राजनीति में स्थापित होने को आतुर बाबा रामदेव काला धन, भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे मुद्दों पर बयानबाजी के जरिए राजनीतिक गलियारों में चर्चित तो हो रहे हैं लेकिन इससे योग गुरु के रूप में स्थापित उनकी प्रतिष्ठा को खासा आघात पहुंच रहा है। आज देश की जो राजनीतिक स्थिति है उसमें वह कोई बड़ा बदलाव कर पाएंगे इसमें शंका ही है क्योंकि पूर्व में उनसे भी बड़े दो संत करपात्रीजी महाराज और बाबा जयगुरुदेव ऐसा करने के प्रयास में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं। इतिहास गवाह है कि जिन संतों और साधुओं ने राजनीति में प्रवेश किया उन्हें क्षणिक सत्ता सुख भले मिल गया हो लेकिन संत के रूप में कमाई गई उनकी इज्जत कम हो गई। राजनीतिक पार्टियों ने साधु संतों का इस्तेमाल कर उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। चाहे स्वामी चिन्मयानंद हों, रामविलास वेदांती हों, योगी आदित्यनाथ हों अथवा सतपाल महाराज। इन सभी ने जब राजनीति में प्रवेश नहीं किया था तो जनता की इनमें आस्था थी लेकिन राजनीति में कदम रखते ही यह भी अन्य राजनीतिज्ञों की तरह हो गये जिससे इनके प्रति लोगों में विश्वास कम हुआ। जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि राजनीति में प्रवेश की बजाय संतों और धर्मात्मा लोगों को सामाजिक क्षेत्र में ही सक्रिय रहना चाहिए, राजनीति में उनका मार्गदर्शन जरूर रहे लेकिन वह नेतृत्व करने से बचें तो ज्यादा सही रहेगा।
राजनीति के लिए अपने को ‘योग्य’ मान रहे योग गुरु बाबा रामदेव राजनीतिक दावपेंचों को भी प्राणायाम तथा कपालभाति की तरह सरल मानकर जिस राह पर चलने का प्रयास कर रहे हैं वह अंततः उनको अपयश ही प्रदान करेगी। रामदेव ने देश की राजनीति में शुद्धता लाने के लिए ऐलान किया है कि वह लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में साफ छवि वाले लोगों को अपनी पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारेंगे। इसके लिए बाबा ने बाकायदा अपने योग प्रशिक्षण शिविरों में योग शिक्षा के साथ-साथ राजनीतिक प्रवचन भी देने शुरू कर दिए हैं। इन प्रवचनों में अकसर निशाना नेहरू-गांधी परिवार होता है। इसी कारण रामदेव अब सीधे कांग्रेस के निशाने पर आ गये हैं। वह जिस काला धन के मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं अब वही मुद्दा उनके गले की फांस बन गया है और कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने रामदेव से कहा है कि उन्हें अपने ट्रस्ट, आश्रम और अपनी संपत्तियों की अपार वृद्धि के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए।
बहुत तेजी से अरबों रुपए की संपत्ति के स्वामी बने रामदेव हालांकि यह कहते हैं कि उनकी कोई निजी संपत्ति नहीं है। लेकिन यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि उनका दिव्य योग ट्रस्ट सालाना करोड़ों रुपए कमा रहा है। 2007 में तहलका पत्रिका ने गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट को आधार बनाते हुए यह खुलासा कर सभी को चैंका दिया था कि रामदेव की सालाना आमदनी 400 करोड़ रुपए है। वैसे यह आमदनी हो भी क्यों न? आखिर रामदेव अपने योग शिविर में टिकट लगाते हैं जिसकी एवज में उन्हें कोई कर भी नहीं देना होता। साथ ही उनकी दिव्य फार्मेसी विभिन्न औषधियों का निर्माण कर भी भारी मुनाफा अर्जित करती है। यही नहीं मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कुछ टीवी चैनलों में भी बाबा रामदेव की कथित हिस्सेदारी बताई जाती है। रामदेव के हरिद्वार स्थित आश्रम में भी किसी का मुफ्त इलाज नहीं होता और इसके लिए लोगों को हजारों रुपए में शुल्क अदा करना पड़ता है। बाबा रामदेव पर कई राज्यों में मूल्यवान जमीन कौड़ियों के भाव लेने के आरोप भी लगते रहे हैं। यही नहीं बाबा के पास स्काॅटलेंड में एक आइसलेंड भी बताया जाता है जिसकी कीमत 2 मिलिय्ान पौंड है।
पंूजीपतियों का विरोध करने वाले रामदेव अप्रत्यक्ष रूप से खुद भी पूंजीपति ही हैं। यह सही है कि उन्होंने योग को देश-विदेश में विख्यात कर लोगों के इससे होने वाले लाभ से परिचित कराया लेकिन यह भी सही है कि रामदेव ने योग की मार्केटिंग कर खुद को नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया। योग गुरु के रूप में देश विदेश में विख्यात हुए रामदेव जल्द ही ऐसे व्यक्ति बन गए जिसके एक इशारे पर दर्जनों मुख्यमंत्री उनके कार्यक्रम में शरीक होने लगे साथ ही अपने शिविरों में उमड़ती भीड़ की संख्या देखकर वे इतने गदगद हुए कि उन्हें योग सीखने आने वाले लोगों के रूप में वोटर दिखाई देने लगे और बाबा के मन में राजनीति में आने की इच्छा जागी। समस्याएं कहां नहीं होतीं? भारत में भी हैं, उन्हीं का हवाला देते हुए रामदेव ने लोगों को अपने राजनीतिक विचारों से अवगत कराना शुरू कर दिया। जिससे कांग्रेसी मुख्यमंत्री उनसे दूर हुए साथ ही भाजपा ने भी उन्हें अपने लिए खतरा जान उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। क्षेत्रीय और वामपंथी दल वैसे भी उन्हें ज्यादा महत्व नहीं देते इसलिए रामदेव ने अपना ही राजनीतिक दल बनाने की सोची और आज ऐसा कर वे किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देने से नहीं चूकते।
लेकिन रामदेव शायद भूल गए हैं कि उनके पास जो भीड़ जुट रही है वह दरअसल उनके वोटर नहीं बल्कि अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए आए लोग हैं जो शायद ही उनके राजनीतिक विचारों से इत्तेफाक रखते हों। यदि जुटने वाली भीड़ संबंधित व्यक्ति के पक्ष में वोट डालती तो शायद ही कोई नेता चुनाव हारता। कल को कोई डाॅक्टर भी अपने यहां जुटने वाली भीड़ की संख्या देख कर चुनावों में उतरने का फैसला ले ले तो इसे सरासर बेवकूफी ही कहा जाएगा। रामदेव चाहे जितने बड़े योग गुरु हों लेकिन उनका राजनीतिक आधार कुछ भी नहीं है। यदि उन्होंने योग को लोकप्रिय बनाने की बजाए अब तक की अपनी मेहनत राजनीति के क्षेत्र में लगाई होती तो शायद उनका कुछ जनाधार हो भी जाता। उन्हें भाजपा से जुड़े संतों के राजनीतिक हश्र पर भी निगाह घुमा लेनी चाहिए।
यदि रामदेव हिन्दू वोटों के सहारे अपना बेड़ा पार लगाना चाहते हैं तो उन्हें यह भी देख लेना चाहिए कि यह नीति तो अथक प्रयासों के बाद भाजपा की भी सफल नहीं रही ऐसे में वह तो राजनीति के क्षेत्र में नौसखिया ही हैं। राजनीति का क्षेत्र रामदेव जी के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहां एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप में जिस भाषा का इस्तेमाल किया जाता है, वह उनके जैसे प्रबुद्ध और लोकप्रिय भारतीय नागरिक के लिए कष्टदायी होगा। राजनीति का क्षेत्र काजल की कोठरी है, यह बात उन्हें अब तक समझ आ ही गई होगी क्योंकि रामदेव का दामन भले कितना साफ हो लेकिन यहां मुख्यधारा में प्रवेश करने के साथ ही वह भी आरोपों के घेरे में आ गए हैं जिससे उनकी साफ छवि पर भी सवालिया निशान लग गया है। इसके अलावा हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एक कांग्रेस सांसद ने कथित तौर पर उन्हें सार्वजनिक रूप से अपशब्द कहे।
कुछ समय पहले मीडिया में रामदेव के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने की खबर भी चली थी। लेकिन रामकिशन यादव उर्फ रामदेव यदि यह सपना ले भी रहे हैं तो जनता जानना चाहेगी कि किस आधार पर? सामाजिक क्षेत्र में, उन्होंने यह सही है कि लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन इसके लिए उन्होंने फीस भी वसूली। अध्यात्म के क्षेत्र में उनका कोई योगदान नहीं है। राजनीति के क्षेत्र में वह बिल्कुल नए हैं और शैक्षणिक योग्यता की बात करें तो वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की शैक्षणिक योग्यता के आगे कहीं नहीं टिकते। मनमोहन सिंह के पास जहां देश विदेश की कई डिग्रियां हैं वहीं रामदेव ने हरियाणा के एक गांव स्थित स्कूल में आठवीं तक की कक्षा पास की और उसके बाद एक गुरुकुल में योग और संस्कृत की शिक्षा ली।
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