नयी दिल्ली 5 मई, 2011 उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डाॅ0 रमेष पोखरियाल निषंक ने यहां योजना आयोग के उपाध्यक्ष डाॅ0 मोन्टेक सिंह आहलूवालिया की अध्यक्षता में योजना भवन में आयोजित 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतिम वर्ष में अपने राज्य हेतु 666 करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता समेत 7800 करोड़ रुपए की 2011-12 की वार्षिक योजना को अनुमोदित कराने में सफलता प्राप्त की। यह विगत वर्ष की योजना से 1000 करोड़ रुपए अधिक है।
इस अवसर पर योजना आयोग के उपाध्यक्ष डाॅ0 मोेन्टेक सिंह आहलूवालिया ने उत्तराखण्ड द्वारा हाल के वर्षों में निरन्तर बेहतर प्रगति और विकास की गति बनाये रखने की सराहना करते हुए यकीन दिलाया कि केन्द्र के स्तर पर राज्य में बेहतर रेल तथा हवाई सेवाओं की सुविधाओं के विस्तार की मांग को मंजूर कराने में वह पूरी मदद देंगे। उन्होंने सलाह दी कि राज्य इन सेवाओं के लिए अपना प्रस्ताव षीघ्रता से उपलब्ध कराये। डाॅ0 आहलूवालिया ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे राष्ट्र में उत्तराखण्ड के बेहतर कार्य की भी सराहना की।
इससे पहले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डाॅ0 निषंक ने देष के हिमालयी राज्यों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और समस्याओं का विस्तार से उल्लेख करते हुए पुराने हिमालयी राज्यों तथा उत्तर-पूर्व के अषान्त राज्यों के मुकाबले उत्तराखण्ड की आवष्यकताओं को भारत सरकार द्वारा नजरअंदाज करने का उल्लेख करते हुए कहा कि पड़ोसी देश चीन द्वारा भारतीय सीमा तक रेलवे का विकास किया जा रहा है। वर्तमान में बीजिंग से ल्हासा तक रेल मार्ग सृजित हो चुका है तथा उत्तराखण्ड की सीमा के सन्निकट तकलाकोट तक इसका विस्तार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संघर्ष या युद्ध की स्थिति में सीमा तक सेना एवं सैन्य सामग्री की पहुंच शीघ्रतापूर्वक सुनिष्चित हो सके, इस हेतु भारत सरकार को ऋषिकेष-कर्णप्रयाग, टनकपुर- बागेष्वर, बागेष्वर-कर्णप्रयाग रेलवे परिपथ के निर्माण कार्य शीघ्र किये जाने की आवश्यकता है। डाॅ0 निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से शिमला-त्यूणी-लोहाघाट हिमालयन हाइवे (भ्पउंसंलंद भ्पहीूंल) का निर्माण कराया जाना आवश्यक है। इस प्रकार की संस्तुति हिमालयी राज्यों एवं क्षेत्रों की समस्याओं पर योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स ने भी अपनी रिपोर्ट में दी है। इसे शीघ्रता से कार्यरूप दिया जाये।
उत्तराखण्ड की चीन एवं नेपाल से क्रमशः 350 किमी0 एवं 275 किमी0 लम्बी अन्तर्राष्ट्रीय सीमायें खुली होने का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के समेकित विकास के लिये बार्डर एरिया डेवलपमैन्ट प्लान के अन्तर्गत राज्य के सभी 26 सीमान्त विकासखण्डों के विकास हेतु तथा उन्हें सड़क, विद्युत, दूरसंचार सुविधाओं से जिला मुख्यालय से जोड़ने हेतु यह योजना लागू करने की मांग की।
इस मौके पर डाॅ0 निषंक ने अनुरोध किया कि उत्तराखण्ड में सभी केन्द्र पोषित योजनाओं का वित्त पोषण पूर्वोत्तर सीमान्त के राज्यों की भांति ही 90ः10 के अनुपात में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उग्र और अषान्त क्षेत्रों को शान्त क्षेत्रों के मुकाबले अधिक महत्व दिये जाने के दोहरे मापदण्ड से गलत संकेत जाते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड को 2001-02 में विषेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया था, परन्तु वित्त पोषण के मामले में इस राज्य की भारी उपेक्षा की जाती है, जिसके परिमार्जन के लिए 2001-02 से 2010-11 तक की अवधि की अवषेष धनराषि 2400 करोड़ रुपए एकमुष्त विषेष पैकेज के रुप में स्वीकृत की जाय।
उन्हांेने कहा कि उत्तराखण्ड भी पूर्वोत्तर राज्यों की भांति विशेष श्रेणी का राज्य है। अतः राज्य में नैनी-सैनी (पिथौरागढ़) चिन्यालीसौड़ (उत्तरकाशी) तथा गौचर (चमोली), हवाई-अड्डों का विकास भी इसी फार्मूले पर शत-प्रतिशत अवस्थापना अनुदान के माध्यम से भारत सरकार के वित्त पोषण से किया जाना आवश्यक है, क्योंकि ये तीनों स्थल संवेदनशील अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर भी स्थित हैं, तथा इनका सामरिक महत्व भी है। डाॅ0 निषंक ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में रेलवे केन्द्रीय सूची का विषय है, इसके बावजूद उत्तराखण्ड सरकार पर रेलवे परियोजनाओं के लागत में 50 प्रतिषत की हिस्सेदारी वहन करने पर जोर डाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित मुजफ्फरनगर-रूड़की रेलमार्ग की निर्माण लागत भी शत्-प्रतिषत केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाये।
डाॅ0 निषंक ने बताया कि वर्ष 2010-11 में हुई रिकार्ड अतिवृष्टि के कारण विगत 10 वर्षो में राज्य ने जो परिसंपत्तियां एवं अवस्थापना सुविधायें सृजित की थीं वह बड़ी संख्या में ध्वस्त हो गई हैं। इसके साथ ही भारी भू-स्खलन के कारण 200 से अधिक गांव विनाश के कगार पर आ गये हैं, जिन्हें समय रहते अन्यत्र बसाया जाना आवश्यक है। इन्हें पुनस्र्थापित करने में लगभग 21000 करोड रूपये का व्यय अनुमानित है। इस प्राकृतिक विभीषिका को दृष्टिगत रखते हुए क्षतिग्रस्त योजनाओं की शीघ्र पुनस्र्थापना हेतु विशेष सहायता पैकेज दिया जाय।
मुख्यमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि उत्तराखण्ड को विशेष केन्द्रीय सहायता ;ैब्।द्ध के रूप में 60 करोड़ रुपए तथा विशेष आयोजनागत सहायता ;ैच्।द्ध में 300 करोड़ रुपए ही आबंटित हुए। उन्होंने इस मामले में भी अपने राज्य को हिमाचल की भांति ही विशेष केन्द्रीय सहायता एवं विशेष आयोजनागत सहायता स्वीकृत करने की मांग की। उन्हांेने आगे कहा कि उत्तराखण्ड में लगभग 65 प्रतिशत भू-भाग वनाच्छादित है तथा मात्र 13 प्रतिशत भूमि कृषि के अन्तर्गत है। वन क्षेत्र की अधिकता के कारण विभिन्न विकास गतिविधियों को संचालित करने में अनेक बाधायें उत्पन्न होती हैं। उत्तराखण्डवासियों का वनों के विकास में जन सहभागिता करते हुए राज्य में 12089 वन पंचायतें गठित की है तथा राज्य गठन के उपरान्त वनाच्छादित क्षेत्रफल में 1141 वर्ग कि0मी0 क्षेत्रफल की वृद्धि हुई है। हाल में सम्पन्न बाघ गणना में राज्य में बाघों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जबकि अन्य प्रदेशों में स्थिति भिन्न है फिर भी वन्य जीव संरक्षण हेतु उत्तराखण्ड को केन्द्र से संरक्षण, संवर्द्धन तथा सहायता के साथ ही जो विषेष दर्जा दिया जाना चाहिए वह अभी तक अप्राप्त है।
मुख्यमंत्री डाॅ0 निषंक ने जोर देकर कहा कि योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा तैयार की गयी पर्यावरण रिपोर्ट में उत्तराखण्ड को पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण के लिए देश के सभी राज्यों में प्रथम स्थान पर रखा गया है जिससे इस राज्य द्वारा किये जा रहे प्रयासों की पुष्टि होती है। इसके विपरीत वन संरक्षण अधिनियम एवं पर्यावरण सरंक्षण से सम्बन्धित विभिन्न नियमों का बोझ केवल इसी राज्य की जनता पर अनावष्यक रुप से डाला जा रहा है जिससे विकास कार्य अवरूद्ध हो रहे है।
डाॅ0 निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य द्वारा दी जा रही प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जीवनदायी पर्यावरणीय सेवाओं को वैज्ञानिक विधि से विभिन्न संस्थाओं द्वारा आंकलन किया गया है। इनके अनुसार राज्य द्वारा लगभग 35000 से 40000 करोड़ रुपए मूल्य की पारिस्थितिकीय सेवायें प्रतिवर्ष दी जानी आंकी गई है, जिनका लाभ देश ही नहीं अपितु विश्व को मिल रहा है। किन्तु इस पर्यावरण संरक्षण योगदान एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण सेवा के एवज में राज्य को किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति नहीं की जा रही है। साथ ही उत्तराखण्ड के नदी नालों से रेता-बजरी चुगान पर भी केन्द्र द्वारा प्रतिबन्ध लगाया गया जबकि इस प्रकार का चुगान नदी नालों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। अपने उद्बोधन में मुख्यमंत्री डाॅ. निषंक ने प्राकृतिक वन सम्पदा के संरक्षण के लिए उत्तराखण्ड राज्य को प्रोत्साहन स्वरूप ग्रीन बोनस के रूप में प्रतिवर्ष 1000 करोड़ रूपये का विशेष पैकेज स्वीकृत करने की भी मांग की।
योजना आयोग के सम्मुख उत्तराखण्ड को प्रदत्त विशेष औद्योगिक पैकेज की अवधि 2013 से घटाकर मार्च 2010 में ही समाप्त करने का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके कारण राज्य में निवेषित धनराषि एवं लगभग दो लाख चैसठ हजार व्यक्तियों का रोजगार गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में औद्योगिक तथा निवेष का वातावरण कायम रखने के लिए विषेष औद्योगिक सहायता पैकेज को पुनर्जीवित कर वर्ष 2020 तक बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लम्बी अवधि से विकसित राज्यों की शैशवस्था से गुजर रहे पिछड़ेपन के आधार पर गठित राज्य उत्तराखण्ड अर्थात समान से असमान की तुलना करना कदापि उचित नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी धर्मावलम्बियों के तीर्थों एवं धार्मिक स्थानों हेतु उत्तराखण्ड राज्य के प्रसिद्ध होने के कारण इस राज्य में असंख्य श्रद्धालुओं का आवागमन होता है और इनसे सम्बन्धित मूलभूत सुविधाओं, कानून व्यवस्था, सुरक्षा, पेयजल, स्वच्छता, चिकित्सा, यातायात, पार्किंग आदि व्यवस्थाओं हेतु योजना आयोग के स्तर उत्तराखण्ड को 500 करोड़ रुपए की सहायता दिये जाने पर विचार किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार द्वारा राज्य की अनेक निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक के कारण राज्य सरकार को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए ऐसे अवसरों की क्षतिपूर्ति के साथ ही 2000 मेगावाट विद्युत केन्द्रीय पूल से निःशुल्क उपलब्ध कराने की मांग भी की। उन्होंने उत्तराखण्ड के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों के सूखने के कारण सदानीरा नदियों से पंम्पिंग योजनाओं के माध्यम से पेयजल उपलब्ध कराने के लिये निमार्णाधीन पम्पिंग योजनाओं को पूर्ण करने के लिए 500 करोड़ रुपए की विशेष केन्द्रीय सहायता पृथक से स्वीकृत किये जाने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री डाॅ0 निशंक ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में अतिवृष्टि, भू-स्खलन से मोटर मार्गों का अवरूद्ध होना एवं सड़क दुर्घटनाओं से तत्काल निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा राज्य को दैवी आपदा राहत के लिए प्रतिवर्ष विशेष पैकेज के रूप में आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के पूर्व सैनिकों के कल्याण एवं उन्हें पुनः सेवायोजित करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक विशेष कार्ययोजना के तहत उत्तराखण्ड को एक अलग से पैकेज दिया जाना अपेक्षित है।मुख्यमंत्री डाॅ0 निषंक ने कहा कि वर्तमान में राज्य में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन के सापेक्ष उच्च शिक्षा में नामांकन दर 10 प्रतिशत के लगभग है। मानक दर 33 प्रतिशत करने हेतु उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अवस्थापना सुविधाओं को सुदृढ़ किया जाना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु राज्य सरकार को केन्द्रीय सहायता की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि राज्य की जटिल भोैगोलिक परिस्थितियों तथा वन विभाग से अनापत्ति लेने में होने वाले विलम्ब से बचने हेतु अनुरोध किया कि मुख्य वन संरक्षक, केन्द्रीय क्षेत्र को 10 हैक्टेयर की जगह 20 हैक्टेयर वन भूमि के स्थानान्तरण करने का अधिकार अनुमन्य किया जाये। मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (मनरेगा) के प्रभावी एवं बेहतर प्रबन्धन के लिए इसके अन्तर्गत प्रषासनिक व्यय 6 प्रतिषत से बढ़ाकर 10 प्रतिषत किया जाना चाहिए। धनराषि अनेक किस्तों की बजाय दो किस्तों में जारी की जानी चाहिए। समाज के कमजोर वर्गों की माँग को ध्यान में रखते हुए 100 दिवसों के रोजगार की बजाय कम से कम 120 दिवसों का रोजगार दिया जाना चाहिए तथा परियोजना के अन्तर्गत सामग्री ;डंजमतपंसद्ध अंष को 40 प्रतिषत से बढ़ाकर 50 प्रतिषत किये जाने की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि त्वरित ऊर्जा विकास एवं सुधार परियोजना ;।च्क्त्च्द्ध के अन्तर्गत वर्तमान में 10 हजार से अधिक जनसंख्या के 31 नगर आच्छादित है। भारत सरकार से अनुरोध है कि राज्य की विरल जनसंख्या एवं छोटे कस्बों की बहुतायत को देखते हुए इस परियोजना के चयन हेतु जनसंख्या के मानक को 10 हजार से घटाकर 5 हजार किया जाय।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह वर्ष 11वीं पंचवर्षीय योजना का अन्तिम वर्ष है तथा आपके मार्गदर्शन में 12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्य चल रहा है। अतः यह उचित अवसर होगा कि हमारे राज्य द्वारा अनुभूत समस्याओं का समुचित निराकरण किया जाय। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों की लड़कियों की षिक्षा के लिए ‘‘गौरा देवी कन्या धन योजना’’ व गांवों के समग्र विकास के लिए प्रत्येक न्याय पंचायत में से एक ग्राम का चयन कर 670 ग्रामों में ‘‘अटल आदर्ष ग्राम योजना’’ प्रारम्भ की गई है। इसके अलावा राज्य के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों को यातायात सुविधाओं से जोड़ने के विशेष प्रयास किये जा रहें हैं। इसके लिए सड़क निर्माण, रज्जु मार्गों का निर्माण, हैलीपैड्स की स्थापना तथा राज्य के हवाई-अड्डों के विस्तारीकरण पर जोर दिया जा रहा है ताकि उच्च आय-वर्ग के पर्यटक राज्य की ओर आकर्षित हो सकंे। उन्होंने कहा कि राज्य में 73वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रावधानों के अनुरूप जनपद स्तरीय जिला नियोजन समितियों का गठन किया जा चुका है तथा चयनित प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर दी गई है।
डाॅ0 निषंक ने कहा कि वाह्य सहायतित परियोजनाओं, संसाधन आधारित केन्द्र पोषित योजनाओं, अन्य केन्द्रीय योजनाओं के राज्यांश की व्यवस्था, एवं जिला नियोजन समितियों द्वारा अनुमोदित योजनावार परिव्यय को सम्मिलित करते हुये राज्य संसाधन आधारित परिव्यय 6200 करोड़ रूपए के (प्रस्तावित) सापेक्ष लगभग 4136.45 करोड़ रूपए का परिव्यय वचनबद्ध मदों में प्रस्तावित है। अतः राज्य सेक्टर, जिसके अन्तर्गत क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु अतिमहत्वपूर्ण अवस्थापना एवं सामाजिक क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करना होता है, उसके लिये थ्सवंजपदह परिव्यय अत्यधिक कम रह जाता है। अतः वार्षिक योजना पर अन्तिम अनुमोदन के समय इस बिन्दु पर विचार किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर योजना आयोग के उपाध्यक्ष डाॅ0 मोेन्टेक सिंह आहलूवालिया ने उत्तराखण्ड द्वारा हाल के वर्षों में निरन्तर बेहतर प्रगति और विकास की गति बनाये रखने की सराहना करते हुए यकीन दिलाया कि केन्द्र के स्तर पर राज्य में बेहतर रेल तथा हवाई सेवाओं की सुविधाओं के विस्तार की मांग को मंजूर कराने में वह पूरी मदद देंगे। उन्होंने सलाह दी कि राज्य इन सेवाओं के लिए अपना प्रस्ताव षीघ्रता से उपलब्ध कराये। डाॅ0 आहलूवालिया ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे राष्ट्र में उत्तराखण्ड के बेहतर कार्य की भी सराहना की।
इससे पहले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री डाॅ0 निषंक ने देष के हिमालयी राज्यों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और समस्याओं का विस्तार से उल्लेख करते हुए पुराने हिमालयी राज्यों तथा उत्तर-पूर्व के अषान्त राज्यों के मुकाबले उत्तराखण्ड की आवष्यकताओं को भारत सरकार द्वारा नजरअंदाज करने का उल्लेख करते हुए कहा कि पड़ोसी देश चीन द्वारा भारतीय सीमा तक रेलवे का विकास किया जा रहा है। वर्तमान में बीजिंग से ल्हासा तक रेल मार्ग सृजित हो चुका है तथा उत्तराखण्ड की सीमा के सन्निकट तकलाकोट तक इसका विस्तार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि संघर्ष या युद्ध की स्थिति में सीमा तक सेना एवं सैन्य सामग्री की पहुंच शीघ्रतापूर्वक सुनिष्चित हो सके, इस हेतु भारत सरकार को ऋषिकेष-कर्णप्रयाग, टनकपुर- बागेष्वर, बागेष्वर-कर्णप्रयाग रेलवे परिपथ के निर्माण कार्य शीघ्र किये जाने की आवश्यकता है। डाॅ0 निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से शिमला-त्यूणी-लोहाघाट हिमालयन हाइवे (भ्पउंसंलंद भ्पहीूंल) का निर्माण कराया जाना आवश्यक है। इस प्रकार की संस्तुति हिमालयी राज्यों एवं क्षेत्रों की समस्याओं पर योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा गठित टास्क फोर्स ने भी अपनी रिपोर्ट में दी है। इसे शीघ्रता से कार्यरूप दिया जाये।
उत्तराखण्ड की चीन एवं नेपाल से क्रमशः 350 किमी0 एवं 275 किमी0 लम्बी अन्तर्राष्ट्रीय सीमायें खुली होने का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों के समेकित विकास के लिये बार्डर एरिया डेवलपमैन्ट प्लान के अन्तर्गत राज्य के सभी 26 सीमान्त विकासखण्डों के विकास हेतु तथा उन्हें सड़क, विद्युत, दूरसंचार सुविधाओं से जिला मुख्यालय से जोड़ने हेतु यह योजना लागू करने की मांग की।
इस मौके पर डाॅ0 निषंक ने अनुरोध किया कि उत्तराखण्ड में सभी केन्द्र पोषित योजनाओं का वित्त पोषण पूर्वोत्तर सीमान्त के राज्यों की भांति ही 90ः10 के अनुपात में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उग्र और अषान्त क्षेत्रों को शान्त क्षेत्रों के मुकाबले अधिक महत्व दिये जाने के दोहरे मापदण्ड से गलत संकेत जाते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड को 2001-02 में विषेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया था, परन्तु वित्त पोषण के मामले में इस राज्य की भारी उपेक्षा की जाती है, जिसके परिमार्जन के लिए 2001-02 से 2010-11 तक की अवधि की अवषेष धनराषि 2400 करोड़ रुपए एकमुष्त विषेष पैकेज के रुप में स्वीकृत की जाय।
उन्हांेने कहा कि उत्तराखण्ड भी पूर्वोत्तर राज्यों की भांति विशेष श्रेणी का राज्य है। अतः राज्य में नैनी-सैनी (पिथौरागढ़) चिन्यालीसौड़ (उत्तरकाशी) तथा गौचर (चमोली), हवाई-अड्डों का विकास भी इसी फार्मूले पर शत-प्रतिशत अवस्थापना अनुदान के माध्यम से भारत सरकार के वित्त पोषण से किया जाना आवश्यक है, क्योंकि ये तीनों स्थल संवेदनशील अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर भी स्थित हैं, तथा इनका सामरिक महत्व भी है। डाॅ0 निषंक ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची में रेलवे केन्द्रीय सूची का विषय है, इसके बावजूद उत्तराखण्ड सरकार पर रेलवे परियोजनाओं के लागत में 50 प्रतिषत की हिस्सेदारी वहन करने पर जोर डाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित मुजफ्फरनगर-रूड़की रेलमार्ग की निर्माण लागत भी शत्-प्रतिषत केन्द्र सरकार द्वारा वहन की जाये।
डाॅ0 निषंक ने बताया कि वर्ष 2010-11 में हुई रिकार्ड अतिवृष्टि के कारण विगत 10 वर्षो में राज्य ने जो परिसंपत्तियां एवं अवस्थापना सुविधायें सृजित की थीं वह बड़ी संख्या में ध्वस्त हो गई हैं। इसके साथ ही भारी भू-स्खलन के कारण 200 से अधिक गांव विनाश के कगार पर आ गये हैं, जिन्हें समय रहते अन्यत्र बसाया जाना आवश्यक है। इन्हें पुनस्र्थापित करने में लगभग 21000 करोड रूपये का व्यय अनुमानित है। इस प्राकृतिक विभीषिका को दृष्टिगत रखते हुए क्षतिग्रस्त योजनाओं की शीघ्र पुनस्र्थापना हेतु विशेष सहायता पैकेज दिया जाय।
मुख्यमंत्री ने अपने उद्बोधन में कहा कि उत्तराखण्ड को विशेष केन्द्रीय सहायता ;ैब्।द्ध के रूप में 60 करोड़ रुपए तथा विशेष आयोजनागत सहायता ;ैच्।द्ध में 300 करोड़ रुपए ही आबंटित हुए। उन्होंने इस मामले में भी अपने राज्य को हिमाचल की भांति ही विशेष केन्द्रीय सहायता एवं विशेष आयोजनागत सहायता स्वीकृत करने की मांग की। उन्हांेने आगे कहा कि उत्तराखण्ड में लगभग 65 प्रतिशत भू-भाग वनाच्छादित है तथा मात्र 13 प्रतिशत भूमि कृषि के अन्तर्गत है। वन क्षेत्र की अधिकता के कारण विभिन्न विकास गतिविधियों को संचालित करने में अनेक बाधायें उत्पन्न होती हैं। उत्तराखण्डवासियों का वनों के विकास में जन सहभागिता करते हुए राज्य में 12089 वन पंचायतें गठित की है तथा राज्य गठन के उपरान्त वनाच्छादित क्षेत्रफल में 1141 वर्ग कि0मी0 क्षेत्रफल की वृद्धि हुई है। हाल में सम्पन्न बाघ गणना में राज्य में बाघों की संख्या में भी वृद्धि हुई है, जबकि अन्य प्रदेशों में स्थिति भिन्न है फिर भी वन्य जीव संरक्षण हेतु उत्तराखण्ड को केन्द्र से संरक्षण, संवर्द्धन तथा सहायता के साथ ही जो विषेष दर्जा दिया जाना चाहिए वह अभी तक अप्राप्त है।
मुख्यमंत्री डाॅ0 निषंक ने जोर देकर कहा कि योजना आयोग, भारत सरकार द्वारा तैयार की गयी पर्यावरण रिपोर्ट में उत्तराखण्ड को पर्यावरणीय सेवाओं के संरक्षण के लिए देश के सभी राज्यों में प्रथम स्थान पर रखा गया है जिससे इस राज्य द्वारा किये जा रहे प्रयासों की पुष्टि होती है। इसके विपरीत वन संरक्षण अधिनियम एवं पर्यावरण सरंक्षण से सम्बन्धित विभिन्न नियमों का बोझ केवल इसी राज्य की जनता पर अनावष्यक रुप से डाला जा रहा है जिससे विकास कार्य अवरूद्ध हो रहे है।
डाॅ0 निषंक ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य द्वारा दी जा रही प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जीवनदायी पर्यावरणीय सेवाओं को वैज्ञानिक विधि से विभिन्न संस्थाओं द्वारा आंकलन किया गया है। इनके अनुसार राज्य द्वारा लगभग 35000 से 40000 करोड़ रुपए मूल्य की पारिस्थितिकीय सेवायें प्रतिवर्ष दी जानी आंकी गई है, जिनका लाभ देश ही नहीं अपितु विश्व को मिल रहा है। किन्तु इस पर्यावरण संरक्षण योगदान एवं अत्यन्त महत्वपूर्ण सेवा के एवज में राज्य को किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति नहीं की जा रही है। साथ ही उत्तराखण्ड के नदी नालों से रेता-बजरी चुगान पर भी केन्द्र द्वारा प्रतिबन्ध लगाया गया जबकि इस प्रकार का चुगान नदी नालों को नियंत्रित करने में सहायक होता है। अपने उद्बोधन में मुख्यमंत्री डाॅ. निषंक ने प्राकृतिक वन सम्पदा के संरक्षण के लिए उत्तराखण्ड राज्य को प्रोत्साहन स्वरूप ग्रीन बोनस के रूप में प्रतिवर्ष 1000 करोड़ रूपये का विशेष पैकेज स्वीकृत करने की भी मांग की।
योजना आयोग के सम्मुख उत्तराखण्ड को प्रदत्त विशेष औद्योगिक पैकेज की अवधि 2013 से घटाकर मार्च 2010 में ही समाप्त करने का उल्लेख करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके कारण राज्य में निवेषित धनराषि एवं लगभग दो लाख चैसठ हजार व्यक्तियों का रोजगार गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में औद्योगिक तथा निवेष का वातावरण कायम रखने के लिए विषेष औद्योगिक सहायता पैकेज को पुनर्जीवित कर वर्ष 2020 तक बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लम्बी अवधि से विकसित राज्यों की शैशवस्था से गुजर रहे पिछड़ेपन के आधार पर गठित राज्य उत्तराखण्ड अर्थात समान से असमान की तुलना करना कदापि उचित नहीं है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी धर्मावलम्बियों के तीर्थों एवं धार्मिक स्थानों हेतु उत्तराखण्ड राज्य के प्रसिद्ध होने के कारण इस राज्य में असंख्य श्रद्धालुओं का आवागमन होता है और इनसे सम्बन्धित मूलभूत सुविधाओं, कानून व्यवस्था, सुरक्षा, पेयजल, स्वच्छता, चिकित्सा, यातायात, पार्किंग आदि व्यवस्थाओं हेतु योजना आयोग के स्तर उत्तराखण्ड को 500 करोड़ रुपए की सहायता दिये जाने पर विचार किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार द्वारा राज्य की अनेक निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक के कारण राज्य सरकार को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग करते हुए ऐसे अवसरों की क्षतिपूर्ति के साथ ही 2000 मेगावाट विद्युत केन्द्रीय पूल से निःशुल्क उपलब्ध कराने की मांग भी की। उन्होंने उत्तराखण्ड के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्रोतों के सूखने के कारण सदानीरा नदियों से पंम्पिंग योजनाओं के माध्यम से पेयजल उपलब्ध कराने के लिये निमार्णाधीन पम्पिंग योजनाओं को पूर्ण करने के लिए 500 करोड़ रुपए की विशेष केन्द्रीय सहायता पृथक से स्वीकृत किये जाने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री डाॅ0 निशंक ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में अतिवृष्टि, भू-स्खलन से मोटर मार्गों का अवरूद्ध होना एवं सड़क दुर्घटनाओं से तत्काल निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा राज्य को दैवी आपदा राहत के लिए प्रतिवर्ष विशेष पैकेज के रूप में आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए। उन्होने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य के पूर्व सैनिकों के कल्याण एवं उन्हें पुनः सेवायोजित करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा एक विशेष कार्ययोजना के तहत उत्तराखण्ड को एक अलग से पैकेज दिया जाना अपेक्षित है।मुख्यमंत्री डाॅ0 निषंक ने कहा कि वर्तमान में राज्य में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन के सापेक्ष उच्च शिक्षा में नामांकन दर 10 प्रतिशत के लगभग है। मानक दर 33 प्रतिशत करने हेतु उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अवस्थापना सुविधाओं को सुदृढ़ किया जाना है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु राज्य सरकार को केन्द्रीय सहायता की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि राज्य की जटिल भोैगोलिक परिस्थितियों तथा वन विभाग से अनापत्ति लेने में होने वाले विलम्ब से बचने हेतु अनुरोध किया कि मुख्य वन संरक्षक, केन्द्रीय क्षेत्र को 10 हैक्टेयर की जगह 20 हैक्टेयर वन भूमि के स्थानान्तरण करने का अधिकार अनुमन्य किया जाये। मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (मनरेगा) के प्रभावी एवं बेहतर प्रबन्धन के लिए इसके अन्तर्गत प्रषासनिक व्यय 6 प्रतिषत से बढ़ाकर 10 प्रतिषत किया जाना चाहिए। धनराषि अनेक किस्तों की बजाय दो किस्तों में जारी की जानी चाहिए। समाज के कमजोर वर्गों की माँग को ध्यान में रखते हुए 100 दिवसों के रोजगार की बजाय कम से कम 120 दिवसों का रोजगार दिया जाना चाहिए तथा परियोजना के अन्तर्गत सामग्री ;डंजमतपंसद्ध अंष को 40 प्रतिषत से बढ़ाकर 50 प्रतिषत किये जाने की आवष्यकता है। उन्होंने कहा कि त्वरित ऊर्जा विकास एवं सुधार परियोजना ;।च्क्त्च्द्ध के अन्तर्गत वर्तमान में 10 हजार से अधिक जनसंख्या के 31 नगर आच्छादित है। भारत सरकार से अनुरोध है कि राज्य की विरल जनसंख्या एवं छोटे कस्बों की बहुतायत को देखते हुए इस परियोजना के चयन हेतु जनसंख्या के मानक को 10 हजार से घटाकर 5 हजार किया जाय।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह वर्ष 11वीं पंचवर्षीय योजना का अन्तिम वर्ष है तथा आपके मार्गदर्शन में 12वीं पंचवर्षीय योजना का कार्य चल रहा है। अतः यह उचित अवसर होगा कि हमारे राज्य द्वारा अनुभूत समस्याओं का समुचित निराकरण किया जाय। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों की लड़कियों की षिक्षा के लिए ‘‘गौरा देवी कन्या धन योजना’’ व गांवों के समग्र विकास के लिए प्रत्येक न्याय पंचायत में से एक ग्राम का चयन कर 670 ग्रामों में ‘‘अटल आदर्ष ग्राम योजना’’ प्रारम्भ की गई है। इसके अलावा राज्य के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों को यातायात सुविधाओं से जोड़ने के विशेष प्रयास किये जा रहें हैं। इसके लिए सड़क निर्माण, रज्जु मार्गों का निर्माण, हैलीपैड्स की स्थापना तथा राज्य के हवाई-अड्डों के विस्तारीकरण पर जोर दिया जा रहा है ताकि उच्च आय-वर्ग के पर्यटक राज्य की ओर आकर्षित हो सकंे। उन्होंने कहा कि राज्य में 73वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रावधानों के अनुरूप जनपद स्तरीय जिला नियोजन समितियों का गठन किया जा चुका है तथा चयनित प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर दी गई है।
डाॅ0 निषंक ने कहा कि वाह्य सहायतित परियोजनाओं, संसाधन आधारित केन्द्र पोषित योजनाओं, अन्य केन्द्रीय योजनाओं के राज्यांश की व्यवस्था, एवं जिला नियोजन समितियों द्वारा अनुमोदित योजनावार परिव्यय को सम्मिलित करते हुये राज्य संसाधन आधारित परिव्यय 6200 करोड़ रूपए के (प्रस्तावित) सापेक्ष लगभग 4136.45 करोड़ रूपए का परिव्यय वचनबद्ध मदों में प्रस्तावित है। अतः राज्य सेक्टर, जिसके अन्तर्गत क्षेत्रीय आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु अतिमहत्वपूर्ण अवस्थापना एवं सामाजिक क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करना होता है, उसके लिये थ्सवंजपदह परिव्यय अत्यधिक कम रह जाता है। अतः वार्षिक योजना पर अन्तिम अनुमोदन के समय इस बिन्दु पर विचार किया जाना चाहिए।