी राम नाम स्तम्भ बनाने की उनकी प्रेरणा है और इसी प्रेरणा को उन्होंने जाग्रत करने के लिए करीब पचास अरब राम नाम का संग्रह करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने कहा कि इस काम को और अण्कि सार्थक गति देने के लिए उन्होंने देहरादून जेल के जेलर एसके सुखीजा से जेल परिसर में कैदियों को राम नाम का जाप कराने की बात कही जिसकें बाद जेल परिसर में बीते सप्ताह राम नाम का संग्रह करने के लिए कैदियों को कहा गया। जेल में बंद करीब सौ कैदियों ने एक सप्ताह के भीतर ही करीब चार लाख राम नाम के जाप का संग्रह कर डाला। जिससे ऐसा लगा कि जेल के भीतर भी रहने वाले कैदी अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए भगवान की शरण में जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से जेल में बंद कैदी भी राम नाम के संग्रह को एकत्रा करने में मदद कर रहे हैं ठीक उसी तरह अन्य सामाजिक व धर्मिक संगठनों से भी इसमें सहयोग मिल रहा है। जेल में बंद कैदियों द्वारा भगवान राम के रंग में रंगकर भक्ति भावना को इस कडी से भी जोडकर देखा जा रहा है कि जेल में आने वाले अध्कितर कैदी वहांधर्मिक वातावरण भी चाहते हैं। निशिचत रूप से इस नई पहल का कई राजनैतिक एवं सामाजिक संगठनों ने भी खुलकर सहयोग करेन की बात कही है और वह दिन दूर नहीं जब जेल में बंद कैदी धर्मिक भावना को आम आदमी से भी पीछे छोडने में एक सार्थक पहल करेंगे। माना जा रहा है कि इस तरह के नए प्रयास से जहां कैदियों के बौ(क एवं उनके विचार धरा में धर्मिक भावना पैदा होगी वहीं जेल से अपनी सजा पूरी करने के बाद एक अच्छे नागरिक के रूप में अपना जीवन यापन कर सकेंगे। देहरादून जेल के जेलर एसके सुखीजा ने बताया कि जेल परिसर के भीतर कैदियों को वैसे तो हर तरह का अच्छा वातावरण उपलब्ध् कराया जाता है लेकिन इस राम नाम की अनूठी पहल से कैदियों में धर्मिक भावना बढी है और निश्चित रूप से यहां आनेवाले कैदियों को धिर्मक वातावरण के साथ-साथ यह पहल एक अनूठी पहल होगी। इसके साथ ही जेल परिसर में एक मन्दिर का भी निर्माण शुरू कराया गया है जहां कैदी जेल में जानेसे पहले अपने पापों का प्रायश्चित भगवान के दरबार में मत्था टेक कर सके। उन्होंने कहा कि जेल परिसर में जहां धर्मिक वातावरण से जेल के अन्य के वातावरण में परिवर्तन होगा वही ं राम नाम की गूंज से कैदियों की बौ(क विचारधरा में भी परिवर्तन आएगा।

Monday, September 21, 2009

नवप्रभात के कामों का चिट्ठा मुख्यमंत्री को पेश कर दिया था।

नवप्रभात को उत्तराखण्ड का लालू भी कहा जाता है। चौकिये नहीं, जेट्रोफा में जो घोटाला हुआ वह लालू के चारा घोटाले को भी कोसो पीछे छोड जाता है। कांग्रेस सरकार के ही एक मंत्री ने जेट्रोफा घोटाले की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री पं० नारायण दत्त तिवारी से की थी। तत्कालीन वन मंत्री पर ने एक ओर जहां अदालत की अवमानना का आरोप लगा वहीं कैबिनेट के फैसले को जूते की नोंक पर रखने की चर्चा रही।
क्या थे वह तमाम हालात। जिसके मद्देनजर मात्र ५६ वोटों से जीतने वाला एक विधायक बाहुबली और अकूत धन दौलत का मालिक बन गया। फिर विकास नगर की जनता की अदालत में वह कसूरवार सिद्ध हुआ। एक विस्तृत और सम्पूर्ण सहेजने योग्य राजनीतिक दस्तावेज।
वर्ष २००२ में उत्तराखण्ड में पहली निर्वाचित कांग्रेस सरकार का गठन हुआ। धनबल और सांसद पिता की विरासत के बूते विकासनगर विधानसभा क्षेत्र से मात्र ५६ वोटों से जीतकर आए नवप्रभात कांग्रेस सरकार में वनमंत्री पद से नवाजे गये थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने उन्हें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बायो फ्यूल बोर्ड के साथ-साथ वन व शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय भी सौंपे। नवप्रभात के अधीन एक भी विभाग ऐसा नही रहा था जिसको लेकर चर्चाएं आम नही रही हो। जब जनता वोट के रूप में अपनी ताकत नवप्रभात के हाथों में सौंप रही थी तो शायद ही उसने उसने सोचा होगा कि उसका कथित रहबर ऐसा निकलेगा। नवप्रभात ने अपने अधीन आने वाले एक भी बोर्ड व विभाग को ऐसा नही छोडा, जहां उसने नियम कायदों को जबरन मोडा-तोडा न हो। मंत्री बनते ही नवप्रभात जनभावनाओं के विपरीत कार्य करते चले गए। वन मंत्री की तानाशाही इतनी बढती चली गयी थी कि एक अन्य कैबिनेट मंत्री ने नवप्रभात के कामों का चिट्ठा मुख्यमंत्री को पेश कर दिया था। करतूते जब हद से पार हो गयी और शिकायत मुख्यमंत्री के दरबार में चली गई, तो मुख्यमंत्री को मजबूरन नवप्रभात को झिडकी लगानी पडी थी। मायावती के उत्तराखण्ड दौरे के समय नवप्रभात अपने खासमखास डिप्टी मेयर उमेश शर्मा ’काऊ‘ को डोईवाला से बसपा का टिकट दिलाने की सिफारिश करने गए तो मीडिया में यह मामला उछला जिससे कांग्रेस सरकार व नवप्रभात की छवि खराब हुई। विकासनगर में वैटलैंड संरक्षण आरक्ष योजना में हुए घोटाले को लेकर जबरदस्त आंदोलन से नवप्रभात की छवि धूमिल हुई थी। पेयजल निर्माण निगम के एमडी को सेवा विस्तार देने में उनकी भूमिका रही या नगर निगम के डिप्टी मेयर के कार्यकाल को बढाने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल का मामला तथा तत्कालीन मेयर मनोरमा शर्मा विरुद्ध षडयंत्र रचने में उनकी भूमिका मानी गयी। मुख्यमंत्री के खासमखास रहने के कारण तमाम नियम, कायदे कानूनों को रौंदा। कैबिनेट की सलाह को ताक पर रखा। तत्कालीन कैबिनेट मंत्री प्रीतम ने तो मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की। इसके अलावा पर्यटन मंत्री से भी भिडे। वहीं कांग्रेस की ही मेयर मनोरमा शर्मा से छत्तीस का आंकडा रहा।
नवप्रभात इससे पहले मात्र ५६ वोटों से जीतकर तानाशाह बन गये
मात्र ५६ वोटों से जीतकर आए सूबे के वन, पर्यावरण एवं शहरी विकासमंत्री नवप्रभात ने तानाशाह की तरह सरकारी संपत्ति का दोहन किया वह आश्चर्यजनक ही नही शर्मनाक भी था। जनता अपने बीच से चुनकर जब किसी व्यक्ति को अपना नीति-निर्माता घोषित करती है, तो उसके पीछे उसकी बहुत सी उम्मीदें आशाएं होती है। नवप्रभात ने जिस निर्दयता के साथ जन आशाओं पर पानी फेरा उससे नेताओं से जनता का विश्वास उठना लाजमी था। उनकी विधानसभा क्षेत्र में अपने मंत्री की करतूतों को लेकर जनता में रोष बढता गया, नागरिेकों की तमाम समस्याएं सामने खडी थी। स्थानीय लोग यह मान रहे थे कि नवप्रभात ने जनता की बदौलत हासिल की प्रभुसत्ता का जिस तरह दुरुपयोग किया वह निराशाजनक है। वहीं नवप्रभात सत्ता के मद में चूर होकर इंसान को इंसान समझने के लिए तैयार न थे। वह तो घमण्ड व सत्ता के रथ में सवार होकर सातवें आसमान पर थे। शायद तभी जनता ने उनका धरातल पर लाने के लिए धडाम से जमीन पर पटका और वह विधानसभा चुनाव हार गये।
पर्यावरण मंत्री के रुप में उनका सबसे दूषित कार्य प्रतिबंधित उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण पत्र देना था। दून वैली अधिसूचना के अनुसार देहरादून में लाल एवं नारंगी श्रेणी के उद्योगों की स्थापना प्रतिबंधित है, लेकिन बोर्ड द्वारा मंत्री के दबाव में आकर कई फार्मस्यूटिकल कंपनियों की स्थापना के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिए गए। जो कि पूर्व में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के पास विचारार्थ लंबित थे। मंत्री बनने के बाद नवप्रभात ने बडे पैमाने पर जमीनों की खरीद-फरोख्त की। मंत्री ने अपने खास लोगों की एक चौकडी की आड में अपने साम्राज्य विस्तार के इरादों को धरातल दिया था। चर्चा थी कि नवप्रभात की अन्य कई स्थानों पर भी करोडों की संपत्ति है। लेकिन आयकर के अधिकारियों से यह हमेशा महफूज रहे। भगवानपुर रूडकी में नवप्रभात की कई सौ बीधा जमीन जोडी गयी।
मंत्री के रुप में नव प्रभात के काले कारनामे
जेट्रोफा घोटाला
जैट्रोफा एक झाडी है, जो रूखी भूमि पर पर भी आसानी से ग्रोथ कर जाता है। एक ओर जैट्रोफा बोर्ड के अधिकारी कहते हैं कि जैट्रोफा को केवल बंजर जमीन पर ही उगाया जाना चाहिए। इसे सिंचाई की भी आवश्यकता नही होती।फिर इसके लिए अलग से लाख दो लाख नही करोडों रूपए की खाद खरीदी गयी। गौरतलब तथ्य यह है कि वन विभाग की तमाम नर्सरियों में जहां साधारण खाद डाली जाती है। वही जैट्रोफा के लिए बाहरी प्रदेशों से माइकोराजा, बायोमैन्यूर व तमाम कीटनाशक खरीदे गये। बोर्ड ने बताया कि इन दो वर्षों में एक करोड ६०लाख १३हजार रूपए की खाद खरीदी जा चुकी है। बोर्ड के सचिव ने कहा कि उन्नत बीजों की पैदावार के लिए यह जरूरी था। बाहरी प्रदेशों से खाद खरीदने के पीछे वह कहते हैं कि इन सबका टेण्डर डाला गया था। टडर इन्ही संस्थाओं के नाम खुला होगा। बहुचर्चित बायोफ्यूल बोर्ड भी इनमें से एक है। बायोफ्यूल के उत्तराखण्ड के सकल घरेलू उत्पाद में करीब दो सौ करोड रूपए की बढोतरी का सपना सजोने वाले वन विभाग के सपने वर्ष २००४ में बोर्ड की स्थापना के बाद कितने धराशायी हुए यह साफ देखा जा सकता था। विधानसभा सत्र की कार्रवाई के दौरान बायोफ्यूल बोर्ड को लेकर उठे सवालों का स्पष्ट जवाब वनमंत्री नवप्रभात के पास नही था। सदन में भाजपा के तत्कालीन सदस्य अजय भट्ट के एक अल्पसूचित प्रश्न के जवाब में तत्कालीन वनंत्री नवप्रभात ने अवगत कराया था कि राज्य में अब तक १००१६.२३४ हैक्टेयर क्षेत्रफल में एक करोड ८८ लाख १९हजार ९८३ जैट्रोफा पौंधों का रोपण किया जा चुका है।इसके एक दिन पहले भाजपा विधायक विजय बडथ्वाल के एक प्रश्न के जवाब में वनमंत्री ने सदन को बताया था कि प्रदेश में अभी तक ८५५४ हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही जेट्रोेफा रोपण किया गया है। वनमंत्री नवप्रीाात द्वारा जैट्रोफा रोपण को लेकर सदन को जो गुमराह किया गया, उससे स्पष्ट होता है कि करीब १४६२ हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपण नही किया गया। इससे लाखों रूपए की गोलमाल की बात की भी पुष्टि होती है।
बायोफ्यूल बोर्ड के तत्कालीन सचिव एके लोहिया ने बताया था कि एक करोड ८८लाख १९हजार जैट्रोफा पौंध करीब १०हजार हैक्टेयर भूमि पर रोपित की जा चुकी है और दो लाख हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपण का लक्ष्य है। पिछले दो सालों में जब मात्र १० हजार हैकटेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपित किया गया। तो दो लाख हैक्टेयर भूमि पर कितने सालों बाद हो पाएगा, अंदाजा लगाया जा सकता है।खाद खरीदने सहित बोर्ड अभी तक ६करोड रूपए खर्च कर चुका है। ऐसे ही कई अन्य हैरतअंगेज तथ्य थे। बोर्ड ने दावा किया था कि प्रदेश करीब सवा चार सौ गांवों में इस समय जैट्रोफा का कार्य चल रहा है।
मीडिया ने जैट्रोफा पर काम कर रहे इन गांवों का दौरा करने पर पाया कि मात्र जैट्रोफा की सूखी डंठलें खडी हैं। शुरूआती दौर में बोर्ड ने संबंधित गांवों का सर्वे तक नही किया। नतीजन ग्रामीणों ने सैकडों हैक्टेयर भूमि पर जैट्रोफा रोपण दिखाकर पैसे झटक लिए तो कही पौंध की पौंध नदी में बहा दी गई। विभाग ने अब दर्जनभर सर्वेयर रखे हैं। इनका विभिन्न गावों का रोज का टीए, डीए ही हजारों में बैठ जाता है। सालों बाद जब बायोफ्यूल बनकर तैयार होगा तो अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वास्तविक कीमत आज के पैट्रोल की कीमत को भी मात दे रही होगी।
अब पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड में नव प्रभात के काले कारनामे देखिये। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में अपने चहेतों की नियुक्ति को लेकर उठे सवाल ने भी नवप्रभात की छवि को धूमिल किया। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव की नियुक्ति की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई। कमेटी ने इस पद के लिए नौ लोगों का साक्षात्कार लिया और योग्यता के आधार पर तीन लोगों का चयन किया गया। वन मंत्री योग्यता क्रम में तीसरे स्थान पर रहे, संजय भूटानी को सदस्य सचिव की कुर्सी पर बैठाना चाहते थे। मंत्री नवप्रभात की सिफारिश पर इस व्यक्ति की फाइल जब ग्राम्य विकास आयुक्त ;वनद्धके पास पहुची तो उन्होंने इस फाइल पर साइन करने से मना कर दिया। नवप्रभात के मनमानी पर उतर जाने पर ग्राम्य विकास आयुक्त (वन) इस मामले को लेकर खुद ही मुख्यमंत्री के दरबार में चली गई, तो मुख्यमंत्री को मजबूरन नवप्रभात को झिडकी लगानी पडी। अनंतः चयन कमेटी द्वारा चयनित सचिव ओएनजीसी से प्रतिनियुक्ति पर आए सीबीएस नेगी ने दो अप्रेल २००३ को बोर्ड में कार्यभार ग्रहण कर लिया। इससे नाखुश नवप्रभात ने अब चुन-चुनकर बदला लेना शुरू कर दिया। इसकी पहली गाज ग्राम्य विकास आयुक्त पर पडी और उन्हें इस महत्वपूर्ण पद से हाथ धोना पडा। प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सचिव की कुर्सी पर अपने चहेतों को बैठाने के लिए नवप्रभात अदालती आदेश की अवमानना करने में भी नहीं हिचकिचाए। मलाईदार कहे जाने वाले इस बोर्ड में नवप्रभात की मंशा के अनुरूप और तय मानकों के विपरीत जब बोर्ड के सदस्य सचिव सीबीएस नेगी ने कार्य करने से मना कर दिया, तो नवप्रभात ने उन्हें बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखाकर ही दम लिया। सीबीएस नेगी के नेतृत्व में बोर्ड ने काम करना शुरू कर दिया था। बोर्ड का विधिवत कामकाज शुरू करने के लिए करीब डेढ दर्जन कर्मचारियों को एक वर्ष की संविदा पर रखा गया। नेगी की कुशल कार्यशैली का ही नतीजा था कि ३७ लाख की आर्थिक स्थिति से शुरू हुआ बोर्ड अपनी वित्त क्षमता को बढाकर दो-ढाई वर्ष में पांच करोड तक ले गया। सूत्र बताते हैं कि इस इस बीच नवप्रभात ने अपने चहेते लोगों के उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र दने के साथ ही उन्हें प्रत्येक महीने कमीशन देने के लिए बोर्ड पर दबाव डाला। सचिव नेगी ने तय मानकों के विपरीत कार्य करने से साफ इनकार कर दिया। यहीं नहीं सोमानी फोम्स जैसी अन्य राज्यों में ब्लैक लिस्टेड कई कंपनियों को नेगी ने उत्तरांचल में उद्योग स्थापित करने के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने से मना कर दिया। इस बीच एक वर्ष पूरा होने के बाद संविदाकर्मियों का कार्यकाल उपलब्धियों के साथ एक वर्ष के लिए बढा दिया गया।
वर्ष २००५ में संविदाकर्मियों का कार्यकाल समाप्त हुआ तो संविदाकर्मियों ने इसे बढाने की मांग उठाई, लेकिन इसे ठुकरा दिया गया। जबकि बोर्ड को इन संविदाकर्मियों की सख्त जरूरत थी। लेकिन नवप्रभात को इन संविदाकर्मियों से चिढ थी।क्योंकि ये सभी पूर्व सचिव सीवीएस नेगी के कार्यकाल में नियुक्त किए गए थे। संविदाकर्मी न्यायालय की शरण में गए तो न्यायालय से १सितंबर २००५ को संविदाकर्मियों को अंतरिम राहत दते हुए बोर्ड द्वारा पूर्व में २६.१०.२००४ को विज्ञप्ति विज्ञापन के क्रम में पदों पर स्थाई नियुक्ति होने तक संविदाकर्मियों को अपने पदों पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्णय दिया। इसके बाद भी बोर्ड का रवैया नही बदला। नतीजतन संविदाकर्मियों को आंदोलन का रास्ता अपवनाना पडा। मुख्यमंत्री की शरण में गए तो मुख्यमंत्री ने न्यायालय के आदेश के क्रम में वन एवं पर्यावरण मंत्री की यथोचित कार्रवाई करने को कहा। लेकिन वनमंत्री नहीं माने। नवप्रभात ने कांग्रेस संगठन के पदाधिकारियों की बात भी नहीं मानी।
अपनी एक न चलती देख भला नवप्रभात चुप कैसे बेठते। उन्होंने तमाम तिकडमें भिडाते हुए सचिव नेगी को उनके कार्यकाल की अवधि से पूर्व ही बोर्ड से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद मंत्री ने बोर्ड का जमकर दोहन किया। ऐसे तमाम उद्योगों को भारी कमीशन देकर अनापत्ति प्रमाण-पत्र दे दिए गए जो कि नेगी के कार्यकाल में अयोग्य ठहरा दिए गए थे। तब चाहे वह काशीपुर की श्याम पेपर मिल हो या फिर सोमानी फोम्स फोम्स कंपनी।
अन्य राज्यों से बाहर कर दिए गए पर्यावरण के लिए खतरनाक कई उद्योगों ने नवप्रभात की मेहरबानी से उत्तराखण्ड में अपनी जडे जमा ली। कमीशन की मोटी रकम पर स्थापित इन उद्योगों का नतीजा था श्याम पेपर मिल और सिडकुल हरिद्वार में स्थापित उद्योंगों में दुर्घटनाएं। जिनमें आग लगने व अन्य कारणों से दो दर्जन कामगारों को अपनी जान से हाथ धोना पडा।
मंत्री बनने के बाद नवप्रभात ने अपने अधीनस्थ विभागों को निजी हित साधने के लिए रौंदना शुरू कर दिया। नवप्रभात की पहली व्यापक चर्चा २००३ के अक्टूबर माह म हुई यह ऐसा मामला था जिसने सबको चौंकाकर रख दिया। ..................................................................................................................... आरक्षित वन क्षत्र में ४५ बीघा जमीन में फार्म हाउसः-
राजधानी से करीब बीस किमी की दूरी पर सहसपुर विकासखंड के अंतर्गत किमाडी नामक स्थान पर आरक्षित वन क्षत्र में वन मंत्री नवप्रभात का ४५ बीघा जमीन में एक फार्म हाउस स्थित है। अपने निजी फार्म हाउस पर सरकारी पैसे से सडक बनवायी। ४५ बीघा जमीन की बाउंड्री बाल ही नहीं करायी गयी। हैरानी की बात यह रही कि वन महकमा जहां एक ओर आरक्षित वन क्षेत्रों को मानवरहित करने में जुटा हुआ है, वहीं उन महकमे का ही मुखिया और जन प्रतिनिधि आरक्षित वनक्षेत्र में खुल्लमखुल्ला अवैध निर्माण किये जाने की चर्चा रही। चारों ओर से घने वनों से घिरे इस फार्म हाउस तक पहुंचने के लिए तत्कालीन वन मंत्री ने वर्ष २००३ में तमाम नियम कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए २० फुट चौडी व आधा किमी लंबी सडक बना डाली। रास्ते में आए दर्जनों हरे-भरे पेडों को कटावा दिया गया। देर-सबेर वहां विशाल फार्म हाउस बनाया जाएगा-यह तय है। वर्तमान में फार्म हाउस में किमाडी गांव के दो लोगों को बतौर चौकीदार नौकरी दी गई है। वनमंत्री ने कागजों में यह सडक वानिकी कार्यों के लिए दर्शाई है। वनमंत्री किस तरह से सरकारी खजाने को चूना लगा रहे हैं। इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि फार्म हाउस के लिए बनाई जा रही सडक वह खुद के पैसों से नहीं बल्कि अपनी विधायक निधि से बनाई। सडक के किनारे खडे दर्जनों सूखे पेड पहाडों को बेतरतीब ढंग से काटा गया। नवप्रभात ने विधानसभा में ७१वें विधायक के रूप में मनोनीत किए गए आरवी गार्डनर की विधायक निधि से भी फार्महाउस को जाने वाली इस सडक के निर्माण के लिए दो लाख रूपए दिए थे।इस पूरे प्रकरण के खुलासे के बाबजूद भी न तो वन विभाग ने कोई कर्रवाई की और न ही शासन ने। आम आदमी के आरक्षित वन क्षेत्र में घुसने पर भी एतराज करने वाले वन विभाग के तमाम आला अफसरान चुप्पी साधे बैठे रहे। निकटवर्ती गांव डेढ किमी दूर होने के बाबजूद ऊर्जा निगम द्वारा फार्म हाउस के पास ही जंगल में ट्रांसफार्मर स्थापित किया गया। ताकि मंत्री जी के फार्म हाउस में लो वोल्टेज की समस्या खडी न हो। ट्रांसफार्मर दूर होने के कारण पूरे किमाडी गांव में लो वोल्टेज की समस्या होने लगी। इसके अलावा फर्म हाउस के लिए बकायदा अलग से पाइप लाइन भी बिछाई गई।
खनन नीति में भ्रष्टाचार
नवप्रभात ने खनन नीति में भ्रष्टाचार को बढावा दिया। निगमों से खनन कार्य छीनने के लिए कोई खास बजह ढूंढ न पाने के कारण इसी नीति को यथावत रखा। हालाकि वनमंत्री ने अपने चहेतों और खनन माफिया को फायदा पहुंचाने को पूरी जोर आजमाइश की, पर विफल रहे। बात यहां तक पहुचा दी गई थी कि निगमों के साथ-साथ खनन कार्य को समितियों को भी सौंपा जाए।इस कार्य को अंजाम देने के लिए ११अक्टूबर २००२को निर्णय लिया गया परंन्तु लागू नही कर दिया गया। १५ अक्टूबर को वनमंत्री नवप्रभात ने खनन नीति के शासनादेश जारी न करने को कहा और १७ अक्टूबर को इसमें संसोधन करके खनन नीति को जारी किया गया। इस प्रकार इसमें कुछ मनमाफिक प्राविधान जैसे ’निगमों के साथ-साथ समितियों को भी कार्य सौंपा जाए‘ जोडे गए जिससे काफी बबाल मचा।
बैराज स्थित झील में भी जमकर भ्रष्टाचार किया
नवप्रभात वर्ष २००५में आसन बैराज स्थित झील में भी जमकर भ्रष्टाचार हुआ। चकराता वन प्रभाग की रीवर रेंज के अंर्तगत आसान बैराज में प्रतिवर्ष शीतकाल में हजारों विदेशी पक्षी आते है। १३ जनवरी २००५ को वन एवं पर्यावरण मंत्री नवप्रभात की अध्यक्षता में हुई वन विभाग,सिचाई विभाग व जल विद्युत निगम के अधिकारियों की बैठक में इस योजना का खाका तैयार किया गया था। निर्णय हुआ था कि आसन वैटलैंड संरक्षण आरक्ष योजना को मूर्त रूप देने के लिए सिचाई विभाग कार्यदाई संस्था व वन विभाग नोडल एजेंसी करेगी। इसके तहत बैराज के पास चकराता वन प्रभाग की रीवर रेंज के अंतगर्त ४४४.४० हैक्टेयर भूमि पर दो नई झीलें तैयार करने के लिए सिचाई विभाग ने एक निजी सर्वेयर की मदद से लगभग ३.१५करोड रूपए का प्रस्तावित बजट शासन को भेजा था। प्रस्ताव को स्वीकृति दते समय शासन ने प्रथम चरण में लगभग २करोड ३१लाख रूपए हस्तांतरित किए। लेकिन आश्चर्य की बात है कि प्रस्तावित बजट से लगभग ४८ फीसदी कम दरों एक करोड दस लाख रूपए में एक ठेकेदार यह कार्य करने क लिए तैयार हो गया। अनुबंध के तहत ठेकेदार को दो झीलों की खुदाई, कंपेशन व झील की तह पर चिकनी मिट्टी एक फुट मोटी परत डालने का कार्य करना था। इससे पहले कि ४८ फीसदी कम दामों पर कार्य किये जाने से वन विभाग की किरकिरी होती, वनमंत्री नवप्रभात ने झीलों के सौंदर्यीकरण पर शेष एक करोड रूपए का उपयोग करने की बात कहकर मामले को संभाल लिया।
सूत्र बताते हैं कि इतने बडे बजट को ठिकाने लगाने का खेल मिट्टी की खुदाई और ढुलान में किया गया। विभाग का आकलन था कि प्रत्येक झील से लगभग ४५हजार घनमीटर मिट्टी निकलेगी, लेकिन ठेकेदार ने दोनों झीलों सवा दो लाख घनमीटर मिट्टी निकालने का एस्टीमेट विभाग के सुपुर्द कर दिया। विभागीय अधिकारियों ने भी अपने ही आकलन को गलत ठहराते हुए ठेकेदार के ऐस्टीमेट को पास कर दिया।
मानकों की धज्जियां उडाने का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर पूरे बजट को ठिकाने लगाने के बाद ही रूक पाया। ६०हजार रूपए प्रति घनमीटर की निर्धारित दर के मुकाबले ९०हजार रूपए प्रतिघनमीटर की दर से ठेकेदार को भुगतान किया गया। सबसे अहम बात यह रही कि झील के कंपेक्शन व सतह पर चिकनी मिट्टी की एक फुट मोटी परत को बिछाने के अनुबंध को विभागीय घोषित कर दिया गया। इन दोनों कार्यों के लिए निर्धारित ४०लाख रूपया सीधे-सीधे गोलमाल कर दिया गया। ठेकेदार को निर्धारित राशि से कही अधिक भुगतान ;१करोड ९७लाख ४६हजारद्ध होना दिखा दिया गया। यह भुगतान भी अनुबंधित कार्य पूरा होने से पहले ही वन विभाग की सहमति पर संबंधित ठेकेदार को कर दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि आसन वैटलेंड आरक्ष योजना में करोडों रूपए के वारे-न्यारे किए गए। हकीकत में झीलों के नाम पर कुछ काम तो हुआ नहीं, घोटाला करोडों का कर दिया गया।
विकास नगर में झीलों के सौन्दर्यीकरण के नाम पर करोडों डकारे
विकास नगर की जनता को याद रखना चाहिए कि नवप्रभात ने विकास के नाम पर जमकर करोडों का घोटाला किया। विकासनगर पौंटासाहिब मोटरमार्ग पर आसन बैराज के किनारे जहां पहले ही प्राकृतिक रूप से झीलें बनी हुई थी। कथित रूप से यह दोनों झीलें बनाई गई।झील बनाने के नाम पर इन दोनों स्थानों पर कुछ दिन जेसीबी लगाई गई और मलबा निकालकर अन्यत्र फैकने के बजाय झील के किनारे लगा दिया गया। नाममात्र की यह झीलें इस तरह बनाई गयी जैसे जैसे गड्ढे खोदकर किनारे लगा दिया जाता है। झीलों में पानी के नाम पर गाद और गंदगी भरी हुई है। पक्षी तो शायद ही देखने को मिलें। सौंदर्यीकरण के नाम पर कुछ नहीं हुआ, हॉ, इन सबके नाम पर एक करोड रूपया खर्चा दिखा दिया गया।
इस तरह कुल मिलाकर नवप्रभात पांच साल कैबिनेट मंत्री रहे, विकास नगर विकास की किरण को छू तक नहीं पाया। वन पांच सालों में चाहे वह शहरी विकास हो, वन विभाग हो कोई खास उपलब्धि प्रदेश हासिल नही कर पाया। परन्तु नवप्रभात अकूत धन दौलत के मालिक जरुर बन गये।
एक का दस करने में माहिर हैं
नवप्रभात ने एक खास जमीन को टिहरी बांध विस्थापितों के लिए चयनित किए जाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन टिहरी विस्थापित वहंा जाने के लिए तैयार नही हुए और नवप्रभात के मंसूबे धरे के धरे रह गए।इस पर नवप्रभात इस पूरी जमीन को औद्यौगिक क्षेत्र घोषित करा दिया। इस तरह कौडयों के भाव खरीदी इस जमीन से नवप्रभात करोडों रूपए बनाने में सफल रहे।
नवप्रभात के बारे में चर्चा थी कि वह हर जगह जनता के विपरीत खडे हो अपनी मनमानी करते रहे। गढवाल व कुमाऊं मंडल को जोडने वाला रामनगर-कालागढ-कोटद्वार राजमार्ग का रुट बदलकर इसे उत्तरप्रदेश से होकर बनाने के प्रस्ताव में भी वनमंत्री की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। रामनगर-कालागढ-कोटद्वार मोटरमार्ग संघर्ष समिति का कहना था कि नवप्रभात पूंजीपतियों व भू-माफियाओं से मिले हुए है। आरोप था कि नवप्रभात के उद्योगपतियों से भी संबंध है। यूपी से होकर प्रस्तावित इस राज्य राजमार्ग पर थापर सहित कई बडे बिल्डरों व उद्योगपतियों के रिसोर्ट, फार्म हाऊस व जमीन है। इस मार्ग के उत्तर-प्रदेश से होकर बनाने में सबसे ज्यादा फायदा इस मार्ग के आसपास पड रहे रिसोर्ट के मालिकों को होता। समिति का कहना था कि यही एकमात्र मार्ग था जो सीधे गाढवाल व कुमाऊं मंडल को आपस में जोडता है। अभी तक गढवाल व कुमाऊ मंडल जाने के लिए लोगों को लंबी दूरी तय कर उप्र से होकर जाना पडता है।
इससे सबसे ज्यादा नुकसान व्यापारी को उठाना पडता ह। क्योंकि उन्हें दोहरे कर की मार झेलनी पडती है। रामनगर-कालागढ-कोटद्वार राजमार्ग बनने से दोनों मंडलों के बीच दूरी तो घटती ही उत्तर प्रदेश से हांकर जाने में दिए जाने वाले कर आदि समसयाओं से भी छुटकारा मिलता। लेकिन नवप्रभात को राज्यहितों से कोई सरोकार नही है और उन्होंने इसे चुपचाप उप्र से स्वीकृत होने दिया।
कांग्रेस के ही मंत्री से भिडेः-
कांग्रेस के तत्कालीन पर्यटन मंत्री से भिडने में भी उन्होंने गुरेज नही किया। वनमंत्री शिवपुरी आदि स्थानों में रीवर राफ्टिंग वाले क्षेत्रों को इको टूरिज्म के अंतगर्त लाना चाहते थे।जबकि यह क्षेत्र पहले से ही पर्यटन मंत्रालय के अधीन है। रीवर राफ्टिंग के लिए कई मोटरवोट कंपनियां आवेदन करती हैं। बताते हैं कि वनमंत्री अपने एक खास आदमी को इसका ठेका दिलाना चाहते थे। उस पर पर्यटन मंत्री को बाकायदा मुख्यमंखी को पत्र लिखना पडा। पत्र में उन्होंनें नवप्रभात के हस्तक्षेप पर कडा ऐतराज जाहिर किया था। वनमंत्री ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर न सिफ्र नीति -निर्णय बदल डाले, बल्कि तमाम नियम-कानूनों को भी ठेंगा दिखाने से हिचकिचाए नहीं।
इस तरह उनके इस कारनामों को तत्कालीन मीडिया में खूब सुर्खियां मिली थी। जिस पर विकास नगर की जनता ने उन्हें कसूरवार मानकर विधानसभा में नहीं भेजा। अब राजनीतिक हालात का लाभ उठाकर वह विधान सभा में फिर पहुंचना चाहते हैं। अगर वह विधानसभा में पहुंचे तो यह माना जाएगा कि जनता की याददाश्त बडी हल्की होती हैं। यह विस्तृत रिपोर्ट तत्कालीन मंत्री पद पर रहते हुए प्रकाशित हुई थी, जनता की अदालत में हमने इसे फिर से पेश किया ताकि ………………सनद रहे

पतंजलि योगपीठ से समन्वय कर प्रदेश सरकार इस दिशा में कार्य करेगी और उत्तराखण्ड के गांवों को आयुष ग्राम बनाएगी।


मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि वर्ष २०२० तक उत्तराखण्ड को आयुर्वेद एवं योग का विश्व प्रसिद्ध ''हब'' बना दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में आयुर्वेद की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए जड़ी-बूटियों की आपूर्ति मांग से कम हो जायेगी। इसे ध्यान में रखते हुए उत्तराखण्ड में जड़ी-बूटियों के संरक्षण के साथ ही इनके वृहद उत्पादन के लिए एक बड़ी कार्ययोजना तैयार की जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ने यह बात अपने आवास पर उनसे मिलने आये योग गुरू स्वामी रामदेव तथा परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष चिदानन्द मुनि जी महाराज से भेंट के अवसर पर कही। योग गुरू रामदेव द्वारा योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की सराहना करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि पतंजलि योगपीठ से समन्वय कर प्रदेश सरकार इस दिशा में कार्य करेगी और उत्तराखण्ड के गांवों को आयुष ग्राम बनाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि पतंजलि योगपीठ की भांति ही आयुर्वेद एवं योग के केन्द्र गढ़वाल और कुमांऊ के सुदूर पर्वतीय स्थानों पर भी खोले जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि इस दिशा में राज्य सरकार भी हर सम्भव सहयोग देगी। आयुर्वेद विश्वविद्यालय को जड़ी-बूटी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस की स्थापना से उत्तराखण्ड की पहचान देश और विदेश में बनेगी। उन्होंने कहा कि योग गुरू द्वारा अपने कर्मस्थली देवभूमि उत्तराखण्ड को बनाया गया है जिसका लाभ प्रदेश को योग और आयुर्वेद के क्षे+त्र में भी मिलेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि चार धाम यात्रा को और अधिक व्यवस्थित रूप से आयोजित करने तथा गंगा की पवित्रता को बनाए रखने में सरकार संतजनों का भी पूरा सहयोग लेगी। इस अवसर पर योग गुरू स्वामी रामदेव ने कहा कि उत्तराखण्ड अनादिकाल से अध्यात्म का सर्वोश केन्द्र है, यहां प्रचुर मात्रा में दुर्लभ जड़ी-बूटियां हैं जो मानव के लिए जीवन दायिनी हैं। योग गुरू ने कहा कि सम्पूर्ण आयुर्वेद की परम्पराओं को लेकर एक आंदोलन चलाने की आवश्यकता है, जिसका नेतृत्व निसन्देह उत्तराखण्ड द्वारा किया जायेगा। उन्होंने कहा कि योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में पतंजलि पीठ राज्य सरकार के साथ परस्पर सहयोग से कार्य करेगी और उत्तराखण्ड को आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्वस्तर पर स्थापित करेगी। उन्होंने कहा कि स्कूलों में योग शिक्षा के लिए भी राज्य सरकार को प्रभावी पहल करनी होगी। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष चिदानन्द मुनि महाराज ने कहा कि उत्तराखण्ड में अध्यात्म पर्यटन योगध्यान पर्यटन, चिकित्सा पर्यटन की प्रचुर सम्भावना है। इन क्षेत्रों को बढ़ावा देकर राज्य के आर्थिक संसाधनों को मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश विदेश आने वाले पर्यटकों एवं श्रद्धालुओं को उत्तराखण्ड में और अधिक सुविधाएं देने के लिए भी कार्य किया जाना चाहिए।

मैदानी जिलों में 532 शिक्षकों की कमी है।

सूबे के नौ पर्वतीय जिलों में छात्र संख्या के मानक के मुताबिक तकरीबन तीन हजार प्राइमरी शिक्षक सरप्लस हैं। वहीं, चार मैदानी जिलों में 532 शिक्षकों की कमी है। सरकार को भर्ती की सूरत नजर नहीं आ रही है। इससे प्राइमरी शिक्षक बनने की चाह रखने वाले युवाओं को करारा झटका लग सकता है। प्राइमरी स्कूलों में अध्यापकों की भर्ती का इंतजार कर रहे प्रशिक्षित बेरोजगारों को जोर का झटका धीरे से लग सकता है। महकमे के आंकड़े साबित कर रहे हैं कि स्कूलों में जरूरत से काफी ज्यादा शिक्षक कार्यरत हैं। नौ पर्वतीय जिलों में लगातार छात्रसंख्या गिरने से शिक्षकों के स्वीकृत पद भी ज्यादा हो गए हैं। बच्चों का जमावड़ा मैदानी जिलों में बढ़ रहा है। इस वजह से इन जिलों में गुरुजनों के स्वीकृत पद भी कम पड़ गए हैं। इन अजीबोगरीब हालात का असर प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती पर पडऩे का अनुमान है। शिक्षा महकमा अब सिर्फ सिर्फ स्वीकृत पदों के ब्योरे के आड़ लेकर शिक्षकों की कमी का रोना नहीं रो सकता। तीन हजार से ज्यादा पद अतिरिक्त होने से भर्ती प्रक्रिया शुरू होना तो दूर सरप्लस शिक्षकों को अन्य जिलों में समायोजित करने की समस्या पेश आ सकती है। मौजूदा छात्रसंख्या के आधार पर शिक्षकों की जरूरत सिर्फ देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंहनगर जिलों में ही है। दून में स्वीकृत 2321 कुल पदों के अतिरिक्त 25 शिक्षक और चाहिए। हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंहनगर में स्वीकृत पदों की संख्या क्रमश: 2627, 1962 व 2528 है। इन जिलों में छात्रसंख्या के मुताबिक क्रमश 25, 240, 92 व 175 शिक्षकों की जरूरत है। चारों जिलों में और 532 शिक्षकों की दरकार है। वहीं, नौ पर्वतीय जिलों रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत व बागेश्वर में शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद क्रमश: 1295, 2432, 1894, 3301, 4202, 3556, 2640, 1028 व 1069 हैं। महकमे के आंकड़ों के मुताबिक अब छात्रसंख्या गिरने से उक्त जिलों में शिक्षकों के क्रमश 150, 376, 344, 472, 756, 621, 270, 102 व 573 पद सरप्लस हो गए हैं। साढ़े तीन हजार से ज्यादा पद अतिरिक्त होने से महकमे की चिंता बढ गई है। इस बाबत मंत्रालय के सामने भी स्थिति साफ कर दी गई है। नौ जिलों में सरप्लस 3667 पदों के सापेक्ष चार जिलों में 532 पदों की दरकार है। फिलवक्त प्रदेश में 2400 पदों पर विशिष्ट बीटीसी को प्रशिक्षण देकर भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। बीटीसी के 1300 पदों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित की जा चुकी है। शिक्षा सचिव डा. राकेश कुमार ने स्वीकार किया कि प्राइमरी शिक्षकों के सरप्लस पदों को अन्य जिलों में समायोजित करने पर विचार किया जाएगा। शिक्षकों की नियुक्ति संबंधी नीति पर हर तीन साल में पुनर्विचार करने की जरूरत है।

खनन पर लगी रोक का फायदा खनन माफिया जमकर उठा रहे हैं।

दून वैली में खनन पर लगी रोक का फायदा खनन माफिया जमकर उठा रहे हैं। कई जगहों पर धड़ल्ले से अवैध खनन हो रहा है जबकि खनिज विभाग के अधिकारी भी लाचारी दिखा रहे हैं। जब तक खनन विभाग के पास सूचनाएं पहुंचती है, खनन माफिया माल लादकर फरार हो चुके होते हैं। इस संबंध में कार्रवाई के लिए विभागीय अधिकारियों ने पुलिस को भी पत्र लिखा है। दून वैली में खनन कब शुरू होगा, इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता है। मानसूनी सीजन के चलते लगाई रोक तो अक्टूबर में समान्त हो जाएगी, जबकि हाईकोर्ट के आदेश के चलते लगी रोक के बारे अभी कोई स्थिति स्पष्ट नहीं है। डीएम की ओर से इस संबंध में शासन से दिशा-निर्देश मांगे गए हैं। दूसरी ओर, जिले के कई खनन क्षेत्रों में धड़ल्ले से अवैध खनन किया जा रहा है। खनिज विभाग के अधिकारी भी दबी जबान से दून में हो रहे अवैध खनन की बात स्वीकार करते हैं। सूत्रों का कहना है कि दून वैली की नदियों में हो रहे खनन के बारे में आए दिन ही अधिकारियों के पास फोन भी आते हैं, लेकिन आमतौर पर खनन की साइट्स शहर से काफी दूर हैं। ऐसे में जब तक अधिकारी अपनी टीम के साथ वहां पहुंचते हैं, खनन माफिया माल ट्रैक्टर या ट्रक पर लदवाकर फरार हो जाते हैं। खासतौर पर साहबनगर, विकासनगर, सुद्घोवाला, मालदेवता आदि से अवैध खनन की ज्यादा शिकायतें आ रही हैं। प्रशासन अपनी तरफ से अभियान चलाकर कार्रवाई भी कर रहा है। वहीं, इस संबंध में पुलिस को भी संपर्क किए जाने की बात कही जा रही है। एडीएम वित्त एवं राजस्व सुशील कुमार शर्मा भी पुलिस व वन विभाग को इस संबंध में पत्र लिखे जाने की पुष्टि करते हैं। उनके मुताबिक सभी विभागों से तालमेल बनाकर खनन पर रोक लगाने का प्रयास किया जा रहा है।

किस उद्देश्य से पहुंचाया जा रहा विस्फोटक नेपाल


एक ओर पड़ोसी देश चीन भारत के सीमाओं पर बार-बार छिछोरापन कर रहा है, वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड के सीमांत जनपदों से लगातार विस्फोटक पदार्थ नेपाल पहुंचाया जा रहा है। इसके बावजूद यहां की सुरक्षा एजेंसियों को हवा तक नहीं लग पा रही है। अब तक नेपाली मूल के कई लोग भारत नेपाल सीमा पर विस्फोटक पदार्थो के साथ पकड़े गए हैं। इनमें कई नेपालियों को पुलिस ने स्थानीय लोगों की सूचना पर गिरफ्तार किया। भारत से नेपाल किस प्रकार और क्यों यह सामग्री सप्लाई हो रही है। फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है। यही नहीं नेपाली मूल के लोग यह विस्फोटक सामग्री यहां से कैसे प्रान्त कर रहे हैं? इसका भी किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ समय से भारत नेपाल सीमा पर में बहराइच, बनबसा समेत कई स्थानों पर विस्फोटक सामग्री पकड़े जाने के मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं। पिछले कुछ समय में विस्फोटक सामग्री के मामलों पर नजर डालें तो सीमांत जनपद चमोली में गत 4 नवंबर 2008 को सिमली से पुलिस ने एक नेपाली मूल के व्यक्ति से एक देशी तमंचा, 8 जिंदा कारतूस व एक हैंडग्रिनेड समेत गिरफ्तार किया था। इसके बाद भारत नेपाल सीमा पर बीती सात मई को बहराइच में पुलिस ने एक माओवादी मान बहादुर को पकड़ा। इससे पुलिस ने भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गई थी। जब पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने बताया कि बीपुरम में सडक़ निर्माण कार्य चल रहा है, वह वहीं से विस्फोटक लेकर नेपाल जा रहा था। पुलिस ने लोनिवि टिहरी से जब उक्त निर्माण के बारे में पूछा तो बताया गया था कि उक्त स्थान पर ऐसा किसी भी प्रकार का कोई निर्माण कार्य नहीं किया जा रहा है। इससे पहले टिहरी में बांध क्षेत्र से भी एक माओवादी को विस्फोटक सामग्री के साथ गिरफ्तार किया गया था। यही नहीं अभी करीब डेढ़ माह पूर्व 6 अगस्त को टिहरी जिले के घनसाली से एक नेपाली मूल के व्यक्ति से पांच डेटोनेटर, 150 जिलेटिन की छड़ें व अन्य विस्फोटक सामग्री बरामद की गई थी। इस बीच बीती शुक्रवार को बनबसा में शारदा बैराज चौकी पुलिस ने सीमा पर नेपाली नागरिक को जिलेटिन की आठ छड़े, नान इलेक्ट्रिकल डेटोनेटर, कोडेक्स विस्फोटक सामग्री समेत गिरफ्तार किया। इससे पूर्व भी ऐसे मामले कई प्रकाश में आ चुके हैं। आशंका जताई जा रही है कि पिछले कुछ समय से पहाड़ में बन रही ताबड़तोड़ जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण में विस्फोटक सामग्री का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। पिछले दिनों बनबसा में पकड़े गए नेपाली मूल के नागरिक ने विस्फोटक सामग्री जिले के जोशीमठ क्षेत्र से लाए जाने के मामले में जांच एसएचओ कर्णप्रयाग को सौंपी गई है। यहां पर कंपनियों में काम कर रहे ठेकेदार विस्फोट के लिए जो सामग्री नेपाली नागरिकों को देते हैं उसमें से वह कुछ को बचाकर नेपाल पहुंचा रहे हैं। यह पहला मामला नहीं है जब यहां से विस्फोटक सामग्री सीमा पर पकड़ी गई है। देहरादून के कालसी थाना क्षेत्र$ में तो पूरी जीप ही विस्फोटक से भरी हुयी बरामद हुयी थी। इस तरह से राज्य में लगातार विस्फोटक सामग्री का आवागमन हो रहा है और पुलिस व खुफिया एजेंसियां चुप बैठी हैं।

बूढ़े घोड़ों पर दाँव खेलने में जुटे निशंक

क्या निशंक को जोशीले घोड़ो की तलाश है ?......
उतराखण्ड सरकार में मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को देश की कमान सम्भाले तीन माह हो गए हैं। जिन बूढ़े घोड़ों पर पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी ने सवारी की व अपना कार्यकाल पूरा भी नहीं कर पाए। अब उन्हीं घोड़ों की सवारी "निशंक'' कर रहे हैं। हालांकि निशंक की टीम में कई नई चेहरों को जगह मिली है। लेकिन खंडूरी के विश्वास पात्रों को आज भी निशंक की टीम में अहम जिम्मेदारियां मिली हैं। क्या इन विश्वास पात्रों के जरिए निशंक मजबूती से आगे बढ़ पाएंगे ? क्या खंडूरी के विश्वास पात्र निशंक के भरोसेमंद साबित होंगे ? राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि ऐसे माहौल में जब पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी अब निशंक के बढ़ते कद और सफलता को पचा नहीं पा रहे हैं। दीगर है कि खंडूरी के शासनकाल में प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री का दायित्व सुभाष कुमार के पास था वहीं अब प्रमुख सचिव के पद पर शत्रुघ्न सिंह की ताजपोशी भी अभी कुछ ही दिन पूर्व हुई है। जबकि आई आर एस सेवा के एक अन्य अधिकारी जेपी ममगाई, अपर सचिव अजय प्रद्योत, विशेष कार्याधिकारी के रूप में कार्य करने वालों में दीपक डिमरी आदि थे। इनमें से सभी अधिकारियों को निशंक ने भी अपनी टीम में शामिल किया है। प्रशासनिक अधिकारी शत्रुघ्न सिंह की प्रोन्नति के बाद से ही अधिकारियों में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गयी है यही कारण है कि अब इनमें ही संघर्ष शुरू हो चला है। इस संघर्ष का यह परिणाम है कि जिस दिन से शत्रुघ्न सिंह की प्रोन्नति सचिव पद से प्रमुख सचिव पद पर हुई है उसी के बाद से प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री सुभाष कुमार पहले १५ दिन की छुटटी चले गये और अब पता चलता है कि उन्होंने अपनी छुटिटयां बढ़ा दी है। वहीं सूत्रों ने बताया है कि सचिव से प्रमुख सचिव बने शत्रुघ्न सिंह भी यहाँ अपनी दाल न गलती देख दिल्ली जाने का जुगाड़ बैठाने में लग गये हैं। वहीं जेपी ममगाई को मुख्यमंत्री ने कोई काम तो नहीं दिया है लेकिन बताया जाता है कि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री के खास होने के कारण ही उत्तराखण्ड में रोका गया है। जहां तक मुख्यकार्याधिकारी दीपक डिमरी का इनके साथ भी काम करने का कारण बताया जा रहा है कि वे आरएसएस काडर से सम्बद्ध हैं इसलिये उनको यहां रखा गया है लेकिन यदि जानकारों की मानी जाए तो पिछले ढाई साल से मुख्यमंत्रियों की सेवा कर अस्थायी तौर पर बीस हजार के वेतन पाने वाले डिमरी ने करोड़ों की सम्पति अर्जित कर दी है। जबकि पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ कार्य करने वाले अजय प्रद्योत काम के बोझ से इतने दब चुके हैं कि उन्हें किसी से भी बात करने की फर्सत तक नहीं। अब निशंक टीम में अजय प्रद्योत को अपवाद माना जाय तो शेष सभी अधिकारी वर्चस्व की लड़ाई तथा मोटी रकम कमाने में जुटे हैं।राजधानी में इन दिनों चर्चा आम है कि खण्डूरी की इसी टीम ने उन्हें अर्श से फर्श पर ला दिया। इन अधिकारियों के बुने मायाजाल में पूर्व मुख्यमंत्री इस कदर फंस गये थे कि उन्हें सत्ता से बेदखल होने का पता भी नहीं चल पाया। ऐसे में निशंक को इतिहास से सबक लेकर इन बूढ़े घोड़ों को सत्ता के रेस कोर्स से बाहर करने के बारे में सोचने की जरूरत है। बीते दो महीनों में निशंक ने अपने कार्यों से एक अलग छवि बनायी है ऐसे में उन्हें अपने ही जैसे ऊर्जावान अधिकारियों का उपयोग करना बेहतर होगा।

Sunday, September 20, 2009

डा0 निशंक हुए पहली अग्नि-परीक्षा में सफल


विकास नगर विधानसभा के प्रतिष्ठापूर्ण उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज कर जहां कांग्रेस की इस परम्परागत सीट को अपनी झोली में डालने में कामयाबी हासिल कर ली, वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ0 रमेश पोखरियाल निशंक ने अपनी पहली अग्नि परीक्षा में सफलता अर्जित कर अपने करिश्मे को बरकरार रखा। राजनीतिक विश्लेषक इस चुनाव परिणाम को सरकार के दो माह के काम-काज पर जनता के इनाम के रूप में देख रहे हैं।विकास नगर उपचुनाव परिणाम के बाद जहां कांग्रेसी शिविर में सन्नाटा पसर गया वहीं भाजपाई खेमे में जश्न का माहौल है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डा0 रमेश पोखरियाल निशंक के राजनीतिक भविष्य को लेकर इस उपचुनाव को बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था। इस चुनाव में प्रत्यक्षत: प्रदेश के मुख्यमंत्री डा0 रमेश पोखरियाल निशंक के साथ ही प्रदेश भाजपा की प्रतिष्ठा पूरी तरह दांव पर थी। हालांकि मतदाताओं के बीच कुलदीप कुमार परासर एक अनजान सा चेहरा था तथापि प्रदेश के करिश्माई मुख्यमंत्री डॉ0 रमेश पोखरियाल निशंक के ऊर्जावान नेतृत्व के बल पर कुलदीप कुमार जीत का सेहरा पहनने में कामयाब रहे। यह जीत सही मायनों में डॉ0 निशंक की है। जबकि डा0 निशंक जीत का श्रेय भाजपा कार्यकर्ताओं तथा विकासनगर की जनता को दे रहे हैं।जिस तरह प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालते ही डॉ0 निशंक एक के बाद एक उपलब्धियां अर्जित करते रहे उससे सहज ही यह अनुमान लगाया जा रहा था कि वह बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं। विकास नगर विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव में जीत दर्ज करना भाजपा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। ऐसे में जबकि यह सीट परम्परागत रूप से कांग्रेस की रही है। केवल २००७ के विधानसभा चुनावों में मुन्ना सिंह चैाहान जब भाजपा के टिकट से इस सीट से लड़े तो यह सीट भाजपा की हो गई। जबकि मुन्ना को टिकट मिलना भी एक एक्सीडेंट था क्योंकि भाजपा इन्ही कुलदीप कुमार को टिकट देना चाहती थी लेकिन तकनीकी कारणों से टिकट मुन्ना सिंह के नाम आ गया था। मुन्ना सिंह चौहान के भाजपा व विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने के बाद यह सीट फिर खाली हो गई और अब इस सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया।विकास नगर उपचुनाव में जहां तमाम विपक्षी पार्टियों ने भाजपा को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक डाली भी वहीं डॉ0 निशंक ने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ व बुद्धि चातुर्य का परिचय देते हुए विरोधी दलों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। यही नहीं भाजपा संगठन के अंतर्कलह व भीतरघात से पार पाने में भी डॉ0 निशंक सफल रहे , इतना ही नहीं भाजपा ने कांग्रेस के भीतरघात का भी पूरा फायदा इस चुनाव में लिया । पहली बार भारतीय जनता पार्टी एकजुट होकर डॉ0 निशंंक के नेतृत्व में विकासनगर उपचुनाव में खम ठोककर खड़ी रही ।पार्टी संगठन में इसी एकजुटता का परिणाम है कि विकास नगर विधानसभा सीट से लोकसभा चुनाव में १९ हजार वोटों से पीछे रहने वाली भारतीय जनता पार्टी ने न केवल इस विधानसभा उपचुनाव में १९ हजार वोटों की कमी को पाटा बल्कि ५९६ वोटों की बढ़त हासिल कर अभूतपूर्व विजय हासिल की।इस उपचुनाव के जरिये जनता ने डॉ0 निशंक को जीत का पहला तोहफा भेंट किया है। साथ ही इस अभूतपूर्व विजय ने डॉ0 निशंक को प्रदेश का सर्व स्वीकार्य नेता सबित कर दिया है। मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ0 निशंक के करिश्माई नेतृत्व में प्रदेश की जनता में जो आशा का संचार हुआ उस उत्साह व ऊर्जा का प्रतिफल इस प्रचण्ड जीत के रूप में सामने आया।दरअसल इस जीत के पीछे डॉ0 रमेश पोखरियाल निशंक के दो माह के कामकाज और उनके सादगीपूर्ण व्यवहार को भी मुख्य कारण माना जा रहा है। डॉ0 निशंक ने सूबे के निजाम का पद संभालते ही जिस तरह प्रदेश की बुनियादी सुविधाओं को २४ घंटे के अंदर पटरी पर लाने का काम किया, उससे आम जनमानस में इस सरकार के प्रति विश्वास बढ़ता गया। लोगों ने सरकार के कामकाज का निष्पक्षता से मूल्यांकन कर सरकार के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दिया है। अब विधानसभा में भाजपा के कुल ३६ सदस्य हो जायेंगे।विकासगनर उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी कुलदीप कुमार की विजय को भाजपा के पूर्व राज्य सभा सांसद मनोहर कांत ध्यानी,पूर्व मुख्यमंत्री नित्यानन्द स्वामी,प्रदेश महामंत्री अजय भट्ट, तीरथ सिंह रावत, कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, पेयजल मंत्री प्रकाश पंत तथा पूर्व सह मीडिया प्रभारी अजेंद्र अजय ने सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर बताया है। इनका कहना है कि विकासनगर चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया है कि आम जनमानस में प्रदेश सरकार की रीतियों-नीतियों के प्रति विश्वास बढ़ा हैें। जनता ने प्रदेश सरकार के कामकाज का निष्पक्ष मूल्यांकन कर स्पष्ट जनादेश दिया और भाजपा सरकार की स्थिरता की खातिर अन्य किसी तथ्य को नकार दिया है। उन्होंने कहा कि इस प्रतिष्ठापूर्ण उप चुनाव में भाजपा की विजय एक बड़ी उपलब्धि है। इस विजय से पार्टी कार्यकत्र्ताओं में एक नये उत्साह का संचार हुआ है। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने चुनाव परिणामों को अपने पक्ष में करने के लिए कई हथकंडे अपनाये। मगर सब धरे के धरे रह गये और विपक्षियों को मुंह की खानी पड़ी।दरअसल विकास नगर उपचुनाव परिणाम डॉ0 रमेश पोखरियाल निशंक के दो माह के कार्यकाल पर जनता द्वारा दिए गए इनाम के रूप में देखा जा रहा है। इस परिणाम के बाद डॉ0 निशंक की आगे की राह पूरी तरह निष्कंटक हो गई। इस जीत से 'मिशन २०१२ फतहÓ का लक्ष्य भी आसान हो गया है। राजनैतिक गलियारों में चर्चा है कि अब निशंक खुलकर बैटिंग करेगे। ..narayan.pargain

Sunday, September 6, 2009

कोख में बलि चढ़ गईं एक करोड़ बेटियां

पिछले 20 सालों में देश भर में लगभग एक करोड़ बेटियों की जन्म से पहले ही बलि
चढ़ा दी गई। यही वजह है कि आज देश के कई राज्यों में सेक्स रेश्यो एक बड़ी समस्या बन गया है। बावजूद इसके कन्या भ्रूण हत्या पर रोक नहीं लग पा रही है। यह बात पुष्पांजलि क्रॉसले हॉस्पिटल की सीनियर गायनेकॉलजिस्ट डॉ. शारदा जैन ने कहीं। भ्रूण हत्या पर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलिज में गुरुवार को आयोजित सेमिनार में उन्होंने कहा कि लड़कों के मुकाबले लड़कियों का लगातार घटता अनुपात बहुत बड़ी सामाजिक समस्या का कारण बन रहा है। हरियाणा के कई जिलों में इसका असर दिखना शुरू हो गया है, जहां शादी के लिए लड़कियां पैसे देकर आदिवासी इलाकों या बांग्लादेश से मंगाई जा रही हैं। एक लड़की से कई भाइयों की शादी के मामले भी सामने आए हैं। बावजूद इसके लोगों की परंपरागत सोच में बदलाव नहीं आ रहा है और बेटे की चाह में कोख में ही बेटियों की हत्या कर दी जाती है। ऐसे में मेडिकल फेटरनिटी की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इस मौके पर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलिज के डीन डॉ. ए. के. अग्रवाल ने कहा कि वर्ष 1951 की जनगणना के मुताबिक देश के सिर्फ एक जिले में लड़कियों का अनुपात प्रति एक हजार लड़कों पर 800 के करीब पाया गया था, मगर 2001 तक 800 जिले इस स्थिति में पहुंच गए। भ्रूण हत्या में पंजाब जैसे समृद्घ राज्य भी पीछे नहीं हैं।

गर्ल्स स्कूल में एजुकेशन की उड़ान

एक स्टडी के अनुसार गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां को-एड स्कूल में एजुकेशन लेने वाली गर्ल्स से एक
ेडेमिक परफॉर्मेंस के मामले में काफी बेहतर होती हैं। ब्रिटेन में जनरल सर्टिफिकेट ऑफ सेकंडरी एजुकेशन में 7 लाख से ज्यादा लड़कियों के स्कोर का एनालिसिस करने के बाद यह खुलासा किया कि गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां को-एड स्कूल की गर्ल्स से ज्यादा तेज होती हैं। गर्ल्स स्कूल में पढ़ते समय लड़कियों का लड़कों की वजह से ध्यान भटकने का खतरा नहीं रहता। इन लड़कियों के सामने सिर्फ एक ही मकसद होता है-एग्जाम में किसी भी तरह अच्छे से अच्छे नंबर लाना। इसलिए वह साइंस और मैथ्स जैसे टफ सब्जेक्ट्स पर काफी मेहनत करती हैं और उनकी यह मेहनत सफल भी होती है। शोधकर्ताओं ने एक खास टाइम स्पैन में देखा कि गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया, जबकि को-एड स्कूलों में पढ़ने वाली गर्ल्स की परफॉर्मेंस आशाओं की कसौटी पर खरी नहीं उतरी। गार्जियन के हवाले से कहा गया कि बच्चों का एडमिशन
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और समय बहुत से पैरंट्स को सिर्फ को-एड स्कूल के फायदे ही नजर आते हैं। उनको लगता है कि अगर लड़के-लड़कियां साथ-साथ एजुकेशन लेंगे तो जिंदगी में आगे आने वाली किसी भी तरह की चुनौतियों से निपटने के लिए वह हरदम तैयार रहेंगे। लेकिन इसी के साथ गाजिर्यन ने यह भी कहा है, 'जो पैरंट्स अपनी लड़कियों को अच्छी एजुकेशन दिलाना चाहते हैं, उन्हें गर्ल्स स्कूल में अपनी बेटियों का एडमिशन कराना चाहिए। जो गर्ल्स को-एड स्कूल में अच्छी परफॉर्मेंस नहीं दे पा रही हैं, अगर उनका एडमिशन गर्ल्स स्कूल में कराया जाए तो हो सकता है उनकी इंटेलिजेंस और परफॉर्मेंस निखरकर सामने आए।' इंस्टिट्यूट ऑफ एजुकेशन के रिर्सचर एलाइस सुलिवन का कहना है, 'यह काफी दिलचस्प है कि गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां एग्जाम में अच्छे नंबर लाती है। लेकिन को-एड स्कूल में भी टीचर्स पढ़ाते समय क्लासरूम में लड़के-लड़कियों में कोई भेदभाव नहीं करते। हां, कुछ अंतर जरूर हो सकते हैं। गर्ल्स स्कूल में अपनी बेटियों को पढ़ाने वाले पैरंट्स की अपनी लड़कियों से उम्मीदें कुछ अलग ही होती हैं। र्गल्स स्कूल में मैथ्स, साइंस और फिजिक्स जैसे टफ सब्जेक्ट्स में भी लड़कियां काफी अच्छा स्कोर कर सकती हैं। जिन लड़कियों में सेल्फ कॉन्फिडंस कम है, वह गर्ल्स स्कूल में अच्छे नंबर ला सकती हैं क्योंकि इसमें न तो बॉयज उनका ध्यान बंटाने की कोशिश करते हैं और न ही उन्हें उनसे मुकाबला करना होता है। इसलिए वह सिर्फ एग्जाम में अच्छे नंबर लाने पर फोकस करती हैं।

खूबसूरत औरतों से बात करते समय सुधबुध खो देते हैं पुरुष

खूबसूरत महिलाओ के सामने पुरुष नर्वस फील करने लगते हैं। यह तथ्य हाल ही हुई एक स्टडी के रिजल्ट के तौर पर निकला है। स्टडी के अनुसार खूबसूरत महिलाओं के बात करते समय अधिकांश पुरुष अपनी सुधबुध खो बैठते हैं।
तस्वीरों में : किस्म-किस्म के कामसूत्र
नीदरलैंड के रिसर्चर्स ने अपनी स्टडी में पाया कि बेहद आकर्षक महिलाओं से बातचीत के दौरान पुरुष अपना दिमाग खो बैठते हैं यानी खूबसूरती के सामने उनका दिमाग काम करना बंद कर देता है। रिसर्च यह भी बताती है कि इस तथ्य का प्रभाव लोगों की प्रफेशनल लाइफ पर भी पड़ता है। अक्सर पुरुष ऑफिस में खूबसूरत महिलाओं से फ्लर्ट करने के चक्कर में अपने काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं। खूबसूरत कलीग से बात करने समय वह ऑफिस और अपने काम के बारे में लापरवाह हो जाते है।
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सॉफ्ट लेडीज, हार्ड जेंटलमैन
जबकि इसके विपरीत महिलाओं को हैंडसम पुरुषों से बात करते समय कोई खास फर्क नहीं पड़ता है। स्टडी कहती है कि यह पुरुषों में स्वाभाविक तौर पर खूबसूरती की ओर अट्रैक्ट होने का गुण है और जिसके चलते वे हमेशा खूबसूरत महिला के प्रभाव में आ जाते हैं।
स्टडी में यह भी पाया गया कि आमदिन में पुरुष ऑफिस में बेहतर काम करते हैं , बनिस्बत उस दिन के जब कोई आकर्षक महिला ऑफिस में हो।