Wednesday, February 23, 2011

‘योग्य’ मान रहे योग गुरु बाबा रामदेव



राजनीति में स्थापित होने को आतुर बाबा रामदेव काला धन, भ्रष्टाचार और महंगाई जैसे मुद्दों पर बयानबाजी के जरिए राजनीतिक गलियारों में चर्चित तो हो रहे हैं लेकिन इससे योग गुरु के रूप में स्थापित उनकी प्रतिष्ठा को खासा आघात पहुंच रहा है। आज देश की जो राजनीतिक स्थिति है उसमें वह कोई बड़ा बदलाव कर पाएंगे इसमें शंका ही है क्योंकि पूर्व में उनसे भी बड़े दो संत करपात्रीजी महाराज और बाबा जयगुरुदेव ऐसा करने के प्रयास में अपना सब कुछ गंवा चुके हैं। इतिहास गवाह है कि जिन संतों और साधुओं ने राजनीति में प्रवेश किया उन्हें क्षणिक सत्ता सुख भले मिल गया हो लेकिन संत के रूप में कमाई गई उनकी इज्जत कम हो गई। राजनीतिक पार्टियों ने साधु संतों का इस्तेमाल कर उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। चाहे स्वामी चिन्मयानंद हों, रामविलास वेदांती हों, योगी आदित्यनाथ हों अथवा सतपाल महाराज। इन सभी ने जब राजनीति में प्रवेश नहीं किया था तो जनता की इनमें आस्था थी लेकिन राजनीति में कदम रखते ही यह भी अन्य राजनीतिज्ञों की तरह हो गये जिससे इनके प्रति लोगों में विश्वास कम हुआ। जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि राजनीति में प्रवेश की बजाय संतों और धर्मात्मा लोगों को सामाजिक क्षेत्र में ही सक्रिय रहना चाहिए, राजनीति में उनका मार्गदर्शन जरूर रहे लेकिन वह नेतृत्व करने से बचें तो ज्यादा सही रहेगा।

राजनीति के लिए अपने को ‘योग्य’ मान रहे योग गुरु बाबा रामदेव राजनीतिक दावपेंचों को भी प्राणायाम तथा कपालभाति की तरह सरल मानकर जिस राह पर चलने का प्रयास कर रहे हैं वह अंततः उनको अपयश ही प्रदान करेगी। रामदेव ने देश की राजनीति में शुद्धता लाने के लिए ऐलान किया है कि वह लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में साफ छवि वाले लोगों को अपनी पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारेंगे। इसके लिए बाबा ने बाकायदा अपने योग प्रशिक्षण शिविरों में योग शिक्षा के साथ-साथ राजनीतिक प्रवचन भी देने शुरू कर दिए हैं। इन प्रवचनों में अकसर निशाना नेहरू-गांधी परिवार होता है। इसी कारण रामदेव अब सीधे कांग्रेस के निशाने पर आ गये हैं। वह जिस काला धन के मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रहे हैं अब वही मुद्दा उनके गले की फांस बन गया है और कांग्रेस पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने रामदेव से कहा है कि उन्हें अपने ट्रस्ट, आश्रम और अपनी संपत्तियों की अपार वृद्धि के बारे में स्पष्टीकरण देना चाहिए।

बहुत तेजी से अरबों रुपए की संपत्ति के स्वामी बने रामदेव हालांकि यह कहते हैं कि उनकी कोई निजी संपत्ति नहीं है। लेकिन यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि उनका दिव्य योग ट्रस्ट सालाना करोड़ों रुपए कमा रहा है। 2007 में तहलका पत्रिका ने गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट को आधार बनाते हुए यह खुलासा कर सभी को चैंका दिया था कि रामदेव की सालाना आमदनी 400 करोड़ रुपए है। वैसे यह आमदनी हो भी क्यों न? आखिर रामदेव अपने योग शिविर में टिकट लगाते हैं जिसकी एवज में उन्हें कोई कर भी नहीं देना होता। साथ ही उनकी दिव्य फार्मेसी विभिन्न औषधियों का निर्माण कर भी भारी मुनाफा अर्जित करती है। यही नहीं मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कुछ टीवी चैनलों में भी बाबा रामदेव की कथित हिस्सेदारी बताई जाती है। रामदेव के हरिद्वार स्थित आश्रम में भी किसी का मुफ्त इलाज नहीं होता और इसके लिए लोगों को हजारों रुपए में शुल्क अदा करना पड़ता है। बाबा रामदेव पर कई राज्यों में मूल्यवान जमीन कौड़ियों के भाव लेने के आरोप भी लगते रहे हैं। यही नहीं बाबा के पास स्काॅटलेंड में एक आइसलेंड भी बताया जाता है जिसकी कीमत 2 मिलिय्ान पौंड है।

पंूजीपतियों का विरोध करने वाले रामदेव अप्रत्यक्ष रूप से खुद भी पूंजीपति ही हैं। यह सही है कि उन्होंने योग को देश-विदेश में विख्यात कर लोगों के इससे होने वाले लाभ से परिचित कराया लेकिन यह भी सही है कि रामदेव ने योग की मार्केटिंग कर खुद को नई बुलंदियों पर पहुंचा दिया। योग गुरु के रूप में देश विदेश में विख्यात हुए रामदेव जल्द ही ऐसे व्यक्ति बन गए जिसके एक इशारे पर दर्जनों मुख्यमंत्री उनके कार्यक्रम में शरीक होने लगे साथ ही अपने शिविरों में उमड़ती भीड़ की संख्या देखकर वे इतने गदगद हुए कि उन्हें योग सीखने आने वाले लोगों के रूप में वोटर दिखाई देने लगे और बाबा के मन में राजनीति में आने की इच्छा जागी। समस्याएं कहां नहीं होतीं? भारत में भी हैं, उन्हीं का हवाला देते हुए रामदेव ने लोगों को अपने राजनीतिक विचारों से अवगत कराना शुरू कर दिया। जिससे कांग्रेसी मुख्यमंत्री उनसे दूर हुए साथ ही भाजपा ने भी उन्हें अपने लिए खतरा जान उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी। क्षेत्रीय और वामपंथी दल वैसे भी उन्हें ज्यादा महत्व नहीं देते इसलिए रामदेव ने अपना ही राजनीतिक दल बनाने की सोची और आज ऐसा कर वे किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देने से नहीं चूकते।

लेकिन रामदेव शायद भूल गए हैं कि उनके पास जो भीड़ जुट रही है वह दरअसल उनके वोटर नहीं बल्कि अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए आए लोग हैं जो शायद ही उनके राजनीतिक विचारों से इत्तेफाक रखते हों। यदि जुटने वाली भीड़ संबंधित व्यक्ति के पक्ष में वोट डालती तो शायद ही कोई नेता चुनाव हारता। कल को कोई डाॅक्टर भी अपने यहां जुटने वाली भीड़ की संख्या देख कर चुनावों में उतरने का फैसला ले ले तो इसे सरासर बेवकूफी ही कहा जाएगा। रामदेव चाहे जितने बड़े योग गुरु हों लेकिन उनका राजनीतिक आधार कुछ भी नहीं है। यदि उन्होंने योग को लोकप्रिय बनाने की बजाए अब तक की अपनी मेहनत राजनीति के क्षेत्र में लगाई होती तो शायद उनका कुछ जनाधार हो भी जाता। उन्हें भाजपा से जुड़े संतों के राजनीतिक हश्र पर भी निगाह घुमा लेनी चाहिए।

यदि रामदेव हिन्दू वोटों के सहारे अपना बेड़ा पार लगाना चाहते हैं तो उन्हें यह भी देख लेना चाहिए कि यह नीति तो अथक प्रयासों के बाद भाजपा की भी सफल नहीं रही ऐसे में वह तो राजनीति के क्षेत्र में नौसखिया ही हैं। राजनीति का क्षेत्र रामदेव जी के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहां एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप में जिस भाषा का इस्तेमाल किया जाता है, वह उनके जैसे प्रबुद्ध और लोकप्रिय भारतीय नागरिक के लिए कष्टदायी होगा। राजनीति का क्षेत्र काजल की कोठरी है, यह बात उन्हें अब तक समझ आ ही गई होगी क्योंकि रामदेव का दामन भले कितना साफ हो लेकिन यहां मुख्यधारा में प्रवेश करने के साथ ही वह भी आरोपों के घेरे में आ गए हैं जिससे उनकी साफ छवि पर भी सवालिया निशान लग गया है। इसके अलावा हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एक कांग्रेस सांसद ने कथित तौर पर उन्हें सार्वजनिक रूप से अपशब्द कहे।

कुछ समय पहले मीडिया में रामदेव के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार होने की खबर भी चली थी। लेकिन रामकिशन यादव उर्फ रामदेव यदि यह सपना ले भी रहे हैं तो जनता जानना चाहेगी कि किस आधार पर? सामाजिक क्षेत्र में, उन्होंने यह सही है कि लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन इसके लिए उन्होंने फीस भी वसूली। अध्यात्म के क्षेत्र में उनका कोई योगदान नहीं है। राजनीति के क्षेत्र में वह बिल्कुल नए हैं और शैक्षणिक योग्यता की बात करें तो वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की शैक्षणिक योग्यता के आगे कहीं नहीं टिकते। मनमोहन सिंह के पास जहां देश विदेश की कई डिग्रियां हैं वहीं रामदेव ने हरियाणा के एक गांव स्थित स्कूल में आठवीं तक की कक्षा पास की और उसके बाद एक गुरुकुल में योग और संस्कृत की शिक्षा ली।

Monday, February 21, 2011

पुलिस में गुटबाजी से बदमाशों के हौसले बुलंद

पुलिस में गुटबाजी से बदमाशों के हौसले बुलंद




देहरादून।



राजधनी दून में पुलिस बदमाशों को पकडने के बजाए गुटबाजी में उलझती जा रही है। जिस कारण आम जनता पुलिस के दरबार में अपनी पफरियाद सुनाती हुई नजर आ रही है पिछले कापफी समय से राजधनी दून में गुटबाजी की मार झेल रही पुलिस बदमाशों को पूरी तरह खूली छूट दे रही है गुटबाजी के कारण ही एक दूसरे को नीचा दिखाने के चलते बदमाशों के हौसले भी बढ़ते नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों राजधनी दून में हुए शूटआउट के पीछे भी पुलिस की गुटबाजी भी देखने को मिली। अपने-अपने थाना क्षेत्रों में अपराधें को रोकने के बजाए पुलिस के दरोगा व कई बडे़ अध्किारी जहां पूरी तरह विपफल साबित हुए हैं वहीं कई मामलों में पुलिस के आला अध्किारियों तक को हस्ताक्षेप करना पड़ा है। बडे़ अध्किारियों के हस्ताक्षेप करने के बाद यह बात भी उजागर हो गई है कि पुलिस के दरोगा अपनी कार्य प्रणाली ठीक ढंग से नहीं निभा पा रहे हैं। जिसके चलते थाना क्षेत्रों में जनता को मिलने वाला न्याय भी पफरियाद लेकर आने वाले पफरियादी को नहीं मिल पा रहा है। एक तरपफ तो पुलिस मित्राता सुरक्षा का दावा करती हुई नजर आती है वहीं दूसरी तरपफ पुलिस के कई दरोगा थाना क्षेत्रों से ही मामलों को रपफा-दपफा करने का खेल खेलते नजर आ रहे हैं।

बीती रात थाना डालनवाला क्षेत्रा के अन्तर्गत सचिवालय के ठीक सामने हुई मारपीट व कातिलाना हमले में आध दर्जन लोगों ने एक व्यक्ति को चाकू व अन्य हथियारों से मौत के घाट उतारने का प्रयास किया लेकिन मौके पर पहुंची पुलिस ने उन्हें पकडने के बजाए रपफा-दपफा कर डाला। मौके से एक व्यक्ति को ही पकड़ कर थाना डालनवाला ले जाया गया लेकिन उसके अन्य साथियों को पुलिस नहीं पकड़ सकी जबकि करनपुर चैकी इंचार्ज उसके अन्य साथियों को पकडने के लिए उस स्थान पर गये थे जहां वे रूके हुए थे। लेकिन पुलिस उन्हें पकडने का साहस इसलिए नहीं जुटा सकी क्योंकि इस मामले में एक साहब की संलिप्ता मौजूद थी और साहब का लगातार थाना डालनवाला इंस्पेक्टर को पफोन पर आरोपियों को न पकडने की बात कहता रहा। अति संवेदनशील माने जाने वाले सचिवालय व पुलिस मुख्यालय के पास घटी घटना ने यह बात साबित कर दी की पुलिस के कुछ लोग इस तरह की घटनाओं को थाने से ही रपफा-दपफा करने का खेल खेलते नजर आ रहे हैं।



एक तरपफ तो पीड़ित को न्याय दिलाने की बात की जाती है लेकिन पुलिस के यह दावे पूरी तरह खोखले नजर आ रहे हैं। लगातार बढ़ रही इन घटनाओं में पुलिस हियूमन राईट्स का भी खुला उल्लंघन किया जा रहा है अगर प्रदेश में पुलिस से हियूमन राईट्स के बारे में जानकारी ली जाये तो चंद लोगों को ही इस बारे में बारिकी ज्ञान होगा। बदमाशों पर नकेल कसने की बात कहने वाले पुलिस के आला अध्किारी अब पूरी तरह खामोश होकर बैठ गये हैं और गुटबाजी का खेल इस तरह खेला जा रहा है जिससे पुलिस की छवि आपस में ही दागदार बन बैठी है। यहां तक की एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए आपस में ही मनमुटाव की बाते भी बढ़ती जा रही है जो उत्तराखण्ड की मित्रा पुलिस के लिए ठीक संकेत नहीं है। अगर समय रहते इस गुटबाजी को नहीं रोका गया तो बदमाश कुछ पुलिस अध्किारियों से सैटिंग कर सरेआम खूनी होली खेलते नजर आयेंगे।

पुलिस की कब्र खोदने की तैयारी!

पुलिस की कब्र खोदने की तैयारी!




देहरादून।



उत्तराखण्ड शासन के कुछ अध्किारी पूरे पुलिस विभाग की कब्र खोदने की तैयारी में जुट गये हैं वह पुलिस अध्किारियों के बीच नपफरत का जो बीज बोने के मिशन में लगे हुए हैं अगर उस मिशन को उत्तर प्रदेश की तर्ज पर इस राज्य में अंजाम दे दिया गया तो पुलिस विभाग में विद्रोह की आग कभी भी भड़क उठेगी जिसकी लपटों से पूरा पुलिस महकमा सुलग जायेगा। सवाल उठ रहा है कि नये व पुराने पुलिस कप्तानों से जिस तरह बडे जिले छीनकर उनके स्थान पर डीआईजी स्तर के अधिकारियों को बिठाने का तानाबाना बुना जा रहा है वह राज्य में बगावत की चिंगारी सुलगाने की तरपफ इशारा करता है। नये व पुराने आईपीएस अब शासन के होने वाले निर्णय पर अपनी निगाहें जमाये हुए हैं।

उल्लेखनीय है कि शासन के कुछ अध्किारी प्रदेश पुलिस की कब्र खोदने के लिए ऐसी योजना बनाने के मिशन में जुटे हुए हैं जिससे कि पुलिस महकमें में कभी भी विद्रोह की ज्वाला भड़क सकती है। देखने में आ रहा है कि जब से कुछ बडे जिलो में रैंकर आईपीएस अध्किारियेां की तैनाती हुई है वह शासन के कुछ अध्किारियों की आंखों में लगातार खटक रही है। इसी के चलते उन्होंने इन बडे जिलों से रैंकर आईपीएस अध्किारियेां को हटवाने के लिए गुप्त रूप से तानाबाना बुन लिया है इसी कडी के चलते उन्होंने यह योजना तैयार की है कि तीन बडे जिलों, दून, हरिद्वार व उध्मसिंह नगर में डीआईजी रैंक के अध्किारियेां को तैनाती दे दी जाये। इस योजना को जो चंद अधिकारी अमलीजामा पहनाने के मिशन में लगे हुए हैं वह इस छोटे से राज्य के लिए कापफी घातक हो सकता है। शासन के यह चंद अध्किारी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखण्ड में भी कुछ बडे जिलों केा डीआईजी के हवाले करने का जो तानाबाना बुन रहे हैं उससे पुलिस के छोटे अध्किारियों में एक विद्रोह की भावना देखने केा अभी से मिलने लगी है। भले ही यह योजना अभी कागजों में चल रही हो लेकिन जिस तेजी के साथ इस योजना का पूरे राज्य के अन्दर प्रचार हुआ है वह कहीं न कहीं पुलिस विभाग की कब्र खेादने की तैयारी की ओर इशारा कर रहा है। पुलिस महकमें में यहां तक चर्चाएं हैं कि दून में संजय गुज्याल को डीआईजी के पद पर आसीन करने की कवायद की जा रही है तथा अब तक एसटीएपफ में एसएसपी के पद पर तैनात रहे डीआईजी अमित सिन्हा को हरिद्वार का डीआईजी बनाये जाने पर भी तेजी से मंथन शासन में बैठे कुछ अध्किारी करने में लगे हुए हैं। वहीं कई जिलों में पुलिस कप्तान की बागडोर संभाल चुके डीआईजी अभिनव कुमार को उध्मसिंह नगर का डीआईजी बनाये जाने के लिए भी मंथन शासन में बैठे चंद अध्किारी करने में जुटे हुए हैं। हालांकि अभी इस बात की भनक नहंी लग पाई है कि जिन अध्किारियेां को बडे जिलों में डीआईजी के पद पर भेजने के लिए मंथन चल रहा है उन्होंने शासन में बैठे कुछ अध्किारियों की इस कार्यवाही का समर्थन किया है या नहीं?



शासन में बैठे कुछ अध्किारी जिस तरह से पुराने व नये आईपीएसों के साथ भेदभाव करने का खाका तैयार करने में जुटे हुए हैं वह इस राज्य के लिए कापफी खतरनाक साबित हो सकता है। राज्य में आये कुछ नये आईपीएस व रैंेकर पुलिस कप्तानों में इस योजना को लेकर हालांकि अभी विद्रोह की भावना देखने को नहंी मिल रही है लेकिन पीपीएस रैंक के कई अध्किारियेां का सापफ कहना है कि अगर इस राज्य में एसएसपी के स्थान पर डीआईजी को जनपदों में तैनात करना है तो प्रदेश के सभी पीपीएस अध्किारियों को बर्खास्त करके घर भेज देना चाहिए क्योंकि जिस तरह से इस राज्य में उत्तर प्रदेश की परिपार्टी अपनाने के लिए शासन के कुछ अध्किारी खेल खेलने के मिशन में जुटे हुए हैं उन्होंने अगर अपनी इस योजना को अमलीजामा पहनाने का सपना पूरा किया तो यह तय है कि वह भी किसी कीमत पर चुप बैठने वाले नहीं हैं। पुलिस मुख्यालय में बैठे कुछ बडे अधिकारियेां का कहना है कि शासन के जो चंद अध्किारी बडे जिलों में डीआईजी को बैठाने के लिए रणनीति बना रहे हैं उससे आने वाले समय में पुलिस के अन्दर विद्रोह की चिंगारी भड़क जायेगी जो कि इस शांतप्रिय प्रदेश के लिए खतरनाक साबित होगी।

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Saturday, February 12, 2011

कंग्रेस के विभीशण तिवारी ने भाजपा को दिए गुरूमंत्र


भाजपाई रैली में तिवारी की मौजूदगी से कांग्रेसी धराषाही

नारायण परगांई
 देहरादून। नितिन गडकरी की रैली से षुरू हुआ भाजपा का चुनावी श्रीगणेष कांग्रेस के विभीशण कहे जाने वाले तिवारी की मौजूदगी से राजनैतिक गति पकड़ गया है। तिवारी की भाजपा की रैली में मौजूदगी ने जहां प्रदेष की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है वहीं कांग्रेसी एनडी तिवारी की इस हरकत से सकते में आ गए हैं। आगामी विधनसभा चुनाव को देखते हुए तिवारी के इस कदम को कांग्रेस के लिए  बेहद खतरनाक माना जा रहा है। प्रदेष के विकास पुरूश कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्राी एनडी तिवारी ने बीते दिवस देहरादून के गांध्ी पार्क में भाजपा की अटल खाद्यान योजना को देष के लिए अच्छा कदम बताने के साथ-साथ इसे उत्तराखंडके लिए भी महत्वपूर्ण बताने की बात खुले मंच से भाजपा के हजारों कार्यकर्ताओं के बीच कह डाली थी जिसे सुनकर प्रदेष भर के कांग्रेसी नेताओं में हड़कंप मच गया था। यहां तक की प्रदेष की मौजूजा भाजपा सरकार की खुलकर तारीफ करने के बाद खुद भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी तिवारी की तारीफ खुले मंच से कर डाली। राजनैतिक हलकों में यह बातें जहां चार्चा का विशय बनी हुई हैं वहीं काग्रेसी नेताओं की नींद भी उड़ गई है। पिछले काफी समय से राज्यपाल पद पर बने रहने के दौरान सैक्स स्कैंडल में नाम सामने आने पर तिवारी से कांग्रेस ने पूरी तरह किनारा कर लिया था। और तभी से तिवारी कांग्रेस में असहज महसूस कर रहे थे। यहां तक की दिल्ली हाई कमान तक ने तिवारी की बात को अनसुना करते हुए उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया था। और राज्यपाल पद से इस्तीपफा देने के बाद तिवारी देहरादून का रूख कर गए थे। जिसके बाद से ही तिवारी अपने को कांग्रेस में असहज महसूस कर रहे थे। पितृत्व मामले में कोर्ट में दाखिल याचिका को लेकर भी तिवारी कांग्रेस से खासे नाराज चल रहे हैं। कोर्ट में तिवारी की डीएनए टेस्ट ना कराने की याचिका को भी खारिज कर दिया गया है। और अब तिवारी के उपर डीएनएटेस्ट कराने की तलवार भी लटकी पड़ी है। उत्तराखंड की राजनीति में तिवारी का कद बेहद उंचा माना जाता है। और तिवारी ने इस बात को पिछले हुए विधनसभा चुनाव में चुनाव प्रचार ना करके इस बात को सााबित भी किया जा चुका है। तिवारी के प्रचार ना करने से कांग्रेस को उत्तराखंड में सत्ता गंवाने का परिणाम भुगतना पड़ा था वहीं अब तिवारी के भाजपा की रैली में षामिल होने के बाद प्रदेष की राजनीति में नए समीकरण बनने तय हो गए हैं। तिवारी के भाजपा की रैली में आ जाने के बाद इसका नुकसान जहां कांग्रेस को 2012 के होने वाले विधनसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है वहीं भाजपा को इसका पफायदा मिलना तय माना जारहा है। तिवारी के अचानक भाजपा की रैली में पहुंचने के पीछे कांग्रेस को बैकपुट पर लाने की कवायद भी समझा जा रहा है लेकिन तिवारी के खास माने जाने वाले कांग्रेस प्रदेष अध्यक्ष यषपाल आर्या पर भी अगुलियां उठनी षुरू हो गई हैं। क्यिोंकि तिवारी को यषपाल आर्या मना पाने में पूरी तरह नाकामयाब षाबित हुए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा की रैली में षामिल होने के बाद तिवारी के आवास पर कई कांग्रेसी नेताओं ने डेरा जमा लिया था। लेकिन तिवारी ने सापफ तौर पर कांग्रेसी नेताओं को उनसे दूर रहने की हिदायत दी गई है। कुलमिलाकर उत्तराखंड की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले तिवारी कांग्रेस में हासिए पर चल रहे हैं और नई जमीन तलासने की कवायद में लगे हुए हैं। अगर तिवारी ने भाजपा से हाथ मिला लिया तो उत्तराखंड की राजनीति में बहुत बड़ा परिवर्तन होना तय माना जा रहा है अपने मुख्यमंत्राी काल के अनुभव का लाभ वह जहां भाजपा को दे सकते हैं वहीं 2012 में पुनः सत्ता में भाजपा की वापसी का कदम भी तैयार कर सकते हैं। एक तरफ जहा भाजपा विकास को आधर बना कर चुनावी युद्ध् में कूद गई है वहीं गरीबों को सस्ता राषन उपलब्ध् कराने की योजना ने भी प्रदेष की गरीब जनता का रूझान भाजपा की ओर मोड़ दिया है। हांलाकि कई कांग्रेसी नेता इस महत्वपूर्ण योजना की आलोचना करते हुए देखे जा रहे हैं लेकिन गरीबजनता इस बातों की तरफ कोई प्रदेष की गरीब जनता का रूझान भाजपा की ओर मोड़ दिया है। हांलाकि कई कांग्रेसी नेता इस महत्वपूर्ण योजना की आलोचना करते हुए देखे जा रहे हैं लेकिन गरीबजनता इस बातों की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही। कुलमिलाकर यह कहा जाए कि कांग्रेस के विभिशण ने भाजपा की रैली में जाकर कल्याणकारी राजा के कदमों को और अध्कि मजबूद कर दिया है। जिसका फायदा निष्चिित रूप् से भाजपा को मिलना तय है। 09837261570

Wednesday, February 9, 2011

विकास को लगेगे पंख, जनता की होगी बल्ले बल्ले।

डा निषंक अपने मुख्यमंत्री काल का तीसरा बजट करेंगे पेष।


नारायण परगांई। देहरादून। प्रदेष में विकास को पंख, जनता की समस्याओं को दूर करने का जज्बा, विकास की परिकल्पना, आदर्ष राज्य का सपना, और 2012 में पुनः सत्ता वापसी का चक्रव्यूह कुछ इसी तरह की कई बातों को लेकर प्रदेष के मुख्यमंत्री डा.रमेष पोखरियाल निषंक ने खाका तैयार कर अपना होमवर्क षुरू कर दिया है। महज तीन घंटे का विश्राम करने वाले सबसे युवा सीएम देष के लिए एक मिसाल बनने की ओर लगातार अग्रसर होते जा रहे हैं। इसके साथ ही प्रदेष में सबसे अधिक कैबिनेट बैठक कराने का श्रेय भी कुषल नेतृत्व के धनी डा़ निषंक को जाता है। यदि प्रदेष की जनता ने पुनः जन संदेष दिया तो उत्तराखण्ड को आदर्ष राज्य के रूप में देष के सामने प्रस्तुत करने का निषंक का सपना जरूर पूरा होगा। और राज्य की पहचान देष के सामने और अधिक विकसित व मजबूत होगी।

चुनावी साल होने के कारण जहां प्रदेष के मुख्यमंत्री अपने मुख्यमंत्री काल का वर्तमान सरकार का तीसरा बजट विधान सभा में पेष करेगे वही विपक्षी सवालों को भी कुंद कर डालेगे। प्रदेष में 16000 से भी अधिक राजस्व गांव मौजूद होने के बाद भी 11000 गांव को सड़क मार्ग से जोड़ा जा चुका है और षेश पांच से छः हजार गांव को 50 प्रतिषत स्वीकृती प्रदान कर दी गई हैं। इसके साथी ही ढाइ हजार से तीन हजार राजस्व गांव को अलग अलग योजनाओ से जोड़े जाने पर विचार चल रहा है। इन गांवों के सड़क मार्ग से जुड़ जाने के बाद जहां गांव पहुचने का रास्ता सुगम व जल्द पहुंचने का होगा वहीं क्षेत्र की जनता को भी इसका भरपूर लाभ मिलेगा। 500 से अधिक आबादी वाले गांव को जोड़े जाने काम पीएमवीआरआई योजना के साथ साथ अन्य योजनाओ के माध्यम से चल रहा है और 250 से कम आबादी वाले गावं को मुख्यमंत्री सड़क योजना एवं संयोजकता योजना के माध्यम से चिन्हित किया जा रहा है। वर्तमान में इन स्थानो पर सड़क निर्माण ना हो पाने कारण अधिक समय लगता है लेकिन यदि दूरस्त गांव में लघु पुलिया का निर्माण कर दिया जाए तो यहां पहुंचने में समय कम लगेगा। प्रदेष सरकार 250 से कम आबादी वाले गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने पर युद्व स्तर पर काम कर रही है। और इसके साथ ही प्रदेष में दस रेलवे का्रसिंग के उपर ओवर ब्रिज बनाए जाने के प्रस्ताव भारत सरकार के रेल मंत्रालय को भेजे चुके हैं। इसके साथ ही हरिद्वार, रूड़की व डाट मंदिर के पास टर्नर बनाने का प्रस्ताव भी भेजा गया है। और नैषनल हाइवे का सूद्रीकरण एवं नवीनीकरण करने के लिए विषेश योजनाओ का आधीन 450 करोड़ की योजनाएं केंद्र सरकार का भेजी गई हैं। 250 से कम आबादी के असंयोजिक गांव के आंकड़ो अगर नजर दौड़ाई जाए तो गढ़वाल मंडल के पौढ़ी जनपद में सबसे अधिक 24 48 गांव की कुल संख्या है। जबकि कुमाउ मंडल के अल्मोड़ा जनपद में 1325 संख्या दूसरे नम्बर पर मौजूद है। इसके साथ ही 250 से कम आबादी के असंयोजित गांव को स्वीकृत मार्गाें से जोड़ा जा चुका है। जिसमें उत्तरकाषी में 88, देहरादून मेे 67, टिहरी में 181, पौढ़ी में 503, चमोली में 239, रूद्रप्रयाग में 101, पिथौरागढ़ में 253, चम्पावत में 90, अल्मोडत्रा मे 494, बागेष्वर में 231, नैनीताल में 56 है। इसके साथ ही प्रदेष सरकार अपने संसाधनों से झूलापुलों के निर्माण को भी अच्छा विकल्प मानकर चल रही है। षासन में बैठे सचिव उत्पल कुमार के अनुसार प्रदेष सरकार तेज गति से गांव को सड़क मार्ग से जोड़ने का काम कर रही है जिससे दूरस्त रहने वाले गांव मे ंपहुचने केलिए जो समय बरबाद होता है वो इनके सड़क मार्ग जुड़ जाने के बाद नही होगा उसके साथ ही इन क्षेत्रो में विकास के आयाम तेज गति से पहुचने षुरू हो जाएंगे उन्हांनं बताया कि केंद्र सरकार को कई नए प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं हजने स्वीकृत होने के बाद प्रदेष में विकास को नए पंख लगने षुरू हो जाएंगे।
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