बारह फरवरी, 2010 का दिन 11 बजते ही इतिहास की धरोहर बन गया। क्षिप्रा नदी के किनारे संन्यासियों व वैरागियों के बीच हुए खूनी संघर्ष के वर्षो बाद यह खटास पूरी तरह दूर होती दिखी। आपसी प्यार इस कदर घुला कि संन्यासी अखाडों के साथ वैरागी अखाडों ने भी स्नान किया। हरकी पैडी व आसपास मौजूद लाखों श्रद्धालु इसके गवाह बने। संन्यासी अखाडे व वैरागी अखाडों का कुंभ में स्नान के क्रम को लेकर आपसी विवाद वर्षो से चल रहा था। इस विवाद के चलते क्षिप्रा नदी तो रक्तरंजित हुई थी। संन्यासी व वैरागियों में सन् 1738 में जमकर संघर्ष हुआ। यहीं से वैरागियों व संन्यासियों के बीच मतभेद और बढने लगे। दूरियां इस कदर बढ गई कि वे एक-दूसरे को पसंद तक नहीं करते थे। इसके बाद जितने भी कुंभ हुए सब में स्नान के क्रम को लेकर संन्यासियों से वैरागियों का विवाद होता रहा। ऐसे में वैरागियों ने वृंदावन में कुंभ करने का निर्णय लिया। हालांकि यह भी कहा जाता है कि वैरागियों ने अपनी तीन अणियों को लेकर यहीं पर रचनात्मक कार्य किया था। तब से वैरागी वृंदावन में कुंभ स्नान के बाद ही कुंभ के दूसरे शाही स्नान में डुबकी लगाते थे। लेकिन इस बार अखिल भारतीय अखाडा परिषद के पदाधिकारियों व साधु-संतों की सुलझी हुई सोच ने नई संस्कृति को जन्म दिया। वैर-भाव भूलकर सभी एक हुए। उनके बीच की कडवाहट महाकुंभ के पहले शाही स्नान में दूर हो गई। अखिल भारतीय अखाडा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानदास की तीस मार्च को भी शाही स्नान घोषित कराने की कोशिश में संन्यासी अखाडों ने पूरा समर्थन दिया। नतीजा यह हुआ कि शासन-प्रशासन को तीस मार्च को शाही स्नान घोषित करना पडा। इससे पूर्व तक तीन शाही स्नान होते रहे। 12 फरवरी की पूर्वाह्न 11 बजे यह महाकुंभ ऐतिहासिक हो गया। संन्यासी अखाडों के संतों के साथ वैरागी के श्री महंत व अखिल भारतीय अखाडा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानदास ने जयघोष करते हुए गंगा में डुबकी लगाई। उदासीन व निर्मल परंपरा के श्री महंत भी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ डुबकी लगाने हरकी पैडी पहुंचे। इस यादगार क्षण को सजोने के लिए लाखों श्रद्धालु हरकी पैडी व आसपास के क्षेत्र में मौजूद थे।
Saturday, February 13, 2010
इतिहास की धरोहर बन गया। .....शाही स्नान
बारह फरवरी, 2010 का दिन 11 बजते ही इतिहास की धरोहर बन गया। क्षिप्रा नदी के किनारे संन्यासियों व वैरागियों के बीच हुए खूनी संघर्ष के वर्षो बाद यह खटास पूरी तरह दूर होती दिखी। आपसी प्यार इस कदर घुला कि संन्यासी अखाडों के साथ वैरागी अखाडों ने भी स्नान किया। हरकी पैडी व आसपास मौजूद लाखों श्रद्धालु इसके गवाह बने। संन्यासी अखाडे व वैरागी अखाडों का कुंभ में स्नान के क्रम को लेकर आपसी विवाद वर्षो से चल रहा था। इस विवाद के चलते क्षिप्रा नदी तो रक्तरंजित हुई थी। संन्यासी व वैरागियों में सन् 1738 में जमकर संघर्ष हुआ। यहीं से वैरागियों व संन्यासियों के बीच मतभेद और बढने लगे। दूरियां इस कदर बढ गई कि वे एक-दूसरे को पसंद तक नहीं करते थे। इसके बाद जितने भी कुंभ हुए सब में स्नान के क्रम को लेकर संन्यासियों से वैरागियों का विवाद होता रहा। ऐसे में वैरागियों ने वृंदावन में कुंभ करने का निर्णय लिया। हालांकि यह भी कहा जाता है कि वैरागियों ने अपनी तीन अणियों को लेकर यहीं पर रचनात्मक कार्य किया था। तब से वैरागी वृंदावन में कुंभ स्नान के बाद ही कुंभ के दूसरे शाही स्नान में डुबकी लगाते थे। लेकिन इस बार अखिल भारतीय अखाडा परिषद के पदाधिकारियों व साधु-संतों की सुलझी हुई सोच ने नई संस्कृति को जन्म दिया। वैर-भाव भूलकर सभी एक हुए। उनके बीच की कडवाहट महाकुंभ के पहले शाही स्नान में दूर हो गई। अखिल भारतीय अखाडा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानदास की तीस मार्च को भी शाही स्नान घोषित कराने की कोशिश में संन्यासी अखाडों ने पूरा समर्थन दिया। नतीजा यह हुआ कि शासन-प्रशासन को तीस मार्च को शाही स्नान घोषित करना पडा। इससे पूर्व तक तीन शाही स्नान होते रहे। 12 फरवरी की पूर्वाह्न 11 बजे यह महाकुंभ ऐतिहासिक हो गया। संन्यासी अखाडों के संतों के साथ वैरागी के श्री महंत व अखिल भारतीय अखाडा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञानदास ने जयघोष करते हुए गंगा में डुबकी लगाई। उदासीन व निर्मल परंपरा के श्री महंत भी परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ डुबकी लगाने हरकी पैडी पहुंचे। इस यादगार क्षण को सजोने के लिए लाखों श्रद्धालु हरकी पैडी व आसपास के क्षेत्र में मौजूद थे।
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