Wednesday, May 13, 2009



उत्तराखंड राज्य में प्रवेश करते वक़्त जगह जगह बोर्ड लगे दिखते हैं कि देवभूमि में आपका स्वागत है, और देवों की इस भूमि से 15वीं लोकसभा की पांच सीटों के पांच देवों के चयन की प्रक्रिया क़रीब आ चुकी है.
फिर भी ना ज़्यादा उत्साह दिखाई देता है और ना ही रौनक़. पहाड़ों पर चुनाव प्रचार का तरीक़ा एकदम ही अलग है.
प्रत्याशी सात या आठ के झुंड में एक-दो गाड़ी लेकर गाँव-गाँव का दौरा कर मतदाताओं को लुभाने में लीन हैं. पर ऐसा लगता है कि ये आम चुनाव यहां पर 2007 में हुए विधानसभा चुनावों का ही हिस्सा हैं क्योंकि हर तरफ़ स्थानीए मुद्दे ही छाए दिखते हैं.
पार्टी में ऐसा उत्साह 1980 के इंदिरा वापस लाओ चुनाव के वक़्त था. उसके बाद प्रदेश में इस तरह की लहर मैं आज देख रहा हूँ

हरीश रावत, वरिष्ठ नेता, कांग्रेस
रहा सवाल चुनावी दंगल का तो असली लड़ाई दोनों राष्ट्रीय पार्टियों कांगेस और भाजपा में ही दिखती है. लेकिन बहुजन समाज पार्टी और उत्तराखंड क्रांति दल इन दोनो ही पार्टियों के वोट बैंक को भेदने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं.
फ़िलहाल तो प्रदेश की पाँच सीटों में दो-दो पर कांग्रेस और भाजपा और एक पर समाजवादी पार्टी का क़ब्ज़ा है. लेकिन हर कोई इस चुनाव में ज़्यादा अच्छा करने का ढिंढोरा पीट रहा है.
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरिद्वार से उम्मीदवार हरीश रावत कहते हैं, " पार्टी में ऐसा उत्साह 1980 के इंदिरा वापस लाओ चुनाव के वक़्त था. उसके बाद प्रदेश में इस तरह की लहर मैं आज देख रहा हूँ. जिस तरीक़े से कार्यकर्ता और वोटर स्वयं कांग्रेस वोटर बनकर बोल रहा है, हमारे लिए तो चुनावी मीटिंग मैनेज करना मुश्किल हो रहा है."
हरिद्वार के चुनाव पर सबकी नज़रें इसलिए भी टिकी हुई हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायवती ने यहाँ पर एक मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद शहज़ाद को उतारा है जो यहाँ के विधायक भी हैं.
पार्टी अंतर्कलह
हरिद्वार में लगभग साढ़े तीन लाख मुस्लिम मतदाता हैं और मुस्लिम-दलित-ब्राह्मण वोट बैंक राजनीति के चलते बहुजन समाज पार्टी यहाँ कांग्रेस के वोट भी काटने में सफल रहे.
बात अगर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की हो तो उनके पास फ़िलहाल तो पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा की सीटे हैं. लेकिन आम धारणा ये जान पड़ती है कि प्रदेश में एक सत्ता विरोधी लहर दौड़ रही है. जिसका ख़मियाज़ा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है.
प्रदेश भाजपा में अंतर्कलह जब तब उठ रही है और मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूरी और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के बीच बनते-बिगड़ते रिश्तों की बात किसी से नहीं छुपी है.
कोश्यारी भी इन बातो को पूरी तरह से नकार नहीं पाते हैं और कहते हैं, "मैं अंतर्कलह की बात नहीं करता. मतभेद होते रहते हैं, आपस में मिलते-बैठते हैं. अगर आपस में हल नहीं होता तो बड़े बुज़ुर्गों के पास जाते है. बड़े नेताओं के पास जाते हैं और सब चीज़ों का समाधान हो जाता है."
मैं ये मानता हूँ कि हमारी सरकार है तो ये स्वाभाविक है कि कुछ लोग ख़ुश नहीं होंगे और कुछ लोगों की सरकार के प्रति नाराज़गी हो सकती है. लेकिन जितनी भी थोड़ी सी नाराज़गी हमारे से है उससे सौ गुना ज़्यादा केंद्र सरकार से है

भगत सिंह कोश्यारी
जहाँ भाजपा की ओर से आडवाणी और नरेंद्र मोदी प्रदेश में दौरे कर चुके हैं वहीं कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी ओर से स्टार प्रचारक सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को चुनाव प्रचार में उतार रखा है.
लगता है कांग्रेस नेताओं को इस बात का अहसास है कि प्रदेश में मौजूद 35 प्रतिशत युवा वोटर और लाखो की संख्या में मौजूद मुस्लिम और दलित मतदाता उसकी ओर खिसक रहे हैं.
कांग्रेस हितैषी
अल्मोड़ा की सुरक्षित सीट और टिहरी लोकसभा सीट जहाँ भाजपा ने निशानेबाज़ और राजनाथ सिंह के रिश्तेदार जसपाल राणा को मैदान मे उतारा है और नैनीताल समेत हरिद्वार में भी कांग्रेस दलित वोट को लेकर आश्वस्त हैं.
इस पर कांग्रेस नेता हरीश रावत कहते हैं, "कांग्रेस के साथ इस समय दलित मतदाता उत्साहपू्र्वक आना चाह रहा है, क्योंकि वो ये समझ रहा है कि उत्तराखंड के अंदर दलितों की हितैषी पार्टी कांग्रेस है. तो इस समय वे कांग्रेस को अपनी स्वाभाविक पार्टी मान रहे हैं."
बात अगर उत्तराखंड के दिग्गजों की करें तो जहां मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने अपनी पुरानी सीट पौड़ी से पूर्व कांग्रेस नेता टीपीएस रावत को उतारा है तो कांग्रेस मे एक ज़माने में रावत के ही गुरू रहे सतपाल महाराज को उनसे भिड़ा दिया है.
जबकि अल्मोड़ा की सुरक्षित सीट में दो तरफ़ा घमासान मची हुई है. एक तरफ़ हैं भाजपा के अजय टम्टा तो दूसरी तरफ़ हैं कांग्रेस से प्रदीप टम्टा. अल्मोड़ा समेत पूरे राज्य में इस बात का भी योगदान रहेगा कि प्रदेश के एक लाख से भी ज़यादा डाक मत किसकी तरफ़ जाते हैं.
लेकिन जहाँ कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का ढिंढोरा पीट रही है वहीं भाजपा के पू्र्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी इस बात से सहमत नहीं.
वे कहते हैं, "मैं ये मानता हूँ कि हमारी सरकार है तो ये स्वाभाविक है कि कुछ लोग ख़ुश नहीं होंगे. और कुछ लोगों की सरकार के प्रति नाराज़गी हो सकती है. लेकिन जितनी भी नाराज़गी हमसे है उससे सौ गुना ज़्यादा केंद्र सरकार से है."
क्या उत्तराखंड में वाक़ई सत्ता विरोधी लहर दौड़ रही है जो कांग्रेस के पक्ष में है या फिर भाजपा इस प्रदेश में अपनी स्थिति दो सीटों से भी ज़्यादा मज़बूत बनी सकेगी?
क्या रहेगी भूमिका राज्य में घुसपैठ करती दिख रही बसपा और क्या इन चुनावों के बाद उत्तराखंड में समाजवादी पार्टी हाशिए पर दिख सकती है? बस थोड़ा सा इंतज़ार नतीजा जल्द ही आपके सामने होगा.

दारू पार्टी ही नहीं, पूरा थाना है गैरकानूनी

नॉर्थ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट के स्वरूप नगर थाने में हुई दारू पार्टी पर पुल


िस विभाग में हड़कंप मच गया है, अब पता चला है कि यह पूरा थाना ही गैरकानूनी बना है। इस थाने में बने 12 कमरों के लिए दिल्ली पुलिस की एक पाई भी खर्च नहीं हुई। इस थाने में आज तक दो एसएचओ आए और दोनों ही बेआबरू होकर गए। अब इस थाने में कोई एसएचओ आने को तैयार नहीं है। 5 सितंबर 2007 को समयपुर बादली के एरिया को काटकर स्वरूप नगर थाना बनाने का ऐलान किया गया था। ऐलान तो हो गया, लेकिन जगह कहीं थी नहीं। आखिरकार लोकल प्रधान हरिराम का 612 स्क्वेयर गज का प्लॉट किराए पर लिया गया। उसमें महज एक कमरा बना था। अपनी जमीन न होने के कारण दिल्ली पुलिस के 'लैंड ऐंड बिल्डिंग डिपार्टमंट' से न तो कमरों की तामीर के लिए रकम जारी हो सकती थी और न हुई। आखिरकार पुलिस वालों ने खुद अपने 'रिसोर्स' से इस प्लॉट में 12 कमरे बनवाए। अब पुलिस कमरे बनवा रही थी तो नक्शा पास कराने का मतलब ही नहीं था। इस बारे में पुलिस वालों का कहना है कि थाना ही नहीं, बल्कि यह पूरा इलाका बगैर नक्शा पास कराए गैरकानूनी बना है। आज तक थाने में पानी का कनेक्शन नहीं है। पुलिस वाले खुद किसी तरह पानी का इंतजाम करते हैं। लोकल एमएलए के फंड से लाइट लगवाई गई, जिसके पेमंट के लिए आज तक पुलिस डिपार्टमंट ने फूटी कौड़ी भी जारी नहीं की। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, थाना बनाने के बाद ओल्ड पुलिस लाइन से ऐसे बुजुर्ग पुलिस वाले यहां तैनात किए गए, जो पूरे करिअर में कभी थानों में तैनात ही नहीं हुए थे। दरोगा हकीकत राय के तो दोनों पैरों में रॉड पड़ी हुई थी। ज्यादातर पुलिस वाले रिटायरमंट के नजदीक थे। थाना बनने के एक महीने बाद यहां वायरलेस सेट लगा था। इस थाने में 5 सितंबर 2007 को सबसे पहले एसएचओ बनाए गए थे इंस्पेक्टर दयानंद। आठ महीने तक उन्होंने थाना शुरू करने में बड़ी मशक्कत की, लेकिन एक सिपाही की करतूत उन्हें ले डूबी। 23 अप्रैल 2008 को ट्रैफिक पुलिस के सिपाही संजीव राणा ने अपने दोस्त समेत नंगली पूना में मंदिर के बाहर परिवार का इंतजार कर रही 14 साल की लड़की को कार में खींचकर रेप कर डाला। पुलिस ने राणा को उसी दिन गिरफ्तार भी कर लिया गया, लेकिन कुछ ही देर बाद एसएचओ को सिक्यूरिटी ब्रांच में ट्रांसफर के ऑर्डर जारी हो गए। राणा आज तक जेल में है। दयानंद के बाद एसएचओ बने राजेश नथानी। इसी संडे नाइट में थाने में दारू पार्टी मनाने के इल्जाम में उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। डीसीपी (नॉर्थ वेस्ट) नरेंद्र बुंदेला के मुताबिक अभी नए एसएचओ की तैनाती नहीं की गई है। पुलिस महकमे में चर्चा है कि लगातार दो एसएचओ का हश्र देखकर इस थाने में कोई इंस्पेक्टर अपनी मर्जी से एसएचओ लगने को तैयार नहीं है।

Tuesday, May 12, 2009



उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बी. सी. खंडूरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कद्
दावर नेता भगत सिंह कोश्यारी को पछाड़ कर उन्होंने सीएम की कुर्सी तो हासिल कर ली लेकिन उनके लिए असल परीक्षा की घड़ी लोकसभा चुनाव है। उत्तराखंड में हरिद्वार को छोड़कर बाकी चार सीटों पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है। कांग्रेस अपने कामों की वजह से नहीं बल्कि बीजेपी की कमजोरियों की वजह से फायदे में दिख रही है। बीएसपी, एसपी, यूकेडी की भूमिका नैनीताल, टिहरी गढ़वाल और अल्मोड़ा सीट पर बीएसपी कांग्रेस और बीजेपी के समीकरण बिगाड़ सकती है। यूकेडी नैनीताल के पहाड़ी मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का माद्दा रखती है। एसपी हरिद्वार और नैनीताल पर कुछ असर के अलावा बाकी जगह बेअसर ही दिख रही है। सियासी दांवपेच राज्य की राजनीति में ठाकुर-ब्राह्मण फैक्टर हमेशा अहम रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसे समीकरण बने हैं कि जातिगत फैक्टर नहीं के बराबर हैं। अल्मोड़ा (रिजर्व सीट) से कांग्रेस और बीजेपी के उम्मीदवार एक ही जाति, एक ही गांव के हैं। नैनीताल में भी दोनों पार्टियों के उम्मीदवार ठाकुर हैं इसलिए वोटों का ध्रुवीकरण जाति की वजह से नहीं, बल्कि बाहरी बनाम लोकल के बीच हो रहा है। एसपी के कमजोर होने से यहां का मुस्लिम वोटर कांग्रेस की तरफ जाकर उसका पलड़ा भारी करता दिख रहा है। पौड़ी गढ़वाल में बीजेपी उम्मीदवार टीपीएस रावत कांग्रेस से बीजेपी में गए हैं इसलिए दलबदलू हो जाने से उनकी साख गिरी है। कांग्रेस के सतपाल महाराज भी रावत की तरह ही ठाकुर हैं इसलिए जाति यहां भी समीकरण से बाहर है। टिहरी सीट से बीजेपी के जसपाल राणा और बीएसपी उम्मीदवार मुन्ना सिंह चौहान एक ही इलाके के हैं, जो कांग्रेस के ब्राह्माण उम्मीदवार विजय बहुगुणा के लिए प्लस पॉइंट लग रहा है। चौहान हाल ही में बीजेपी छोड़कर बीएसपी के साथ आए हैं इसलिए भी वह बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हरिद्वार से मौजूदा सांसद एसपी का है लेकिन यहां एसपी की स्थिति कमजोर हुई है। परिसीमन के बाद पहाड़ी इलाके भी इसमें जुड़े हैं जिससे इस बार एसपी दौड़ में पिछड़ गई है। यहां बीएसपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। यहां 3 लाख पहाड़ी वोटर हैं जो कांग्रेस के लिए उम्मीद की वजह हैं जबकि बीएसपी साढ़े चार लाख मुस्लिम वोटरों के सहारे जीत की उम्मीद कर रही है। पैर में कुल्हाड़ी मारती बीजेपी 2004 में बीजेपी ने तीन सीटें अपने संगठन के बूते जीती थी। लेकिन सीएम की कुर्सी को लेकर हुई खींचतान और कोश्यारी को साइड लाइन करने से पार्टी सांगठनिक तौर पर काफी कमजोर हुई है। कोश्यारी को राज्यसभा भेजने से खाली हुई विधानसभा सीट पर वह अपने भतीजे के लिए टिकिट चाहते थे लेकिन वहां से विरोधी खेमे के खंडूरी के करीबी को टिकिट देकर बीजेपी ने विद्रोह की आग में घी डालने का काम किया है। खंडूरी से उनके ही आधे से ज्यादा एमएलए नाराज चल रहे हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अगर राज्य से बीजेपी का सूपड़ा साफ होता है तो राज्य में भी नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। यह बात खंडूरी के विरोधियों को भितरघात करने के लिए उकसा सकती है।
साभार टाईम्स