देहरादून। उत्तराखण्ड में भाजपा के हथियार से कांग्रेस ने जिस तरह से पलटवार किया है। उससे प्रदेश की राजनीति में भाजपा कई चैराहों पर खड़ी हुई नजर आ रही है। भाजपा विधायक किरन मंडल ने अभी अधिकारिक रूप से भाजपा को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन नहीं थामा है। लेकिन जिस तरह की परिस्थतियां उत्पन्न हो चुकी है। और भाजपा नेताओं के बयान आ रहे है। उससे ऐसा लगता है कि अब किरन मंडल भाजपा को छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने के बाद राजनैतिक जीवन शुरू करेंगे। बंगाली समुदाय की मांगों को पूरा किए जाने का आश्वासन मिलने के साथ-साथ देर शाम होने वाली कैबिनेट की बैठक में इस पर मोेहर लगनी तय मानी जा रही है और कैबिनेट के फैसले के बाद भाजपा विधायक किरन मंडल गुरूवार को अपने विधायक पद से इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष को सौंप सकते है।
पिछले दस दिनांे से प्रदेश में राजनैतिक समीकरण इस तरह बदल गए है कि अब भाजपा भी सरकार बनाने के खवाब देखती हुई नजर आ रही है। लेकिन इस बात की संभावनाएं बहुत कम है कि कांग्रेस का कोई विधायक भाजपा के दामन में जाकर सरकार के खिलाफ बगावत का बीज बो सके। दिल्ली से कांग्रेस के कंेन्द्रीय नेता हरीश रावत को बयान सरकार के पक्ष में आने के बाद उनके सुर भी विजय बहुगुणा के साथ जा मिले है और उन्होंने उत्तराखण्ड में पांच साल तक कांग्रेस सरकार के चलने की बाते कही है। रातोंरात सितारगंज सीट को कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा उसे हाॅट बना दिया गया है। लेकिन उस सीट से किरनमंडल के इस्तीफा देने के बाद वहां से कौन चुनाव लड़ेगा इस पर संश्य अभी बरकरार है। लेकिन इस सीट से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के चुनाव लड़ने की बातें भी सामने आ रही थी। लेकिन बीते दिवस दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के समाने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने उपचुनाव लड़ने वाली विधानसभा का नाम नहीं खोला है और वर्तमान में सरकार के बजट सत्र को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई है। बहुगुणा सरकार का यह पहला बजट सत्र जनता के बीच कितना प्रभावशाली होगा। इसकी कार्यकुशलता भी देखने लायक होगी। इसी को ध्यान में रखकर अभी मुख्यमंत्री उपचुनाव की सीट का फैसला लेने के मूड में नहीं दिख रहें। लेकिन कांग्रेस का एक वर्ग बंगाली समुदाय की इस विधानसभा से मुख्यमंत्री को उपचुनाव लड़वाने के लिए तैयारी में जुटा है और उसका मानना है कि यदि मुख्यमंत्री इस सीट विधानसभा का चुनाव लड़ते है तो यहां से जीत का आंकड़ा 50 हजार के करीब पंहुच सकता है। लेकिन इस सीट से मुख्यमंत्री चुनाव लड़ने का ग्रीन सिग्नल हाईकमान को नहीं दिखा रहे है और अन्य विधानसभाओं जिनमें विकासनगर, यमनोत्री के साथ-साथ अन्य सीटों पर भी मंथन किया जा रहा है। राजनैतिक विश्लेषक यह भी मानकर चल रहें है कि मुख्यमंत्री का उपचुनाव जीत का आंकड़ा बढ़ाता है। तो इसका असर आगामी होने वाली स्थानीय चुनाव के साथ-साथ कांग्रेस को भी फायदा पहंुच सकता है।
उपचुनाव जीतने के साथ-साथ सरकार पांच साल तक चलाने की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री को परेशानी डालती हुई नजर आ रही है और वर्तमान में कांग्रेस सरकार बसपा, उक्रांद व निर्दलीय विधायकों के सहारे बैसाखियों पर टिकी हुई है। जिस कारण कांग्रेस भाजपा के अन्य विधायकोें को भी इस्तीफा दिला कर मजबूत सरकार बनाना चाहती है। जिससे बैसाखियों की जरूरत न पड़ सके। हालांकि एक विधायक से इस्तीफा दिलाने के बाद वहां उपचुनाव के चलते राजनैतिक समीकरण किसके पक्ष में रहेंगे इसे लेकर भी भाजपा व कांग्रेस मंथन में जुटे हुए है। माना जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनांे में उत्तराखण्ड में राजनैतिक समीकरण का ऐसा खेल राजनीति की बिसात पर खेला जायेगा। जिसके परिणाम काफी अचंभित भरे हो सकते है। भाजपा अभी राज्यपाल के यहां दस्तक दे कर सरकार पर दबाव बनाती हुई दिख रही है। लेकिन सदन के भीतर किस तरह से सरकार से लड़ेगी। इसकी रूपरेखा तय नहीं कर पाई है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अजय भट्ट के खिलाफ अंदर खाने विरोध की आग कम नहीं हुई हैै और अब सदन के भीतर भाजपा को फेल करने ककी कोशिश भी होती हुई नजर आ रही है।
पिछले दस दिनांे से प्रदेश में राजनैतिक समीकरण इस तरह बदल गए है कि अब भाजपा भी सरकार बनाने के खवाब देखती हुई नजर आ रही है। लेकिन इस बात की संभावनाएं बहुत कम है कि कांग्रेस का कोई विधायक भाजपा के दामन में जाकर सरकार के खिलाफ बगावत का बीज बो सके। दिल्ली से कांग्रेस के कंेन्द्रीय नेता हरीश रावत को बयान सरकार के पक्ष में आने के बाद उनके सुर भी विजय बहुगुणा के साथ जा मिले है और उन्होंने उत्तराखण्ड में पांच साल तक कांग्रेस सरकार के चलने की बाते कही है। रातोंरात सितारगंज सीट को कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा उसे हाॅट बना दिया गया है। लेकिन उस सीट से किरनमंडल के इस्तीफा देने के बाद वहां से कौन चुनाव लड़ेगा इस पर संश्य अभी बरकरार है। लेकिन इस सीट से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के चुनाव लड़ने की बातें भी सामने आ रही थी। लेकिन बीते दिवस दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान के समाने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने उपचुनाव लड़ने वाली विधानसभा का नाम नहीं खोला है और वर्तमान में सरकार के बजट सत्र को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई है। बहुगुणा सरकार का यह पहला बजट सत्र जनता के बीच कितना प्रभावशाली होगा। इसकी कार्यकुशलता भी देखने लायक होगी। इसी को ध्यान में रखकर अभी मुख्यमंत्री उपचुनाव की सीट का फैसला लेने के मूड में नहीं दिख रहें। लेकिन कांग्रेस का एक वर्ग बंगाली समुदाय की इस विधानसभा से मुख्यमंत्री को उपचुनाव लड़वाने के लिए तैयारी में जुटा है और उसका मानना है कि यदि मुख्यमंत्री इस सीट विधानसभा का चुनाव लड़ते है तो यहां से जीत का आंकड़ा 50 हजार के करीब पंहुच सकता है। लेकिन इस सीट से मुख्यमंत्री चुनाव लड़ने का ग्रीन सिग्नल हाईकमान को नहीं दिखा रहे है और अन्य विधानसभाओं जिनमें विकासनगर, यमनोत्री के साथ-साथ अन्य सीटों पर भी मंथन किया जा रहा है। राजनैतिक विश्लेषक यह भी मानकर चल रहें है कि मुख्यमंत्री का उपचुनाव जीत का आंकड़ा बढ़ाता है। तो इसका असर आगामी होने वाली स्थानीय चुनाव के साथ-साथ कांग्रेस को भी फायदा पहंुच सकता है।
उपचुनाव जीतने के साथ-साथ सरकार पांच साल तक चलाने की जिम्मेदारी भी मुख्यमंत्री को परेशानी डालती हुई नजर आ रही है और वर्तमान में कांग्रेस सरकार बसपा, उक्रांद व निर्दलीय विधायकों के सहारे बैसाखियों पर टिकी हुई है। जिस कारण कांग्रेस भाजपा के अन्य विधायकोें को भी इस्तीफा दिला कर मजबूत सरकार बनाना चाहती है। जिससे बैसाखियों की जरूरत न पड़ सके। हालांकि एक विधायक से इस्तीफा दिलाने के बाद वहां उपचुनाव के चलते राजनैतिक समीकरण किसके पक्ष में रहेंगे इसे लेकर भी भाजपा व कांग्रेस मंथन में जुटे हुए है। माना जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनांे में उत्तराखण्ड में राजनैतिक समीकरण का ऐसा खेल राजनीति की बिसात पर खेला जायेगा। जिसके परिणाम काफी अचंभित भरे हो सकते है। भाजपा अभी राज्यपाल के यहां दस्तक दे कर सरकार पर दबाव बनाती हुई दिख रही है। लेकिन सदन के भीतर किस तरह से सरकार से लड़ेगी। इसकी रूपरेखा तय नहीं कर पाई है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद अजय भट्ट के खिलाफ अंदर खाने विरोध की आग कम नहीं हुई हैै और अब सदन के भीतर भाजपा को फेल करने ककी कोशिश भी होती हुई नजर आ रही है।