उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बी. सी. खंडूरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कद्
दावर नेता भगत सिंह कोश्यारी को पछाड़ कर उन्होंने सीएम की कुर्सी तो हासिल कर ली लेकिन उनके लिए असल परीक्षा की घड़ी लोकसभा चुनाव है। उत्तराखंड में हरिद्वार को छोड़कर बाकी चार सीटों पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। कांग्रेस अपने कामों की वजह से नहीं बल्कि बीजेपी की कमजोरियों की वजह से फायदे में दिख रही है। बीएसपी, एसपी, यूकेडी की भूमिका नैनीताल, टिहरी गढ़वाल और अल्मोड़ा सीट पर बीएसपी कांग्रेस और बीजेपी के समीकरण बिगाड़ सकती है। यूकेडी नैनीताल के पहाड़ी मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का माद्दा रखती है। एसपी हरिद्वार और नैनीताल पर कुछ असर के अलावा बाकी जगह बेअसर ही दिख रही है। सियासी दांवपेच राज्य की राजनीति में ठाकुर-ब्राह्मण फैक्टर हमेशा अहम रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसे समीकरण बने हैं कि जातिगत फैक्टर नहीं के बराबर हैं। अल्मोड़ा (रिजर्व सीट) से कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवार एक ही जाति, एक ही गांव के हैं। नैनीताल में भी दोनों पार्टियों के उम्मीदवार ठाकुर हैं इसलिए वोटों का ध्रुवीकरण जाति की वजह से नहीं, बल्कि बाहरी बनाम लोकल के बीच हो रहा है। एसपी के कमजोर होने से यहां का मुस्लिम वोटर कांग्रेस की तरफ जाकर उसका पलड़ा भारी करता दिख रहा है। पौड़ी गढ़वाल में बीजेपी उम्मीदवार टीपीएस रावत कांग्रेस से बीजेपी में गए हैं इसलिए दलबदलू हो जाने से उनकी साख गिरी है। कांग्रेस के सतपाल महाराज भी रावत की तरह ही ठाकुर हैं इसलिए जाति यहां भी समीकरण से बाहर है। टिहरी सीट से बीजेपी के जसपाल राणा और बीएसपी उम्मीदवार मुन्ना सिंह चौहान एक ही इलाके के हैं, जो कांग्रेस के ब्राह्माण उम्मीदवार विजय बहुगुणा के लिए प्लस पॉइंट लग रहा है। चौहान हाल ही में बीजेपी छोड़कर बीएसपी के साथ आए हैं इसलिए भी वह बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हरिद्वार से मौजूदा सांसद एसपी का है लेकिन यहां एसपी की स्थिति कमजोर हुई है। परिसीमन के बाद पहाड़ी इलाके भी इसमें जुड़े हैं जिससे इस बार एसपी दौड़ में पिछड़ गई है। यहां बीएसपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। यहां 3 लाख पहाड़ी वोटर हैं जो कांग्रेस के लिए उम्मीद की वजह हैं जबकि बीएसपी साढ़े चार लाख मुस्लिम वोटरों के सहारे जीत की उम्मीद कर रही है। पैर में कुल्हाड़ी मारती बीजेपी 2004 में बीजेपी ने तीन सीटें अपने संगठन के बूते जीती थी। लेकिन सीएम की कुर्सी को लेकर हुई खींचतान और कोश्यारी को साइड लाइन करने से पार्टी सांगठनिक तौर पर काफी कमजोर हुई है। कोश्यारी को राज्यसभा भेजने से खाली हुई विधानसभा सीट पर वह अपने भतीजे के लिए टिकिट चाहते थे लेकिन वहां से विरोधी खेमे के खंडूरी के करीबी को टिकिट देकर बीजेपी ने विद्रोह की आग में घी डालने का काम किया है। खंडूरी से उनके ही आधे से ज्यादा एमएलए नाराज चल रहे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अगर राज्य से बीजेपी का सूपड़ा साफ होता है तो राज्य में भी नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। यह बात खंडूरी के विरोधियों को भितरघात करने के लिए उकसा सकती है।
साभार टाईम्स
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