तो क्या विज्ञापन एजेन्सी विभाग में सूचीबद्व नहीं... तो किसी कृपा से जारी किए विज्ञापन...?
देहरादून। उत्तराखण्ड के सूचना विभाग का विवादित चेहरा हमेषा बरकरार रहा है। विभाग में अधिकारियो की आपसी लड़ाई हो या फिर समाचार पत्रो को विज्ञापन देने का खेल, सभी मामालो में विभाग के विवादित चेहरे हमेषा ही सरकार की किरकिरी कराते रहे हैं। आपदा के दौरान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की किरकिरी कराने वाले पूर्व डीजी विनोद षर्मा को विभाग से हटा दिया गया था और इसकी गाज सूचना विभाग के अपर निदेषक अनिल चंदोला पर भी गिरी थी, चंदोला को सूचना निदेषालय से हटाकर हल्द्वानी के मीडिया सैंटर में तबादला कर भेज दिया गया था लेकिन इसके बाद भी सूचना विभाग में विज्ञापनो का खेल थमने का नाम नही ले रहा। चहेते टीवी चैनलो को मनमांगे रेट पर विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं और सरकार को करोड़ो का चूना लगाकर धन की हानि की जा रही ळै इतना ही नही कई इलैक्टाॅनिक चैनलो को सीधे विज्ञापन जारी किए गए हैं जबकि कुछ को एजेन्सी के द्वारा विज्ञापन का खेल खेलकर कमीषन की लूट सूचना विभाग में अभी भी बेरोकटोक जारी है। इस बात का पता तब चला जब कुछ इलैक्टाॅनिक चैनलो को सीधे विज्ञापन के रूप में दस मिनट का विज्ञापन पचास हजार रूप्ए प्रति दस सैकेन्ड के हिसाब से एक दिन में दो बार जारी किया गया लेकिन कुछ चैनलो को यह विज्ञापन उर्धवा एडवर्टटाइजिंग एजेन्सी के माध्यम से जारी किया गया। चूंकि विज्ञापन में एड एजेन्सी का 15 प्रतिषत का कमीषन फिक्स होता है और यह रकम सूचना विभाग के किन अधिकारियो के बीच बंटी इसकी जांच भी की जानी जरूरी है जबकि खुद मुख्यमंत्री ने विभिन्न इलैक्टाॅनिक चैनलो व समाचार पत्रो को सीधे विज्ञापन जारी किए जाने के निर्देष पूर्व में जारी किए थे लेकिन मुख्यमंत्री के इन निर्देर्षो को किसके इषारे पर पलीता लगाया गया और मुख्यमंत्री की छवि को एक बार फिर धूमिल करने का प्रयास मीडिया को गुटो में बांटकर करने का काम किया गया इसकी जांच भी निष्चित रूप से खुद मुख्यमंत्री को करनी चाहिए। वर्तमान में सूचना विभाग के अंदर अनबन अभी भी जारी है और सूचना विभाग के संयुक्त निदेषक राजेष कुमार के पास विज्ञापन जारी किए जाने की जिम्मेदारी भी आ गई है अब निदेषक के बाद राजेष कुमार को विज्ञापन जारी किए जाने का अधिकार मिलने के बाद एक गुट नाराज हो गया है बताया जा रहा है कि पूर्व में विज्ञापन के आरओ काटे जाने की जिम्मेदारी सहायक निदेषक भगतसिह रावत के पास मौजूद थीे लेकिन बीते दिनो टीवी चैनल को विज्ञापन जारी किए जाने के दौरान भगतसिंह रावत द्वारा फाइल पर अनमोदन लाने की बात कहने पर ही आरओ जारी किए जाने की बात कही गई थी और उक्त टीवी चैनल को विज्ञापन जारी नही हो सका था बस इसी बात से साहब का पारा चढ़ गया और तुरन्त इसकी षिकायत उपर तक कर दी गई जिसके बाद भगतसिंह रावत से आरओ काटने की जिम्मेदारी छीन ली गई और यह जिम्मेदारी संयुक्त निदेषक राजेष कुमार को सौंप दी गई। सूचना विभाग में विज्ञापन का घोटाले की बू काफी समय से चली आ रही है और सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या जिस एजेन्सी के माध्यम से सूचना विभाग विज्ञापन जारी का रहा है वह एजेन्सी विभाग में सूचीबद्व है या नहीं जबकि एजेन्सी को सूचना विभाग मे सूचीबद्व होने के साथ डीएवीपी में भी सूचीबद्व होना जरूरी है अब बिना विभाग में सूचीबद्व किए ही एजेन्सी किस आधार पर विज्ञापन जारी कर रही है इसकी जांच भी की जानी जरूरी है सूचना विभाग के नए निदेषक व सचिव को इस मामले में जानकारी है या नही इसकी भी जांच की जानी जरूरी है कहीं ऐसा तो नही सूचना विभाग का कोई अधिकारी आंखो में धूल झोंककर खुद कमीषन को खेल खेल रहा है। सूचना विभाग में गड़बड़ी का गड़बड़ झाला कोई नया नहीं यहां हर कोई अपनी हैसियत के हिसाब से अपना कमीषन पक्का करता है और ईमानदार अधिकारी व कर्मचारियो की फौज बेहद कम है इन इमानदार लोगो को या तो कुर्सी पर नही रहने दिया जाता या फिर उनको वो काम नही सौंपा जाता जिसके वह लायक हैं। समय रहते उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सूचना विभाग मे पारदर्षी तरीके से विज्ञापन जारी किए जाने का खाका तैयार नही किया तो यह मीडिया को दो गुटो में बांटे जाने का खेल साबित हो सकता ळै और इस मकसद में वो लोग कायमाब हो सकते ळैं जो मुख्यमंत्री की छवि को मीडिया के भीतर बदनाम करना चाहते हैं। अब मुख्यमंत्री इस पूरे प्रकरण की जांच कर दोशी लोगो के खिलाफ क्या कार्यवाही करते हैं इसका इन्तजार सूचना विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी कर रहे हैं।
देहरादून। उत्तराखण्ड के सूचना विभाग का विवादित चेहरा हमेषा बरकरार रहा है। विभाग में अधिकारियो की आपसी लड़ाई हो या फिर समाचार पत्रो को विज्ञापन देने का खेल, सभी मामालो में विभाग के विवादित चेहरे हमेषा ही सरकार की किरकिरी कराते रहे हैं। आपदा के दौरान मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की किरकिरी कराने वाले पूर्व डीजी विनोद षर्मा को विभाग से हटा दिया गया था और इसकी गाज सूचना विभाग के अपर निदेषक अनिल चंदोला पर भी गिरी थी, चंदोला को सूचना निदेषालय से हटाकर हल्द्वानी के मीडिया सैंटर में तबादला कर भेज दिया गया था लेकिन इसके बाद भी सूचना विभाग में विज्ञापनो का खेल थमने का नाम नही ले रहा। चहेते टीवी चैनलो को मनमांगे रेट पर विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं और सरकार को करोड़ो का चूना लगाकर धन की हानि की जा रही ळै इतना ही नही कई इलैक्टाॅनिक चैनलो को सीधे विज्ञापन जारी किए गए हैं जबकि कुछ को एजेन्सी के द्वारा विज्ञापन का खेल खेलकर कमीषन की लूट सूचना विभाग में अभी भी बेरोकटोक जारी है। इस बात का पता तब चला जब कुछ इलैक्टाॅनिक चैनलो को सीधे विज्ञापन के रूप में दस मिनट का विज्ञापन पचास हजार रूप्ए प्रति दस सैकेन्ड के हिसाब से एक दिन में दो बार जारी किया गया लेकिन कुछ चैनलो को यह विज्ञापन उर्धवा एडवर्टटाइजिंग एजेन्सी के माध्यम से जारी किया गया। चूंकि विज्ञापन में एड एजेन्सी का 15 प्रतिषत का कमीषन फिक्स होता है और यह रकम सूचना विभाग के किन अधिकारियो के बीच बंटी इसकी जांच भी की जानी जरूरी है जबकि खुद मुख्यमंत्री ने विभिन्न इलैक्टाॅनिक चैनलो व समाचार पत्रो को सीधे विज्ञापन जारी किए जाने के निर्देष पूर्व में जारी किए थे लेकिन मुख्यमंत्री के इन निर्देर्षो को किसके इषारे पर पलीता लगाया गया और मुख्यमंत्री की छवि को एक बार फिर धूमिल करने का प्रयास मीडिया को गुटो में बांटकर करने का काम किया गया इसकी जांच भी निष्चित रूप से खुद मुख्यमंत्री को करनी चाहिए। वर्तमान में सूचना विभाग के अंदर अनबन अभी भी जारी है और सूचना विभाग के संयुक्त निदेषक राजेष कुमार के पास विज्ञापन जारी किए जाने की जिम्मेदारी भी आ गई है अब निदेषक के बाद राजेष कुमार को विज्ञापन जारी किए जाने का अधिकार मिलने के बाद एक गुट नाराज हो गया है बताया जा रहा है कि पूर्व में विज्ञापन के आरओ काटे जाने की जिम्मेदारी सहायक निदेषक भगतसिह रावत के पास मौजूद थीे लेकिन बीते दिनो टीवी चैनल को विज्ञापन जारी किए जाने के दौरान भगतसिंह रावत द्वारा फाइल पर अनमोदन लाने की बात कहने पर ही आरओ जारी किए जाने की बात कही गई थी और उक्त टीवी चैनल को विज्ञापन जारी नही हो सका था बस इसी बात से साहब का पारा चढ़ गया और तुरन्त इसकी षिकायत उपर तक कर दी गई जिसके बाद भगतसिंह रावत से आरओ काटने की जिम्मेदारी छीन ली गई और यह जिम्मेदारी संयुक्त निदेषक राजेष कुमार को सौंप दी गई। सूचना विभाग में विज्ञापन का घोटाले की बू काफी समय से चली आ रही है और सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या जिस एजेन्सी के माध्यम से सूचना विभाग विज्ञापन जारी का रहा है वह एजेन्सी विभाग में सूचीबद्व है या नहीं जबकि एजेन्सी को सूचना विभाग मे सूचीबद्व होने के साथ डीएवीपी में भी सूचीबद्व होना जरूरी है अब बिना विभाग में सूचीबद्व किए ही एजेन्सी किस आधार पर विज्ञापन जारी कर रही है इसकी जांच भी की जानी जरूरी है सूचना विभाग के नए निदेषक व सचिव को इस मामले में जानकारी है या नही इसकी भी जांच की जानी जरूरी है कहीं ऐसा तो नही सूचना विभाग का कोई अधिकारी आंखो में धूल झोंककर खुद कमीषन को खेल खेल रहा है। सूचना विभाग में गड़बड़ी का गड़बड़ झाला कोई नया नहीं यहां हर कोई अपनी हैसियत के हिसाब से अपना कमीषन पक्का करता है और ईमानदार अधिकारी व कर्मचारियो की फौज बेहद कम है इन इमानदार लोगो को या तो कुर्सी पर नही रहने दिया जाता या फिर उनको वो काम नही सौंपा जाता जिसके वह लायक हैं। समय रहते उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सूचना विभाग मे पारदर्षी तरीके से विज्ञापन जारी किए जाने का खाका तैयार नही किया तो यह मीडिया को दो गुटो में बांटे जाने का खेल साबित हो सकता ळै और इस मकसद में वो लोग कायमाब हो सकते ळैं जो मुख्यमंत्री की छवि को मीडिया के भीतर बदनाम करना चाहते हैं। अब मुख्यमंत्री इस पूरे प्रकरण की जांच कर दोशी लोगो के खिलाफ क्या कार्यवाही करते हैं इसका इन्तजार सूचना विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी कर रहे हैं।