Wednesday, November 19, 2008

............ ३५ हज़ार .. महिलाऊ के साथ सोया

क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो अपनी 82 साल की उम्र में कुल 35 हजार महि


लाओं के साथ हमबिस्तर हुए। यह सनसनीखेज़ दावा एक डॉक्युमंट्री में किया गया है। यह डॉक्युमंट्री जल्द ही दिखाई जाएगी। फिल्म मेकर इऐन हैल्पेरिन के मुताबिक , ' कास्त्रो 40 सालों तक हर दिन कम से कम दो महिलाओं के साथ रोज़ सोते रहे। उन्हें लंच के तौर पर एक महिला के साथ सोते थे जबकि डिनर में दूसरी महिला महिला के साथ सोना पसंद करते थे। कभी-कभी तो उन्हें ब्रेकफस्ट में भी एक महिला की जरूरत पड़ती थी। ' कास्त्रो ने अपने प्रेज़िडंट होने का खूब फायदा उठाया। गौरतलब है कि फिदेल कास्त्रो दिसंबर 1959 से लेकर फरवरी 2008 तक क्यूबा की सत्ता पर काबिज़ रहे। इसी साल फरवरी में कास्त्रो ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। क्यूबा के तानाशाह बातिस्ता के खिलाफ क्रांति के फलस्वरूप कास्त्रो सत्ता में आए थे। हालांकि कास्त्रो के सत्ता में आने के तुरंत बाद ही अमेरिकी शासन उनके पीछे पड़ गया था लेकिन कास्त्रो के पद छोड़ने तक अमेरिका कम से कम 9 प्रेज़िडंट देख चुका था।

Tuesday, November 18, 2008

...... प्यार तो होता है ........ पर कोई करता नही...


इसमें कोई शक नहीं कि पुरुष पत्नी
या गर्लफेंड को दिल से चाहते हैं , लेकिन कभी कभार उन्हें उनसे चिढ़ भी होती है। और , इसकी वजह है कुछ आदतें , जिनसे पुरुषों को काफी कोफ्त होती है ... ड्रामेबाजी से दूरी भली आमतौर पर पुरुष ड्रामा करने वालीं महिलाओं से दूर भागते हैं। फिर महिलाएं भी अपनी जिंदगी के हर क्षण को उसी तरह इन्जॉय करना पसंद करती हैं , जिस तरह पुरुष करते हैं। बुराई सुनना पसंद नहीं पुरुषों को अपनी पत्नी या महबूबा के मुंह से किसी अन्य महिला की बुराई सुनना भी अच्छा नहीं लगता। यह एक जांचा - परखा हुआ सच है कि लेडीज दूसरी महिलाओं को अपना कट्टर प्रतिद्वंद्वी मानती हैं , पर यह हमेशा याद रखना चाहिए कोई महिला किसी दूसरे की बुराई कर पुरुषों का दिल नहीं जीत सकती। अगर कोई महिला किसी दूसरी महिला की ड्रेंस सेंस और जूतों को निशाना बनाती है तो वह महिला पुरुषों में लोकप्रिय नहीं हो सकती। ईर्ष्या से आपसी संबंधों में दरार महिलाओं के ईर्ष्यालु स्वभाव से पुरुषों को काफी कोफ्त होती है। यह कहना गलत है कि ईर्ष्या से आपसी संबंधों को नई जिंदगी मिलती है , बल्कि इससे गहरे संबंधों में भी दरार आ जाती है। जब लाइफ पाटर्नर में से कोई एक अपने साथी पर अविश्वास करने लगता है , तभी संबंध बिगड़ते हैं। शंकालु महिलाओं के साथ गुजारा कठिन पुरुषों को हर समय इमोनशल सपोर्ट के लिए अपनी ओर देखनी वाली महिलाएं भी पसंद नहीं होती। पुरुषों को महिलाओं के शक्की स्वभाव से काफी कोफ्त होती है। पुरुष सोचते हैं कि शक करने वाली महिलाओं के साथ गुजारा करना तो हर समय अपनी मनमर्जी चलाने वाली महिलाओं से भी ज्यादा तकलीफदेह होता है। बार - बार एक ही सवाल पुरुषों को अपने पार्टनर से एक ही बात बार - बार सुनना कतई अच्छा नहीं लगता। आमतौर पर महिलाओं का सवाल होता है , आप क्या सोच रहे हैं ? इससे उन्हें यह आशा होती है कि वह पुरुष उनके सामने अपने दिल की भावनाएं उंडेल कर रख देंगे , लेकिन होता इसके उलट है। अपने लिए कब टाइम निकालें ? कुछ महिलाएं चाहती हैं कि उनके पति दफ्तर के समय या काम खत्म होने के बाद सारा वक्त केवल उन्हीं के साथ गुजारें , लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि उनके पति को भी तो अपने लिए कुछ समय चाहिए। यह एक तरह से पुरुषों की प्राइवेट लाइफ में दखल है। इसके लिए महिलाएं अपने पति की मौजूदगी में रिश्तेदारों से पूछना शुरू कर देती हैं कि आपके पति खाली समय में क्या करते हैं , जो किसी भी गैरतमंद आदमी को बुरा लगेगा। महिलाएं अपने पति की जेब से बिना पूछे पैसे आदि निकाल लेती हैं। इससे भी वह परेशान होते हैं। आंसू बहाना पसंद नहीं हर समय भावनाओं के समंदर में बहने वाली महिलाएं भी पतियों को पसंद नहीं आती। पुरुषों को लगातार आंसू बहाने वाली और बात - बात पर गुस्सा करने वाली व तुनकमिजाज महिलाएं भी पसंद नहीं होतीं। कितनी बार करें शॉपिंग ? पुरुषों को बार - बार शॉपिंग के लिए पत्नी के साथ जाना पसंद नहीं होता। जब पत्नियां पतियों से शॉपिंग पर बार - बार जाने की जिद करती है तो पुरुषों को वाकई परेशानी होती है। बातूनी व्यवहार से परेशानी पत्नी का जरूरत से ज्यादा बोलना भी पतियों को नागवार गुजरता है। महिलाएं किसी बात की जड़ तक पहुंचकर ही मानती हैं , जबकि पुरुषों को गैर जरूरी बात सुनना तक नापसंद होता है। पार्टनर को सजा देना गलत पत्नियां पति को सजा देने के लिए कई तरीके अपनाती हैं। कुछ दिन के लिए पति को छोड़कर चले जाना या रूठकर पूरी तरह साथ न निभाना भी उनमें से एक है , लेकिन कई बार यह दांव उलटा पड़ जाता है और गृहस्थी तहस - नहस हो जाती है। क्या आपको भी पार्टनर की इन आदतों से चिढ़ होती है ? या फिर , आप किसी और बात से चिढ़ते हैं ............

उम्र भले बढ़ जाए, पर बूढ़ा नहीं होता प्यार



रोमैंस का उम्र से कोई संबंध नहीं होता। एक दिलचस्प रिसर्च में कहा गया है कि व्यक्ति में रोमैंस
करने की इच्छा कभी खत्म नहीं होती। यानी शादीशुदा जोड़े भले ही कई साल साथ रहे हों, लेकिन हनीमून कभी खत्म नहीं होता। रिसर्च के दौरान 10 महिलाओं और सात पुरुषों के दिमागों का अध्ययन किया गया। ये लोग अब भी अपने पार्टनरों से उतना ही प्यार करते थे, जितना कि 21 साल की उम्र में। रिसर्च के दौरान इन लोगों को अपनी पार्टनरों की तस्वीरें दिखाई गईं। वॉशिंगटन में हुई स्टडी में नतीजा निकला कि काफी पुराने हो चुके रिश्ते भी उतने ही करीबी और रोमैंटिक हो सकते हैं जितने कि नया-नया प्यार। न्यू यॉर्क के स्टेट यूनिवर्सिटी के साइकॉलजिस्ट आर्थर एरोन ने कहा कि यह एक सच है। ब्रेन स्कैनिंग में यही बात सामने आई है। कई और रिसर्चों में यह बात सामने आई थी कि रोमैंटिक लव 12-15 महीनों में खत्म हो जाता है। लेकिन यह गलत साबित हो गया है। रटगर्स यूनिवर्सिटी के एंथ्रोपॉलजिस्ट हेलन फिशर कहते हैं कि अगर आप दुनिया भर के लोगों से पूछेंगे कि क्या प्यार हमेशा जिंदा रह सकता है? वह यह कहेंगे, शायद नहीं। कई किताबें भी यह बात कहती हैं। लेकिन हम इस बात को गलत साबित कर रहे हैं। इस रिसर्च से पता चलता है कि लंबे समय तक चलने वाले रिश्तों में नए प्यार के प्रति आकर्षण और उत्साह नहीं होता।

Monday, November 17, 2008

पत्रकरिता का गिरता इस्टर कितना ठीक है


आजादी की लड़ाई के दौर में और उसके बाद भी प्रेस की भूमिका लोकतंत्र औरसमाज के पहरेदार की थी। अखबार लोकतंत्र का चौथा स्तंभ था और मिशन भी।तमाम परिवर्तनों और पतन के बावजूद ८क् के दशक तक यह स्थिति कायम रही।लेकिन उसके बाद ग्लोबलाइजेशन, उदारीकरण और मुक्त अर्थव्यवस्था ने पूरीदुनिया के पैमाने पर अखबारों की भूमिका ही बदल डाली। एक ऐसे दौर में,जहां सब कुछ बाजार और सत्ता की शक्तियों से संचालित है, अखबार उससे अछूतेकैसे रह सकते हैं। अब अखबार कोई मिशन नहीं रह गए हैं, बल्कि साम्राज्यवादने जिस संस्कृति का प्रसार किया है, उसके वाहक बन चुके हैं।पूरी दुनिया में बाजार के फैलने के साथ अचानक मीडिया में एक बाढ़-सी आगई। भारी संख्या में अखबार, न्यूज चैनल और पत्रिकाओं की शुरुआत हुई।रातों-रात मीडिया की तस्वीर ही बदल गई। मीडिया में यह विस्फोट किसी बड़ेसामाजिक बदलाव या जरूरत का नतीजा नहीं था। यह बदलते हुए समय और बाजार कीआवश्यकता थी।अखबारों ने इसे समझा और पूरा किया। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में प्रेस नेअपने सामाजिक सरोकार तो खोए ही, साथ ही अपनी विश्वसनीयता भी खो दी। ८क्के दशक में जब दूरदर्शन पर नुक्कड़, तमस जैसे धारावाहिक प्रसारित होते थेतो लगता था कि बड़े पैमाने पर एक अर्थपूर्ण विचार कला के माध्यम सेलाखांे लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। लेकिन आज स्थितियां पूरी तरह बदलचुकी हैं। टेलीविजन, अखबार, मीडिया कहीं भी वह नैतिक और सांस्कृतिकउदात्तता नजर नहीं आती।आज इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के बीच संबंध आदान-प्रदान का नहीं,बल्कि विरोध और प्रतिस्पर्धा का है। आज टीवी पर कोई खबर दिखाई जाती है तोउस पर भी राजनीतिक स्वार्थ हावी होते हैं। कभी उनका राजनीति और दलवादनिरपेक्ष विश्लेषण नहीं हो पाता है। मालेगांव वाली घटना इसका सबसेताजातरीन उदाहरण है और यह स्थिति सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं है।पूरी दुनिया में जो साम्राज्यवादी खेल चल रहा है, प्रेस उस खेल का सबसेसजग और तत्पर कारिंदा है। अखबारों में अब संपादकों की भी पहले जैसीभूमिका नहीं रह गई है। उनसे बौद्धिक योग्यता और विचारशीलता की उम्मीदनहीं की जाती। वे बाजार के समीकरणों से वाकिफ हों, बस इतना ही काफी है।
अखबार किसी भी समाज का आईना होते हैं। अपने युग के दुख, उसके कंपन, उसकेयथार्थ की सही और पारदर्शी तस्वीर दिखाना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। अगर१८५७ के गदर के समय के अखबार उठाकर देखें तो उनमें उस क्रांति की आहट नजरआती है। ऐसा नहीं था कि एक दिन अचानक लोग उठे और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफविद्रोह कर दिया। वर्षो से समाज में इस विद्रोह की सुगबुगाहट थी औरतत्कालीन अखबारों में इसे महसूस किया जा सकता था।ऐसा इसलिए हो सका क्योंकि वे अखबार अपने समय का आईना थे, अपने युग कीआवाज थे। उस समय, जब अंग्रेजी अखबारों को लगता था कि हिंदुस्तान के लिएअंग्रेज कोई बहुत बड़ी चुनौती नहीं हैं, भाषाई अखबारों ने इसे गलत साबितकिया। उन्होंने जन जागरण का बीड़ा उठाया। इतिहास में प्रेस की ऐसीअभूतपूर्व सामाजिक भूमिका की मिसालें आज भी उंगलियों पर गिनी जा सकतीहैं। लेकिन आज हमारे अखबार अपने समय और समाज की धड़कनों को नहीं पढ़ पारहे हैं। खबरों के विश्लेषण में जन-पक्षधरता नहीं, सत्ता पक्षधरता साफनजर आती है।बाजार के बदलते समीकरण आने वाले समय में प्रेस पर निश्चित ही असरडालेंगे, लेकिन अगर अखबारों को अपनी अर्थवत्ता बनाए रखनी है तो उन्हेंअपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। अखबारों का बुनियादी काम सूचना देना है।उस सूचना के साथ काट-छांट, दुराव-छिपाव और पूर्वाग्रह नहीं होने चाहिए।सीधी, स्पष्ट और जनता के हक की बात होनी चाहिए।इसे बदलना किसी व्यक्ति विशेष के हाथ में नहीं है। समय इसे खुद-ब-खुदबदलेगा, लेकिन अगर इतिहास के पन्नों पर प्रेस का नाम हमेशा सम्मान व गौरवके साथ अंकित होना है तो उसे इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा। कही हम सचता नही हुआ तो हमे सोचा न होगा ,,,,,,,,,,,,,

Tuesday, November 4, 2008

जिहाद के नाम पर अय्याशी करता है सिमी चीफ नागौरी


जिहाद के नाम पर कौम का सरगना बनने का ख्वाब देख रहा स
िमी सरगना सफदर नागौरी न केवल ऐय्याश है बल्कि उसने संगठन के पैसे में भी हेराफेरी की थी। यही नहीं उसने धोखे से कई सिमी कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी करवाया था। यह खुलासा किया है सफदर नागौरी के साथी आमिल परवेज ने। इंदौर पुलिस द्वारा गिरफ्तार आमिल परवेज ने अपने 'नार्को एनालिसिस टेस्ट' के दौरान नागौरी के बारे में कई अहम जानकारियां दीं। 5 जून 2008 को बेंगलुरु की फरेंसिक लैब में हुए इस टेस्ट में आमिल ने खुद नागौरी को कटघरे में खड़ा किया है। आमिल ने खुलासा किया कि नागौरी के उत्तर प्रदेश की कई मुस्लिम महिलाओं से संबंध थे। उत्तर प्रदेश का शहवाज इस तरह की हरकतों में सफदर की मदद करता था। इसीलिए उसने सिबली को प्रेजिडेंट बनाने के बजाय शहवाज को यह पद दिया था। आमिल के मुताबिक सफदर नागौरी ने अपने मित्रों के घरों में भी इस तरह की हरकतें की थी। एक बार तो उसे अपने ही मित्र इमरान की पत्नी के साथ रंगे हाथों पकड़ा भी गया था। इस टेस्ट के दौरान आमिल ने बताया कि सफदर पार्टी के लिए आए पैसे का अपने लिए इस्तेमाल करता था। सिमी के लिए आए पैसे को वह अपने किसी विश्वस्त साथी के पास रखता था। एक बार उसने दो लाख रुपये ऐसे ही एक व्यक्ति के पास रखे और फिर कुछ दिन बाद यह अफवाह उड़ा दी कि उस आदमी से किसी ने रुपये लूट लिए। ऐसी हरकतें उसने कई बार की थीं। आमिल ने बताया कि इमरान को नागौरी ने ही पकड़वाया था। आमिल ने भोपाल से फरार हुए मुनीर देशमुख के बारे में भी जानकारी दी है। आमिल के मुताबिक औरंगाबाद में रह रहे देशमुख के खाते में 2004 में करीब 27 लाख रुपये थे। ये रुपये सिमी के लिए इकट्ठे किए गए थे। देशमुख अभी फरार है। भोपाल में उसका शाहपुरा स्थित घर आज भी खाली पड़ा है। वह भोपाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखता है। नागौरी के साथ ही जेल में बंद आमिल परवेज ने इस टेस्ट के दौरान सिमी और सफदर नागौरी के पाकिस्तानी, बांग्लादेशी व खाड़ी के देशों में व्यापक कनेक्शन्स का भी खुलासा किया है। उसने उन संगठनों और लोगों के नाम भी बताए हैं जो सफदर के संपर्क में थे। साथ ही उन आतंकवादी संगठनों का भी ब्यौरा दिया है जो सिमी और सफदर की मदद करते थे। आमिल द्वारा बताए गए नामों में मध्य प्रदेश के कई सफेदपोश लोग भी शामिल है। एनबीटी के पास मौजूद इस रिपोर्ट में आमिल परवेज ने देश भर में फैले सिमी सदस्यों का ब्यौरा तो दिया ही है। साथ ही उन अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के नाम भी बताए हैं जो सफदर के संपर्क में थे। उसके बयान से यह साफ झलकता है कि सिमी के कई पदाधिकारी सफदर से खुश नहीं थे। लेकिन मजबूरी में उसका साथ दे रहे थे। संभार उत्तरांचल दर्पण