मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने गुरूवार को एफ.आर.आई. के आईसी.एफ.आर.ई. सभागार में आयोजित एक समारोह में मुख्यमंत्री वन पंचायत सुदृढ़ीकरण योजना का शुभारम्भ किया। उन्होंने कार्यक्रम में वन पंचायत का लोगो जारी करते हुए प्रत्येक वर्ष राज्य में 9 सितम्बर को वन पंचायत दिवस मनाने की घोषणा की। मुख्यमंत्री डॉ. निशंक ने कहा कि उत्तराखण्ड देश का ऐसा विशिष्ट प्रदेश है, जहां 12 हजार से अधिक वन पंचायते है। उन्होंने कहा कि वन पंचायतें उत्तराखण्ड के विकास में नींव का पत्थर साबित होंगी। वन पंचायत प्रदेश की अर्थ व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। उन्होंने कहा कि वन पंचायत सुदृढ़ीकरण के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू की गई है। वन पंचायतों के माध्यम से महिला किसान नर्सरी व मनरेगा योजनाओं में विभिन्न वानिकी कार्य किया जा रहा है। अटल आदर्श ग्राम योजना के तहत 171 वन पंचायतों को चिन्हित किया गया है। राष्ट्रीय वनीकरण योजना के तहत वित्त पोषण हेतु राज्य वन विकास अभिकरण का गठन किया जा रहा है, जिसके तहत 412 वन पंचायतों में वनीकरण, जल संरक्षण आदि कार्यों का प्रस्ताव है। उन्होंने वन पंचायतों से सम्बन्धित जागरूकता कार्यशालाएं जिला व विकासखण्ड स्तर तक आयोजित करने के निर्देश दिये। उन्होंने कहा कि वनों की सुरक्षा के लिए 108 की सेवा को जोड़ने पर भी विचार किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि वनों पर निर्भर ग्रामीणों के लिए जलावनी लकड़ी और चारा आदि के लिए वैकल्पिक व्यवस्थाएं भी करनी होगी। उन्होंने कहा कि वन पंचायतों के सुदृढ़ीकरण से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी समस्याओं से लड़ने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि वन पंचायतों को महिला पौधालयों और जड़ी बूटी कृषिकरण से भी जोड़ा जाना चाहिए। कार्यक्रम में अच्छा कार्य कर रही वन पंचायतों के प्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री डॉ. निशंक द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। पुरस्कार पाने वालों में अल्मोड़ा भूपाल सिंह भण्डारी, चमोली की सुनंदा देवी, पौड़ी के मोहन सिंह, चमोली के यशवंत सिंह चौहान, उत्तरकाशी के प्रताप पोखरियाल प्रमुख थे। मुख्य सचिव एन.एस.नपलच्याल ने कहा कि मुख्यमंत्री वन पंचायत सुदृढ़ीकरण योजना को कैम्पा योजना से पोषित किया जायेगा। उन्होंने बताया कि अगले दस वर्षों में इस योजना में 80 करोड़ खर्च किये जायेंगे। उन्होंने बताया कि अभी तक वन पंचायतों के 21 हजार 500 से अधिक सदस्यांे को वन पंचायत नियमावली, माइक्रोप्लान बनाने की कार्यवाही और वनों को अग्नि से बचाने के संबंध में प्रशिक्षण दिया जा चुका है। 2963 वन पंचायतों के माइक्रोप्लान बन चुके है। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देशों के क्रम में इस वर्ष 300 वन पंचायतों में 1500 प्रतिमाह प्रोत्साहन धनराशि पर एक-एक वन पंचायत सहायकों की नियुक्ति की जायेगी। पिरूल के व्यावसाियक उपयोग पर जोर दिया गया है, इसके लिए एक प्रति किलोग्राम की दर से वन पंचायतों को भुगतान किया जायेगा। वन एवं पर्यावरण सलाहकार समिति के उपाध्यक्ष अनिल बलूनी ने कहा कि वन पंचायतों को चारा विकास, जड़ी बूटी कृषिकरण, जल संवर्द्धन आदि माध्यमों से अपने आय के स्रोतों को बढ़ाना चाहिए। प्रमुख वन संरक्षक वन डॉ. आर.बी.एस.रावत ने कहा कि वन पंचायतों की निधि में लगभग 10 करोड़़ की धनराशि है। प्रदेश की वन पंचायतों के दु्रत विकास के लिए इन्हें मनरेगा, ग्राम्या, बांस एवं रेशा परिषद आदि द्वारा भी जोड़ा जा रहा है। उन्होंने बताया कि पिरूल को बडे पैमाने पर ऊर्जा उत्पादन से जोड़ने की योजना है। इस अवसर पर जड़ी बूटी विकास परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. आदित्य कुमार, अपर मुख्य सचिव सुभाष कुमार सहित अनेक गणमान्य लोग तथा विभिन्न जनपदों से आये वन पंचायतों प्रतिनिधि उपस्थित थे।
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