Thursday, November 26, 2009

वरिष्ठ प्रबन्धक का सफ़ेद झूठ

वरिष्ठ प्रबन्धक का सफ़ेद झूठ पिट्कुल अधिकारी अपने कुकृत्यों पर पर्दा डालने कि नापाक कोशिश करते हुए एक के बाद एक गलती करते जा रहे हैं। इसी क्रम में एक नमूना वरिष्ठ प्रबन्धक पी.सी. ध्यानी नें २६ सितम्बर २००९ को एक राजनैतिक पार्टी के माहिला प्रकोष्ठ की अध्यक्षता द्वारा पिट्कुल में यौन शौषण मामलों को दबाने के विरोध में कुछ समाचार पत्रों मे प्रकाशित समाचारों के आधार पर निष्पक्ष जाँचें व दोषियों पर कार्यवाही हेतु २२ सितम्बर २००९ को ज्ञाँपन दिया था।उक्त पत्र द्वारा वरिष्ठ प्रबन्धक ने महिला प्रकोष्ठ अध्यक्षा को आश्वस्त किया कि समाचार पत्रों में समाचार तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया जिसके समर्थन में कुछ काम कागजात भी अध्यक्षा को भेजे गये। किन्तु ध्यानी द्वारा अध्यक्षा को भेजे गये साक्ष्य अपने आप में झूठ का पुलिन्दा हैं क्योँकि यौन शौषण की पहली शिकायत एक महिला अवर अभियन्ता द्वारा एक पुरुष अभियन्ता के विरुद्ध ९ जनवरी २००७ को दर्ज करायी गयी थी जिस पर कार्यवाही करते हुए पी.सी.ध्यानी ने १२ जनवरी २००७ को नोट्स एवं ऑर्डर का ड्राफ़्ट तैयार किया तथा महाप्रबन्धक(मा.स.) द्वारा १२ जनवरी २००७ को ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा विशाखा व अन्य बनाम राजस्थान सरकार व अन्य केस में जारी दिशा निर्देशों तथा दि सैक्सुअल हैरास्स्मैन्ट ऑफ़ वॉमन एट वर्क प्लेस(प्रिवेन्शन,प्रोहिविशन एण्ड रिड्रेशल)बिल २००६ के विरुद्ध एकल जाँच समिति गठित करते हुए उपमहाप्रबन्धक कमल कान्त को जाँच सौंप दी गयी। पी. सी. ध्यानी व अन्य लोगों द्वारा कमल कान्त दबाव व फ़ोन पर मिली धमकी के चलते कमल कान्त नेअपने पत्रांक १९८/ई टी सी आर/एन्क्वाइरी दिनांक १६ जनवरी २००७ का जाँच करने से मना कर दिया। २० जनवरी २००७ को प्रबन्ध निदेशक द्वारा नयी जाँच समिती गठिथ की गयी इस बार भी सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के विरुद्ध तीन सदस्य समिती बनी किन्तु सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार समिती का अध्यक्ष व कम से कम आधे सदस्य महिलाएं होने चाहिये थे किन्तु इस समिती में तीनों सदस्य पुरुष थे। समिती को ९० दिनों में जाँच पूरी करनी चाहिये थी किन्तु ९ जनवरी २००७ से २६ मई २००९ तक कोई प्रगति नहीं हुई। जो कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का प्रकरण बनता है। पी.सी.ध्यनी ने प्रकोष्ठ अध्यक्षा को भेजे गये पत्र में उक्त प्रकरण में समझौता पत्र भी साक्ष्य के रूप मे भेजा गया है। यहाँ गौरतलब है कि ध्यानी ने जो समझौता पत्र भेजा है वह कानूनी रूप से वैध्य नहीं है क्योंकि वह समझौता २० जनवरी २००७ को गठित तीन सदस्य समिती के दो सदस्यों के समक्ष होना दर्शाया गया है जिसका अध्यक्ष लगभग डेढ वर्ष पूर्व सेवानिवृत हो चुका है तथा २६ मई २००९ को सूचना का अधिकार में माँगी गयी सूचना के बाद १२ जून २००९ को नई कमेटी स्वत: ही समाप्त हो चुकी है। यानी जन्ता कि आँखों में धूल झोंकते हुए एक ऐसी समिती के समक्ष समझौता दिखाया गया है जो कि अस्तित्व में ही नहीं है।

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